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=== बूढ़ी तीज ===
 
=== बूढ़ी तीज ===
 
यह भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनायी जाती है। इस दिन व्रत रखकर गायों का पूजन करें तथा सात गायों के लिए सात आटे की लोई बनायें और उनको गुड़, घी आदि सहित गायों को खिला दें, फिर स्वयं भोजन करें। इस दिन बहुओं के शृंगार का सामान व साड़ी (सिंधारा) दिया जाता है और बहुए चीनी और रुपयों का बायना निकालकर अपनी सासु मां को पैर छूकर देती हैं।
 
यह भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनायी जाती है। इस दिन व्रत रखकर गायों का पूजन करें तथा सात गायों के लिए सात आटे की लोई बनायें और उनको गुड़, घी आदि सहित गायों को खिला दें, फिर स्वयं भोजन करें। इस दिन बहुओं के शृंगार का सामान व साड़ी (सिंधारा) दिया जाता है और बहुए चीनी और रुपयों का बायना निकालकर अपनी सासु मां को पैर छूकर देती हैं।
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=== कजरी तीज ===
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यह भी भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनायी जाती है। यह खास तौर से बनारस के आस-पास मनायी जाती है। नाव में बैठकर कजरी बाम के गीत गाये जाते हैं। कजरी गीत गाने व सुनने वालों का मन मस्त हो जाता है।
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=== गणेश चतुर्थी ===
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भाद्रपद कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का व्रत चैत्र की चतुर्थी की तरह करते हुए कथा सुननी चाहिए। इसको बहुला चतुर्थी भी कहते हैं।
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=== गूगा पंचमी ===
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यह त्यौहार भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष को पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। सर्वप्रथम एक कटोरी में दूध लेकर सर्पो को पिलाना चाहिए; अर्थात् सांपों के बिलों में डाल देना चाहिए फिर घर आकर दीवार को गेरू से पोतकर दूध में कोयला धिसकर चौकोर घर जैसा बनाकर उसमें पांच सर्प बनायें और उनको जल, कच्चा दूध, रोली, चावल, बाजरे का आटा, घी और चीनी मिलाकर चढ़ायें साथ में दक्षिणा भी चढ़ायें। तत्पश्चात् नागपंचमी की कहानी सुनें। भीगे हुए मोठ-बाजरे का बायना निकालकर अपनी सासु मां को पैर छूकर दें। इस व्रत के प्रभाव से स्त्री सौभाग्यवती होती है। पति की विपत्तियों से रक्षा होती है तथा सभी मनोकामनाएं सिद्ध होती हैं।
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=== चाना-छठ ===
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यह व्रत भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। यह व्रत केवल कुंवारी कन्याओं को करना चाहिए। इस दिन व्रत रखने वाली कुंवारियां निराहार रहकर पूजन करती हैं। एक पट्टे पर जल से भरे लोटे पर रोली से एक स्वास्तिक (सतिया) बनायें और लोटे की किनारी पर रोली से सात बिन्दी लगायें। एक गिलास गेहूं से भरकर उस पर दक्षिणा रखें। फिर हाथ में सात-सात दाने गेहूं के लेकर कहानी सुनें। कहानी सुनने के पश्चात् लोटे में भरे जल से चन्द्रमा को अर्घ्य दें और गेहूं और दक्षिणा को ब्राह्मणी को दे दें। जिस समय कहानी सुनते हैं उस समय एक कलश जल का भरकर रख लेते हैं और बाद में उसी जल से भोजन तैयार करें। चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करें |
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==== चाना छठ की कहानी  ====
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एक नगर में एक सहकर और उसकी पत्नी रहते थे |
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