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नीचे दी गई ९४ सामाजिक समस्याओं की सूची में से लगभग ६६ समस्याओं का हल संयुक्त परिवारों की प्रतिष्ठापना में है। वैसे तो संयुक्त परिवार के साथ में अन्य भी बातें आवश्यक होंगी। लेकिन समस्या के हल में संयुक्त परिवार की प्रधानता होगी।  
 
नीचे दी गई ९४ सामाजिक समस्याओं की सूची में से लगभग ६६ समस्याओं का हल संयुक्त परिवारों की प्रतिष्ठापना में है। वैसे तो संयुक्त परिवार के साथ में अन्य भी बातें आवश्यक होंगी। लेकिन समस्या के हल में संयुक्त परिवार की प्रधानता होगी।  
 
समस्याओं की सूची:
 
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# रासायनिक प्रदूषण
 
# रासायनिक प्रदूषण
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# टूटते कौटुंबिक उद्योग
 
# टूटते कौटुंबिक उद्योग
 
# गलाकाट स्पर्धा
 
# गलाकाट स्पर्धा
# अधिकार रक्षा के लिये संगठन  ८ जातिव्यवस्था नाश की हानियाँ  ९ अयुक्तिसंगत शासन व्यवस्था  १० संपर्क भाषा      ११ लंबित न्याय  १२ अक्षम न्याय व्यवस्था  १३ नौकरों का समाज  १४ जन, धन, उत्पादन और सत्ता का केंद्रीकरण      १५ मँहंगाई  १६ परिवार भी बाजार भावना से चलना  १७ अर्थ का अभाव और प्रभाव  १८ किसानों की आत्महत्याएँ        १९ हरित गृह परिणाम (बढता वैश्विक तापमान)  २० आरक्षण की चौमुखी बढती माँग  २१ विपरीत शिक्षा २२ असहिष्णू मजहबोंद्वारा आरक्षण की माँग  २३ संस्कारहीनता  २४ स्वैराचार  २५ व्यक्तिकेंद्रिता(स्वार्थ)  २६ जातिभेद    २७ शिशू-संगोपन गृह  २८ अनाथाश्रम  २९ विधवाश्रम  ३० अपंगाश्रम      ३१ बाल सुधार गृह  ३२ वृध्दाश्रम  ३३ श्रध्दाहीनता    ३४  अपराधीकरण  ३५ व्यसनाधीनता  ३६ असामाजिकीकरण  ३७ आत्मसंभ्रम    ३८ विदेशियों का अंधानुकरण        ३९  आतंकवाद  ४० संपर्क भाषा  ४१ प्रज्ञा पलायन  ४२ प्रादेशिक अस्मिताएँ  ४३ नदी-जल विवाद    ४४ विदेशियों की घूसखोरी  ४५ विदेशी शक्तियों का व्यापक समर्थन  ४६ राष्ट्रीय हीनताबोध ४७ विदेशी शक्तियों के भौगोलिक प्रभाव क्षेत्र निर्माण  ४८ वैश्विक शक्तियों के दबाव (वैश्विकरण)  ४९ अस्वच्छता  ५० स्त्रियोंपर अत्याचार  ५१ अयोग्यों को अधिकार        ५२ सांस्कृतिक प्रदूषण  ५४ भ्रष्टाचार (धर्म, शिक्षा, शासन ऐसे सभी क्षेत्रों में)  ५५ लव्ह जिहाद ५६ असहिष्णू मजहबों को विशेष अधिकार  ५७ सामाजिक विद्वेष ५८ जातियों में वैमनस्य ५९ सृष्टि का शोषण  ६० वैचारिक प्रदूषण  ६१ दूरदर्शन का दुरूपयोग  ६२ आंतरजाल का दुरूपयोग  ६३ मजहबी मूलतत्ववाद  ६४ तालाबीकरण के स्थानपर बडे बांध/खेत तालाब  ६५ हानिकारक तंत्रज्ञानों की मुक्त उपलब्धता  ६६ बेरोजगारी  ६७ उपभोक्तावाद  ६८ बालमृत्यू  ६९ कुपोषण  ७० स्त्रियों का पुरूषीकरण / बढती नपुंसकता    ७१ भुखमरी  ७२ भ्रूणहत्या  ७३ स्त्री-भ्रूणहत्या  ७४ तनाव    ७५ जिद्दी बच्चे        ७६ घटता पौरूष - घटता स्त्रीत्व    ७७ बढती घरेलू हिंसा  ७८ झूठे विज्ञापन ७९ घटता संवाद  ८० देशी भाषाओं का नाश  ८१ बालक-युवाओं की आत्महत्याएँ  ८२ बढते दुर्धर रोग  ८३ असंगठित सज्जन  ८४ उपभोक्तावाद  ८५ बढती अश्लीलता  ८६ अणू, प्लॅस्टिक जैसे बढते लाजबाब कचरे   ८७ बढती शहरी आबादी-उजडते गाँव  ८८ तंत्रज्ञानों का दुरूपयोग  ८९ बदले आदर्श - अभिनेता, क्रिकेट खिलाडी           ९० लोकशिक्षा का अभाव  ९१ बूढा समाज  ९२ राष्ट्र की घटती भौगोलिक सीमाएँ  ९३ भ्रूणहत्या को कानूनी समर्थन  ९४ जीवन की असहनीय गति संयुक्त कुटुंबों से हल होनेवाली समस्याओं की सूचि  १ पगढ़ीलापन  २ उपभोक्तावाद  ३ गोवंश नाश  ४ टूटते पारिवारिक उद्योग  ५ गलाकाट स्पर्धा  ६ अधिकार रक्षा के लिये संगठन  ७ जातिव्यवस्था नाश की हानियाँ  ८ संपर्क भाषा  ९ नौकरों का समाज  १० जन, धन, उत्पादन और सत्ता का केंद्रीकरण  ११ मँहंगाई  १२ परिवार भी बाजार भावना से चलना  १३ किसानों की आत्महत्याएँ  १४ आरक्षण की चौमुखी बढती माँग  १५ संस्कारहीनता  १६ स्वैराचार  १७ व्यक्तिकेंद्रिता(स्वार्थ)  १८ जातिभेद  १९ शिशू-संगोपन गृह  २० अनाथाश्रम    २१ विधवाश्रम  २२ अपंगाश्रम  २३ बाल सुधार गृह  २४ वृध्दाश्रम  २५ श्रध्दाहीनता  २६ अपराधीकरण  २७ व्यसनाधीनता    २९ असामाजिकीकरण  ३० प्रज्ञा पलायन  ३१ प्रादेशिक अस्मिताएँ  ३२ नदी-जल विवाद  ३३ अस्वच्छता ३४ स्त्रियोंपर अत्याचार  ३५ सांस्कृतिक प्रदूषण  ३६ लव्ह जिहाद  ३७ सामाजिक विद्वेष  ३८ जातियों में वैमनस्य  ३९ जिद्दी बच्चे      ४०  वैचारिक प्रदूषण  ४१ दूरदर्शन का दुरूपयोग  ४२ आंतरजाल का दुरूपयोग  ४३ बालमृत्यू  ४४ कुपोषण  ४५ भुखमरी  ४६ सृष्टि का शोषण  ४४ हानिकारक तंत्रज्ञानों की मुक्त उपलब्धता  ४५ बेरोजगारी  ४९ भ्रूणहत्या ५० स्त्री-भ्रूणहत्या  ५१  तनाव  ५२ उपभोक्तावाद  ५३ घटता पौरूष - घटता स्त्रीत्व  ५४ घटता संवाद  ५५ बढती घरेलू हिंसा  ५६ बालक-युवाओं की आत्महत्याएँ  ५७ बढते दुर्धर रोग  ५८ ग्राम के तालाबीकरण के स्थानपर बडे बांध/खेत तालाब  ५९ बढती अश्लीलता    ६० अणू, प्लॅस्टिक जैसे बढते लाजबाब कचरे  ६१ बढती शहरी आबादी-उजडते गाँव  ६२ तंत्रज्ञानों का दुरूपयोग  ६३ बदले आदर्श - अभिनेता, क्रिकेट खिलाडी  ६४ लोकशिक्षा का अभाव ६५ बूढा समाज  ६६ जीवन की असहनीय गति संयुक्त परिवारों के दृढीकरण और पुन: प्रतिष्ठापना की गणितीय प्रक्रिया सर्वप्रथम तो हमें यह ध्यान में लेना होगा कि हम संयुक्त परिवारों की दिव्य परंपरा को तोडने की दिशा में काफी आगे बढ गए हैं। इसलिये इसे फिर से पटरीपर लाने के लिये समाज के श्रेष्ठजनों को, समझदार लोगों को कुछ पीढियोंतक तपस्या करनी होगी। कम से कम तीन पीढीयों की योजना बनानी होगी। सरल गणीतीय हल निम्न होगा। - पहली (यानि यथासंभव वर्तमान) पीढी में प्रत्येक दंपति के चार बच्चे हों। इससे छ: का कुटुंब बन जाएगा। यथासंभव इसी पीढी में व्यवसाय या जीविका और आजीविका का चयन करना उचित होगा। व्यवसाय चयन करते समय बढते परिवार के साथ साथ ही बढ सके ऐसे कौटुंबिक उद्योग का चयन करना होगा। - दूसरी पीढी में फिर चार-चार बच्चे हों। पहली पीढी के चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मान लें तो अगली पीढी में फिर प्रत्येक दंपति को चार बच्चे होने से अब परिवार १४ का बन जाएगा। कुटुंब के साथ ही व्यवसाय या जीविका और आजीविका के साधनों में भी वृध्दि होगी।         - तीसरी पीढी में भी हर चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मानकर अब यह कुटुंब ३० लोगों का बन जाएगा। अब यह वास्तव में संयुक्त कुटुंब के वास्तविक और लगभग सभी लाभ देने लगेगा।               संयुक्त परिवारों की पुन: प्रतिष्ठापना और दृढीकरण संयुक्त कुटुंब के असीम लाभ होने के उपरांत भी इसे प्रत्यक्ष में लाना अत्यंत कठिन है। विपरीत शिक्षा ने पुरानी पीढी के साथ ही युवा पिढी की मानसिकता बिगाड डाली है। अब हम इतने आगे आ गये हैं कि अब लौटना संभव नहीं है'। ऐसी दलील दी जाती है। १० पीढ़ियों की विपरीत शिक्षा के फलस्वरूप उत्पन्न हुई व्यक्तिवादिता की भावना के कारण स्त्री के शोषण का जो वातावरण और जो व्यवस्था खडी हो गयी है उसे अपनी सुरक्षा को खतरे में डालकर भी स्त्रियाँ गँवाना नहीं चाहतीं। अपना पूरा समय अपनी पैसा कमाने की क्षमता बढाने के लिये युवा पीढी खर्च करना चाहती है। इहवादी संकीर्ण सोच के कारण आगे क्या होगा किसने देखा है ऐसी मानसिकता समाजव्यापि बन गई है। व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जडवादिता की शिक्षा ने मनुष्य को स्वार्थी, उपभोगवादी और जड बुध्दि का बना दिया है। पेड से टूटे हुए जड पत्ते की तरह वह परस्थिति के थपेडे सहते हुए केवल अपने लिये सोचने को ही पुरूषार्थ समझने लगा है। समाज जीवन को श्रेष्ठ और चिरंजीवी बनाने को वह अपना दायित्व नहीं मानता। सामाजिक उन्नयन के लिये मैं इस जन्म में तो क्या जन्म जन्मांतर भगीरथ प्रयास करूंगा ऐसा वह नहीं सोचता। नई पीढी के लोगों को समझाने से पहले वर्तमान मार्गदर्शक पीढी के लोगों को उनके आत्मविश्वासहीन और न्यूनताबोध की मानसिकता से बाहर आना होगा। लोगों को समझाने के लिये ही बहुत सारी शक्ति लगानी होगी। वर्तमान में भी जो संयुक्त परिवार चला रहे हैं उन्हें उच्चतम पुरस्कारों से सम्मानित करना होगा। सामाजिक दबाव बनाकर संयुक्त कुटुंब विरोधी भूमिका रखनेवालों को निष्प्रभ करना होगा। कुटुंबों में और विद्यालयों में जहाँ भी संभव है इस योजना का महत्व युवा वर्ग को समझाना होगा। युवक-युवतियों की मानसिकता बदलनी होगी। नये पैदा होनेवाले बच्चों को योजना से जन्म देना होगा। गर्भ से ही संयुक्त परिवार का आग्रह संस्कारों से प्राप्त करने के कारण दूसरी पीढी में कुछ राहत मिल सकती है। तीसरी पीढी में जब इस व्यवस्था के लाभ मिलने लगेंगे तब इस योजना को चलाने में और विस्तार देने में अधिक सहजता आएगी। इस के लिये निम्न कुछ बातों का आग्रह करना होगा। १.  अपने से प्रारंभ करना। हो सके तो अपने भाईयों के साथ बात कर, उन्हें समझाकर एकसाथ रहना प्रारंभ करना।  २.  अपने बच्चों को संयुक्त कुटुंब का महत्व समझाना। वे विभक्त नहीं हों इसलिये हर संभव प्रयास करना।
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# अधिकार रक्षा के लिये संगठन  ८ जातिव्यवस्था नाश की हानियाँ  ९ अयुक्तिसंगत शासन व्यवस्था  १० संपर्क भाषा      ११ लंबित न्याय  १२ अक्षम न्याय व्यवस्था  १३ नौकरों का समाज  १४ जन, धन, उत्पादन और सत्ता का केंद्रीकरण      १५ मँहंगाई  १६ परिवार भी बाजार भावना से चलना  १७ अर्थ का अभाव और प्रभाव  १८ किसानों की आत्महत्याएँ        १९ हरित गृह परिणाम (बढता वैश्विक तापमान)  २० आरक्षण की चौमुखी बढती माँग  २१ विपरीत शिक्षा २२ असहिष्णू मजहबोंद्वारा आरक्षण की माँग  २३ संस्कारहीनता  २४ स्वैराचार  २५ व्यक्तिकेंद्रिता(स्वार्थ)  २६ जातिभेद    २७ शिशू-संगोपन गृह  २८ अनाथाश्रम  २९ विधवाश्रम  ३० अपंगाश्रम      ३१ बाल सुधार गृह  ३२ वृध्दाश्रम  ३३ श्रध्दाहीनता    ३४  अपराधीकरण  ३५ व्यसनाधीनता  ३६ असामाजिकीकरण  ३७ आत्मसंभ्रम    ३८ विदेशियों का अंधानुकरण        ३९  आतंकवाद  ४० संपर्क भाषा  ४१ प्रज्ञा पलायन  ४२ प्रादेशिक अस्मिताएँ  ४३ नदी-जल विवाद    ४४ विदेशियों की घूसखोरी  ४५ विदेशी शक्तियों का व्यापक समर्थन  ४६ राष्ट्रीय हीनताबोध ४७ विदेशी शक्तियों के भौगोलिक प्रभाव क्षेत्र निर्माण  ४८ वैश्विक शक्तियों के दबाव (वैश्विकरण)  ४९ अस्वच्छता  ५० स्त्रियोंपर अत्याचार  ५१ अयोग्यों को अधिकार        ५२ सांस्कृतिक प्रदूषण  ५४ भ्रष्टाचार (धर्म, शिक्षा, शासन ऐसे सभी क्षेत्रों में)  ५५ लव्ह जिहाद ५६ असहिष्णू मजहबों को विशेष अधिकार  ५७ सामाजिक विद्वेष ५८ जातियों में वैमनस्य ५९ सृष्टि का शोषण  ६० वैचारिक प्रदूषण  ६१ दूरदर्शन का दुरूपयोग  ६२ आंतरजाल का दुरूपयोग  ६३ मजहबी मूलतत्ववाद  ६४ तालाबीकरण के स्थानपर बडे बांध/खेत तालाब  ६५ हानिकारक तंत्रज्ञानों की मुक्त उपलब्धता  ६६ बेरोजगारी  ६७ उपभोक्तावाद  ६८ बालमृत्यू  ६९ कुपोषण  ७० स्त्रियों का पुरूषीकरण / बढती नपुंसकता    ७१ भुखमरी  ७२ भ्रूणहत्या  ७३ स्त्री-भ्रूणहत्या  ७४ तनाव    ७५ जिद्दी बच्चे        ७६ घटता पौरूष - घटता स्त्रीत्व    ७७ बढती घरेलू हिंसा  ७८ झूठे विज्ञापन ७९ घटता संवाद  ८० देशी भाषाओं का नाश  ८१ बालक-युवाओं की आत्महत्याएँ  ८२ बढते दुर्धर रोग  ८३ असंगठित सज्जन  ८४ उपभोक्तावाद  ८५ बढती अश्लीलता  ८६ अणू, प्लॅस्टिक जैसे बढते लाजबाब कचरे   ८७ बढती शहरी आबादी-उजडते गाँव  ८८ तंत्रज्ञानों का दुरूपयोग  ८९ बदले आदर्श - अभिनेता, क्रिकेट खिलाडी           ९० लोकशिक्षा का अभाव  ९१ बूढा समाज  ९२ राष्ट्र की घटती भौगोलिक सीमाएँ  ९३ भ्रूणहत्या को कानूनी समर्थन  ९४ जीवन की असहनीय गति संयुक्त कुटुंबों से हल होनेवाली समस्याओं की सूचि  १ पगढ़ीलापन  २ उपभोक्तावाद  ३ गोवंश नाश  ४ टूटते पारिवारिक उद्योग  ५ गलाकाट स्पर्धा  ६ अधिकार रक्षा के लिये संगठन  ७ जातिव्यवस्था नाश की हानियाँ  ८ संपर्क भाषा  ९ नौकरों का समाज  १० जन, धन, उत्पादन और सत्ता का केंद्रीकरण  ११ मँहंगाई  १२ परिवार भी बाजार भावना से चलना  १३ किसानों की आत्महत्याएँ  १४ आरक्षण की चौमुखी बढती माँग  १५ संस्कारहीनता  १६ स्वैराचार  १७ व्यक्तिकेंद्रिता(स्वार्थ)  १८ जातिभेद  १९ शिशू-संगोपन गृह  २० अनाथाश्रम    २१ विधवाश्रम  २२ अपंगाश्रम  २३ बाल सुधार गृह  २४ वृध्दाश्रम  २५ श्रध्दाहीनता  २६ अपराधीकरण  २७ व्यसनाधीनता    २९ असामाजिकीकरण  ३० प्रज्ञा पलायन  ३१ प्रादेशिक अस्मिताएँ  ३२ नदी-जल विवाद  ३३ अस्वच्छता ३४ स्त्रियोंपर अत्याचार  ३५ सांस्कृतिक प्रदूषण  ३६ लव्ह जिहाद  ३७ सामाजिक विद्वेष  ३८ जातियों में वैमनस्य  ३९ जिद्दी बच्चे      ४०  वैचारिक प्रदूषण  ४१ दूरदर्शन का दुरूपयोग  ४२ आंतरजाल का दुरूपयोग  ४३ बालमृत्यू  ४४ कुपोषण  ४५ भुखमरी  ४६ सृष्टि का शोषण  ४४ हानिकारक तंत्रज्ञानों की मुक्त उपलब्धता  ४५ बेरोजगारी  ४९ भ्रूणहत्या ५० स्त्री-भ्रूणहत्या  ५१  तनाव  ५२ उपभोक्तावाद  ५३ घटता पौरूष - घटता स्त्रीत्व  ५४ घटता संवाद  ५५ बढती घरेलू हिंसा  ५६ बालक-युवाओं की आत्महत्याएँ  ५७ बढते दुर्धर रोग  ५८ ग्राम के तालाबीकरण के स्थानपर बडे बांध/खेत तालाब  ५९ बढती अश्लीलता    ६० अणू, प्लॅस्टिक जैसे बढते लाजबाब कचरे  ६१ बढती शहरी आबादी-उजडते गाँव  ६२ तंत्रज्ञानों का दुरूपयोग  ६३ बदले आदर्श - अभिनेता, क्रिकेट खिलाडी  ६४ लोकशिक्षा का अभाव
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  ६५ बूढा समाज  ६६ जीवन की असहनीय गति संयुक्त परिवारों के दृढीकरण और पुन: प्रतिष्ठापना की गणितीय प्रक्रिया सर्वप्रथम तो हमें यह ध्यान में लेना होगा कि हम संयुक्त परिवारों की दिव्य परंपरा को तोडने की दिशा में काफी आगे बढ गए हैं। इसलिये इसे फिर से पटरीपर लाने के लिये समाज के श्रेष्ठजनों को, समझदार लोगों को कुछ पीढियोंतक तपस्या करनी होगी। कम से कम तीन पीढीयों की योजना बनानी होगी। सरल गणीतीय हल निम्न होगा। - पहली (यानि यथासंभव वर्तमान) पीढी में प्रत्येक दंपति के चार बच्चे हों। इससे छ: का कुटुंब बन जाएगा। यथासंभव इसी पीढी में व्यवसाय या जीविका और आजीविका का चयन करना उचित होगा। व्यवसाय चयन करते समय बढते परिवार के साथ साथ ही बढ सके ऐसे कौटुंबिक उद्योग का चयन करना होगा। - दूसरी पीढी में फिर चार-चार बच्चे हों। पहली पीढी के चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मान लें तो अगली पीढी में फिर प्रत्येक दंपति को चार बच्चे होने से अब परिवार १४ का बन जाएगा। कुटुंब के साथ ही व्यवसाय या जीविका और आजीविका के साधनों में भी वृध्दि होगी।         - तीसरी पीढी में भी हर चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मानकर अब यह कुटुंब ३० लोगों का बन जाएगा। अब यह वास्तव में संयुक्त कुटुंब के वास्तविक और लगभग सभी लाभ देने लगेगा।               संयुक्त परिवारों की पुन: प्रतिष्ठापना और दृढीकरण संयुक्त कुटुंब के असीम लाभ होने के उपरांत भी इसे प्रत्यक्ष में लाना अत्यंत कठिन है। विपरीत शिक्षा ने पुरानी पीढी के साथ ही युवा पिढी की मानसिकता बिगाड डाली है। अब हम इतने आगे आ गये हैं कि अब लौटना संभव नहीं है'। ऐसी दलील दी जाती है। १० पीढ़ियों की विपरीत शिक्षा के फलस्वरूप उत्पन्न हुई व्यक्तिवादिता की भावना के कारण स्त्री के शोषण का जो वातावरण और जो व्यवस्था खडी हो गयी है उसे अपनी सुरक्षा को खतरे में डालकर भी स्त्रियाँ गँवाना नहीं चाहतीं। अपना पूरा समय अपनी पैसा कमाने की क्षमता बढाने के लिये युवा पीढी खर्च करना चाहती है। इहवादी संकीर्ण सोच के कारण आगे क्या होगा किसने देखा है ऐसी मानसिकता समाजव्यापि बन गई है। व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जडवादिता की शिक्षा ने मनुष्य को स्वार्थी, उपभोगवादी और जड बुध्दि का बना दिया है। पेड से टूटे हुए जड पत्ते की तरह वह परस्थिति के थपेडे सहते हुए केवल अपने लिये सोचने को ही पुरूषार्थ समझने लगा है। समाज जीवन को श्रेष्ठ और चिरंजीवी बनाने को वह अपना दायित्व नहीं मानता। सामाजिक उन्नयन के लिये मैं इस जन्म में तो क्या जन्म जन्मांतर भगीरथ प्रयास करूंगा ऐसा वह नहीं सोचता। नई पीढी के लोगों को समझाने से पहले वर्तमान मार्गदर्शक पीढी के लोगों को उनके आत्मविश्वासहीन और न्यूनताबोध की मानसिकता से बाहर आना होगा। लोगों को समझाने के लिये ही बहुत सारी शक्ति लगानी होगी। वर्तमान में भी जो संयुक्त परिवार चला रहे हैं उन्हें उच्चतम पुरस्कारों से सम्मानित करना होगा। सामाजिक दबाव बनाकर संयुक्त कुटुंब विरोधी भूमिका रखनेवालों को निष्प्रभ करना होगा। कुटुंबों में और विद्यालयों में जहाँ भी संभव है इस योजना का महत्व युवा वर्ग को समझाना होगा। युवक-युवतियों की मानसिकता बदलनी होगी। नये पैदा होनेवाले बच्चों को योजना से जन्म देना होगा। गर्भ से ही संयुक्त परिवार का आग्रह संस्कारों से प्राप्त करने के कारण दूसरी पीढी में कुछ राहत मिल सकती है। तीसरी पीढी में जब इस व्यवस्था के लाभ मिलने लगेंगे तब इस योजना को चलाने में और विस्तार देने में अधिक सहजता आएगी। इस के लिये निम्न कुछ बातों का आग्रह करना होगा। १.  अपने से प्रारंभ करना। हो सके तो अपने भाईयों के साथ बात कर, उन्हें समझाकर एकसाथ रहना प्रारंभ करना।  २.  अपने बच्चों को संयुक्त कुटुंब का महत्व समझाना। वे विभक्त नहीं हों इसलिये हर संभव प्रयास करना।
 
     यथासंभव अपने बच्चोंपर व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जडवादिता के संस्कार नहीं हों इसे सुनिश्चित करना। इस हेतु     
 
     यथासंभव अपने बच्चोंपर व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जडवादिता के संस्कार नहीं हों इसे सुनिश्चित करना। इस हेतु     
 
     विद्यालयों में और समाज में जो विपरीत वातावरण है उससे बच्चों की रक्षा करना।  
 
     विद्यालयों में और समाज में जो विपरीत वातावरण है उससे बच्चों की रक्षा करना।  
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