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सर्वप्रथम तो हमें यह ध्यान में लेना होगा कि हम संयुक्त परिवारों की दिव्य परंपरा को तोडने की दिशा में काफी आगे बढ गए हैं। इसलिये इसे फिर से पटरी पर लाने के लिये समाज के श्रेष्ठजनों को, समझदार लोगोंं को कुछ पीढियों तक तपस्या करनी होगी। कम से कम तीन पीढियों की योजना बनानी होगी। सरल गणीतीय हल निम्न होगा:
 
सर्वप्रथम तो हमें यह ध्यान में लेना होगा कि हम संयुक्त परिवारों की दिव्य परंपरा को तोडने की दिशा में काफी आगे बढ गए हैं। इसलिये इसे फिर से पटरी पर लाने के लिये समाज के श्रेष्ठजनों को, समझदार लोगोंं को कुछ पीढियों तक तपस्या करनी होगी। कम से कम तीन पीढियों की योजना बनानी होगी। सरल गणीतीय हल निम्न होगा:
 
* पहली (यानि यथासंभव वर्तमान) पीढी में प्रत्येक दंपति के चार बच्चे हों। इससे छ: का कुटुंब बन जाएगा। यथासंभव इसी पीढी में व्यवसाय या जीविका और आजीविका का चयन करना उचित होगा। व्यवसाय चयन करते समय बढते परिवार के साथ साथ ही बढ सके ऐसे कौटुंबिक उद्योग का चयन करना होगा।
 
* पहली (यानि यथासंभव वर्तमान) पीढी में प्रत्येक दंपति के चार बच्चे हों। इससे छ: का कुटुंब बन जाएगा। यथासंभव इसी पीढी में व्यवसाय या जीविका और आजीविका का चयन करना उचित होगा। व्यवसाय चयन करते समय बढते परिवार के साथ साथ ही बढ सके ऐसे कौटुंबिक उद्योग का चयन करना होगा।
* दूसरी पीढी में फिर चार-चार बच्चे हों। पहली पीढी के चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मान लें तो अगली पीढी में फिर प्रत्येक दंपति को चार बच्चे होने से अब परिवार १४ का बन जाएगा।
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* दूसरी पीढी में फिर चार-चार बच्चे हों। पहली पीढी के चार बच्चोंं में दो ही बेटे होंगे ऐसा मान लें तो अगली पीढी में फिर प्रत्येक दंपति को चार बच्चे होने से अब परिवार १४ का बन जाएगा।
 
* कुटुंब के साथ ही व्यवसाय या जीविका और आजीविका के साधनों में भी वृध्दि होगी।
 
* कुटुंब के साथ ही व्यवसाय या जीविका और आजीविका के साधनों में भी वृध्दि होगी।
* तीसरी पीढी में भी हर चार बच्चों में दो ही बेटे होंगे ऐसा मानकर अब यह कुटुंब ३० लोगोंं का बन जाएगा।  
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* तीसरी पीढी में भी हर चार बच्चोंं में दो ही बेटे होंगे ऐसा मानकर अब यह कुटुंब ३० लोगोंं का बन जाएगा।  
 
* अब यह वास्तव में संयुक्त कुटुंब के वास्तविक और लगभग सभी लाभ देने लगेगा।
 
* अब यह वास्तव में संयुक्त कुटुंब के वास्तविक और लगभग सभी लाभ देने लगेगा।
संयुक्त परिवारों की पुन: प्रतिष्ठापना और दृढीकरण संयुक्त कुटुंब के असीम लाभ होने के उपरांत भी इसे प्रत्यक्ष में लाना अत्यंत कठिन है। विपरीत शिक्षा ने पुरानी पीढी के साथ ही युवा पीढी की मानसिकता बिगाड डाली है। 'अब हम इतने आगे आ गये हैं कि अब लौटना संभव नहीं है' - ऐसी दलील दी जाती है। १० पीढ़ियों की विपरीत शिक्षा के फलस्वरूप उत्पन्न हुई व्यक्तिवादिता की भावना के कारण स्त्री के शोषण का जो वातावरण और जो व्यवस्था खडी हो गयी है उसे अपनी सुरक्षा को खतरे में डालकर भी स्त्रियाँ गँवाना नहीं चाहतीं। अपना पूरा समय अपनी पैसा कमाने की क्षमता बढाने के लिये युवा पीढी खर्च करना चाहती है। इहवादी संकीर्ण सोच के कारण आगे क्या होगा किसने देखा है, ऐसी मानसिकता समाजव्यापी बन गई है। व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जड़वादिता की शिक्षा ने मनुष्य को स्वार्थी, उपभोगवादी और जड़ बुध्दि का बना दिया है। पेड से टूटे हुए जड़ पत्ते की तरह वह परिस्थिति के थपेडे सहते हुए केवल अपने लिये सोचने को ही पुरूषार्थ समझने लगा है। समाज जीवन को श्रेष्ठ और चिरंजीवी बनाने को वह अपना दायित्व नहीं मानता। सामाजिक उन्नयन के लिये मैं इस जन्म में तो क्या जन्म जन्मांतर भगीरथ प्रयास करूंगा ऐसा वह नहीं सोचता। नई पीढी के लोगोंं को समझाने से पहले वर्तमान मार्गदर्शक पीढी के लोगोंं को उनके आत्मविश्वासहीन और न्यूनताबोध की मानसिकता से बाहर आना होगा। लोगोंं को समझाने के लिये ही बहुत सारी शक्ति लगानी होगी। वर्तमान में भी जो संयुक्त परिवार चला रहे हैं उन्हें उच्चतम पुरस्कारों से सम्मानित करना होगा। सामाजिक दबाव बनाकर संयुक्त कुटुंब विरोधी भूमिका रखनेवालों को निष्प्रभ करना होगा। कुटुंबों में और विद्यालयों में जहाँ भी संभव है इस योजना का महत्व युवा वर्ग को समझाना होगा। युवक-युवतियों की मानसिकता बदलनी होगी। नये पैदा होने वाले बच्चों को योजना से जन्म देना होगा। गर्भ से ही संयुक्त परिवार का आग्रह संस्कारों से प्राप्त करने के कारण दूसरी पीढी में कुछ राहत मिल सकती है। तीसरी पीढी में जब इस व्यवस्था के लाभ मिलने लगेंगे तब इस योजना को चलाने में और विस्तार देने में अधिक सहजता आएगी। इस के लिये निम्न कुछ बातों का आग्रह करना होगा:
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संयुक्त परिवारों की पुन: प्रतिष्ठापना और दृढीकरण संयुक्त कुटुंब के असीम लाभ होने के उपरांत भी इसे प्रत्यक्ष में लाना अत्यंत कठिन है। विपरीत शिक्षा ने पुरानी पीढी के साथ ही युवा पीढी की मानसिकता बिगाड डाली है। 'अब हम इतने आगे आ गये हैं कि अब लौटना संभव नहीं है' - ऐसी दलील दी जाती है। १० पीढ़ियों की विपरीत शिक्षा के फलस्वरूप उत्पन्न हुई व्यक्तिवादिता की भावना के कारण स्त्री के शोषण का जो वातावरण और जो व्यवस्था खडी हो गयी है उसे अपनी सुरक्षा को खतरे में डालकर भी स्त्रियाँ गँवाना नहीं चाहतीं। अपना पूरा समय अपनी पैसा कमाने की क्षमता बढाने के लिये युवा पीढी खर्च करना चाहती है। इहवादी संकीर्ण सोच के कारण आगे क्या होगा किसने देखा है, ऐसी मानसिकता समाजव्यापी बन गई है। व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जड़वादिता की शिक्षा ने मनुष्य को स्वार्थी, उपभोगवादी और जड़ बुध्दि का बना दिया है। पेड से टूटे हुए जड़ पत्ते की तरह वह परिस्थिति के थपेडे सहते हुए केवल अपने लिये सोचने को ही पुरूषार्थ समझने लगा है। समाज जीवन को श्रेष्ठ और चिरंजीवी बनाने को वह अपना दायित्व नहीं मानता। सामाजिक उन्नयन के लिये मैं इस जन्म में तो क्या जन्म जन्मांतर भगीरथ प्रयास करूंगा ऐसा वह नहीं सोचता। नई पीढी के लोगोंं को समझाने से पहले वर्तमान मार्गदर्शक पीढी के लोगोंं को उनके आत्मविश्वासहीन और न्यूनताबोध की मानसिकता से बाहर आना होगा। लोगोंं को समझाने के लिये ही बहुत सारी शक्ति लगानी होगी। वर्तमान में भी जो संयुक्त परिवार चला रहे हैं उन्हें उच्चतम पुरस्कारों से सम्मानित करना होगा। सामाजिक दबाव बनाकर संयुक्त कुटुंब विरोधी भूमिका रखनेवालों को निष्प्रभ करना होगा। कुटुंबों में और विद्यालयों में जहाँ भी संभव है इस योजना का महत्व युवा वर्ग को समझाना होगा। युवक-युवतियों की मानसिकता बदलनी होगी। नये पैदा होने वाले बच्चोंं को योजना से जन्म देना होगा। गर्भ से ही संयुक्त परिवार का आग्रह संस्कारों से प्राप्त करने के कारण दूसरी पीढी में कुछ राहत मिल सकती है। तीसरी पीढी में जब इस व्यवस्था के लाभ मिलने लगेंगे तब इस योजना को चलाने में और विस्तार देने में अधिक सहजता आएगी। इस के लिये निम्न कुछ बातों का आग्रह करना होगा:
 
# अपने से प्रारंभ करना। हो सके तो अपने भाईयों के साथ बात कर, उन्हें समझाकर एकसाथ रहना प्रारंभ करना।
 
# अपने से प्रारंभ करना। हो सके तो अपने भाईयों के साथ बात कर, उन्हें समझाकर एकसाथ रहना प्रारंभ करना।
# अपने बच्चों को संयुक्त कुटुंब का महत्व समझाना। वे विभक्त नहीं हों इसलिये हर संभव प्रयास करना। यथासंभव अपने बच्चोंपर व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जड़वादिता के संस्कार नहीं हों इसे सुनिश्चित करना। इस हेतु विद्यालयों में और समाज में जो विपरीत वातावरण है उससे बच्चों की रक्षा करना।  
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# अपने बच्चोंं को संयुक्त कुटुंब का महत्व समझाना। वे विभक्त नहीं हों इसलिये हर संभव प्रयास करना। यथासंभव अपने बच्चोंंपर व्यक्तिवादिता, इहवादिता और जड़वादिता के संस्कार नहीं हों इसे सुनिश्चित करना। इस हेतु विद्यालयों में और समाज में जो विपरीत वातावरण है उससे बच्चोंं की रक्षा करना।  
 
# युवकों ने नयी संतानें निर्माण करते समय उन संतानों में संयुक्त परिवार की मानसिकता निर्माण हो ऐसे गर्भपूर्व और गर्भसंस्कार करना। जन्म से आगे भी इस विचार को पोषक वातावरण उन्हें देना। उनपर अनुकूल संस्कारों की दृष्टि से अपने परिवार के हित में अपने करिअर का त्याग कर अनुकरण के लिये उदाहरण प्रस्तुत करना।  
 
# युवकों ने नयी संतानें निर्माण करते समय उन संतानों में संयुक्त परिवार की मानसिकता निर्माण हो ऐसे गर्भपूर्व और गर्भसंस्कार करना। जन्म से आगे भी इस विचार को पोषक वातावरण उन्हें देना। उनपर अनुकूल संस्कारों की दृष्टि से अपने परिवार के हित में अपने करिअर का त्याग कर अनुकरण के लिये उदाहरण प्रस्तुत करना।  
# अपने बच्चों पर हर हालत में कुटुंब के साथ ही निवास के और आज्ञाधारकता के संस्कार करना। सामान्यत: नौकरी और विवाह ये दो ऐसी बातें हैं जो कुटुंब को विभक्त करतीं हैं। व्यक्तिवादिता के कारण आज्ञाधारकता नहीं रहती। घर में नई दुल्हन लाते समय संयुक्त कुटुंब विरोधी कोई खोटा सिक्का तत्व घर में नहीं आए इस का भी ध्यान रखना होगा।
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# अपने बच्चोंं पर हर हालत में कुटुंब के साथ ही निवास के और आज्ञाधारकता के संस्कार करना। सामान्यत: नौकरी और विवाह ये दो ऐसी बातें हैं जो कुटुंब को विभक्त करतीं हैं। व्यक्तिवादिता के कारण आज्ञाधारकता नहीं रहती। घर में नई दुल्हन लाते समय संयुक्त कुटुंब विरोधी कोई खोटा सिक्का तत्व घर में नहीं आए इस का भी ध्यान रखना होगा।
# यथासंभव बच्चों को प्राथमिक शिक्षा घर में या जहाँ सही अर्थों में गुरूगृहवास हो, श्रेष्ठ गुरू हो ऐसे गुरुकुल में हो।
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# यथासंभव बच्चोंं को प्राथमिक शिक्षा घर में या जहाँ सही अर्थों में गुरूगृहवास हो, श्रेष्ठ गुरू हो ऐसे गुरुकुल में हो।
 
# तीसरी पीढी में परिवार की बढी हुई सदस्य संख्या का सदुपयोग हो सके ऐसा व्यवसाय अभी से चुनना।
 
# तीसरी पीढी में परिवार की बढी हुई सदस्य संख्या का सदुपयोग हो सके ऐसा व्यवसाय अभी से चुनना।
 
# मकान बनाते समय वर्तमान से कम से कम दुगुनी सदस्य संख्या के लिये बनवाना। आवश्यकता के अनुसार उस में तीसरी पीढी की संख्या भी सहजता से रह सके इतनी जमीन लेकर भवन बनाना। यदि संभव हो तो थोडी जमीन परिवार के लिये शाकभाजी पैदा करने के लिये भी रखना। गायों के गोठे के लिये भी जमीन रखना। इतनी बडी जमीन के लिये यदि शहर से थोडा दूर या गाँव में जाना पड़े तो जाना। इससे आरम्भ में तकलीफ होगी। किंतु स्वच्छ हवा, संयुक्त परिवार के अनेकों लाभ ध्यान में लेकर इन तकलीफों को सहना।
 
# मकान बनाते समय वर्तमान से कम से कम दुगुनी सदस्य संख्या के लिये बनवाना। आवश्यकता के अनुसार उस में तीसरी पीढी की संख्या भी सहजता से रह सके इतनी जमीन लेकर भवन बनाना। यदि संभव हो तो थोडी जमीन परिवार के लिये शाकभाजी पैदा करने के लिये भी रखना। गायों के गोठे के लिये भी जमीन रखना। इतनी बडी जमीन के लिये यदि शहर से थोडा दूर या गाँव में जाना पड़े तो जाना। इससे आरम्भ में तकलीफ होगी। किंतु स्वच्छ हवा, संयुक्त परिवार के अनेकों लाभ ध्यान में लेकर इन तकलीफों को सहना।

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