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इसके पश्चात् उसने सतर्क होकर पुन: बिल्व वृक्ष पर ही जीवों की प्रतिज्ञा करना आरम्भ कर दिया। वह इधर-उधर निगाह घुमाते हुए बिल्व-पत्रों को तोड़कर फिर से नीचे गिराने लगा। इसी तरह उसे भूख-पयास से पीड़ित होकर जागते। रात्रि का चौथा प्रहर भी समाप्त होने आ गया। लेकिन उसकी शिकार की इच्छा पूर्ण न हुई। वह निराश होकर अब यहां से जाना ही चाह रहा था कि ठीक तभी एक मोटा-ताजा हिरण भागता हुआ उसकी ओर आता दिखा। हिरण को देखकर उसके हर्ष का कोई ठिकाना न रहा और उसने उसे मारने के लिए उसने धनुष पर बाण चढ़ा दिया और तत्पश्चात् ज्योहि निशाना लगाकर हिरण को बेधना चाहा, त्योंहि उसने उच्च स्वर में प्रार्थना करते हुए कहा-“हे व्याध! इस वक्त ऊषाकाल है। शास्त्रकारों ने इस वक्त ईश्वर का स्मरण और शुभ कार्य करने का उपदेश दिया है। क्योंकि इस वक्त किये गये  पाप-पुण्य सहस्त्र हैं।
 
इसके पश्चात् उसने सतर्क होकर पुन: बिल्व वृक्ष पर ही जीवों की प्रतिज्ञा करना आरम्भ कर दिया। वह इधर-उधर निगाह घुमाते हुए बिल्व-पत्रों को तोड़कर फिर से नीचे गिराने लगा। इसी तरह उसे भूख-पयास से पीड़ित होकर जागते। रात्रि का चौथा प्रहर भी समाप्त होने आ गया। लेकिन उसकी शिकार की इच्छा पूर्ण न हुई। वह निराश होकर अब यहां से जाना ही चाह रहा था कि ठीक तभी एक मोटा-ताजा हिरण भागता हुआ उसकी ओर आता दिखा। हिरण को देखकर उसके हर्ष का कोई ठिकाना न रहा और उसने उसे मारने के लिए उसने धनुष पर बाण चढ़ा दिया और तत्पश्चात् ज्योहि निशाना लगाकर हिरण को बेधना चाहा, त्योंहि उसने उच्च स्वर में प्रार्थना करते हुए कहा-“हे व्याध! इस वक्त ऊषाकाल है। शास्त्रकारों ने इस वक्त ईश्वर का स्मरण और शुभ कार्य करने का उपदेश दिया है। क्योंकि इस वक्त किये गये  पाप-पुण्य सहस्त्र हैं।
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इसके अतिरिक्त मैं पत्नियों के वियोग में भूखा-प्यासा दुःखी मन से घूम रहा हूं। अत: मुझे इस वक्त न मारकर जाने की आज्ञा प्रदान कीजिये। मैं आपसे प्रतिज्ञा करता हूं कि शीघ्र ही अपनी पत्नियों से मिलकर, सूर्योदय के उपरान्त आपकी सेवा हाजिर हो जाऊंगा!" व्याध ने हिरण की बात सुनकर हँसते हुए कहा–"हे हिरण! जीव को अपनी
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इसके अतिरिक्त मैं पत्नियों के वियोग में भूखा-प्यासा दुःखी मन से घूम रहा हूं। अत: मुझे इस वक्त न मारकर जाने की आज्ञा प्रदान कीजिये। मैं आपसे प्रतिज्ञा करता हूं कि शीघ्र ही अपनी पत्नियों से मिलकर, सूर्योदय के उपरान्त आपकी सेवा हाजिर हो जाऊंगा!" व्याध ने हिरण की बात सुनकर हँसते हुए कहा–"हे हिरण! जीव को अपनी जान प्यारी होती है, इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं। इसलिए तुम भी मुझसे अपने प्राणों की भिक्षा मांगते हो लेकिन मैं भी इधर न केवल स्वयं भूख से अवश्य पीड़ित है अपितु बिना शिकार के मेरे बच्चे भी भूख से पीड़ित होंगे। अतः अन्य को बचाकर स्वयं मर जाना नीति के सर्वथा विरुद्ध है, यद्यपि इससे पूर्व मैं तीन हिरणियों को छोड़ने की भूल कदापि न करूंगा। इसके अलावा नीतियों का कथन है कि प्रात:काल आहार का त्याग करने से दिन भर भूखा रहना होता जबकि मुझे भोजन का मुखदेखे बारह प्रहर बीत चुके हैं।
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हिरण ने व्याध की यह करुणापूर्ण वाणी सुनकर गिड़गिड़ाते हुए कहा-"व्याधराज! जिन हिरणियों को आपने यहां से सकुशल जाने दिया वे तीनों मेरी ही पलियां थीं। वे मेरी ही तलाश में घूम रही होंगी। कृपा करके मुझे वे सब बातें बताने का कष्ट करें जो उन्होंने आपके सामने कही हैं।" हिरण की यह प्रार्थना सुनकर व्याध ने उसके आगे उन सभी बातों को बता दिया जो कि हिरणियां कहकर गई थीं। इसके सिवाय वह यह कहना भी न भूला- था कि तीनों हिरणियों ने सूर्योदय के उपरान्त यहां लौट आने की प्रतिज्ञा की है। यह सुनकर हिरण ने कहा-"यदि यही बात है तो मुझे शीघ्रमेव प्राणदान देने की कृपा कीजिये क्योंकि तेरे मर जाने पर उनकी कोई भी कामना सिद्ध न होगी और उनका आपसे प्रतिज्ञा करके जाना व्यर्थ होगा। यह भी हो सकता है कि मेरे वियोग में प्राण त्यागने के बाद आपके पास न आ सकें।
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अत: इस प्रकार दोनों लोकों के बिगाड़ने का भय है इसलिये उनकी तरह मुझे भी शीघ्र जाने की आज्ञा कीजिये। मैं भी आपको वचन देता हूं कि एक प्रहर के भीतर यदि न लौट आऊ परमेश्वर मुझे स्वर्ग का मार्ग स्वप्न में भी न दिखाये।" इस तरह व्याध को हिरण की मर्मभरी वाणी सुनकर उस पर ना केवल दया आ गई अपितु उसने जीवों की सत्य प्रतिज्ञा को भी परखना चाहते हुए हिरण को सकुशल जाने की आज्ञा प्रदान कर दी और खुद वृक्ष से नीचे उतरकर भूमि पर आसन लगाते हुए परमेश्वर का ध्यान करने लगा और जाने पर भी हिरण को मारने का विचार त्याग दिया। व्याध को प्रतीक्षा करते हुए अभी एक प्रहर भी न बीता था कि वही हिरण अपनी तीनों हिरणियों सहित बच्चों को भी साथ लेकर आता हुआ दिखाई पड़ा। उसने पास पहुंचकर प्रार्थना करते हुए कहा-"व्याधराज! अपनी प्रतिज्ञा अनुसार हम सब आपकी सेवा में उपस्थित हो गये हैं। अतः हमें शीघ्र ही मारकर अपनी भूख शान्त करके अपने परिवार को भी क्षुदा की पीड़ा से मुक्त कीजिये।" सत्य प्रतिज्ञ हिरण-हिरणियों को अपने पास आकर इस प्रकार कहते हुए सुनकर व्याध का चित्त ग्लानि की गति में पड़कर स्वयं को धिक्कारते हुए कहने लगा-"ऐ नीच! कहां तू जो नित्यप्रति जीवों की हत्या करता हुआ अपना व्यय अपने परिवार का उदरपोषण करना ही सबसे बड़ा धर्म वह कर्त्तव्यं समझता है और कहां ये सत्यनिष्ठ धर्मात्मा हिरण व हिरणियां हैं, जिन्होंने अपनी प्रतिज्ञा और धर्मको रक्षा हेतु अपने प्राणों का भी मोह त्याग दिया है। अत: मुझको मेरे पापमय कर्मको और ऐसी हिंसा वृत्ति करने वाले को बार-बार धिक्कार है, इन धर्मात्मा जीवों को मारना तो एक और इनका अपमान करना भी महापाप होगा।
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इस प्रकार मन में सोचने के बाद व्याध ने नमस्कार करते हुए हिरण वह उसके परिवार को कहा-"धन्यवाद योग्यं महात्माओं अपनी सत्य प्रतिज्ञा का पालन करके मुझ जैसे पापो के हृदय में भी ज्ञान व दया का अंकुर बो दिया है। अब आप इच्छानुसार कहीं भी जा सकते हैं। मैं आपके सम्मुख प्रतिज्ञा करता हूं कि आज से किसी भी जीव के साथ हिंसा करनी तो दूर उनका दिल भी ना दु:खाऊंगा और सब जीवों पर दया भाव करते हुए परमेश्वर की भक्ति में मन लगाऊंगा।" इस प्रकार सच्ची आत्मा से प्रतिज्ञा करने के बाद व्याध का चित्त सर्वचा निर्बाघ हो गया। और भगवान शंकर की प्रतिमा के आगे अपने पापों की क्षमा याचना करता हुआ, जोर-जोर से हिचकियां लेने लगा। भगवान भोले शंकर की कृपा से ठीक तभी आकाश से विमान आये और आत्मा व्याध सहित हिरण-हिरणियों को स्वर्ग में चलने के लिए प्रार्थना करने लगे। शिव पार्षदों के आते ही सबका शरीर छूट गया और उन्हें दिव्यस्वरूप की प्राप्ति हो गयी। इसके उपरान्त वे विमानों में सवार होकर भगवान शंकर का गुणगान करते जा रहे थे और देवता उन पर पुष्प वृष्टि कर रहे थे। गंधर्वगण प्रसन्नता में नाना प्रकार से नगाड़े बजाते हुए नृत्य करने लगे।
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=== आंवला एकादशी ===
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यह उत्तम व्रत फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। व्रत करने वाले को चाहिये कि प्रात:काल उठकर स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करे। इस दिन आंवले का उबटन लगाना चाहिये। उसको दान करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। धूप, दीप, नैवेद्य से विष्णु भगवान को पूजे।
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=== होली ===
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यह पावन पर्व फाल्गुन मास में शुक्लपक्ष की पूर्णिमा के दिन हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह हिन्दुओं का पावन पर्व है। इस रोज नर-नारी एवं बच्चे, बड़े सभी श्रद्धा तथा प्रेमपूर्वक होली का पूजन करते हैं। पूजन के उपरान्त रात्रि में होलिका द्रन होता है। इस पर्व पर व्रत भी रखना चाहिये। होलिका दहन के उपरान्त ही व्रत खोलना चाहिये।
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[[Category:Hindi Articles]]
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