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सारांश ।

लोकसंग्रह का संबंध संस्कृति से है | सभ्य व्यक्ति civilized व्यक्ति हो सक्ता है या गवार व्यक्ति हो सक्ता है | याने किसी समाज के साहित्य, संगीत, कला, रीति रिवाज की अभिव्यक्ति ठीक से जिस में होती है वह संस्कृति है । अंग्रेजी में सिव्हिलायझेशन शब्द (नगर के विषय में ) है | किन्तु सभा में अच्छी तरह से व्यवहार (शिष्ट व्यवहार) करना (नागरि/ग्रामीण) ही सभ्यता है |

संस्कृति और अन्य शब्द ।

  1. संस्कृति - सम् (अच्छी या सबके लिए समान) और कृति (सर्वे भवन्तु सुखिन: से सुसंगत कृति) इन दो शब्दों से संस्कृति और संस्कार दोनों शब्द बने हैं ।
  2. प्रकृति - जो स्वाभाविक (कर्मों के अच्छे फल की इच्छा) है |
  3. संस्कृति - नि:स्वार्थ भावना से लोगों के हित के कर्म |
  4. विकृति - दूसरे के किये कर्मों का अच्छा फल उसे नहीं मुझे मिले ।
  5. संस्कार (संस्कृति का निकटतम शब्द) - भिन्न बातों का हमारे शरीर पर, मन पर, बुद्धि पर परिवर्तन करनेवाला जो प्रभाव पड़ता है | संस्कृति अच्छे/बुरे संस्कारों से बनती है | पितरों से स्वाभाविक | समाज की संस्कृति | १६ संस्कार कृत्रिम  

अच्छा या बुरा काम (इच्छा) से सम्बंधित है । वह स्थल-काल में अंतर से बदलता है | जीवन के लक्ष्य की ओर ले जानेवाला अच्छा (eg: मूर्ति पूजा) और लक्ष्य से अन्यत्र ले जानेवाला बुरा है ।

अच्छे काम की ओर ले जाने वाले संस्कार करने की जिम्मेदारी समाज के अन्य घटकों की और वह संस्कार ग्रहण करने की जिम्मेदारी स्वयं व्यक्ति का है |

संस्कृति का सार्वत्रिकरण ।

संस्कृति व्यक्ति की नहीं समाज एवं राष्ट्र की आत्मा - जीवित होने का आधार है |

उदाहरण: “पारसी” राष्ट्र नहीं रहा | दो हजार वर्ष पहले इन यहूदियों को ईसाईयों ने पेलेस्टाईन से खदेड़कर बाहर किया | पेलेस्टाईन की भूमि फिर से प्राप्त होने पर पूरी शक्ति के साथ यहूदी संस्कृति का पुनरुत्थान हुआ ।

सुख शान्ति से चलाने के लिए संस्कृति का सार्वत्रिक होना आवश्यक है ।

विषय क्षेत्र ।

भाषा राष्ट्र की संस्कृति के अनुसार आकार (अभिव्यक्ति ) लेती है | अंग्रेजी भाषा की बहुत सारे मुहावरों के समानार्थी हिंदी मुहावरें नहीं हैं | (might is right etc ) दुनिया में कोई समाज नहीं जो बलवान बना किंतु आक्रमण नहीं किया । काम पुरुषार्थ जब धर्म से नियमित, मार्गदर्शित और निर्देशित होता है तब मनुष्य को भगवान की ओर ले जाता है ।

आत्मनो मोक्षार्थं जगतः हिताय च | ātmano mokṣārthaṁ jagataḥ hitāya ca |

मतलब समाज और पर्यावरण का हित करने के लिए किये गए व्यवहार ही संस्कृति है ।

इष्ट गति एवं प्रचार ।

जिस गति से समाज का अंतिम व्यक्ति भी साथ चल सके, जिसमें धर्म तथा संस्कृति के पनपने के लिए वातावरण रहे

भारतीय संस्कृति के वैश्विक विस्तार के कारण सभी राज्यों की जनता समान संस्कृति की थी | शरद हेबालकर “कृण्वन्तो विश्वमार्यम्” ग्रन्थ में यह चार तालिकाओं में लिखिते हैं ।

हजार वर्ष पूर्व तक सीमाएँ ईरान से ब्राह्मदेश और हिमालय से समुद्रतक फैली हुई थीं । दीर्घ काल तक भारतवर्ष की भूमि के निरंतर घटने के (संख्या में भी घटे) इतिहास के कुछ तथ्य :

  1. युधिष्ठिर द्वारा किये यज्ञ में मेहमान के रूप में बुलाने के लिये अर्जुन मेक्सिको के राजा तक गये ।
  2. अरबस्तान में ईस्लामी सत्ता सन 632 में और 642 तक इस्लामी सत्ता अफगानिस्तान को पादाक्रांत कर हिंदुकुश तक थी । धर्मसत्ता और राजसत्ता बेखबर
  3. पारसी लोग ईस्लाम के आक्रमण से ध्वस्त होकर 637 से 641 के बीच भारत के शरण में आए
  4. 743 मे ‘देवल स्मृति’ में धर्मांतरित लोगों को परावर्तित कर फिर से हिंदु बनाने का प्रावधान | जो मुसलमान बन गए उनको हिंदु मानना था या फिर उन्हें हिंदु बनाना था | मुसलमान आगे बढते रहे, हम बेखबर रहे | मुसलमान को हिंदु बनाने का कोई विकल्प नहीं था । उदाहरण: अकबर का प्रश्न धर्मान्तरन पर - गधे को रुडना 4-5 घंटों तक: घोडे के गधे बन रहे हैं , गधे के घोडे नहीं बन सकते !

इस्लाम के साथ ही ईसाई विस्तारवाद की ओर हमारी राजसत्ता और धर्मसत्ता अनदेखी करती रहीं । धर्मसत्ता और राज्यसत्ता में तालमेल का अभाव । पर हरिहार बुक्क ने इस्पर 3 अपवाद भी बताये हैं ।

अंग्रेजी शासन का भारत राष्ट्र की संस्कृति पर हुआ परिणाम कुछ इस प्रकार हैं :

  1. गुलामी की मानसिकता
  2. हीनताबोध, आत्मनिंदाग्रस्तता
  3. आत्मविश्वासहीनता
  4. आत्म-विस्मृति
  5. अभारतीय याने अंग्रेजी जीवन के प्रतिमान के स्वीकार की मानसिकता

साध्य ।

मर्म बिन्दु ।

शिक्षण व्यवस्था ।

ब्राह्मण कार्य (शिक्षण):

  1. घर की व्यवस्था ऐसे की शास्त्र ग्रंथों का, देवा पूजा का, यज्ञ का नियमित सानिध्य हो ।
  2. घर में हमेशा श्लोकों/मन्त्रों का पठन /श्रवण हो ।
  3. शुद्ध मातृभाषा का प्रयोग (जिससे भविष्य में अनुवाद का कार्य भी हो सके ) ।
  4. दान दिलवाना/देना हो ।
  5. द्रव्य एवं समाज हित यज्ञ में सहभागी करवाना ।
  6. अनुलोम/विलोम प्राणायाम का परिचय करवाना ।
  7. ब्राह्मण के अनुकूल/अनुरूप चित्र बनाना/बनवाना ।
  8. ब्राह्मण के अनुकूल/अनुरूप नाटक करवाना ।
  9. ब्राह्मण के अनुकूल/अनुरूप खेल खिलवाना ।

रक्षण व्यवस्था ।

क्षत्रिय कार्य (रक्षण):

  1. घर की व्यवस्था ऐसे की शस्त्रों का, राजर्षियों के चित्रों का नियमित सानिध्य रहे ।
  2. घर में हमेशा राजा सम्बंधित गीतों/नारों का पठन /श्रवण हो ।
  3. भय से मुक्ति के लिए चुनौतियों (challenging परिस्थितिओं ) का सामना/exposure ।
  4. विद्वानों एवं दुर्बल सज्जनों को दान देने का वातावरण हो ।
  5. शारीरिक बल के लिए खेल/व्यायाम ।
  6. शत्रुओं की भाषा सीखना ।
  7. क्षत्रिय के अनुकूल/अनुरूप चित्र बनाना/बनवाना ।
  8. क्षत्रिय के अनुकूल/अनुरूप नाटक करवाना ।
  9. क्षत्रिय के अनुकूल/अनुरूप खेल खेलना ।

पोषण व्यवस्था ।

वैश्य कार्य (पोषण):

  1. घर की व्यवस्था ऐसे की नैसर्गिक उत्पादनों का, कृषि एवं धेनु, प्रकृति का संतुलन बिगाड़े बिना उत्पादित वस्तुओं का नियमित सानिध्य ।
  2. घर में हमेशा अन्न उत्पादन सम्बंधित विषयों की चर्चा/कार्य ।
  3. शुद्धजैविक खेती का प्रयोग ।
  4. दान देना ।
  5. घर के सभी सदस्यों का व्यवसाय में कुछ न कुछ महत्त्वपूर्ण योगदान हो |
  6. विदेशी वस्तुओं, स्वदेशी raw material (कच्चे माल ) एवं by products (waste) का परिचय हो जिससे उन्हें उत्पादन कार्य से दूर रख सकें ।
  7. स्वयं एवं अन्यों के घर में गव्य पदार्थों का उपयोग ।
  8. यज्ञ कार्यों को आश्रय देना ।
  9. कलाकार, आचार्य, शिक्षक, पहलवान/रक्षक, वैद्य, आदि के पोषण ।
  10. वैश्य के अनुकूल/अनुरूप चित्र बनाना/बनवाना ।
  11. वैश्य के अनुकूल/अनुरूप नाटक करवाना ।
  12. वैश्य के अनुकूल/अनुरूप खेल खेलना ।
  13. अन्यों को विशेष करके अन्न दान देना ।

अपनी भूमिका ।

  1. दूसरों के अधिकारों के लिए प्रयास एवं स्वयं के कर्तव्यों का पालन ।
    1. माता/पिता को वर्ण धर्म समझकर शिशु का निरीक्षण करना ।
    2. संस्कृत भाषा में नियमित रूप से सम्भाषण होना ।
    3. वर्णानुसार कथा (ब्राह्मण/वैश्य के लिए अधिक प्रयत्न आवश्यक ) ।
    4. वर्ण के अनुकूल/अनुरूप चित्र बनाना/बनवाना ।
    5. वर्ण के अनुकूल/अनुरूप नाटक करवाना ।
    6. वर्ण के अनुकूल/अनुरूप खेल खेलना/खिलवाना ।
    7. अपने से श्रेष्ठ संतति को जन्म देना ।
    8. सामासिक धर्मों का ज्ञान एवं उन्हें संस्कारित करना जिससे उसके विरोध कार्य न करें ।
  2. बाल्य और शिशु-अवस्था मे (धर्मशास्त्र) भगवद्गीता का कंठस्थीकरण जैसे कथारूपी गीता ।
  3. क्रमशः कुमारावस्था मे उचित साहित्य प्राप्त करके देना [व्यवहार शास्त्र के रूप में प्रतिष्ठित करना ] | युवावस्था मे उस अवस्था के लिए चयन किये गये भाष्य उपलब्ध कराना ।

परिचयः ॥ Introduction

साध्यम् ॥ The Aim

Brahmana Dharma:

Kshatriya Dharma:

Vaishya Dharma:

आयु की अवस्था | वर्णानुसार करणीय कार्य |

गर्भपूर्वावस्था ॥ Before Conception

तैयारी : उपनयन के पूर्व के सभी संस्कारों का अध्ययन | 4 आदतें ढालना |
  1. व्यक्तिगत साधना का महत्व (अध्यात्म विद्या विद्यानां ) ।
  2. अपनी मातृभाषा का प्रयोग (गति बढाने के लिये मानसिकता) ।
  3. सामूहिक साधना का महत्व - कीर्तन, कथा चर्चा (अध्यात्म विद्या विद्यानाम् ) ।
  4. परिवार में संबंध ।
  5. यथाशक्ति प्रचार ।
  6. परम्पराओं को समझना [पुरानी पीढ़ीओं के साथ सम्बन्ध] |

गतिमान संतुलन (dynamic balance) : विस्तार -

ब्राह्मण : प्रस्तुति

क्षत्रिय : प्रचार

इष्ट गति : अष्टांग योग / यम नियम का पालन ।

बैठक : खेल (आक्रोश व्यक्त), गीत ,कहानी ,चर्चा ।

गर्भावस्था ॥ During Pregnancy

  1. गर्भादान, पुंसवान और सीमन्तोनयन संस्कार (अपेक्षित)
  2. व्यक्तिगत साधना का महत्व (अध्यात्म विद्या विद्यानाम् )
  3. अपनी मातृभाषा का प्रयोग
  4. सामूहिक साधना का महत्व - कीर्तन, कथा चर्चा (अध्यात्म विद्या विद्यानाम्)
  5. परिवार में संबंध
  6. परम्पराओं को समझना [पुराणी पीढ़ीओं के साथ सम्बन्ध]  

शैशवम् ॥ Childhood (Until the age of 5years)

दिशा पर जोर :
  1. जाता कर्म संस्कार (सुवर्ण प्राशन), नाम कारन संस्कार , निष्क्रमण संस्कार , अन्न प्राशन, चूड़ाकरण/मुंडन संस्कार , कर्णभेद संस्कार
  2. अपनी प्रान्तिक बोली का प्रयोग
  3. कहानियां (श्रीमद भागवत ) गटश: - अलग अलग गुणों से (3/4 भाषाये लिये) सम्बंधित कहानियां
  4. अभिनय / नाट्य (acting ) से समग्रता - जिज्ञासा उत्पति - अनुभव अन्तः करण तक प्रवेश
  5. दिन के अनुभवों को सुनाना एवं कहानी के रूप में इन वरिष्ठों से लिखवाना
  6. खेल - अक्षरणाम् अकारोस्मि (पंचमहाभूत) के साथ कर्मेंद्रियो के साथ..
  7. पूरे परिवार के साथ

गति : शरीर की गति अधिक, मन / बुद्धि की गति कम |

अन्त में - तीन संस्कारों में अपेक्षित क्या है |

बाल्यम् ॥ Childhood (From the age between 6 to 10 years)

दिशा पर जोर :
  1. विद्यारम्भ संस्कार - मातृभाषा में (गीता १०.३३ )
  2. खेल - चर एवं अन्य बालकों के साथ
  3. पूरे परिवार के साथ खेलना
  4. उपनयन संस्कार का आरंभ (८ वर्ष में)
  5. कहानियां - रामायण
  6. एकता का अनुभव । विशिष्ट प्रसंग द्वारा एकात्मता, संस्कार, संस्कृति । सारी कहानियाँ एकात्मता स्तोत्र से |

वर्णा नुसार 8 संस्कार निरीक्षण और अनुभव अवसर ।

पंढरपुर वारी : last person should also be taken along (even गर्भवती महिला)

कौमारम् ॥ Adolescence (Age between 11 and 15 years)

युक्ता गति पर जोर :
  1. उपनयन संस्कार को जारी रखना (८ वर्ष में)
  2. वेदारंभ : अहंकार के ज्ञाता भाव की पुष्टी
  3. ज्ञान मय कोश के विकास हेतु महाभारत की कहानियां - विविधता का अनुभव

वर्णानुसार : ब्राह्मण , क्षत्रिय (10-11), वैश्य (18-16)

अन्त मे परमोच्य बिंदु |

पाने की प्रक्रिया क्या है : अधिजनन शास्त्र का अध्ययन (स्वाभाविक / कृत्रिम) जुडे हुए लोगों का मार्गदर्शन ।

संकल्प : विवेक के साथ

तैयारी

  1. संस्कार हो गया - कैसे समझें ?
  2. प्रक्रिया तब से प्रारंभ हुई या वह उसका climax

गर्भपूर्व - गर्भादान / पुंसावन और सीमन्तोनयन का अध्ययन और आचरण | हर संस्कार का अध्ययन और आचरण - 2 चरण पहले ; और आचरण ढालना

गर्भावस्था, शिशु , बाल्य किशोर / युवा - शास्त्र शुद्ध पक्ष (शास्त्रीय) | (64) कलायें

गर्भावस्था, शिशु , बाल्य - लोक शिक्षा , धर्म शिक्षा ; एकात्मता (not एकता) (विविधता का आधार)

यौवनम् ॥ Youth (Age between 16 and 25 years)

Samavartana संस्कार :

सत्यं वद । Speak the Truth.,

धर्मं चर । Practise Virtue.,

स्वाध्यायान्मा प्रमदः । Do not neglect your daily Study.,

आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य Offer to the Teacher whatever pleases him,

प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः । Do not cut off the line of progeny.,

सत्यान्न प्रमदितव्यम् । Do not neglect Truth. ,

धर्मान्न प्रमदितव्यम् । Do not neglect Virtue. ,

कुशलान्न प्रमदितव्यम् । Do not neglect Welfare.,

भूत्यै न प्रमदितव्यम् । Do not neglect Prosperity.,

स्वाध्यायप्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम् ॥ १॥ Do not neglect Study and Teaching . ,

देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम् । Do not neglect your duty to the Gods and the Ancestors.,

मातृदेवो भव । Regard the Mother as your God.,

पितृदेवो भव । Regard the Father as your God.,

आचार्यदेवो भव । Regard the Teacher as your God.,

अतिथिदेवो भव । Regard the Guest as your God.,

यान्यनवद्यानि कर्माणि तानि सेवितव्यानि । Whatever deeds are blameless, they are to be practised,

नो इतराणि । not others. ,

यान्यस्माक सुचरितानि । Whatever good practices are among us ,

तानि त्वयोपास्यानि । नो इतराणि ॥ २॥ are to be adopted by you, not others . I:11:I

ये के चारुमच्छ्रेया सो ब्राह्मणाः । Whatever Brahmins there are superior to us,

तेषां त्वयाऽऽसनेन प्रश्वसितव्यम् । should be honoured by you by offering a seat.

श्रद्धया देयम् । Give with Faith,

अश्रद्धयाऽदेयम् । Give not without Faith;

श्रिया देयम् । Give in Plenty,

ह्रिया देयम् । Give with Modesty,

भिया देयम् । Give with Awe,

संविदा देयम् । Give with Sympathy.

अथ यदि ते कर्मविचिकित्सा वा Then if there is any doubt regarding any Deeds,

वृत्तविचिकित्सा वा स्यात् ॥ ३॥ or doubt concerning Conduct,

ये तत्र ब्राह्मणाः संमर्शिनः । As the Brahmins who are competent to judge,

युक्ता आयुक्ताः । adept in Duty, not led by others,

अलूक्षा धर्मकामाः स्युः । not harsh, not led by passion,

यथा ते तत्र वर्तेरन् । in the manner they would behave

तथा तत्र वर्तेथाः । thus should you behave . I:11:Ii

अथाभ्याख्यातेषु । Then as to the persons accused of guilt

ये तत्र ब्राह्मणाः संमर्शिनः । like the Brahmins who are adept at deliberation

युक्ता आयुक्ताः । who are competent to judge, not directed by others

अलूक्षा धर्मकामाः स्युः । not harsh, not moved by passion,

यथा ते तेषु वर्तेरन् । as they would behave in such cases

तथा तेषु वर्तेथाः । thus should you behave.

एष आदेशः । This is the Command.

एष उपदेशः । This is the Teaching.

एषा वेदोपनिषत् । This is the secret Doctrine of the Veda.

एतदनुशासनम् । This is the Instruction.

एवमुपासितव्यम् । Thus should one worship.

एवमु चैतदुपास्यम् ॥ ४॥ Thus indeed should one worship . I:11:iv ॥

इति तैत्तिरीयोपनिषदि शीक्षावल्लीनामप्रथमोध्याये एकादशोऽनुवाकः ॥

Not to behave as me if I dont behave properly

इस आयु में अब युवक स्वतन्त्र रूप में भी कई बातें करने की स्थिति में होता है | अपना व्यवहार वर्णानुसारी रखना | रा.स्व.संघ की मुख्या शिक्षक और उससे बड़ी जिम्मेदारियों के लिए प्रस्तुत होना| लोकसंग्रह करना |

सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम् । सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥

जिसे सुख की अभिलाषा हो (कष्ट उठाना न हो) उसे विद्या कहाँ से ? और विद्यार्थी को सुख कहाँ से ? सुख की ईच्छा रखनेवाले ने विद्या की आशा छोडनी चाहिए, और विद्यार्थी ने सुख की ।

विप्र – श्रीमद्भगवद्गीता एवं गुह्यसूत्रों का अध्ययन करना| कुर्रान, हदीस, ओल्ड टेस्टामेंट, न्यू टेस्टामेंट (बायबल) का अध्ययन करना| भारतीयता, इस्लाम और इसाईयत को समझना| लोगों को समझाना| इनकी श्रीमद्भगवद्गीता से भिन्नता ही इनकी विशेषता है, इसे समझना| इनकी विशेषता का योजनाबद्ध प्रचार प्रसार करना| नियुद्ध, दंड संचालन, बन्दूकबाजी आदि में प्रवीणता प्राप्त करना|

क्षत्रिय – श्रीमद्भगवद्गीता एवं गुह्यसूत्रों का अध्ययन करना -> दायित्व | कुर्रान, हदीस, ओल्ड टेस्टामेंट, न्यू टेस्टामेंट (बायबल) का अध्ययन करना| भारतीयता, इस्लाम और इसाईयत को समझना| लोगों को समझाना| इनकी श्रीमद्भगवद्गीता से भिन्नता ही इनकी विशेषता है, इसे समझना| इनकी विशेषता का योजनाबद्ध प्रचार प्रसार करना| नियुद्ध, दंड संचालन, बन्दूकबाजी आदि में प्रवीणता प्राप्त करना| शासन/कानूनद्वारा प्रतिबंधित नहीं हैं ऐसे शस्त्र हमेशा अपने साथ रखना| गोरक्षक दल, बजरंग दल आदि गतिविधियों से जुड़ना| सेना, पुलिस, गुप्तचर विभाग में सेवाएँ देना| विपरीत विचार के लोगों/संगठनों में सेंध लगाना|

वैश्य - श्रीमद्भगवद्गीता एवं गुह्यसूत्रों का अध्ययन करना| कुर्रान, हदीस, ओल्ड टेस्टामेंट, न्यू टेस्टामेंट (बायबल) का अध्ययन करना| भारतीयता, इस्लाम और इसाईयत को समझना| लोगों को समझाना| इनकी श्रीमद्भगवद्गीता से भिन्नता (श्रेष्ठ तत्व कैसे बनाये रखें) ही इनकी विशेषता है, इसे समझना| इनकी विशेषता का योजनाबद्ध प्रचार प्रसार करना| नियुद्ध, दंड संचालन, बन्दूकबाजी आदि में प्रवीणता प्राप्त करना| गोरक्षक/बजरंग दल आदि गतिविधियों से जुड़ना|

शिक्षा व्यवस्था : भारतीयता के इस्लाम के, इसाईयत के, कम्युनिझम के अन्तरंग अध्ययन/अध्यापन की व्यवस्था करना|

शासन व्यवस्था : भारतीयता की रक्षा की दृष्टी से धर्मान्तर/घरवापसी के क़ानून निर्माण, सुरक्षा व्यवस्था आदि की आश्वस्ति के प्रयास करना|

समृद्धि व्यवस्था: अभारतीय, भारतद्रोही व्यक्तियों/संगठनों का बहिष्कार और पूरक पोषक गतिविधियों को सहायता|

जातु & कला : वाणिज्य ककी सीमा क्या है ? -> सभी भौतिक आवष्यक्तों की पूर्ति ; कला = जाती & has all 4 वर्ण

संगीत की भारतीय दृष्टि क्या है ? मोक्ष जीवन का लक्ष कैसे -> शुद्ध शास्त्रीय पक्ष & दृष्टि का पक्ष

अविध्या निश्रयस - 64 कलायें विध्य के विपरीत न ,14 विध्या (4 वेद, 4 उपवेद ,6 वेदांग) - अध्यात्म विध्य विध्यनां ; लक्ष्य को प्राप्त की कला -> साहित्य निर्माण

कला की विक्री & आर्थिक व्यवस्था

टेस्टामेंट - धर्म

रक्षा & प्रसार

"मैं अपने आप को भाग्यवान समझ्त हू कि भारत में जन्म पाया " "मैं सरस्वती देवी ज अघन सा भक्त हू " (उस्ताद जाफ़र् खान ..सितार..)

गार्हस्थ्यम् ॥ Householder's phase (Age between 26 to 60)

वर्ण के अनुसार वर वधु चयन (विवाह संस्कार) [Keep जाति but focus on सवर्ण] | सारे विषय समझाना |
  1. विवाह संस्कार
  2. व्यक्तिगत साधना का महत्व (अध्यात्म विद्या विद्यानां )
  3. अपनी मातृभाषा का प्रयोग
  4. सामूहिक साधना का महत्व - कीर्तन, कथा चर्चा (अध्यात्म विद्या विद्यानां )
  5. परिवार में संबंध
  6. प्रचार
  7. परम्पराओं को समझना [पुराणी पीढ़ीओं के साथ सम्बन्ध] | गृहस्थ -> गर्भपुर्व | साधन वर्णानुसार -> वर्ण धर्म पर चिन्तन विचारपूर्वक : त्रिकाल संध्या |

उपनयन संस्कार (बाल्य for ब्राह्मन् , किशोर for क्षत्रिय , युव for वैश्य) से ही त्रिकाल संध्या |

अध्यात्म विध्या => राकात्मतक की अच्छी समझ (ओत प्रोत)

सवर्ण = संस्कृति की रक्षा -> अगली पीढ सुसंस्कृत -> अध्यात्म विद्या विद्यानां से |

गृहस्थ & जाती - आज किन किन व्यवस्थओ की समाज में आवश्यकता है

सजातीय = दोनों के व्यवसाय मिल जाने से -> समृद्धि

प्रौढं वार्धक्यं च ॥ Old age