Difference between revisions of "Differences between Dharma and Religion (धर्म एवं पंथ (सम्प्रदाय) में अंतर)"

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== प्रमुख रिलिजन या मजहब ==
 
== प्रमुख रिलिजन या मजहब ==
ईसाईयत का प्रारम्भ लगभग २००० वर्ष पूर्व और इस्लाम का प्रारंभ लगभग १४०० वर्ष पूर्व हुआ था। एक और भी नया रिलिजन या मजहब है। वह है कम्युनिज्म। कम्युनिज्म के इस तत्व को कि मनुष्य मेहनत करे, संपत्ति निर्माण करे और सम्पत्ति सरकार की या अन्य किसी की हो, कोई स्वीकार नहीं कर सकता। इसलिए कम्युनिज्म अपने ही आत्मविरोध के कारण नष्ट होने की दिशा में बढ़ रहा है। हाँ ! इसका नया रूप धीरे धीरे फिर पनपने लगा है। नव-सोशलिज्म के नाम से यह चल रहा है। इसका उद्देश्य वर्तमान में जो भी व्यवस्थाएँ हैं उन्हें तोड़ना है। नया कोई विकल्प निर्माण करने का कोई विचार इसमें नहीं है। वर्तमान में जो सबसे प्रभावी ईसाई और इस्लाम हैं उन का विचार हम मुख्यत: करेंगे।
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ईसाईयत का प्रारम्भ लगभग २००० वर्ष पूर्व और इस्लाम का प्रारंभ लगभग १४०० वर्ष पूर्व हुआ था।  
वैसे तो ये दोनों मजहब एक ही माला के मणी हैं। सेमेटिक मजहब माने जाते हैं। सृष्टी निर्माण की सामान कल्पनाएँ लेकर बने हैं। इसलिये इन की जीवन दृष्टि भी लगभग सामान है। फिर भी दोनों ने एक दूसरे को मिटाने के लिए बहुत प्रयास किये हैं। ईसाईयों के ऐसे मजहबी युद्धों को या प्रयासों को क्रुसेड कहा जाता है तो इस्लाम के मजहबी युद्धों को या ऐसे प्रयासों को जिहाद कहा जाता है। ईसाईयत ने अब अधिक बुद्धिमानी से क्रुसेड चलाया है। जब कि इस्लाम ने जिहाद को सामरिक युद्ध के साथ साथ ही आतंकवाद का स्वरूप दे दिया है।
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यह इनका स्वभाव है। इन दोनों मजहबों का जन्म जिस अरब भूमि में हुआ है वहाँ की परिस्थिति इन के स्वभाव का कारण है। प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक मुजफ्फर हुसैन कहा करते थे कि अरब भूमि की भौगोलिक स्थिति अभावग्रस्त जीवन की थी। जबतक दूसरों को लूटोगे नहीं तबतक अपना जीवन नहीं चला सकते। ऐसी विकट स्थिति के कारण अन्य कोई जिए नहीं ऐसा इन दोनों मजहबों का प्रयास रहता है। इस्लाम ने तो इसे स्पष्ट रूप से अपना लक्ष्य भी बताया है। इस्लाम ने दुनिया को दो हिस्सों में बाँटा है। दारुल इस्लाम और दारुल हर्ब। दारुल इस्लाम वह भूमि है जहाँ इस्लामी शासन है। और दारुल हर्ब उसे कहते हैं जहाँ इस्लाम से अन्य किसी का शासन है। और जिहाद यह दारुल हर्ब को दारुल इस्लाम में बदलने का पवित्र साधन है।
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एक और भी नया रिलिजन या मजहब है। वह है कम्युनिज्म। कम्युनिज्म के इस तत्व को कि मनुष्य मेहनत करे, संपत्ति निर्माण करे और सम्पत्ति सरकार की या अन्य किसी की हो, कोई स्वीकार नहीं कर सकता। इसलिए कम्युनिज्म अपने ही आत्मविरोध के कारण नष्ट होने की दिशा में बढ़ रहा है। हाँ ! इसका नया रूप धीरे धीरे फिर पनपने लगा है। नव-सोशलिज्म के नाम से यह चल रहा है। इसका उद्देश्य वर्तमान में जो भी व्यवस्थाएँ हैं उन्हें तोड़ना है। नया कोई विकल्प निर्माण करने का कोई विचार इसमें नहीं है।
ये दोनों ही मजहब सत्ताकांक्षी हैं। अन्य किसी को भी जीने का अधिकार नकारनेवाले हैं। डॉ. राधाकृष्णन अपनी पुस्तक रिलिजन एंड कल्चर में पृष्ठ १७ पर लिखते हैं – प्रारम्भिक ईसाईयत सत्ताकांक्षी (अथोरिटेरियन) नहीं थी। ....  ... लेकिन जैसे ही रोम के राजा ने ईसाईयत को अपनाया वह अधिक सात्ताकांक्षी बन गयी। - इसका अर्थ है कि मूलत: भी ईसाईयत में सत्ताकांक्षा तो थी ही। यही बात इस्लाम के विषय में भी सत्य है। मक्का काल में इस्लाम के अनुयायीयों की संख्या बहुत कम थी। तब उसमें याने उस काल की कुर्रान की आयतों में इस्लाम न मानने वालों के साथ मिलजुलकर रहना, भाईचारा आदि शब्द थे। लेकिन जैसे ही मदीना पहुंचकर इस्लाम के अनुयायीयों की संख्या बढी इस्लाम की भाषा बदल गयी। वह सत्ताकांक्षी हो गयी। इस्लाम न माननेवालों के विषय में असहिष्णु ही नहीं क्रूर हो गया।
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अब एक एक कर इनके मजहबी श्रद्धाग्रंथों के उद्धरणों के आधारपर इनको जानने का हम प्रयास करेंगे।
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वर्तमान में जो सबसे प्रभावी रिलिजन या मजहब हैं ईसाई और इस्लाम हैं उन पर कुछ विचार:  
ईसाईयत को जानें
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ईसाईयत और हिंसा तथा असहिष्णुता
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वैसे तो ये दोनों मजहब एक ही माला के मणि हैं। सेमेटिक मजहब माने जाते हैं। सृष्टि निर्माण की समान कल्पनाएँ लेकर बने हैं। इसलिये इन की जीवन दृष्टि भी लगभग समान है। फिर भी दोनों ने एक दूसरे को मिटाने के लिए बहुत प्रयास किये हैं। इन दोनों मजहबों का जन्म जिस अरब भूमि में हुआ है वहाँ की परिस्थिति इन के स्वभाव का कारण है। प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक मुजफ्फर हुसैन कहा करते थे कि अरब भूमि की भौगोलिक स्थिति अभावग्रस्त जीवन की थी। जब तक दूसरों को लूटोगे नहीं तबतक अपना जीवन नहीं चला सकते।  
1)  प्रभू ने आधी रात को मिरुा देश के सभी पहलौठों ( नवजात बच्चों ) - सिंहासनपर विराजमान फिराऊन के पहलौठों से लेकर बन्दीगृह मे पडे कैदी के पहलौठे और पशुओं के पहलौठों तक - को मार डाला - निर्गमन ग्रंथ 12/29
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2)  प्रभू ने लोगों के बीच विषैले सांप भेजे और उनके दंश से बहुत से इस्त्राएली मर गये - गणना ग्रंथ 21/6
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डॉ. राधाकृष्णन अपनी पुस्तक रिलिजन एंड कल्चर में पृष्ठ १७ पर लिखते हैं – प्रारम्भिक ईसाईयत सत्ताकांक्षी (अथोरिटेरियन) नहीं थी। लेकिन जैसे ही रोम के राजा ने ईसाईयत को अपनाया वह अधिक सत्ताकांक्षी बन गयी।  इसका अर्थ है कि मूलत: भी ईसाईयत में सत्ताकांक्षा तो थी ही। यही बात इस्लाम के विषय में भी सत्य है। मक्का काल में इस्लाम के अनुयायीयों की संख्या बहुत कम थी। तब उसमें याने उस काल की कुरआन की आयतों में इस्लाम न मानने वालों के साथ मिलजुलकर रहना, भाईचारा आदि शब्द थे। लेकिन जैसे ही मदीना पहुंचकर इस्लाम के अनुयायीयों की संख्या बढी इस्लाम की भाषा बदल गयी। वह सत्ताकांक्षी हो गयी।
3)  प्रभू की ओर से अग्नि आयी और उसने ढाई सौ लोगों (यहूदी) को भस्म कर दिया, जो धूप चढाने आये थे - गणना ग्रंथ 16/35
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4)  इसलिये प्रभू ने इस्त्राएल में महामारी भेजी । इस्त्राएल के सत्तर हजार लोग मर गये - पहला इतिहास ग्रंथ 21/14
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== धर्म, रिलिजन, मजहब तथा संप्रदाय - एक विवेचना ==
5)  बेत-शेमेश के कुछ निवासियों ने प्रभू की मंजूषा खोलकर उसके अन्दर झाँका, इसलिये प्रभू ने लोगों में पचास हजार सत्तर मनुष्यों को मार डाला - सॅम्युएल का पहला ग्रंथ 6/19
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धर्म और रिलिजन, मजहब तथा संप्रदाय इन शब्दों के अर्थ समझना आवश्यक है। धर्म बुद्धि पर आधारित श्रद्धा है। जबकि रिलिजन, मजहब, मत, पंथ या सम्प्रदाय की सभी अनिवार्य बातें बुद्धियुक्त ही हों यह आवश्यक नहीं होता।
6)  जो व्यक्ति प्रभू के नाम को कोसता है, वह मार डाला जाये । सारा समुदाय उसे पत्थर से मार डाले-लेवी ग्रंथ 24/16
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धर्म यह पूरी मानवता के हित की संकल्पना है। धर्म मानवता व्यापी है। रिलिजन, मजहब, मत, पन्थ या संप्रदाय उस रिलिजन, मजहब, मत, पंथ या संप्रदाय के लोगों को अन्य मानव समाज से अलग करने वाली संकल्पनाएँ हैं।
7) छ : दिन तक काम किया जाये और सातवें दिन तुम विश्राम दिवस मनाओ वह प्रभू का पवित्र दिन होगा । जो उस दिन काम करेगा उसे प्राणदंड दिया जायेगा - निर्गमन ग्रंथ 35/2
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8)  यदि कोई स्त्री की तरह किसी पुरूष के साथ प्रसंग करे तो दोनों घृणित पाप करते हैं। उन को प्राणदंड दिया जायेगा । उनका रक्त उनके सिर पडेगा - लेवी ग्रंथ 20/13
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रिलिजन, मजहब या संप्रदायों का एक प्रेषित होता है। यह प्रेषित भी बुध्दिमान और दूरगामी तथा लोगों की नस जाननेवाला होता है। किन्तु वह भी मनुष्य ही होता है। उस की बुद्धि की सीमाएँ होतीं हैं। धर्म तो विश्व व्यवस्था के नियमों का ही नाम है। धर्म का कोई एक प्रेषित नहीं होता। धर्म यह प्रेषितों जैसे ही, लेकिन जिन्हे आत्मबोध हुवा है ऐसे कई श्रेष्ठ विद्वानों की सामुहिक अनुभव और अनुभूति की उपज होता है।
9)  परन्तु यदि यह बात सत्य हो और उस लडकी के कौमार्य का कोई प्रमाण न मिले तो उस लडकी को उसके पिता के घर के द्वारपर ले जाया जाये और उस नगर के पुरूष उसे पत्थरों से मार डालें -विधि विवरण ग्रंथ 22/20, 21
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10) उन्हें यह आदेश मिला कि वे घास अथवा किसी पौधे को हानि न पहुंचाएं, केवल उन मनुष्यों को, जिनके माथे पर ईश्वर की मुहर नहीं लगी हो - प्रकाशना ग्रंथ 9/4
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रिलिजन, मजहब या संप्रदाय यह पुस्तकबध्द होते हैं। इन की एक पुस्तक होती है। जैसे पारसियों की झेंद अवेस्ता, यहुदियों की ओल्ड टेस्टामेंट, ईसाईयों की बायबल, मुसलमानों का कुरआन और कम्यूनिस्टों का जर्मन भाषा में ‘दास कॅपिटल’ (अन्ग्रेजी में द कॅपिटल) आदि रिलिजन, मजहब या संप्रदाय यह पुस्तकबध्द होने के कारण अपरिवर्तनीय होते हैं। इन में लचीलापन नहीं होता। आग्रह से आगे दुराग्रह की सीमा तक यह जाते हैं।
11) टिड्डियों को इन लोगों के वध की नहीं इन्हें पाँच महिनों तक पीडित करने की अनुमति दी गयी । उनकी यंत्रणा बिच्छुओं के डंक-जैसी थी - प्रकाशना ग्रंथ 9/5
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10) यह न समझो कि मैं पृथ्वीपर शान्ति लेकर आया हूं । मैं शान्ति नहीं बल्कि तलवार लेकर आया हूं -
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== भारत में धर्म तथा संप्रदाय ==
    - मैं पुत्र और पिता मे, पुत्री और माता में, बहू और सास मे फूट डालने आया हूं - सन्त मत्ती 10/34, 35
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“[[Hindu and Bharatiya (हिन्दू एवं भारतीय)|हिन्दू एवं भारतीय]]” तथा ‘[[Dharma: Bhartiya Jeevan Drishti (धर्म:भारतीय जीवन दृष्टि)|धर्म]]’ के अध्याय में हमने हिन्दू और धर्म के विषय में जाना है। अब हम हिन्दू धर्म और संप्रदाय के विषय में विचार करेंगे। 
11) यदि कोई मुझ में (मेरे आश्रय) नही रहता, तो वह सूखी डाली की तरह फेंक दिया जाता है। लोग एैसी डालियाँ बटोर लेते हैं और आग मे झोंक कर जला देते हैं - सन्त योहान 15/6
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12) जो विश्वास करेगा और बाप्तिस्मा ग्रहण करेगा उसे मुक्ति मिलेगा । जो विश्वास नहीं करेगा वह दोषी ठहराया जायेगा - सन्त मारकुस 16/16
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भारतीय सम्प्रदाय सामान्यत: वेद को माननेवाले ही हैं। भारत के हजारों वर्षों के इतिहास में कई ऐसे राजा थे जो किसी सम्प्रदाय को मानते थे। किन्तु एक बौद्ध मत को माननेवाले सम्राट अशोक को छोड़ दें तो उन्होंने कभी भी अपनी प्रजा में सम्प्रदाय के आधार पर किसी को प्रताड़ित नहीं किया। उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया। हिन्दूओं की मान्यता है – एकं सत् विप्र: बहुधा वदन्ति । 
13) तुम उन राष्ट्रों के साथ यह व्यवहार करोगे- उनकी वेदियों को गिरा दोगे, उनके पवित्र स्मारकों को तोड डालोगे, उनके पूजा स्तंभों को काट दोगे और उनकी देवमूर्तियों को आग में जला दोगे - विधि विवरण ग्रंथ 7/5
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14) उन मूर्तियों को दण्डवत् कर उन की पूजा मत करो; क्याै कि मैं प्रभू, तुम्हारा ईश्वर एैसी बात सहन नहीं करता । जो मुझसे बैर करते हैं , मैं तीसरी और चौथी पीढीतक उनकी संतति को उनके अपराधों का दण्ड देता हूं - निर्गमन ग्रंथ 20/5
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सम्प्रदायों के विस्तार का प्रारम्भ बौद्ध मत से शुरू हुआ। बौध सम्प्रदाय यह भारत का पहला प्रचारक सम्प्रदाय था। भिन्न विचार तो लोगों के हुआ करते थे। कम अधिक संख्या में उनके अनुयायी भी हुआ करते थे। लेकिन प्रचार के माध्यम से अपने सम्प्रदाय को माननेवालों की संख्या बढाने के प्रयास नहीं होते थे। 
15) प्रभू-ईश्वर ईष्र्यालू और प्रतिशोधी है। प्रभू-ईश्वर बदला लेता और बात-बात में क्रुद्ध हो जाता है। प्रभू-ईश्वर अपने शत्रुओं के विरुद्ध प्रतिशोध करता है और बैरियों से आगबबूला हो उठता है - नहूम का ग्रंथ 1/2
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16) मैं विधानभंग के कारण तुम्हारे पास तलवार भेजूंगा । यदि तुम नगरों में शरण लोगे तो मैं तुम्हारे बीच महामारी भेजूंगा और तुम अपने शत्रुओं के हवाले कर दिये जाओगे - लेवी ग्रंथ 26/25
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भारत में भी कई मत, पंथ या संप्रदाय हैं। किन्तु सामान्यत: वे असहिष्णू नहीं हैं। इन संप्रदायों ने अपने संप्रदायों के प्रचार प्रसार के लिये सामान्यत: हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया। किन्तु अरबस्तान में जन्मे यहुदी, ईसाई, इस्लाम और रशिया में जन्मा कम्युनिज्म ये चारों ही मजहब असहिष्णू हैं। हिंसा के आधारपर अपने रिलिजन, मजहब के प्रसार में विश्वास रखते हैं। जैसे मुसलमान यही चाहते हैं कि दुनिया के हर मानव को ‘अल्लाह’ प्यारा हो जाए। और जो यह नहीं चाहता उसे ‘अल्लाह का प्यारा’ बनाना चाहिए। दुनियाँभर में जो बेतहाशा कत्ले आम हुवे हैं वे सभी इन असहिष्णु रिलिजन या मजहबों के कारण हुए हैं। भारत में भी बड़ी तादाद में जो मुसलमान हैं या ईसाई हैं वे सामान्यत: बलपूर्वक मुसलमान या ईसाई बनाए गए हैं। ईसाईयत ने तो जब तलवार से काम नहीं चला तब झूठ, फरेब का सहारा लेकर ईसाईयत का विस्तार किया। अब लव्ह जिहाद जैसे तरीकों से इस्लाम भी ऐसे छल कपट से इस्लाम के विस्तार के प्रयास कर रहा है। इस्लाम का स्वीकार नहीं करनेवाले लाखों की संख्या में हिन्दू क़त्ल किये गए हैं। इसलिये यदि अफीम की गोली ही कहना हो तो ये रिलिजन या मजहब ही अफीम की गोली हैं।  
17) तलवार सडकोंपर उसकी संतति मिटा देगी। उनके घरों में आतंक बना रहेगा। नवयुवक और नवयुवतियों का वध किया जायेगा । पके बालवाले बूढे और दुधमुंहे बच्चे समान रूप से मरे जायेंगे - विधि विवरण ग्रंथ 32/25
 
18) उनके पूर्वजों के कुकर्मों के कारण पुत्रों का वध किया जायेगा - इसायाह का ग्रंथ 14/21
 
19) जो मनुष्य पूर्ण समर्पित है, वह नही छुडाया जा सकता । उसका वध करना है -लेवी ग्रंथ 27/29 
 
20) प्रभू ने मूसा को बुलाया और दर्शन कक्ष से उस से यह कहा,' इरुााएलियों से यह कहो,' जब तुम में कोई प्रभू को चढावा अर्पित करना चाहे तो वह ढोरों या भेड-बकरियों के झुण्डों से कोई पशू ले आ सकता है।
 
    - तब वह प्रभू के सामने बछडे का वध करे और याजक हारून के पुत्र उसका रक्त चढाएं । वे उसका रक्त दर्शनकक्ष के द्वारपर वेदी के चारों ओर छिडकें - लेवी ग्रंथ 1/2, 5
 
21) जो पशु फटे खुरवाले और पागूर (जुगाली) करनेवाले हैं उन्हें तुम खा सकते हो
 
  - तुम सूअर को अशुद्ध मानोगे : उसके खुर फटे होते हैं लेकिन वह पागुर नही करता
 
  - सब जल-जन्तुओं में तुम इन को खा सकते हो जो पंख और शल्क (छिलके) वाले हैं- चाहे वे समुद्र में रहते हों चाहे दरिया में
 
  - परन्तु तुम उन पंख और चार पाँव वाले कीडों को खा सकते हो, जिनके पृथ्वी पर कूदने के पैर होते हैं - लेवी ग्रंथ  11/3, 7, 9, 21
 
22) और मेरे बैरियों को जो यह नही चाहते थे कि मैं उनपर राज्य करूं, इधर लाकर मेरे सामने मार डालो - सन्त लूकस 19/27
 
23) न्यायाधिकरण (इन्क्विझिशन) का काम था घोर अत्याचार करना । - - उसने लाखों भाग्यहीन स्त्रियों को जादूगरनियाँ कहकर आग में झोंक दिया और धर्म के नामपर अनेक प्रकार के लोगों पर कई तरह के अत्याचार किए - बट्र्रांड रसेल' व्हाय आय एॅम नॉट ए क्रिश्चियन एॅड अदर एसेज ऑन रिलिजन ' पृष्ठ 24, 7वाॅ संस्करण
 
24) बायबल मे वर्णित भिन्न भिन्न पैगंबरों ने भी कत्ल का तूफान मचाया था। जैसे डेव्हिड या दाऊद (सॅम्युएल का दूसरा ग्रंथ 12/31, 18/27 ), येहू (राजाओं का दूसरा ग्रंथ 10/11), मूसा का उत्तराधिकारी योशुआ (योशुआ का ग्रंथ 10/30, 32, 36, 37, 40), एलियाह (राजाओं का पहला ग्रंथ 18/40), सॅम्युएल, मूसा, एलिशा आदी
 
ईसाईयत और स्त्री
 
1)  उसने (ईश्वरने) स्त्री से यह कहा,' मैं तुम्हारी गर्भावस्था का कष्ट बढाऊंगा और तुम पीडा में सन्तान को जन्म दोगी । तुम वासना के कारण पति में आसक्त होगी और वह तुमपर शासन करेगा - उत्पत्ति ग्रंथ 3/16
 
2)  पुरूष स्त्री से नही बना बल्कि स्त्री पुरूष से बनी - और पुरूष की सृष्टी स्त्री के लिये नहीं हुई बल्कि पुरूष के लिये स्त्री की सृष्टी हुई - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र 11/8,9
 
3)  धर्मशिक्षा के समय स्त्रियाँ अधीनता स्वीकार करते हुवे मौन रहें - मैं नही चाहता कि वे शिक्षा दें या पुरूषों पर अधिकार जतायें । वे मौन ही रहें - क्याै कि आदम पहले बना हव्वा बाद में - और आदम बहकावे में नहीं पडा बल्कि हव्वा ने बहकावे में पडकर अपराध किया - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र 5/11 से 14
 
4)  जिस तरह कलिसिया मसीह के अधीन रहती है उसी तरह पत्नी को भी सब बातों में पति के अधीन रहना चाहिये - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र 5/24
 
5)  जैसा कि प्रभु-भक्तों के लिये उचित है, पत्नियाँ अपने पतियों के अधीन रहें - कलोसियों के नाम पत्र 3/18
 
6)  आप की धर्मसभाओं में भी स्त्रियाँ मौन रहें । उन्हें बोलने की अनुमति नहीं है । वे अपनी अधीनता स्वीकार करें जैसा कि संहिता कहती है - - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र 14/34
 
    - यदि वे किसी बात की जानकारी प्राप्त करना चाहती है तो वे घर में अपने पतियों से पूछें । धर्मसभामें बोलना स्त्री के लिये लज्जा की बात है - कुरिन्थियों के नाम पहला पत्र 1435
 
7)  यदि उसने अपराध किया और अपने पति के साथ विश्वासघात किया, तो वह शाप लानेवाला जल, जो याजक उसे पिलाता है, उस में असह्र पीडा उत्पन्न करेगा । स्त्री का पेट फूल जायेगा, उसकी जाॅघें घुल जायेंगी और उसका नाम उसके लोगों में अभिशप्त हो जायेगा -गणना ग्रंथ 5/27
 
8)  यदि प्रभु, तुम्हारा ईश्वर उसे तुम्हारे हवाले करे तो उसका प्रत्येक पुरूष तलवार के घाट उतार दिया जाये - स्त्रियाँ, बच्चे, पशू और जो कुछ उस नगर में है - वह सब तुम अपने अधिकार में कर लो और अपने शत्रुओं से लूटे हुवे माल का उपभोग करो - विधि विवरण ग्रंथ 20/ 13, 14
 
9)  इसलिये सब लडकों को मार डालो और उन स्त्रीयों को भी जिनका पुरूष के साथ प्रसंग हुवा है, किंतु तुम उन सब कन्याओं को जिनका पुरूषों से प्रसंग नहीं हुवा है अपने लिये जीवित रखो - गणना ग्रंथ 31/ 17,18
 
10) सोलह हजार कन्याएं - इन में से प्रभू के लिये चढ़ावा बत्तीस कन्याएं - गणना ग्रंथ 31/40
 
11) जब कोई आदमी अपनी लडकी को दासी के रूप में बेचे, तो वह दासों की तरह नही छोडी जायेगी -
 
    - यदि वह अपने स्वामी को पसन्द न आये, जिसने उसे खरीदा है, तो वह उसे बेच सकता है। उसे किसी विदेशी व्यक्ति को न बेचा जाये, क्याै कि यह उसके साथ विश्वासघात होगा - निर्गमन ग्रंथ 21/7,8 
 
12) न्यायाधिकरण (इन्क्विझिशन) का काम था घोर अत्याचार करना । - - उसने लाखों भाग्यहीन स्त्रियों को जादूगरनियाॅ कहकर आग में झोंक दिया और धर्म के नाम्पर अनेक प्रकार के लोगों पर कई तरह के अत्याचार किए - बट्र्रांड रसेल' व्हाय आय एॅम नॉट ए क्रिश्चियन एॅड अदर एसेज ऑन रिलिजन ' पृष्ठ 24, 7वाॅ संस्करण
 
ईसाईयत और वैज्ञानिक दृष्टि
 
1)  ईसा मसीह का जन्म इस प्रकार हुवा । उनकी माता मरियम की मँगनी युसुफ से हुई थी । परन्तु एैसा हुवा कि उनके साथ रहने से पहले ही मरियम पवित्र आत्मा से गर्भवती हो गई - सन्त मत्ती - 1/18
 
2)  नूह की छ: सौ वर्ष की अवस्था में, दूसरे महीने के ठीक सत्रहवें दिन अगाध गत्र्त के सब रुाोत फूट पडे और आकाश के फाटक खुल गये - उत्पत्ति ग्रंथ 7/11
 
3)  तूने पृथ्वी को उसकी नींवपर स्थापित किया: वह सदा-सर्वदा के लिये स्थिर हैै - स्तोत्र ग्रंथ 104/5
 
4)    - - क्याै कि पृथ्वी के खंभे प्रभू के हैं, उसने उन पर जगत् को रख दिया - सॅम्युएल का पहला ग्रंथ 2/8
 
5)  एक इटलीवासी ग्योर्डेनो ब्राुनो को 1600 इसवी में रोम के चर्च ने इस कारण जला दिया कि वे इस बात पर जोर दे रहे थे कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है - जवाहरलाल नेहरू ( ग्लिम्प्सेस ऑफ वर्ल्ड हिस्टरी पृष्ठ 279।
 
6)  सभागृह मे एक मनुष्य था जो अशुद्ध आत्मा के वश में था । वह ऊंचे स्वर में चिल्ला उठा - सन्त लूकस 4/33
 
7)  ईसा ने यह कहते हुवे उसे डाँटा, ' चुप रह । इस मनुष्य से बाहर निकल जा । अपदूत (शैतान) ने सब के देखते देखते उस मनुष्य को भूमिपर पटक दिया और उसकी कोई हानि किये बिना उस से बाहर निकल गया -सन्त लूकस 4/35
 
8)  कोई अस्वस्थ हो तो कलीसिया के अध्यक्षों को बुलाएँ और वे प्रभू के नामपर उस पर तेल का विलेपन करने के बाद उसके लिये प्रार्थना करें - सन्त याकूब का पत्र 5/14
 
9)  तुम जादूगरनी को जीवित नहीं रहने दोगे - निर्गमन ग्रंथ 22/17
 
10) प्रोटेस्टंट मत के संस्थापक मार्टिन ल्यूथर कहते हैं,' मेरे ह्यदय में जादूगरनी के लिये कोई सहानुभूति नहीं है। मैं उन सब को जला दूंगा- व्हाइस ऑफ इंडिया 1997 में प्रकाशित और मतिल्डा जोसलिन गेज लिखित ' वुमन, चर्च एॅड स्टेट ' -पृष्ठ 261
 
11) 1484 से 300 वर्षों में 90 लाख व्यक्तियों को जादू टोने के कथित अपराध में मौत के घाट उतार दिया गया था । इस अनुमान में उन लोगों की एक बडी संख्या सम्मिलित नहीं है जिनकी इस से पूर्व इसी अपराध के लिये बलि चढाई जा चुकी थी - व्हाइस ऑफ इंडिया 1997 में प्रकाशित और मतिल्डा जोसलिन गेज लिखित ' वुमन, चर्च एॅड स्टेट ' -पृष्ठ 261 
 
उपर्युक्त सन्दर्भ कन्हैयालाल तलरेजा लिखित पवित्र वेद और पवित्र बाइबिल इस पुस्तक से लिये गये है।
 
वर्तमान दुव्र्यवस्था का समाधान - हिन्दू राष्ट्र्र, लेखक गुरुदत्त, पृष्ठ 18 पर दो और संदर्भ मिलते हैं -
 
१) यशु मसीह ने उसे कहा - मै ही मार्ग हूं, मैं ही सच्चाई हूं और जीवन हूं। कोई परमात्मा से मिल नहीं सकता; बिना मेरी सहायता के।
 
२) वे जो कभी मुझसे पहले आये थे, चोर और लुटेरे थे।
 
इस्लाम को जानें
 
इस्लाम को ठीक समझने के लिए कुर्रान और हदीस दोनों को मिलाकर ही समझा जा सकता है। कुर्रान यह इस्लाम का सैद्धांतिक पक्ष है जो बताता है कि क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए? हदीस बताता है कि कुर्रान में बताई गई बातें कैसे करनी चाहिए और कैसे नहीं करनी चाहिए? हदीस यह पैगंबर महम्मदजी के जीवन की घटनाओं का संग्रह है। जीवन कैसे जीना चाहिए इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पैगंबर महम्मदजीका जीवन था ऐसी इस्लाम की मान्यता है।
 
कुर्रान की आयतों के मोटे तौरपर दो हिस्से बनते हैं। पहला है मक्का काल की आयतें(श्लोक)। दूसरा है मदिना काल की आयतें। मक्का काल की आयतें जब उतरी थीं तब महम्मद के समर्थकों की संख्या बहुत कम थी। इसलिए मक्का काल की आयतों में सहिष्णुता, भाईचारा आदि का भाव है। मदिना काल की आयतों में बढी हुई शक्ति के साथ महम्मदजीका रुख बदला हुआ समझ में आता है। इन में से कई आयतें पराकोटी की असहिष्णुता का पुरस्कार करतीं हैं।
 
इस्लाम की मान्यताओं और व्यवहार से संबंधित कुछ बिंदू नमूने के रूप में आगे दिये हैं।
 
इस्लाम की महत्त्वपूर्ण मान्यताएँ
 
1  महम्मद पैगंबर स्वत: यह कहते हैं कि वे दुनियाँ के अंतिम पैगंबर(प्रेषित) हैं (हदीस 5653)। मुझ से    पहले भी अल्लाहने आदम से लेकर ईसातक 5-6 पैगंबर मानव जाति के कल्याण के लिए भेजे थे। लेकिन वे सब अधूरे थे (हदीस 5673-76)। केवल मैं ही पूर्ण हूँ (हदीस 5677)।
 
2  प्रत्येक पैगंबरने अपना मजहब चलाया था। लेकिन उन सब में कमियाँ थीं। केवल इस्लाम ही परिपूर्ण मजहब है। कुर्रान में बताई गई बातें मानव जाति के लिये अंतिम शब्द हैं, ऐसा पैगंबर महम्मदजी का कहना है और इसलिए इस्लाम की ऐसी ही मान्यता है। इसमें सुधार की रत्तीभर भी गुंजाइश नहीं है।
 
3  इस्लाम की निम्न संकल्पनाएँ समझना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
 
  3.1  इस्लाम की श्रद्धा (कलमा): अल्लाह ही एकमात्र परमात्मा है और महम्मद एकमात्र रसूल(प्रेषित) हैं।
 
  3.2  ईमानवाले, किताबवाले और काफिर : जिसकी, ‘अल्लाह एकमात्र परमात्मा है और महम्मदजी एकमात्र रसूल हैं’, इस बातपर श्रद्धा है वे  ईमानवाले (मुसलमान) कहलाते हैं, जिनके मजहब पुस्तकबद्ध हैं वे किताबवाले। यानि ओल्ड टेस्टामेंटवाले यहूदी, न्यू टेस्टामेंटवाले यानी बायबलवाले ईसाई आदि। किताबवालों की अनेकों मजहबी मान्यताओं को इस्लाम ने अपनाया हुआ है। अल्लाह एकमात्र सबका मालिक है और महम्मदजी एकमात्र रसूल हैं, इस बातपर श्रद्धा नहीं है और जिनके मजहब पुस्तकबद्ध नहीं हैं (जैसे हिंदु) वे काफिर कहलाते हैं।
 
  3.3  दारुल इस्लाम और दारुल हर्ब : दारुल इस्लाम, भूमी का वह हिस्सा है जहाँ इस्लाम का शासन चलता है। और दारुल हर्ब भूमी का वह हिस्सा है जहाँ इस्लाम का शासन नहीं है।
 
  3.4  जिहाद : दारुल हर्ब को हर संभव मार्ग से दारुल इस्लाम बनाना यह प्रत्येक मुसलमान का पवित्र कर्तव्य और अनिवार्य जिम्मेदारी है। इस दृष्टि से समझाने से लेकर कत्ले - आम तक के परिवर्तन के सभी कर्मों को जिहाद कहते हैं।
 
  3.5  अखिरत का दिन : प्रत्येक मनुष्य (स्त्री के रूह का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं है) की रूह मरने के बाद जमीन में दफनाए स्थानपर अखिरत के यानि न्याय के दिनतक पडी रहती है। अखिरत के दिन ये सब रुहें न्याय सुनने के लिये उठतीं हैं। अल्ला की उपस्थिती में महम्मद उन सबका न्याय करता है। महम्मदजी का काम है किस मनुष्य ने इस्लामपर श्रद्धा रखी थी और किसने नहीं रखी थी यह बताने का। और अल्लाह का काम है श्रद्धावान लोगों को हमेशा के लिए जन्नत में और अश्रद्धावान लोगों को हमेशा के लिए जहन्नुम में भेजने का। जन्नत का अर्थ है भौतिक जीवन में जितने भी ऐश करने के साधन है जैसे सेवा के लिए अप्सराएँ मिलना, शराब मिलना, चिरयौवन प्राप्त होना आदि वे प्राप्त होना और उनके उपभोग की शक्ति होना। जहन्नुम का अर्थ है हमेशा के लिए मरणाप्राय यातनाएँ जैसे बारबार आग में झुलसाना, ऊँची पहाडी से नीचे फेंकना आदि यातनाएँ प्राप्त होना।(हदीसउ ह. 156, 219, 220)
 
इस्लाम और स्त्री
 
1.  हलाला : तलाक प्राप्त स्त्री जबतक दूसरे पुरूष से विवाह और मैथुन कर उस दूसरे मनुष्य से तलाक नहीं पाती वह फिर से अपने पूर्व पति से विवाह नहीं कर सकती। इस प्रथा को हलाला के नाम से जानते हैं(ह 3354-3356)।
 
2.  तीन बार तलाक कहने से निकाह टूट जाता है (ह. 3491-3493)। तलाक और निकाह का दौर चलाने से एक पुरूष 4 से अधिक बीबीयाँ रख सकता है।
 
3.  कुर्रान के अनुसार एक औरत की गवाही का मूल्य पुरूष की गवाही से आधा होता है (कु 2-282)। हद्द यानि व्यभिचार जैसे मामले में स्त्री की गवाही का कोई मूल्य नहीं है।
 
4.  जन्नत में औरतें अल्पमत में और जहन्नुम में बहुमत में होंगी। (ह 6600,6596)
 
5.  स्त्री को एक वेश(ड्रेस) देकर अस्थाई निकाह इस्लाम को मान्य है।(कु5/87, ह 3247)
 
6.  मैथुन के बदले में उनको मेहर (दहेज) दे दो। यह कानून है। लेकिन कानून के बाहर रजामंदी कर लो तो कोई गुनाह नहीं है।(कु 4-24)
 
7.  एक पुरूष 4 से अधिक बीबियाँ नहीं रख सकता।(कु 4-3) रखैलों की संख्या की कोई मर्यादा नहीं है। महम्मदजी की अपनी 9 बीबियाँ थीं।
 
इस्लाम, जिहाद और नैतिकता
 
1.  अल्लाह ने तुम्हें पहले ही कसमें तोडने की इजाजत दे रखी है।(कु 66/2, ह 4057)
 
2.  लूट का माल पाक और जायज है(कु 33-26,27 ह 4327)। लूट में प्राप्त शत्रूपक्ष की स्त्रियों, बच्चों, गुलामों और संपत्ती में पैगंबरजीका (उनकी मृत्यू पश्चात खलिफा का) हिस्सा 1/5 यानी 20 प्रतिशत है।
 
3.  युद्ध में सब जायज है। मुहम्मद बताते हैं युद्ध एक कौशल है। (ह 4311)
 
4.  गुप्तघात भी जायज है। (ह 4436)
 
5.  जन्नत तलवारों की छायातले है। (ह 4314)
 
6.  हर मोमीन के लिए 5 बातें फर्जी (अनिवार्य) है। दिन में 5 बार नमाज, कलमा पढना, जकात देना, रोजे रखना और जिहाद करना। मजहबी फर्जों में जिहाद सबसे अधिक महत्पूर्ण है।(ह 4369)
 
7.  धरती केवल मोमिनों की है। अन्य सब को मैं धरती से बाहर कर दूँगा।(ह 4645)
 
इस्लाम और वैज्ञानिक दृष्टि
 
1  जम्हाई लेना शैतान का काम है।(ह 7075)
 
2  चाँद के दो टुकडे किए गए। एक पहाड के उस पार और एक इस पार। (ह 6725)
 
3  अल्लाह ने आदम को अपने कद का यानि 60 हाथ लंबा बनाया।(ह 6809)
 
4  पैगंबर के थूकने मात्र से कुआ पानी से भर गया।(ह 4450)
 
5  सृष्टि निर्माण : शनिवार से धरती, रवि को पहाड, सोम को पेड, मंगल को वह सब जिस के लिए परिश्रम करने पडते हैं, बुध को प्रकाश, गुरू को पशू और शुक्र को अंतिम प्रहर में आदमी को बनाया।(ह 6707)
 
उपर्युक्त सन्दर्भ कुर्रान और हदीस में से लिए गए हैं।
 
इस्लाम और कत्ले आम
 
1. मुस्लिम इतिहासकार फिरिस्ता ( पूरा नाम मुहम्मद कासीम हिंदू शाह, जन्म 1560-मृत्यू 1620) तारीख ए फिरिस्ता और गुलशन ए इब्रााहिम में लिखता है - मध्ययुगीन काल में मुस्लिम शासन काल में हुए हत्याकांडों के कारण हिंदू आबादी 60 करोड से घटकर 16 वीं सदी के मध्यतक 20 करोड रह गई।
 
2.  द स्टोरी ऑफ सिव्हिलायझेशन : अवर ओरियंटल हेरिटेज इस पुस्तक में विल ड्यूरंट लिखते हैं - मुसलमानों की भारत विजय की गाथा खूनसे लथपथ है। मुस्लिम विद्वान और इतिहासकारोंने, मुस्लिम सेनानियोंद्वारा सन 800 से 1700 तक किये गये हिंदुओं के कत्ले आम, जबरन धर्मांतर, हिंदू स्त्रियों और बच्चों को गुलामों के बाजार में बेचने और मंदिरों को ढहाने का वर्णन अत्यंत हर्ष और गौरव के साथ किया हुआ है।
 
इस्लाम और गुलामी की प्रथा
 
अल्लाउद्दीन खिलजी की व्यक्तिगत सेवा में 50,000 गुलाम लौंडे/लौंडियाँ थीं। इसके अलावा उसके पास 70,000 गुलाम थे जो रात - दिन भवन निर्माण का काम करते थे। महमूद गझनी ने  997 से 1020 के बीच 17 बार आक्रमण किए। हर बार वह लाखों की संख्या में गुलाम ले गया। खलीफा को लूट का पाँचवाँ हिस्सा देना पडता था। महमूद ने एक आक्रमण के बाद खलीफा को 1,50,000 गुलाम दिये थे। इसका अर्थ है कि वह भारत से 7,50,000 लोगों को गुलाम बनाकर ले गया था।
 
इस्लाम और हिजडे बनाये हुए गुलामों की प्रथा
 
1526 से लेकर 1857 तक भारत में मुसलमान बादशाहों के पास हजारों की संख्या में गुलाम बनाकर नपुंसक बनाए पुरूष होते थे। अकबर के पास भी ऐसे हिजडे बडी संख्या में थे। जहांगीर के सरदार सईद खान चुगताई के पास 1200 हिजडे थे। अल्लाउद्दीन खिलजी के पास 50,000, महम्मद तुघलक के पास 20,000, फिरोझशाह तुघलक के पास 40,000 हिजडे थे। अपने जनानखाने में जबरन ठूँसी हुई हजारों स्त्रियों की सेवा में इन्हें रखा जाता था। जो मूल में हिंदू थे ऐसे कई सरदारों को हिजडा बनाया गया था।
 
भारत में धर्म तथा संप्रदाय
 
“हिन्दू” तथा ‘धर्म’ के अध्याय में हमने हिन्दू और धर्म के विषय में जाना है। अब हम हिन्दू धर्म और संप्रदाय के विषय में विचार करेंगे।
 
भारतीय सम्प्रदाय सामान्यत: वेद को माननेवाले ही हैं। भारत के हजारों वर्षों के इतिहास में कई ऐसे राजा थे जो किसी सम्प्रदाय को मानते थे। किन्तु एक बौद्ध मत को माननेवाले सम्राट अशोक को छोड़ दें तो उन्होंने कभी भी अपनी प्रजा में अपने सम्प्रदाय से किसी का सम्प्रदाय भिन्न है इसलिए उन्हें प्रताड़ित नहीं किया। उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया। हिन्दूओं की मान्यता है – एकं सत् विप्र: बहुधा वदन्ति ।
 
सम्प्रदायों के विस्तार का प्रारम्भ बौद्ध मत से शुरू हुआ। बौध सम्प्रदाय यह भारत का पहला प्रचारक सम्प्रदाय था। भिन्न विचार तो लोगों के हुआ करते थे। कम अधिक संख्या में उनके अनुयायी भी हुआ करते थे। लेकिन प्रचार के माध्यम से अपने सम्प्रदाय को माननेवालों की संख्या बढाने के प्रयास नहीं होते थे।
 
धर्म, रिलिजन, मजहब तथा संप्रदाय
 
धर्म और रिलिजन, मजहब तथा संप्रदाय इन शब्दों के अर्थ समझना आवश्यक है। रिलिजन और मजहब समान अर्थ वाले शब्द हैं। रिलिजन/मजहब और धर्म में मोटा मोटा अंतर नीचे दे रहे हैं।
 
-  धर्म बुद्धि पर आधारित श्रद्धा है। जब की रिलिजन, मजहब, मत, पंथ या सम्प्रदाय की सभी अनिवार्य बातें बुद्धियुक्त ही हों यह आवश्यक नहीं होता।
 
-  धर्म यह पूरी मानवता के हित की संकल्पना है। धर्म मानवता व्यापी है। रिलिजन, मजहब, मत, पन्थ या संप्रदाय उस रिलिजन, मजहब, मत, पंथ या संप्रदाय के लोगों को अन्य मानव समाज से अलग करने वाली संकल्पनाएँ हैं।
 
-  रिलिजन, मजहब या संप्रदायों का एक प्रेषित होता है। यह प्रेषित भी बुध्दिमान और दूरगामी तथा लोगों की नस जाननेवाला होता है। किन्तु वह भी मनुष्य ही होता है। उस की बुद्धि की सीमाएँ होतीं हैं। धर्म तो विश्व व्यवस्था के नियमों का ही नाम है। धर्म का कोई एक प्रेषित नहीं होता। धर्म यह प्रेषितों जैसे ही, लेकिन जिन्हे आत्मबोध हुवा है ऐसे कई श्रेष्ठ विद्वानों की सामुहिक अनुभव और अनुभूति की उपज होता है।
 
-  रिलिजन, मजहब या संप्रदाय यह पुस्तकबध्द होते हैं। इन की एक पुस्तक होती है। जैसे पारसियों की झेंद अवेस्ता, यहुदियों की ओल्ड टेस्टामेंट, ईसाईयों की बायबल, मुसलमानों का कुर्रान और कम्यूनिस्टों का जर्मन भाषा में ‘दास कॅपिटल’ (अन्ग्रेजी में द कॅपिटल)आदी । रिलिजन, मजहब या संप्रदाय यह पुस्तकबध्द होने के कारण अपरिवर्तनीय होते हैं। इन में लचीलापन नहीं होता। आग्रह से आगे दुराग्रह की सीमातक यह जाते हैं।
 
-  एक और बात भी यहाँ महत्वपूर्ण है। भारत में भी कई मत, पंथ या संप्रदाय हैं। किन्तु सामान्यत: वे असहिष्णू नहीं हैं। इन संप्रदायों ने अपने संप्रदायों के प्रचार प्रसार के लिये सामान्यत: हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया। किन्तु अरबस्तान में जन्मे यहुदी, ईसाई, इस्लाम और रशिया में जन्मा कम्युनिज्म ये चारों ही मजहब असहिष्णू हैं। हिंसा के आधारपर अपने रिलिजन, मजहब के प्रसार में विश्वास रखते हैं। जैसे मुसलमान यही चाहते हैं कि दुनिया के हर मानव को ‘अल्लाह’ प्यारा हो जाए। और जो यह नहीं चाहता उसे ‘अल्लाह का प्यारा’ बनाना चाहिए। दुनियाँभर में जो बेतहाशा कत्ले आम हुवे हैं वे सभी इन असहिष्णु रिलिजन या मजहबों के कारण हुए हैं। भारत में भी बड़ी तादाद में जो मुसलमान हैं या ईसाई हैं वे सामान्यत: बलपूर्वक मुसलमान या ईसाई बनाए गए हैं। ईसाईयत ने तो जब तलवार से काम नहीं चला तब झूठ, फरेब का सहारा लेकर ईसाईयत का विस्तार किया। अब लव्ह जिहाद जैसे तरीकों से इस्लाम भी ऐसे छल कपट से इस्लाम के विस्तार के प्रयास कर रहा है। इस्लाम का स्वीकार नहीं करनेवाले लाखों की संख्या में हिन्दू क़त्ल किये गए हैं। इसलिये यदि अफीम की गोली ही कहना हो तो ये रिलिजन या मजहब ही अफीम की गोली हैं।  
 
 
-  एक और बात भी यहाँ विचारणीय है। मजहबों या रिलिजन जैसा सम्प्रदायों का राजनीतिक लक्ष्य नहीं होता। समुचे विश्व को चल, बल, कपट जिस भी तरीके से हो अपने मजह का बनाना यह उनका लक्ष्य होता है।  
 
-  एक और बात भी यहाँ विचारणीय है। मजहबों या रिलिजन जैसा सम्प्रदायों का राजनीतिक लक्ष्य नहीं होता। समुचे विश्व को चल, बल, कपट जिस भी तरीके से हो अपने मजह का बनाना यह उनका लक्ष्य होता है।  
 
मजहबी विस्तार और कृण्वन्तो विश्वमार्यम्
 
मजहबी विस्तार और कृण्वन्तो विश्वमार्यम्

Revision as of 15:58, 15 August 2018

कई विद्वान ऐसा कहते हैं कि धर्म अफीम की गोली है। धर्म के कारण विश्वभर में खून की नदियाँ बहीं हैं। भीषण कत्लेआम हुए हैं।

वास्तव में ऐसा जिन विद्वानों ने कहा है उन्हे धर्म का अर्थ ही समझ मे नहीं आया था और नहीं आया है । रिलिजन, मजहब के स्थान पर धर्म शब्द का और धर्म के स्थान पर रिलिजन, मजहब इन शब्दों का प्रयोग अज्ञानवश लोग करते रहते हैं। इसलिये धर्म और रिलिजन, मजहब और संप्रदाय इन तीनो शब्दों के अर्थ समझना भी आवश्यक है। इस दृष्टि से हमने "धर्म:भारतीय जीवन दृष्टि", इस लेख में धर्म शब्द के अर्थों को समझा है।

अब हम धर्म और रिलिजन या मजहब इन शब्दों के वास्तविक अर्थ जानने का प्रयास करेंगे।

हिन्दुस्तान को किराने की दूकान की उपमा दी जाती है। किराने की दुकान में चीनी, दाल, आटा, तेल, मसाले ऐसे भिन्न भिन्न सैंकड़ों पदार्थ होते हैं लेकिन किराना नाम का कोई पदार्थ नहीं होता है। इसी तरह से हिन्दुस्तान में शैव हैं, बौद्ध हैं, वैष्णव हैं, गाणपत्य हैं, लिंगायत हैं, जैन हैं, सिख हैं, ईसाई हैं, मुस्लिम हैं लेकिन हिन्दू नहीं है। जब संविधान बन रहा था, तब हिन्दू कोड बिल की चर्चा के समय कई पंथों, सम्प्रदायों के लोगों ने माँग की थी कि वे हिन्दू नहीं हैं। उन पर हिन्दू कोड बिल लागू न किया जाए। इसपर काफी बहस हुई थी। अंत में हिन्दू कौन है इसकी स्पष्टता की गयी थी। इस के अनुसार जो पारसी, यहूदी, ईसाई या मुसलमान नहीं है वे सब हिन्दू हैं ऐसा स्पष्ट किया गया था। और सब मान गए थे। इस के लिए हिन्दू में कौन कौन से मत, पंथ या सम्प्रदायों का समावेश होता है इसे स्पष्ट करने की आवश्यकता नहीं समझी गयी थी।

इससे प्रश्न यह उठता है कि हिन्दू क्या है? पारसी, यहूदी, ईसाई या मुसलमान जिनके नाम लेकर कहा गया था कि इन्हें छोड़कर जो भी हैं वे सब हिन्दू हैं, वे क्या हैं? और शैव, बौद्ध, वैष्णव, गाणपत्य, लिंगायत, जैन, सिख आदि जिन के नाम न लेकर भी जिनका समावेश हिन्दू समाज में किया गया वे क्या हैं?

सम्प्रदाय

सम्प्रदाय में ‘दा’ का अर्थ है देना। ‘प्र’ का अर्थ है व्यवस्था से देना और ‘सं’ का अर्थ है अच्छी व्यवस्था से देना। किसी विद्वान के मन में श्रेष्ठ जीवन के विषय में कोई श्रेष्ठ विचार आता है, जो सामान्य विचारों से भिन्न होता है। वह उसे किसी को बताता है। विचार अच्छा लगाने से दूसरा मनुष्य उस विचार को ग्रहण करता है। वह भी उस विचार को अन्यों को देता है। इस प्रकार से उस विचार का प्रारम्भ करनेवाले मनुष्य के कई अनुयायी बन जाते हैं। ये सब मिलकर एक संप्रदाय बन जाता है।

मजहब या रिलिजन

मजहब और रिलिजन ये दोनों ही एक ही अर्थ के दो शब्द हैं। दोनों ही अभारतीय हैं। ऊपर बताए सम्प्रदाय के अर्थ के अनुसार ये भी सम्प्रदाय ही की तरह होते हैं। लेकिन ये रिलिजन या मजहब भिन्न होते हैं। रिलिजन शब्द अंग्रेजी भाषा से याने ईसाईयों से और मजहब शब्द अरबी भाषा से याने इस्लाम से जुडा हुआ है। ये दो मजहब आज विश्व में जनसंख्या के मामले में क्रमश: पहले और दूसरे क्रमांक पर हैं। पूरी दुनिया को बहुत प्रभावित करते हैं।

प्रमुख रिलिजन या मजहब

ईसाईयत का प्रारम्भ लगभग २००० वर्ष पूर्व और इस्लाम का प्रारंभ लगभग १४०० वर्ष पूर्व हुआ था।

एक और भी नया रिलिजन या मजहब है। वह है कम्युनिज्म। कम्युनिज्म के इस तत्व को कि मनुष्य मेहनत करे, संपत्ति निर्माण करे और सम्पत्ति सरकार की या अन्य किसी की हो, कोई स्वीकार नहीं कर सकता। इसलिए कम्युनिज्म अपने ही आत्मविरोध के कारण नष्ट होने की दिशा में बढ़ रहा है। हाँ ! इसका नया रूप धीरे धीरे फिर पनपने लगा है। नव-सोशलिज्म के नाम से यह चल रहा है। इसका उद्देश्य वर्तमान में जो भी व्यवस्थाएँ हैं उन्हें तोड़ना है। नया कोई विकल्प निर्माण करने का कोई विचार इसमें नहीं है।

वर्तमान में जो सबसे प्रभावी रिलिजन या मजहब हैं ईसाई और इस्लाम हैं उन पर कुछ विचार:

वैसे तो ये दोनों मजहब एक ही माला के मणि हैं। सेमेटिक मजहब माने जाते हैं। सृष्टि निर्माण की समान कल्पनाएँ लेकर बने हैं। इसलिये इन की जीवन दृष्टि भी लगभग समान है। फिर भी दोनों ने एक दूसरे को मिटाने के लिए बहुत प्रयास किये हैं। इन दोनों मजहबों का जन्म जिस अरब भूमि में हुआ है वहाँ की परिस्थिति इन के स्वभाव का कारण है। प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक मुजफ्फर हुसैन कहा करते थे कि अरब भूमि की भौगोलिक स्थिति अभावग्रस्त जीवन की थी। जब तक दूसरों को लूटोगे नहीं तबतक अपना जीवन नहीं चला सकते।

डॉ. राधाकृष्णन अपनी पुस्तक रिलिजन एंड कल्चर में पृष्ठ १७ पर लिखते हैं – प्रारम्भिक ईसाईयत सत्ताकांक्षी (अथोरिटेरियन) नहीं थी। लेकिन जैसे ही रोम के राजा ने ईसाईयत को अपनाया वह अधिक सत्ताकांक्षी बन गयी। इसका अर्थ है कि मूलत: भी ईसाईयत में सत्ताकांक्षा तो थी ही। यही बात इस्लाम के विषय में भी सत्य है। मक्का काल में इस्लाम के अनुयायीयों की संख्या बहुत कम थी। तब उसमें याने उस काल की कुरआन की आयतों में इस्लाम न मानने वालों के साथ मिलजुलकर रहना, भाईचारा आदि शब्द थे। लेकिन जैसे ही मदीना पहुंचकर इस्लाम के अनुयायीयों की संख्या बढी इस्लाम की भाषा बदल गयी। वह सत्ताकांक्षी हो गयी।

धर्म, रिलिजन, मजहब तथा संप्रदाय - एक विवेचना

धर्म और रिलिजन, मजहब तथा संप्रदाय इन शब्दों के अर्थ समझना आवश्यक है। धर्म बुद्धि पर आधारित श्रद्धा है। जबकि रिलिजन, मजहब, मत, पंथ या सम्प्रदाय की सभी अनिवार्य बातें बुद्धियुक्त ही हों यह आवश्यक नहीं होता। धर्म यह पूरी मानवता के हित की संकल्पना है। धर्म मानवता व्यापी है। रिलिजन, मजहब, मत, पन्थ या संप्रदाय उस रिलिजन, मजहब, मत, पंथ या संप्रदाय के लोगों को अन्य मानव समाज से अलग करने वाली संकल्पनाएँ हैं।

रिलिजन, मजहब या संप्रदायों का एक प्रेषित होता है। यह प्रेषित भी बुध्दिमान और दूरगामी तथा लोगों की नस जाननेवाला होता है। किन्तु वह भी मनुष्य ही होता है। उस की बुद्धि की सीमाएँ होतीं हैं। धर्म तो विश्व व्यवस्था के नियमों का ही नाम है। धर्म का कोई एक प्रेषित नहीं होता। धर्म यह प्रेषितों जैसे ही, लेकिन जिन्हे आत्मबोध हुवा है ऐसे कई श्रेष्ठ विद्वानों की सामुहिक अनुभव और अनुभूति की उपज होता है।

रिलिजन, मजहब या संप्रदाय यह पुस्तकबध्द होते हैं। इन की एक पुस्तक होती है। जैसे पारसियों की झेंद अवेस्ता, यहुदियों की ओल्ड टेस्टामेंट, ईसाईयों की बायबल, मुसलमानों का कुरआन और कम्यूनिस्टों का जर्मन भाषा में ‘दास कॅपिटल’ (अन्ग्रेजी में द कॅपिटल) आदि । रिलिजन, मजहब या संप्रदाय यह पुस्तकबध्द होने के कारण अपरिवर्तनीय होते हैं। इन में लचीलापन नहीं होता। आग्रह से आगे दुराग्रह की सीमा तक यह जाते हैं।

भारत में धर्म तथा संप्रदाय

हिन्दू एवं भारतीय” तथा ‘धर्म’ के अध्याय में हमने हिन्दू और धर्म के विषय में जाना है। अब हम हिन्दू धर्म और संप्रदाय के विषय में विचार करेंगे।

भारतीय सम्प्रदाय सामान्यत: वेद को माननेवाले ही हैं। भारत के हजारों वर्षों के इतिहास में कई ऐसे राजा थे जो किसी सम्प्रदाय को मानते थे। किन्तु एक बौद्ध मत को माननेवाले सम्राट अशोक को छोड़ दें तो उन्होंने कभी भी अपनी प्रजा में सम्प्रदाय के आधार पर किसी को प्रताड़ित नहीं किया। उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया। हिन्दूओं की मान्यता है – एकं सत् विप्र: बहुधा वदन्ति ।

सम्प्रदायों के विस्तार का प्रारम्भ बौद्ध मत से शुरू हुआ। बौध सम्प्रदाय यह भारत का पहला प्रचारक सम्प्रदाय था। भिन्न विचार तो लोगों के हुआ करते थे। कम अधिक संख्या में उनके अनुयायी भी हुआ करते थे। लेकिन प्रचार के माध्यम से अपने सम्प्रदाय को माननेवालों की संख्या बढाने के प्रयास नहीं होते थे।

भारत में भी कई मत, पंथ या संप्रदाय हैं। किन्तु सामान्यत: वे असहिष्णू नहीं हैं। इन संप्रदायों ने अपने संप्रदायों के प्रचार प्रसार के लिये सामान्यत: हिंसा का मार्ग नहीं अपनाया। किन्तु अरबस्तान में जन्मे यहुदी, ईसाई, इस्लाम और रशिया में जन्मा कम्युनिज्म ये चारों ही मजहब असहिष्णू हैं। हिंसा के आधारपर अपने रिलिजन, मजहब के प्रसार में विश्वास रखते हैं। जैसे मुसलमान यही चाहते हैं कि दुनिया के हर मानव को ‘अल्लाह’ प्यारा हो जाए। और जो यह नहीं चाहता उसे ‘अल्लाह का प्यारा’ बनाना चाहिए। दुनियाँभर में जो बेतहाशा कत्ले आम हुवे हैं वे सभी इन असहिष्णु रिलिजन या मजहबों के कारण हुए हैं। भारत में भी बड़ी तादाद में जो मुसलमान हैं या ईसाई हैं वे सामान्यत: बलपूर्वक मुसलमान या ईसाई बनाए गए हैं। ईसाईयत ने तो जब तलवार से काम नहीं चला तब झूठ, फरेब का सहारा लेकर ईसाईयत का विस्तार किया। अब लव्ह जिहाद जैसे तरीकों से इस्लाम भी ऐसे छल कपट से इस्लाम के विस्तार के प्रयास कर रहा है। इस्लाम का स्वीकार नहीं करनेवाले लाखों की संख्या में हिन्दू क़त्ल किये गए हैं। इसलिये यदि अफीम की गोली ही कहना हो तो ये रिलिजन या मजहब ही अफीम की गोली हैं। - एक और बात भी यहाँ विचारणीय है। मजहबों या रिलिजन जैसा सम्प्रदायों का राजनीतिक लक्ष्य नहीं होता। समुचे विश्व को चल, बल, कपट जिस भी तरीके से हो अपने मजह का बनाना यह उनका लक्ष्य होता है। मजहबी विस्तार और कृण्वन्तो विश्वमार्यम् मजहबों का विस्तार प्रारम्भ में जब उन मजहबों को माननेवालों की संख्या कम थी, ताकत कम थी तबतक ‘बातों’ से हुआ। लेकिन संख्याबल और ताकत बढ़ जानेपर ईसाई और मुसलमान इन दोनों मजहबों ने ‘लातों या हाथों(शस्त्रों)’ का याने बल का मुख्यत: सहारा लिया। वर्तमान में ही अन्य समाज कुछ मात्रा में जाग्रत हुए हैं इसलिए छल और कपट का भी उपयोग किया जा रहा है। इसके विपरीत धर्म के नामपर हिन्दू समाज ने कभी भी छल, बल, कपट का उपयोग हिंदुओं की संख्या बढाने के लिए नहीं किया है। ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ याने पूरे विश्व को आर्य बनाने की अभिलाषा तो हिन्दुओं की भी है। आर्य का सरल अर्थ है ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ (चराचर - सब सुखी हों) में विश्वास रखनेवाला और वैसा व्यवहार करनेवाला। लेकिन इस के तरीके के रूप में हिन्दुओं का विश्वास छल, बल, कपट पर नहीं है। वह है ‘स्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन्’ पर। स्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन् का अर्थ है अपने श्रेष्ठ व्यवहार से लोगों को इतना प्रभावित करना कि उन्हें लगने लगे कि हिन्दू बनाना गौरव की बात है। ऐसा लगने से वह आर्य बने। हिन्दू बने। हिन्दुओं की समूचे विश्व को आर्य बनाने की आकांक्षा बुद्धियुक्त भी है। यदि केवल हम ही सर्वे भवन्तु सुखिन: में विश्वास रखेंगे और विश्व के अन्य समाज बर्बर और आक्रामक बने रहेंगे तो वे हमें भी सुख से जीने नहीं देंगे। इतिहास बताता है कि कृण्वन्तो विश्वमार्यम् की आकांक्षा हिन्दू समाज में जब तक रही, उस दृष्टि से आर्यत्व के विस्तार के प्रयास होते रहे तब तक भारतभूमिपर कोई आक्रमण नहीं हुए। लेकिन यह आकांक्षा जैसे ही कम हुई या नष्ट हुई भारतभूमि पर बर्बर समाजों ने आक्रमण शुरू कर दिए। हमारे राष्ट्रपति डॉ अब्दुल कलामने एक बार युवकों से प्रश्न पूछा था कि विचार करीए कि हमारे पूर्वजों ने(हिन्दुओं ने) कभी अन्य समाजोंपर आक्रमण क्यों नहीं किये? यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि विश्व में जो भी समाज बलवान बने उन्होंने अन्योंपर आक्रमण किये। केवल हिन्दू ही इसके लिए अपवाद है। अब्दुल कलामजी के कहने का तात्पर्य शायद इस सत्य को स्पष्ट करने से रहा होगा कि जो बर्बर, दुष्ट, स्वार्थी, पापी होते हैं वही अन्योंपर आक्रमण करते हैं। सदाचारी एकात्मतावादी कभी किसीपर आक्रमण नहीं करते। यही हमारी परम्परा है। फिर भी यदि कृण्वन्तो विश्वमार्यम् यह हमारा प्रकृति प्रदत्त कर्तव्य है तो यह हम कैसे निभा सकेंगे। इन में तो विरोधाभास दिखाई देता है। इसका उत्तर हमें हमारे पूर्वजों के व्यवहार और भारत के इतिहास में मिलता है। कहा है – एतद्देश प्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मना: । स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्या सर्व मानवा: ।। अर्थ : इस देश के सपूत ऐसे होंगे जो अपने श्रेष्ठतम व्यवहार से विश्व के लोगों के दिल जीत लेंगे। सम्पूर्ण मानव जाति के सामने अपने त्याग-तपोमय, पौरुषमय श्रेष्ठ जीवन से ऐसे आदर्श निर्माण करेंगे कि लोग सहज ही उनका अनुसरण करेंगे। उनके जैसे आर्य बन जाएंगे। आर्य का समझाने की दृष्टि से बहुत सरल अर्थ है जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ में विश्वास रखते हैं और वैसा व्यवहार भी करते हैं। वाचनीय साहित्य नवा करार : स्तोत्र संहिता आणि नीतिसूत्रे बायबल सोसायटी ऑफ़ इंडिया, बंगलुरु मराठी भारतीय मुसलमान: शोध आणि बोध सेतुमाधव पगड़ी परचुरे प्रकाशन मंदीर, गिरगाव, मुम्बई मराठी तालिबान, इस्लाम और शान्ति


सांस्कृतिक गौरव संस्थान, नई दिल्ली हिन्दी इस्लामचे भारतीय चित्र हमीद दलवाई श्रीविद्या प्रकाशन, पुणे ३०.


मराठी जहन्नुम मध्ये जाणारे कोण? राणा गुरूजी ओम शान्ति प्रकाशन, संभाजी नगर


मराठी जिहाद और गैर मुसलमान डॉ. कृ. व्. पालीवाल हिन्दू रायटर्स फोरम, नई दिल्ली


हिन्दी जिहाद : निरंतर युद्धाचा इस्लामी सिद्धांत सुहास मुजुमदार भारतीय विचार साध ना, पुणे


मराठी पवित्र वेद और पवित्र बायबल: तुलनात्मक अध्ययन कन्हैयालाल तलरेजा राष्ट्रीय चेतना संगठन, नी दिल्ली


हिन्दी भारतातील ख्रिस्ती सम्प्रदाय श्रीपति शास्त्री भारतीय विचार साध ना, पुणे


मराठी वेटिकन चर्च के षडयंत्र से सावधान संकलक:ललितकुमार कातरेला भारत सुरक्षा समिती, माटुंगा, मुम्बई हिन्दी असुरक्षित सीमाएं अ.भा.वि.प. अ.भा.वि.प. माटुंगा, मुम्बई


हिन्दी स्वदेशी चर्च मोरेश्वर भा. जोशी भारतीय विचार साध ना, पुणे


मराठी विचार कलह शेषराव मोरे अभिनव निर्माण प्रतिष्ठान, पुणे


मराठी मुस्लिम मनाचा शोध शेषराव मोरे



मराठी इस्लाम: एक अरब साम्राज्यवाद अनवर शेख दे प्रिन्सिपलिटी पब्लिशर्स, ग्रेट ब्रिटन हिन्दी १८५७ चा जिहाद शेषराव मोरे अभिनव निर्माण प्रतिष्ठान, पुणे


मराठी जनगणना, इस्लाम और परिवार नियोजन मुजफ्फर हुसेन विश्व संवाद केंद्र, परेल, मुम्बई


हिन्दी हदीस : के माध्यम से इस्लाम का अध्ययन रामस्वरूप व्होइस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन, नई दिल्ली हिन्दी Islaam and Shakaahaar Mujaffar Husen Sarthak Publication, Mumbai


English Concept of Jihad against Kafir in Holy Kuran Kanhaiyaalaal Talarejaa Rashtriy Chetana SangaThan, Nae Dilli English The Indian Church ? Virag Pachpor Bhaurav Devras Human Resources, Research and Development Institute/Trust, Nagapur English Muslim Politics in Secular India Hamid Dalvai Hiind Pocket Books,


English Mohammad and The Rise of Islaam D.S. Margoliouth Shraddhaa Prakashan, New Delhi English Islaamik Way of Life Sayyad Abdula Maududi Markazi Maktaba Islam, Dilli