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राजा उत्तानपाद के पुत्र, श्रेष्ठ भगवद्भक्त, जिन्होंने सुकोमल बाल्यावस्था में ही कठोर तपस्या कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और अपनी अटल भक्ति के प्रतीक बन आकाश में अविचल ध्रुव नक्षत्र के रूप में स्थित हुए। बचपन में इन्होंने अपनी विमाता सुरुचि के दुव्र्यवहार से भारी कष्ट झेला। माता सुनीति की आज्ञा और महर्षि नारद के उपदेश से पाँच वर्ष की सुकुमार अवस्था में ही राजकुमार ध्रुव के अन्त:करण में भगवद्भक्ति की प्रेरणा उत्पन्न हुई और उन्होंने यमुना-तट पर मधुवन में अखंड तप किया।
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