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== प्रस्तावना ==
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भारतीय समाज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि, ' हमने इतिहास से केवल एक बात सीखी है और वह है इतिहास से कुछ भी नहीं  सीखना '। इस बात मे तथ्य है ऐसा वर्तमान भारतीय समाज के अध्ययन से भी समझ में आता है । कुछ लोग गरूर से कहते है की हम इतिहास सीखते नहीं, हम इतिहास निर्माण करते है । ऐसे घमंडी लोगों की ओर ध्यान नहीं देना ही ठीक है । डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था की जो लोग इतिहास से सबक नहीं सीखते वे लोग भविष्य में बारबार अपमानित होते रहते है ।
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इतिहास से समाजमन तैयार होता है । हर समाज में साहित्य, लेखन, लोककथाएं, बालगीत, लोकवांग्मय, लोरीगीत आदि के माध्यम से इतिहास के उदात्त प्रसंगोंद्वारा समाजमन तैयार करने की सहज प्रक्रिया हुवा करती थी । सामान्य लोग इसे भलीभाँति समझते है । इसलिये वर्तमान विद्यालयीन शिक्षा में यद्यपि विदेशी शासकों की भूमिका से लिखा इतिहास पढाया जाता है, फिर भी लोकसाहित्य, लोकगीत, बालगीत, लोरियाँ आदि अब भी भारत के गौरवपूर्ण इतिहास की गाथा ही गाते है ।
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इतिहास दृष्टि
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== शत्रुओं द्वारा लिखित भारतीय इतिहास की पार्श्वभूमि ==
प्रस्तावना
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सामान्यत: अपने विद्यालयों में पढाए जानेवाले इतिहास की पार्श्वभूमि हमारे इतिहास शिक्षकों को विदित नहीं होती। यह जानकारी केवल ऑंखें खोलनेवाली ही नहीं तो अपने वास्तविक इतिहास के लेखन की अनिवार्यता की प्रेरणा देनेवाली भी है।     
भारतीय समाज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि, ' हमने इतिहास से केवल एक बात सीखी है और वह है इतिहास से कुछ भी नहीं  सीखना '। इस बात मे तथ्य है ऐसा वर्तमान भारतीय समाज के अध्ययन से भी समझ में आता है । कुछ लोग गरूर से कहते है की हम इतिहास सीखते नहीं, हम इतिहास निर्माण करते है । ऐसे घमंडी लोगों की ओर ध्यान नहीं देना ही ठीक है । डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था की जो लोग इतिहास से सबक नहीं सीखते वे लोग भविष्य में बारबार अपमानित होते रहते है ।
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इतिहास से समाजमन तैयार होता है । हर समाज में साहित्य, लेखन, लोककथाएं, बालगीत, लोकवांग्मय, लोरीगीत आदि के माध्यम से इतिहास के उदात्त प्रसंगोंद्वारा समाजमन तैयार करने की सहज प्रक्रिया हुवा करती थी । सामान्य लोग इसे भलीभाँति समझते है । इसलिये वर्तमान विद्यालयीन शिक्षा में यद्यपि विदेशी शासकों की भूमिका से लिखा इतिहास पढाया जाता है, फिर भी लोकसाहित्य, लोकगीत, बालगीत, लोरियाँ आदि अब भी भारत के गौरवपूर्ण इतिहास की गाथा ही गाते है ।
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शत्रूने लिखे भारतीय इतिहास की पार्श्वभूमि
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सामान्यत: अपने विद्यालयों में पढाए जानेवाले इतिहास की पार्श्वभूमि हमारे इतिहास शिक्षकों को विदित नहीं होती। यह जानकारी केवल ऑंखें खोलनेवाली ही नहीं तो अपने वास्तविक इतिहास के लेखन की अनिवार्यता की प्रेरणा देनेवाली भी है।     
   
अंग्रेजी राज भारत में आने से कुछ समय पहले १८ वीं सदी के उत्तरार्धतक केवल इंग्लंड ही नहीं तो योरप के सभी देशों में भारत के प्रति, आर्य संस्कृति के प्रति, भारतीय परंपराओं के प्रति, सामान्य भारतीय मनुष्य की नीतिमत्ता के प्रति अपार आदर था । भिन्न भिन्न ढंग से अपनी संस्कृति को आर्यों से जोडने की होड योरप के फ्रांस, जर्मनी जप्रसे प्रगत सभी देशों में लगी थी । इंग्लैण्ड भी पीछे नहीं था। १७५४ में व्हॉल्टेयरने लिखा है की मानव जाति को प्रगति के लिये भारत से मार्गदर्शन लेना चाहिये ।  
 
अंग्रेजी राज भारत में आने से कुछ समय पहले १८ वीं सदी के उत्तरार्धतक केवल इंग्लंड ही नहीं तो योरप के सभी देशों में भारत के प्रति, आर्य संस्कृति के प्रति, भारतीय परंपराओं के प्रति, सामान्य भारतीय मनुष्य की नीतिमत्ता के प्रति अपार आदर था । भिन्न भिन्न ढंग से अपनी संस्कृति को आर्यों से जोडने की होड योरप के फ्रांस, जर्मनी जप्रसे प्रगत सभी देशों में लगी थी । इंग्लैण्ड भी पीछे नहीं था। १७५४ में व्हॉल्टेयरने लिखा है की मानव जाति को प्रगति के लिये भारत से मार्गदर्शन लेना चाहिये ।  
 
फ्रांस के बादशाह नेपोलियन का भारतप्रेम तो सर्वश्रुत ही था । हेगेल ने तो संस्कृत भाषा के योरपीय देशों को हुवे परिचय की तुलना एक नये द्वीपकल्प की खोज से की थी । जर्मनी ने जर्मन भाषा के व्याकरण में सुधार कर उसे संस्कृत भाषा के व्याकरण जैसा बनाने का प्रयास किया|  
 
फ्रांस के बादशाह नेपोलियन का भारतप्रेम तो सर्वश्रुत ही था । हेगेल ने तो संस्कृत भाषा के योरपीय देशों को हुवे परिचय की तुलना एक नये द्वीपकल्प की खोज से की थी । जर्मनी ने जर्मन भाषा के व्याकरण में सुधार कर उसे संस्कृत भाषा के व्याकरण जैसा बनाने का प्रयास किया|  
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इसी के बीच चार्ल्स् ग्रँट ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स् का चेयरमन बन गया था । आगामी चार्टर्ड डीबेट से पूर्व उस ने जेम्स् मिल ने लिखे इतिहास के आधारपर इंग्लैंड में भारत की प्रतिमा बिगाडने के लिये अभियान चलाया था । १८१२ की चार्टर्ड डीबेट में इसी इतिहास में लिखी विकृत और अतिरंजित जानकारी को ईस्ट इंडिया कंपनी की अधिकृत भूमिका के रूप में प्रस्तुत किया गया । १८१२ की चार्टर्ड डीबेट में प्रस्तुत इस गलत भूमिका के लिये लॉर्ड हेस्ंटिग्ज ने विरोध भी जताया था ।  
 
इसी के बीच चार्ल्स् ग्रँट ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स् का चेयरमन बन गया था । आगामी चार्टर्ड डीबेट से पूर्व उस ने जेम्स् मिल ने लिखे इतिहास के आधारपर इंग्लैंड में भारत की प्रतिमा बिगाडने के लिये अभियान चलाया था । १८१२ की चार्टर्ड डीबेट में इसी इतिहास में लिखी विकृत और अतिरंजित जानकारी को ईस्ट इंडिया कंपनी की अधिकृत भूमिका के रूप में प्रस्तुत किया गया । १८१२ की चार्टर्ड डीबेट में प्रस्तुत इस गलत भूमिका के लिये लॉर्ड हेस्ंटिग्ज ने विरोध भी जताया था ।  
 
ईस्ट इंडिया कंपनी की अधिकृत भूमिका के रूप में प्रस्तुत होने से और भारत की प्रतिमा-हनन के प्रयासों के कारण भारत में ईसाईयत के प्रचार और प्रसार के लिये भारत में पाद्री भेजने का प्रस्ताव पारित हो गया । भारत का ईसाईकरण शुरू हो गया । सन १८५७ तक यह निर्बाध रूप से चलता रहा । १८५७ की लडाई के बाद इस नीति को बदला गया था । इस की जानकारी १८५७ के स्वातंत्र्य समर का इतिहास जाननेवाले सभी को है।   
 
ईस्ट इंडिया कंपनी की अधिकृत भूमिका के रूप में प्रस्तुत होने से और भारत की प्रतिमा-हनन के प्रयासों के कारण भारत में ईसाईयत के प्रचार और प्रसार के लिये भारत में पाद्री भेजने का प्रस्ताव पारित हो गया । भारत का ईसाईकरण शुरू हो गया । सन १८५७ तक यह निर्बाध रूप से चलता रहा । १८५७ की लडाई के बाद इस नीति को बदला गया था । इस की जानकारी १८५७ के स्वातंत्र्य समर का इतिहास जाननेवाले सभी को है।   
सिखों के इतिहास लेखन की कथा तो इस से भी अधिक गहरे षडयंत्र की कथा है । मॅकलिफ नाम का एक अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकारी बनकर पंजाब में आया था । उस ने सिख पंथ का स्वीकार किया । मॅकलिफसिंग बन गया । जीते हुवे समाज का और वह भी गोरी चमडीवाला अंग्रेज सिख बन जाता है, यह बात सिखों के लिये अत्यंत आनंद देनेवाली और अत्यंत गौरवपूर्ण ऐसी थी । इस के परिणामस्वरूप मॅकलिफसिंग सिखों का सिरमौर बन गया । पूरा सिख समाज मॅकलिफसिंग जिसे पूर्व कहे उसे पूर्व कहने लग गया ।  
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सिखों के इतिहास लेखन की कथा तो इस से भी अधिक गहरे षडयंत्र की कथा है । मॅकलिफ नाम का एक अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकारी बनकर पंजाब में आया था । उस ने सिख पंथ का स्वीकार किया । मॅकलिफसिंग बन गया । जीते हुवे समाज का और वह भी गोरी चमडीवाला अंग्रेज सिख बन जाता है, यह बात सिखों के लिये अत्यंत आनंद देनेवाली और अत्यंत गौरवपूर्ण ऐसी थी । इस के परिणामस्वरूप मॅकलिफसिंग सिखों का सिरमौर बन गया । पूरा सिख समाज मॅकलिफसिंग जिसे पूर्व कहे उसे पूर्व कहने लग गया ।
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सकल जगत में खालसा पंथ गाजे ।  
 
सकल जगत में खालसा पंथ गाजे ।  
 
जगे धर्म हिंन्दू सकल भंड भाजे ॥ - सिख्खों के दसवें गुरू गोविदसिंगजी  
 
जगे धर्म हिंन्दू सकल भंड भाजे ॥ - सिख्खों के दसवें गुरू गोविदसिंगजी  
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जबतक शेर अपना इतिहास खुद नहीं  लिखेंगे, शिकारी की भूमिका से ही इतिहास लिखे जाएंगे । यही हमारे इतिहास के बारे में हो रहा है । भारत का स्वर्णयुग, गुप्त काल जिस का वर्णन चीनी प्रवासियों ने कर रखा है, उसे अंग्रेज भी नकार नहीं सके थे । किन्तु हमारे इतिहास विभाग ने एक चक्रक (सर्क्युलर) निकालकर आदेश दिया की ' गुप्त काल को स्वर्णयुग कहकर उस का गौरव नहीं करें ' ।  तथाकथित इतिहासज्ञों (छद्म कम्युनिस्टों) ने इंडियन काउन्सिल फॉर हिस्टॉरिकल रिसर्च इस सर्वोच्च संस्थापर लगभग ५० वर्षोंतक कब्जा जमाए रखा था । १९९८ में इन्हे बर्खास्त किया गया । अरूण शौरी की पुस्तक ' एमिनंट हिस्टॉरियन्स् - देयर टेक्नॉलॉजी, देयर लाईन ऍंड देयर फ्रॉड्स् ' में सबूतों के साथ इरफान हबीब, रोमिला थापर, जगदीशचन्द्र आदि जैसे ४०-५० तथाकथित इतिहासज्ञों के कारनामों की जानकारी मिलती है । इन तथाकथित इतिहासकारों ने सरकारी तिजोरी को लाखों रुपयों का चूना कैसे लगाया इस के ऑंकडे भी इस पुस्तक में दिये है । इस तरह स्वाधीनता से पहले अंग्रेजी और स्वाधीनता के उपरांत कम्युनिस्ट ऐसी पाश्चात्य भूमिकाओं से ही हमारे इतिहास की प्रस्तुति हुई है ।  
 
जबतक शेर अपना इतिहास खुद नहीं  लिखेंगे, शिकारी की भूमिका से ही इतिहास लिखे जाएंगे । यही हमारे इतिहास के बारे में हो रहा है । भारत का स्वर्णयुग, गुप्त काल जिस का वर्णन चीनी प्रवासियों ने कर रखा है, उसे अंग्रेज भी नकार नहीं सके थे । किन्तु हमारे इतिहास विभाग ने एक चक्रक (सर्क्युलर) निकालकर आदेश दिया की ' गुप्त काल को स्वर्णयुग कहकर उस का गौरव नहीं करें ' ।  तथाकथित इतिहासज्ञों (छद्म कम्युनिस्टों) ने इंडियन काउन्सिल फॉर हिस्टॉरिकल रिसर्च इस सर्वोच्च संस्थापर लगभग ५० वर्षोंतक कब्जा जमाए रखा था । १९९८ में इन्हे बर्खास्त किया गया । अरूण शौरी की पुस्तक ' एमिनंट हिस्टॉरियन्स् - देयर टेक्नॉलॉजी, देयर लाईन ऍंड देयर फ्रॉड्स् ' में सबूतों के साथ इरफान हबीब, रोमिला थापर, जगदीशचन्द्र आदि जैसे ४०-५० तथाकथित इतिहासज्ञों के कारनामों की जानकारी मिलती है । इन तथाकथित इतिहासकारों ने सरकारी तिजोरी को लाखों रुपयों का चूना कैसे लगाया इस के ऑंकडे भी इस पुस्तक में दिये है । इस तरह स्वाधीनता से पहले अंग्रेजी और स्वाधीनता के उपरांत कम्युनिस्ट ऐसी पाश्चात्य भूमिकाओं से ही हमारे इतिहास की प्रस्तुति हुई है ।  
 
भारतीय बच्चे जैसे बनें ऐसी अंग्रेजों की इच्छा थी उस के अनुरूप इतिहास का लेखन अंग्रेजों ने किया । हम अपने बच्चों को कैसा बनाना चाहते है यह हमें सोचना होगा । और इस सोच के अनुसार इतिहास का पुनर्लेखन हमें करना होगा । इस का अर्थ यह नहीं की हम झूठा इतिहास लिखें। इतिहास के विषय में भारतीय मान्यता है,' ना मूलम् लिख्यते किंचित् ' । इसलिये जो वास्तव में घटित हुआ है उस की भारतीय दृष्टिकोण से मीमांसा करते हुवे हमें अपना इतिहास फिर से लिखना होगा । ऐसे इतिहास को पढकर ही हमारे बच्चे वास्तविक अर्थों में आर्य बनेंगे और विश्व को आर्यत्व की सीख देंगे । वसुधैव कुटुंबकम् के अर्थ समझाएंगे ।
 
भारतीय बच्चे जैसे बनें ऐसी अंग्रेजों की इच्छा थी उस के अनुरूप इतिहास का लेखन अंग्रेजों ने किया । हम अपने बच्चों को कैसा बनाना चाहते है यह हमें सोचना होगा । और इस सोच के अनुसार इतिहास का पुनर्लेखन हमें करना होगा । इस का अर्थ यह नहीं की हम झूठा इतिहास लिखें। इतिहास के विषय में भारतीय मान्यता है,' ना मूलम् लिख्यते किंचित् ' । इसलिये जो वास्तव में घटित हुआ है उस की भारतीय दृष्टिकोण से मीमांसा करते हुवे हमें अपना इतिहास फिर से लिखना होगा । ऐसे इतिहास को पढकर ही हमारे बच्चे वास्तविक अर्थों में आर्य बनेंगे और विश्व को आर्यत्व की सीख देंगे । वसुधैव कुटुंबकम् के अर्थ समझाएंगे ।
इतिहास दृष्टि और जीवनदृष्टि
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किसी भी समाज का जीने का एक तरीका होता है । इस तरीके को उस समाज की जीवनशैली कहा जाता है । यह जीवनशैली उस समाज की विविध मान्यताओं के आधारपर बनती है । इन मान्यताओं को उस समाज की जीवनदृष्टि कहा जाता है । इस जीवनदृष्टि के आधारपर ही वह समाज अपनी भाषा, कला, साहित्य, न्यायशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि विविध सामाजिक शास्त्रों की और भौतिक, रसायन, वनस्पति आदि भौतिक शास्त्रों का और राज्यव्यवस्था, न्यायव्यवस्था, अर्थव्यवस्था, आदि विभिन्न व्यवस्थाओं का निर्माण करता है । इस दृष्टि से साहित्य भी निर्माण करता है| किसी भी समाज का इतिहास उस समाज के साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है । हम भारतीय हैं| हमारी जीवनदृष्टि अंग्रेजों से भिन्न है और श्रेष्ठ भी है। यह हमने पूर्व अध्यायों में देखा है। इसीलिये अपनी भूमिका से हमारे इतिहास के पुनर्लेखन का काम कुशलता से और प्रचंड गति से करने की आवश्यकता है।
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== इतिहास दृष्टि और जीवनदृष्टि ==
भारतीय इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देष्य
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किसी भी समाज का जीने का एक तरीका होता है । इस तरीके को उस समाज की जीवनशैली कहा जाता है । यह जीवनशैली उस समाज की विविध मान्यताओं के आधारपर बनती है । इन मान्यताओं को उस समाज की जीवनदृष्टि कहा जाता है । इस जीवनदृष्टि के आधारपर ही वह समाज अपनी भाषा, कला, साहित्य, न्यायशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि विविध सामाजिक शास्त्रों की और भौतिक, रसायन, वनस्पति आदि भौतिक शास्त्रों का और राज्यव्यवस्था, न्यायव्यवस्था, अर्थव्यवस्था, आदि विभिन्न व्यवस्थाओं का निर्माण करता है । इस दृष्टि से साहित्य भी निर्माण करता है| किसी भी समाज का इतिहास उस समाज के साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है । हम भारतीय हैं| हमारी जीवनदृष्टि अंग्रेजों से भिन्न है और श्रेष्ठ भी है। यह हमने पूर्व अध्यायों में देखा है। इसीलिये अपनी भूमिका से हमारे इतिहास के पुनर्लेखन का काम कुशलता से और प्रचंड गति से करने की आवश्यकता है।
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== भारतीय इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देश्य ==
 
भारतीय विचारों के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है । शिक्षा का उद्देष्य भी इसीलिये ' सा विद्या या विमुक्तये ' अर्थात् मोक्ष ही है ऐसा कहा गया है । इच्छाओं को और इच्छापूर्ति के प्रयासों को धर्मानुकूल रखते हुवे मोक्ष की ओर बढने की प्रक्रिया का इस हेतु विकास किया गया। पुत्रेषणा (संतानप्राप्ति), वित्तेषणा (धनप्राप्ति) और लोकेषणा (समाज में प्रतिष्ठा) यह तीन इच्छाएं तो सभी को होती ही है । किन्तु श्रेष्ठ दैवी गुणसंपदायुक्त संतान को जन्म देना, उस हेतु अपना जीवन ढालना, मन को संयम में रखना, प्रामाणिक व्यवहार और उद्योग से धन कमाना, अपने सच्चे सर्वहितकारी स्वभाव और व्यवहार से लोगों के मन जीतने का अर्थ है धर्मानुकूल अर्थ और काम रखते हुवे मोक्ष की ओर बढना ही वास्तविक मानव जीवन का भारतीय आदर्श है|
 
भारतीय विचारों के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है । शिक्षा का उद्देष्य भी इसीलिये ' सा विद्या या विमुक्तये ' अर्थात् मोक्ष ही है ऐसा कहा गया है । इच्छाओं को और इच्छापूर्ति के प्रयासों को धर्मानुकूल रखते हुवे मोक्ष की ओर बढने की प्रक्रिया का इस हेतु विकास किया गया। पुत्रेषणा (संतानप्राप्ति), वित्तेषणा (धनप्राप्ति) और लोकेषणा (समाज में प्रतिष्ठा) यह तीन इच्छाएं तो सभी को होती ही है । किन्तु श्रेष्ठ दैवी गुणसंपदायुक्त संतान को जन्म देना, उस हेतु अपना जीवन ढालना, मन को संयम में रखना, प्रामाणिक व्यवहार और उद्योग से धन कमाना, अपने सच्चे सर्वहितकारी स्वभाव और व्यवहार से लोगों के मन जीतने का अर्थ है धर्मानुकूल अर्थ और काम रखते हुवे मोक्ष की ओर बढना ही वास्तविक मानव जीवन का भारतीय आदर्श है|
 
शिक्षा के उद्देष्य से इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देष्य भिन्न नहीं हो सकता । इसलिये इतिहास की भारतीय व्याख्या कही गई -
 
शिक्षा के उद्देष्य से इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देष्य भिन्न नहीं हो सकता । इसलिये इतिहास की भारतीय व्याख्या कही गई -
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- योरप के इतिहास से नहीं हमें अपने इतिहास से मार्गदर्शन लेना चाहिये। तब जाकर वर्तमान में चल रहा योरप का अंधानुकरण रुकेगा।  
 
- योरप के इतिहास से नहीं हमें अपने इतिहास से मार्गदर्शन लेना चाहिये। तब जाकर वर्तमान में चल रहा योरप का अंधानुकरण रुकेगा।  
 
इस दृष्टिपर आधारित इतिहास के चिंतन, मनन, विश्लेषण को वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में अब प्रस्तुत करने का हम प्रयास करेंगे ।  
 
इस दृष्टिपर आधारित इतिहास के चिंतन, मनन, विश्लेषण को वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में अब प्रस्तुत करने का हम प्रयास करेंगे ।  
भारतीय समाज की प्राचीनता  
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भारतीय समाज और इसलिये भारतीय इतिहास की प्राचीनता के बारे में भिन्न भिन्न विचार प्रस्तुत किये गये है । इन के कारण संभ्रम निर्माण हुवा है । योरप के वर्तमान समाजों का इतिहास अरस्तू ( अरिस्टॉटल ), अफलातून ( प्लेटो ) आदि से पहले का नहीं है । अर्थात् मुष्किल से २.५ - ३ हजार वर्ष पुराना ही है । विजयी जातियाँ विकसित होती हैं ऐसा भ्रम योरपीय देशों ने विकासवाद के नामपर फैलाया है । इस कारण योरप से पुराना भारत का इतिहास नहीं हो सकता । ऐसा अंग्रेजों ने मान लिया । उस के आधारपर उन्हों ने भारत के प्रदीर्घ इतिहास को ठूंसठूंसकर इस काल में बिठाने का प्रयास किया । भारत का इतिहास गुप्तकाल से प्रारंभ हुवा ऐसा मान लिया गया । आगे जाकर मोहेंन्जो दरो, हरप्पा के अवशेष मिले । तब यह ध्यान में आया की ऐसा विकसित समाज इस से अधिक पुराना होगा । तब वेदकाल को ईसा से ३०००  वर्षपूर्व का कह दिया गया । अब तो भीमबेटका जैसे स्थानोंपर विकसित संस्कृति के चिन्ह मिलने से यह काल १० – १२ हजार वर्षतक पीछे गया है । किन्तु फिर भी भारतीय इतिहास इस से कितना पुराना है, इस बारे में अभी भी संभ्रम ही है । यह संभ्रम प्रमुखता से पाश्चात्य पुरातत्ववेत्ता हमारी मान्यता को स्वीकृति देंगे या नहीं इस आशंका के कारण है । इस विषय में निम्न कुछ बातें विचारणीय है ।  
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== भारतीय समाज की प्राचीनता ==
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भारतीय समाज और इसलिये भारतीय इतिहास की प्राचीनता के बारे में भिन्न भिन्न विचार प्रस्तुत किये गये है । इन के कारण संभ्रम निर्माण हुवा है । योरप के वर्तमान समाजों का इतिहास अरस्तू ( अरिस्टॉटल ), अफलातून ( प्लेटो ) आदि से पहले का नहीं है । अर्थात् मुष्किल से २.५ - ३ हजार वर्ष पुराना ही है । विजयी जातियाँ विकसित होती हैं ऐसा भ्रम योरपीय देशों ने विकासवाद के नामपर फैलाया है । इस कारण योरप से पुराना भारत का इतिहास नहीं हो सकता । ऐसा अंग्रेजों ने मान लिया । उस के आधारपर उन्हों ने भारत के प्रदीर्घ इतिहास को ठूंसठूंसकर इस काल में बिठाने का प्रयास किया । भारत का इतिहास गुप्तकाल से प्रारंभ हुवा ऐसा मान लिया गया । आगे जाकर मोहेंन्जो दरो, हरप्पा के अवशेष मिले । तब यह ध्यान में आया की ऐसा विकसित समाज इस से अधिक पुराना होगा । तब वेदकाल को ईसा से ३०००  वर्षपूर्व का कह दिया गया । अब तो भीमबेटका जैसे स्थानोंपर विकसित संस्कृति के चिन्ह मिलने से यह काल १० – १२ हजार वर्षतक पीछे गया है । किन्तु फिर भी भारतीय इतिहास इस से कितना पुराना है, इस बारे में अभी भी संभ्रम ही है । यह संभ्रम प्रमुखता से पाश्चात्य पुरातत्ववेत्ता हमारी मान्यता को स्वीकृति देंगे या नहीं इस आशंका के कारण है । इस विषय में निम्न कुछ बातें विचारणीय है ।  
 
- समाज के घटकों को हम एक समाज हैं, हमारी जीवनदृष्टि और जीवनशैली को टिकाए रखना आवश्यक है, ऐसा लगने लगता है तब इतिहास की आवश्यकता निर्माण होती है । और इतिहास के निर्माण का प्रारंभ होता है ।
 
- समाज के घटकों को हम एक समाज हैं, हमारी जीवनदृष्टि और जीवनशैली को टिकाए रखना आवश्यक है, ऐसा लगने लगता है तब इतिहास की आवश्यकता निर्माण होती है । और इतिहास के निर्माण का प्रारंभ होता है ।
 
- डार्विन के विकासवाद की कल्पना अभी भी कोरी कल्पना ही है। जो विजयी है, वह अधिक विकसित है और जो अधिक बलवान है, विजेता है उसका इतिहास अधिक पुराना होगा, यह सोचना भी ठीक नहीं है।
 
- डार्विन के विकासवाद की कल्पना अभी भी कोरी कल्पना ही है। जो विजयी है, वह अधिक विकसित है और जो अधिक बलवान है, विजेता है उसका इतिहास अधिक पुराना होगा, यह सोचना भी ठीक नहीं है।
 
- यूरोप के इतिहास से अधिक हमें अपने इतिहास से मार्गदर्शन लेना चाहिये । तब जाकर वर्तमान में चल रहा यूरोप का अंधानुकरण रुकेगा ।  
 
- यूरोप के इतिहास से अधिक हमें अपने इतिहास से मार्गदर्शन लेना चाहिये । तब जाकर वर्तमान में चल रहा यूरोप का अंधानुकरण रुकेगा ।  
 
- तथ्य तो वही रहते हैं| लेकिन उनसे लेने की प्रेरणा और सीखने के पाठ भिन्न हो सकते हैं|
 
- तथ्य तो वही रहते हैं| लेकिन उनसे लेने की प्रेरणा और सीखने के पाठ भिन्न हो सकते हैं|
- भारतीय समाज याने राष्ट्र अत्यंत प्राचीन है| जिस समाज का इतिहास मुश्किल से २.५ - ३ हजार वर्ष पुराना है उसके ऐतिहासिकता के मापदंड जिस राष्ट्र का इतिहास लाखों वर्षों का है उस से भिन्न होंगे|  
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- भारतीय समाज याने राष्ट्र अत्यंत प्राचीन है| जिस समाज का इतिहास मुश्किल से २.५ - ३ हजार वर्ष पुराना है उसके ऐतिहासिकता के मापदंड जिस राष्ट्र का इतिहास लाखों वर्षों का है उस से भिन्न होंगे|
भारतीय समाज का कालजयी सातत्य
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पृथिवि की तीन गतियाँ है । सामान्य ताप्ररपर दो गतियों की जानकारी सब को होती है । अपने अक्ष को केन्द्र में रखकर घूमने की एक गति के कारण पृथ्वीपर दिन और रात होते है । सूर्य को परिक्रमा करने की दूसरी गति के कारण ॠतु और वर्ष का चक्र चलता है । किन्तु पृथ्वि की एक और गति भी है ।  
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== भारतीय समाज का कालजयी सातत्य ==
पृथ्वि का अक्ष सूर्य की दिशा से लंबरूप नहीं  है । वह थोडा झुका हुवा है । इस अक्ष की उलटे शंकू के आकार में घूमने की पृथ्वि की तीसरी गति हे ।  इस में दक्षिण धृव तो स्थिर रहता है । उत्तर धृव शंकू के आधार के वृत्त के उपर घूमता है । इस से २६२५० वर्षों का चक्र है| इस में उत्तर धृव एक बार सूर्य के पास आता है और लगभग १३१२५ वर्षों के बाद वह सूर्य से अधिकतम दूरीपर चला जाता है । जब उत्तर धृव सूर्य के पास जाता है तो उत्तर धृव का सब बर्फ पिघल जाती है । और पृथ्वि जलमय हो जाती है । इसे हमारे पूर्वजों ने जलप्रलय कहा है । और जब उत्तर धृव सूर्य से अधिकतम दूरीपर जाता है तो उत्तर धृवपर ठंड का प्रमाण पराकोटी का हो जाता है । इसे हिमप्रलय कहा जाता है । इन दोनों ही प्रलयों की स्थिति में हिमालय भारतीय जीवन का संरक्षण करता है । जलप्रलय के काल में हिमालय की ऊंचाई के कारण और हिमप्रलय के समय उत्तर की ओर से आनेवाले बर्फीली हवाओं को रोककर । इन दोनों प्रसंगों में हिमालय की तराईवाला भारत का हिस्सा छोड अन्य सभी स्थानोंपर मानव जीवन नष्ट हो जाता है । किन्तु भारतीय सामाज का सातत्य खण्डित नहीं होता । इसलिये हम जब कहते हैं की हमारा समाज जीवन लाखों वर्ष पुराना है, तो हम कोई अतिशयोक्ति नहीं करते । हमारी मान्यता है की सत्य युग का प्रारंभ ४३,२०,००० वर्ष पहले हुआ था| भारतीय समाज का सातत्य अति प्राचीन होने की पुष्टि ही पृथिवि की तीसरी गति के विश्लेषण से होती है ।  
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पृथिवि की तीन गतियाँ है । सामान्य ताप्ररपर दो गतियों की जानकारी सब को होती है । अपने अक्ष को केन्द्र में रखकर घूमने की एक गति के कारण पृथ्वीपर दिन और रात होते है । सूर्य को परिक्रमा करने की दूसरी गति के कारण ॠतु और वर्ष का चक्र चलता है । किन्तु पृथ्वि की एक और गति भी है ।  
ऐतिहासिकता के मापदण्ड, लेखन की पध्दति और भारतीय दृष्टि  
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पृथ्वि का अक्ष सूर्य की दिशा से लंबरूप नहीं  है । वह थोडा झुका हुवा है । इस अक्ष की उलटे शंकू के आकार में घूमने की पृथ्वि की तीसरी गति हे ।  इस में दक्षिण धृव तो स्थिर रहता है । उत्तर धृव शंकू के आधार के वृत्त के उपर घूमता है । इस से २६२५० वर्षों का चक्र है| इस में उत्तर धृव एक बार सूर्य के पास आता है और लगभग १३१२५ वर्षों के बाद वह सूर्य से अधिकतम दूरीपर चला जाता है । जब उत्तर धृव सूर्य के पास जाता है तो उत्तर धृव का सब बर्फ पिघल जाती है । और पृथ्वि जलमय हो जाती है । इसे हमारे पूर्वजों ने जलप्रलय कहा है । और जब उत्तर धृव सूर्य से अधिकतम दूरीपर जाता है तो उत्तर धृवपर ठंड का प्रमाण पराकोटी का हो जाता है । इसे हिमप्रलय कहा जाता है । इन दोनों ही प्रलयों की स्थिति में हिमालय भारतीय जीवन का संरक्षण करता है । जलप्रलय के काल में हिमालय की ऊंचाई के कारण और हिमप्रलय के समय उत्तर की ओर से आनेवाले बर्फीली हवाओं को रोककर । इन दोनों प्रसंगों में हिमालय की तराईवाला भारत का हिस्सा छोड अन्य सभी स्थानोंपर मानव जीवन नष्ट हो जाता है । किन्तु भारतीय सामाज का सातत्य खण्डित नहीं होता । इसलिये हम जब कहते हैं की हमारा समाज जीवन लाखों वर्ष पुराना है, तो हम कोई अतिशयोक्ति नहीं करते । हमारी मान्यता है की सत्य युग का प्रारंभ ४३,२०,००० वर्ष पहले हुआ था| भारतीय समाज का सातत्य अति प्राचीन होने की पुष्टि ही पृथिवि की तीसरी गति के विश्लेषण से होती है ।
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== ऐतिहासिकता के मापदण्ड, लेखन की पध्दति और भारतीय दृष्टि ==
 
इंग्लैण्ड का इतिहास मुष्किल से ८००-१००० वर्षों का है। इस से पहले वहाँ गिरोहों की संस्कृति थी। सामाजिक परंपराओं का सातत्य नहीं था । इसलिये इतिहास लेखन की आवश्यकता भी नहीं थी । इंग्लैण्ड के इस मुष्किल से ८०० – १००० वर्षों के इतिहासपर अबतक १०,००० से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है । इन पुस्तकों में भी कई स्थानोंपर विवाद है । कोई घटना हेन्री २ के काल में घटी थी या ३रे हेन्री के काल में ऐसा संभ्रम है । यह स्वाभाविक भी है ।  
 
इंग्लैण्ड का इतिहास मुष्किल से ८००-१००० वर्षों का है। इस से पहले वहाँ गिरोहों की संस्कृति थी। सामाजिक परंपराओं का सातत्य नहीं था । इसलिये इतिहास लेखन की आवश्यकता भी नहीं थी । इंग्लैण्ड के इस मुष्किल से ८०० – १००० वर्षों के इतिहासपर अबतक १०,००० से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है । इन पुस्तकों में भी कई स्थानोंपर विवाद है । कोई घटना हेन्री २ के काल में घटी थी या ३रे हेन्री के काल में ऐसा संभ्रम है । यह स्वाभाविक भी है ।  
 
पाश्चात्य ऐतिहासिकता के मापदण्ड और उन की इतिहास लेखन की पध्दति उन के इतिहास के कालखण्ड की दृष्टि से शायद योग्य भी होगी किन्तु भारतीय इतिहास जो इंग्लैण्ड के इतिहास से कई गुना अधिक है, उस के लिये योग्य नहीं हो सकती । इंग्लैण्ड से १० गुना बडा भूभाग, १० गुना अधिक जनसंख्या और एक ही समय एक ही नाम के कई राजा हो सकते हैं ऐसे भारत का इतिहास इंग्लैण्ड के इतिहास की पध्दति से अर्थात कालक्रम के अनुसार लिखना संभव नहीं है । और भारतीय इतिहास दृष्टि के अनुसार आवश्यक भी नहीं है।  
 
पाश्चात्य ऐतिहासिकता के मापदण्ड और उन की इतिहास लेखन की पध्दति उन के इतिहास के कालखण्ड की दृष्टि से शायद योग्य भी होगी किन्तु भारतीय इतिहास जो इंग्लैण्ड के इतिहास से कई गुना अधिक है, उस के लिये योग्य नहीं हो सकती । इंग्लैण्ड से १० गुना बडा भूभाग, १० गुना अधिक जनसंख्या और एक ही समय एक ही नाम के कई राजा हो सकते हैं ऐसे भारत का इतिहास इंग्लैण्ड के इतिहास की पध्दति से अर्थात कालक्रम के अनुसार लिखना संभव नहीं है । और भारतीय इतिहास दृष्टि के अनुसार आवश्यक भी नहीं है।  
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- गौरवशाली घटनाओं से प्रेरणा का इतिहास तो सभी आयु के बच्चों के लिए आवश्यक है| लेकिन पराभव का दीनता का इतिहास छोटी आयु में नहीं पढ़ाना चाहिए| जब बच्चा थोड़ा समझदार बन जाए तब ही उसे पराभव का, घराभेदियों का इतिहास भी सिखाना चाहिए| किसी भी प्रस्तुति से बच्चे में हीनता बोध नहीं होना चाहिए|
 
- गौरवशाली घटनाओं से प्रेरणा का इतिहास तो सभी आयु के बच्चों के लिए आवश्यक है| लेकिन पराभव का दीनता का इतिहास छोटी आयु में नहीं पढ़ाना चाहिए| जब बच्चा थोड़ा समझदार बन जाए तब ही उसे पराभव का, घराभेदियों का इतिहास भी सिखाना चाहिए| किसी भी प्रस्तुति से बच्चे में हीनता बोध नहीं होना चाहिए|
 
- पाश्चात्य समाजजीवनपर शासन का बहुत गहरा प्रभाव होता है। इसलिये वर्तमान में हमें इतिहास पढाया जाता है वह भारत का राजकीय इतिहास होता है। भूगोल पढाया जाता है वह भारत का राजकीय भूगोल होता है। अर्थशास्त्र पढाया जाता है वह राजकीय अर्थशास्त्र (पोलिटिकल ईकॉनॉमी) होता है। भारतीय इतिहास लेखन में समाज जीवन के सब ही पहलुओं के इतिहास का समावेश होगा। राजकीय, कला, संस्कार, साहित्य, सामाजिक शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि सभी का समावेश हमारे इतिहास में होगा। भारतीय जीवन में धर्म सर्वोपरि होता है| इसलिए धर्माचरण सिखानेवाला इतिहास हो|
 
- पाश्चात्य समाजजीवनपर शासन का बहुत गहरा प्रभाव होता है। इसलिये वर्तमान में हमें इतिहास पढाया जाता है वह भारत का राजकीय इतिहास होता है। भूगोल पढाया जाता है वह भारत का राजकीय भूगोल होता है। अर्थशास्त्र पढाया जाता है वह राजकीय अर्थशास्त्र (पोलिटिकल ईकॉनॉमी) होता है। भारतीय इतिहास लेखन में समाज जीवन के सब ही पहलुओं के इतिहास का समावेश होगा। राजकीय, कला, संस्कार, साहित्य, सामाजिक शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि सभी का समावेश हमारे इतिहास में होगा। भारतीय जीवन में धर्म सर्वोपरि होता है| इसलिए धर्माचरण सिखानेवाला इतिहास हो|
समारोप  
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== समारोप ==
 
इतिहास का ऐसा पुनर्लेखन करने के लिये हिम्मत चाहिये । लोकक्षोभ निर्माण करने के प्रयास कम्युनिस्ट, देशद्रोही, विदेशी शक्तियों के दलाल और देश के हित से अपने या अपनी पार्टी के हित को बडा माननेवाले राजनयिक आदि लोगोंद्वारा किये जाएंगे । उन के विरोधपर विजय पाकर और विरोध की चिंता किये बिना निर्भयता से तथ्यों के आधारपर हमें भारत के इतिहास का अपनी भूमिका से पुनर्लेखन करना होगा ।
 
इतिहास का ऐसा पुनर्लेखन करने के लिये हिम्मत चाहिये । लोकक्षोभ निर्माण करने के प्रयास कम्युनिस्ट, देशद्रोही, विदेशी शक्तियों के दलाल और देश के हित से अपने या अपनी पार्टी के हित को बडा माननेवाले राजनयिक आदि लोगोंद्वारा किये जाएंगे । उन के विरोधपर विजय पाकर और विरोध की चिंता किये बिना निर्भयता से तथ्यों के आधारपर हमें भारत के इतिहास का अपनी भूमिका से पुनर्लेखन करना होगा ।
 
भारतीय समाज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि, ' हमने इतिहास से केवल एक बात सीखी है और वह है इतिहास से कुछ भी नहीं सीखना '। इस बात मे तथ्य है ऐसा वर्तमान भारतीय समाज के अध्ययन से भी समझ में आता है। कुछ लोग गरूर से कहते है की हम इतिहास सीखते नहीं है, हम इतिहास निर्माण करते है। ऐसे घमंडी लोगों की ओर ध्यान नहीं देना ही ठीक है। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था की जो लोग इतिहास से सबक नहीं सीखते वे लोग भविष्य में बारबार अपमानित होते रहते है।  
 
भारतीय समाज के बारे में ऐसा कहा जाता है कि, ' हमने इतिहास से केवल एक बात सीखी है और वह है इतिहास से कुछ भी नहीं सीखना '। इस बात मे तथ्य है ऐसा वर्तमान भारतीय समाज के अध्ययन से भी समझ में आता है। कुछ लोग गरूर से कहते है की हम इतिहास सीखते नहीं है, हम इतिहास निर्माण करते है। ऐसे घमंडी लोगों की ओर ध्यान नहीं देना ही ठीक है। डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था की जो लोग इतिहास से सबक नहीं सीखते वे लोग भविष्य में बारबार अपमानित होते रहते है।  
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