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इंग्लैण्ड का इतिहास मुश्किल से ८००-१००० वर्षों का है। इस से पहले वहाँ गिरोहों की संस्कृति थी। सामाजिक परंपराओं का सातत्य नहीं था। इसलिये इतिहास लेखन की आवश्यकता भी नहीं थी । इंग्लैण्ड के इस मुश्किल से ८०० – १००० वर्षों के इतिहासपर अबतक १०,००० से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है । इन पुस्तकों में भी कई स्थानों पर विवाद है। कोई घटना हेनरी २ के काल में घटी थी या हेनरी ३ के काल में, ऐसा संभ्रम है। यह स्वाभाविक भी है।
 
इंग्लैण्ड का इतिहास मुश्किल से ८००-१००० वर्षों का है। इस से पहले वहाँ गिरोहों की संस्कृति थी। सामाजिक परंपराओं का सातत्य नहीं था। इसलिये इतिहास लेखन की आवश्यकता भी नहीं थी । इंग्लैण्ड के इस मुश्किल से ८०० – १००० वर्षों के इतिहासपर अबतक १०,००० से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है । इन पुस्तकों में भी कई स्थानों पर विवाद है। कोई घटना हेनरी २ के काल में घटी थी या हेनरी ३ के काल में, ऐसा संभ्रम है। यह स्वाभाविक भी है।
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पाश्चात्य ऐतिहासिकता के मापदण्ड और उन की इतिहास लेखन की पद्दति उन के इतिहास के कालखण्ड की दृष्टि से शायद योग्य भी होगी किन्तु धार्मिक  इतिहास जो इंग्लैण्ड के इतिहास से कई गुना अधिक है, उस के लिये योग्य नहीं हो सकती । इंग्लैण्ड से १० गुना बडा भूभाग, १० गुना अधिक जनसंख्या और एक ही समय एक ही नाम के कई राजा हो सकते हैं ऐसे भारत का इतिहास इंग्लैण्ड के इतिहास की पद्दति से अर्थात कालक्रम के अनुसार लिखना संभव नहीं है । और धार्मिक  इतिहास दृष्टि के अनुसार आवश्यक भी नहीं है।
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पाश्चात्य ऐतिहासिकता के मापदण्ड और उन की इतिहास लेखन की पद्दति उन के इतिहास के कालखण्ड की दृष्टि से संभवतः योग्य भी होगी किन्तु धार्मिक  इतिहास जो इंग्लैण्ड के इतिहास से कई गुना अधिक है, उस के लिये योग्य नहीं हो सकती । इंग्लैण्ड से १० गुना बडा भूभाग, १० गुना अधिक जनसंख्या और एक ही समय एक ही नाम के कई राजा हो सकते हैं ऐसे भारत का इतिहास इंग्लैण्ड के इतिहास की पद्दति से अर्थात कालक्रम के अनुसार लिखना संभव नहीं है । और धार्मिक  इतिहास दृष्टि के अनुसार आवश्यक भी नहीं है।
    
धार्मिक इतिहास लेखन की पद्दति का स्वरूप निम्न कुछ बिन्दुओं के माध्यम से हम समझ सकेंगे:
 
धार्मिक इतिहास लेखन की पद्दति का स्वरूप निम्न कुछ बिन्दुओं के माध्यम से हम समझ सकेंगे:
 
* धर्मानुकूल अर्थ और काम को रख मोक्ष की ओर बढने के लिये मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है । कालानुक्रम नहीं।
 
* धर्मानुकूल अर्थ और काम को रख मोक्ष की ओर बढने के लिये मार्गदर्शन महत्वपूर्ण है । कालानुक्रम नहीं।
 
* औरंगजेब के इतिहास में औरंगजेब के नहाने का कोई वर्णन नहीं लिखा मिलता। इस का अर्थ यह नहीं कि औरंगजेब नहाता नहीं था। अन्य बातों की तुलना में नहाना यह इतनी महत्वपूर्ण बात नहीं थी, कि इतिहास में लिखी जाए। इसी तरह धार्मिक  इतिहास इतने लम्बे कालखण्ड का इतिहास है कि उसे अंग्रेजी पद्दति से कालक्रम के अनुसार लिखना संभव नहीं है और आवश्यक भी नहीं है । प्रदीर्घ काल के कारण इतिहास लिखने की धार्मिक  पद्दति में समाज जीवन को मोड देनेवाली महत्वपूर्ण घटनाओं का ही समावेष हो सकता है। जो महत्वपूर्ण नहीं है उसे लिखने से तो कागज और समय ही बिगडेगा।
 
* औरंगजेब के इतिहास में औरंगजेब के नहाने का कोई वर्णन नहीं लिखा मिलता। इस का अर्थ यह नहीं कि औरंगजेब नहाता नहीं था। अन्य बातों की तुलना में नहाना यह इतनी महत्वपूर्ण बात नहीं थी, कि इतिहास में लिखी जाए। इसी तरह धार्मिक  इतिहास इतने लम्बे कालखण्ड का इतिहास है कि उसे अंग्रेजी पद्दति से कालक्रम के अनुसार लिखना संभव नहीं है और आवश्यक भी नहीं है । प्रदीर्घ काल के कारण इतिहास लिखने की धार्मिक  पद्दति में समाज जीवन को मोड देनेवाली महत्वपूर्ण घटनाओं का ही समावेष हो सकता है। जो महत्वपूर्ण नहीं है उसे लिखने से तो कागज और समय ही बिगडेगा।
* भारत की जनसंख्या, भारत का भौगोलिक विस्तार और भारत में रहे छोटे छोटे राज्यों का अंग्रेजी पद्दति से इतिहास लिखना तो अंग्रेजों को भी संभव नहीं होगा। एक ही समय एक ही नाम के राजा शायद २ -३ राज्यों में राज करते हों तो उन के इतिहास लेखन में कितना संभ्रम निर्माण होगा कोई भी कल्पना कर सकता है। जैसे महाभारत में वासुदेव कृष्ण दो थे। नकली वासुदेव कृष्ण का असली कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से सिर काटा था।
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* भारत की जनसंख्या, भारत का भौगोलिक विस्तार और भारत में रहे छोटे छोटे राज्यों का अंग्रेजी पद्दति से इतिहास लिखना तो अंग्रेजों को भी संभव नहीं होगा। एक ही समय एक ही नाम के राजा संभवतः २ -३ राज्यों में राज करते हों तो उन के इतिहास लेखन में कितना संभ्रम निर्माण होगा कोई भी कल्पना कर सकता है। जैसे महाभारत में वासुदेव कृष्ण दो थे। नकली वासुदेव कृष्ण का असली कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से सिर काटा था।
 
* निचैर्गच्छ्त्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण का मथित अर्थ है प्रकृति की तरह ही इतिहास भी चक्रिय पद्दति से घटता रहता  है। उत्पत्ति, स्थिति और लय का चक्र चलता रहता है। हर युग में चतुर्युग हुआ करते है। कलियुग में भी जो श्रेष्ठ समय होगा उसे कलियुग का सत्ययुग कहा जाएगा। समाज के उत्थान और पतन में किस घटना चक्र से प्रेरणा या सबक मिलता है वह महत्वपूर्ण है । वह घटना किस समय चक्र की है यह नहीं। इतिहास यह कथारूप में पढाने का विषय है।
 
* निचैर्गच्छ्त्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण का मथित अर्थ है प्रकृति की तरह ही इतिहास भी चक्रिय पद्दति से घटता रहता  है। उत्पत्ति, स्थिति और लय का चक्र चलता रहता है। हर युग में चतुर्युग हुआ करते है। कलियुग में भी जो श्रेष्ठ समय होगा उसे कलियुग का सत्ययुग कहा जाएगा। समाज के उत्थान और पतन में किस घटना चक्र से प्रेरणा या सबक मिलता है वह महत्वपूर्ण है । वह घटना किस समय चक्र की है यह नहीं। इतिहास यह कथारूप में पढाने का विषय है।
 
* घरों के लिए अच्छे माता-पिता, समाज के लिये अच्छे समाजघटक, देश के लिये देशभक्त और विश्व के लिये अच्छे मानव बनाने की दृष्टि से इतिहास की प्रस्तुति और अध्यापन करना होगा।
 
* घरों के लिए अच्छे माता-पिता, समाज के लिये अच्छे समाजघटक, देश के लिये देशभक्त और विश्व के लिये अच्छे मानव बनाने की दृष्टि से इतिहास की प्रस्तुति और अध्यापन करना होगा।

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