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कहने को तो हम कहते है कि हम स्वतंत्र हो गये है। किन्तु स्वाधीनता और स्वतन्त्रता इन में अन्तर भी हम नहीं समझते। स्वाधीनता का अर्थ है पराए शासकों की अधीनता समाप्त होकर अपने शासकों के अधीन देश हो जाना। स्वतन्त्रता स्वाधीनता से अधिक कठिन बात है। इस में अपने समाज के हित में अपनी जीवनदृष्टि के अनुरूप अपने तंत्र अर्थात् अपनी व्यवस्थाएं निर्माण करनी पडती है। किन्तु हमारी स्वाधीनता के बाद हमने अपनी जीवनदृष्टि से सुसंगत तंत्रों के या अपनी व्यवस्थाओं के विकास का कोई प्रयास नहीं किया है। अंग्रेजी शासन ने उन के लाभ के लिये भारत में प्रतिष्ठित की हुई शासन, प्रशासन, न्याय, राजस्व, अर्थ, उद्योग, कृषि, शिक्षा आदि सभी व्यवस्थाएं हमने निष्ठा के साथ आज भी वैसी ही बनाए रखी है।
 
कहने को तो हम कहते है कि हम स्वतंत्र हो गये है। किन्तु स्वाधीनता और स्वतन्त्रता इन में अन्तर भी हम नहीं समझते। स्वाधीनता का अर्थ है पराए शासकों की अधीनता समाप्त होकर अपने शासकों के अधीन देश हो जाना। स्वतन्त्रता स्वाधीनता से अधिक कठिन बात है। इस में अपने समाज के हित में अपनी जीवनदृष्टि के अनुरूप अपने तंत्र अर्थात् अपनी व्यवस्थाएं निर्माण करनी पडती है। किन्तु हमारी स्वाधीनता के बाद हमने अपनी जीवनदृष्टि से सुसंगत तंत्रों के या अपनी व्यवस्थाओं के विकास का कोई प्रयास नहीं किया है। अंग्रेजी शासन ने उन के लाभ के लिये भारत में प्रतिष्ठित की हुई शासन, प्रशासन, न्याय, राजस्व, अर्थ, उद्योग, कृषि, शिक्षा आदि सभी व्यवस्थाएं हमने निष्ठा के साथ आज भी वैसी ही बनाए रखी है।
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इस प्रबंध का उद्देश्य, वर्तमान न्यायव्यवस्था की त्रुटियों को उजागर करना, इस वर्तमान (अ)न्याय दृष्टि के पीछे काम कर रही पाश्चात्य जीवनदृष्टि को समझना, धार्मिक (भारतीय) जीवनदृष्टि को समझना और धार्मिक (भारतीय) जीवनदृष्टि पर आधारित न्यायदृष्टि के आधारभूत बिन्दुओं को समझना है।
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इस प्रबंध का उद्देश्य, वर्तमान न्यायव्यवस्था की त्रुटियों को उजागर करना, इस वर्तमान (अ)न्याय दृष्टि के पीछे काम कर रही पाश्चात्य जीवनदृष्टि को समझना, धार्मिक (भारतीय) जीवनदृष्टि को समझना और धार्मिक (भारतीय) जीवनदृष्टि पर आधारित न्यायदृष्टि के आधारभूत बिन्दुओं को समझना है।<ref>जीवन का भारतीय प्रतिमान-खंड २, अध्याय ३२, लेखक - दिलीप केलकर</ref>
    
== वर्तमान न्यायतंत्र की विकृतियाँ और धार्मिक (भारतीय) न्यायदृष्टि के सूत्र ==
 
== वर्तमान न्यायतंत्र की विकृतियाँ और धार्मिक (भारतीय) न्यायदृष्टि के सूत्र ==

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