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वर्तमान में आयुर्वेद का सही सही प्रयोग करनेवाला वैद्य अभाव से ही मिलता है| ऐलोपेथी जैसी ही औषधियाँ पहले से बनाई जातीं हैं| रोग के लिए बनाई जातीं हैं| रोगी के लिए बनाई हुई नहीं होती| इसलिए चिकित्सा का प्रभाव भी अल्प ही मिलता है|  
 
वर्तमान में आयुर्वेद का सही सही प्रयोग करनेवाला वैद्य अभाव से ही मिलता है| ऐलोपेथी जैसी ही औषधियाँ पहले से बनाई जातीं हैं| रोग के लिए बनाई जातीं हैं| रोगी के लिए बनाई हुई नहीं होती| इसलिए चिकित्सा का प्रभाव भी अल्प ही मिलता है|  
 
आयुर्वेद की नाडी परीक्षा, सामुद्रिक शास्त्र आदि का तो लगभग लोप ही हो गया है| ये सब अध्ययन के विषय बनाने की आवश्यकता है| शासन की मान्यता के नियम भी ऐलोपेथी के लिए अनुकूल बनाए हुए हैं| इस में भी परिवर्तन की आवश्यकता है| लेकिन इस के लिए जो भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र के जानकार हैं उन्हें इसकी प्रस्तुति ठीक से करनी होगी| जाँच के वर्तमान साईंटिफिक तरीके पर्याप्त या शायद उचित नहीं हो सकते यह ध्यान में रखकर वैज्ञानिक(अष्टधा प्रकृति के सभी घटकों के लिए) तरीके लिखित स्वरूप में प्रस्तुत करने होंगे| सभी को शायद लिखकर बताना संभव भी नहीं होगा| ऐसे विषय में इतना तो बताना ही होगा कि यह लिखकर समझाने का विषय क्यों नहीं है ? शोध कार्य करनेवालों के लिए योग्यता रखनेवाले सामर्थ्यवान मार्गदर्शक भी चयन कर या चयन करनेपर भी न मिलते हों तो योजनापूर्वक तैयार करने होंगे| भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली के सभी पहलुओं का जिसमें समावेश है ऐसी एक व्यापक योजना बनानी होगी| केवल बुद्धि है इसलिए कोई भी ऐरा गैरा वैद्य नहीं बनना चाहिए| रोग के निवारण में वैद्य की पात्रता का पहलू भी अत्यंत महत्वपूर्ण है| वैद्यकीय क्षेत्र को किसी भी परिस्थिति में बदनाम नहीं करेंगे ऐसे वैद्य निर्माण करने की निर्दोष प्रक्रिया का विकास करना होगा|  
 
आयुर्वेद की नाडी परीक्षा, सामुद्रिक शास्त्र आदि का तो लगभग लोप ही हो गया है| ये सब अध्ययन के विषय बनाने की आवश्यकता है| शासन की मान्यता के नियम भी ऐलोपेथी के लिए अनुकूल बनाए हुए हैं| इस में भी परिवर्तन की आवश्यकता है| लेकिन इस के लिए जो भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र के जानकार हैं उन्हें इसकी प्रस्तुति ठीक से करनी होगी| जाँच के वर्तमान साईंटिफिक तरीके पर्याप्त या शायद उचित नहीं हो सकते यह ध्यान में रखकर वैज्ञानिक(अष्टधा प्रकृति के सभी घटकों के लिए) तरीके लिखित स्वरूप में प्रस्तुत करने होंगे| सभी को शायद लिखकर बताना संभव भी नहीं होगा| ऐसे विषय में इतना तो बताना ही होगा कि यह लिखकर समझाने का विषय क्यों नहीं है ? शोध कार्य करनेवालों के लिए योग्यता रखनेवाले सामर्थ्यवान मार्गदर्शक भी चयन कर या चयन करनेपर भी न मिलते हों तो योजनापूर्वक तैयार करने होंगे| भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली के सभी पहलुओं का जिसमें समावेश है ऐसी एक व्यापक योजना बनानी होगी| केवल बुद्धि है इसलिए कोई भी ऐरा गैरा वैद्य नहीं बनना चाहिए| रोग के निवारण में वैद्य की पात्रता का पहलू भी अत्यंत महत्वपूर्ण है| वैद्यकीय क्षेत्र को किसी भी परिस्थिति में बदनाम नहीं करेंगे ऐसे वैद्य निर्माण करने की निर्दोष प्रक्रिया का विकास करना होगा|  
साहित्य सूचि
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चरक और शुश्रुत संहिता
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वाग्भट का लिखा अष्टांगह्रदय
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अत्रि ऋषि लिखित चरक संहिता
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धन्वन्तरी लिखित शल्य शास्त्र सम्प्रदाय
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सावित्री आयुर्वेद प्रतिष्ठान, पुणे द्वारा प्रकाशित वैद्य प्रा. सौ. विजया लेले द्वारा संपादित “सर्वांसाठी आयुर्वेद”
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[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन (प्रतिमान)]]
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==References==
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<references />
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अन्य स्रोत:
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# चरक और शुश्रुत संहिता
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# वाग्भट का लिखा अष्टांगह्रदय
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# अत्रि ऋषि लिखित चरक संहिता
 +
# धन्वन्तरी लिखित शल्य शास्त्र सम्प्रदाय
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# सावित्री आयुर्वेद प्रतिष्ठान, पुणे द्वारा प्रकाशित वैद्य प्रा. सौ. विजया लेले द्वारा संपादित “सर्वांसाठी आयुर्वेद”
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[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन प्रतिमान)]]
 
[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन प्रतिमान)]]
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