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# शासन की या अभिभावकों की अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए शिक्षा नहीं होती। शिक्षा होती है उन्हें शिक्षा से किस प्रकार की अपेक्षा रखनी चाहिए यह सिखाने के लिये।
 
# शासन की या अभिभावकों की अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए शिक्षा नहीं होती। शिक्षा होती है उन्हें शिक्षा से किस प्रकार की अपेक्षा रखनी चाहिए यह सिखाने के लिये।
 
# जिस देश में शिक्षक की प्रतिष्ठा सबसे ऊपर होती है वह देश या समाज विश्व में सबसे अधिक प्रतिष्ठित होता है। यह प्रतिष्ठा शिक्षक को अपने ज्ञान, कौशल, लोकसंग्रह, समर्पण भाव आदि से अर्जित करनी होती है।
 
# जिस देश में शिक्षक की प्रतिष्ठा सबसे ऊपर होती है वह देश या समाज विश्व में सबसे अधिक प्रतिष्ठित होता है। यह प्रतिष्ठा शिक्षक को अपने ज्ञान, कौशल, लोकसंग्रह, समर्पण भाव आदि से अर्जित करनी होती है।
# कहा गया है - माता प्रथमो गुरु:, पिता द्वितीय:। और भी कहा गया है – लालयेत पञ्चवर्षाणी दशवर्षाणी ताडयेत्। जन्म से पांच वर्ष तक माता ही बच्चे की पहली गुरु होती है। पिता दूसरा गुरु होता है। इस आयु में बच्चे को अच्छी आदतें लगाना, उसकी रूचि को पहचानना, उसके इन्द्रियों का श्रेष्ठतम विकास करना इसकी प्राथमिक जिम्मेदारी माँ की होती है। दुसरे क्रमांक पर यह जिम्मेदारी पिता की है। बालक की रूचि ध्यान में लेकर योग्य गुरु के पास उसे ले जाना पिता की जिम्मेदारी है।
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# कहा गया है - माता प्रथमो गुरु:, पिता द्वितीय:। और भी कहा गया है – लालयेत पञ्चवर्षाणी दशवर्षाणी ताडयेत्। जन्म से पांच वर्ष तक माता ही बच्चे की पहली गुरु होती है। पिता दूसरा गुरु होता है। इस आयु में बच्चे को अच्छी आदतें लगाना, उसकी रूचि को पहचानना, उसके इन्द्रियों का श्रेष्ठतम विकास करना इसकी प्राथमिक जिम्मेदारी माँ की होती है। दूसरे क्रमांक पर यह जिम्मेदारी पिता की है। बालक की रूचि ध्यान में लेकर योग्य गुरु के पास उसे ले जाना पिता की जिम्मेदारी है।
 
# धर्म की शिक्षा देनेवाले श्रेष्ठ शिक्षा केन्द्रों को सहायता (संसाधन आदि), संरक्षण और समर्थन देना शासन की जिम्मेदारी है। विपरीत शिक्षा या असामाजिक या अधार्मिक तत्वों को शिक्षा क्षेत्र से दूर रखना भी शासन की जिम्मेदारी है।
 
# धर्म की शिक्षा देनेवाले श्रेष्ठ शिक्षा केन्द्रों को सहायता (संसाधन आदि), संरक्षण और समर्थन देना शासन की जिम्मेदारी है। विपरीत शिक्षा या असामाजिक या अधार्मिक तत्वों को शिक्षा क्षेत्र से दूर रखना भी शासन की जिम्मेदारी है।
 
# मानव के व्यक्तित्व के मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार इन घटकों की शिक्षा का श्रेष्ठ साधन अष्टांग योग की शिक्षा है। अष्टांग योग में से पहले पांच चरणों की याने बहिरंग योग की शिक्षा बालक के व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है।
 
# मानव के व्यक्तित्व के मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार इन घटकों की शिक्षा का श्रेष्ठ साधन अष्टांग योग की शिक्षा है। अष्टांग योग में से पहले पांच चरणों की याने बहिरंग योग की शिक्षा बालक के व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है।

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