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=== विषयों के अंगांगी संबंध के संदर्भ में प्रत्येक विषय का अध्ययन ===
 
=== विषयों के अंगांगी संबंध के संदर्भ में प्रत्येक विषय का अध्ययन ===
मानव जीवन के लक्ष्य को ध्यान में रखकर प्रत्येक विषय की विषयवस्तु का निर्धारण करना। अर्थात् केवल आध्यात्म ही नहीं, विज्ञान और तन्त्रज्ञान जैसे विषय भी अध्ययनकर्ता को मोक्ष की दिशा में आगे बढाएँ इसे ध्यान में रखकर विषयवस्तु तय करना।
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मानव जीवन के लक्ष्य को ध्यान में रखकर प्रत्येक विषय की विषयवस्तु का निर्धारण करना। अर्थात् केवल आध्यात्म ही नहीं, [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] और तन्त्रज्ञान जैसे विषय भी अध्ययनकर्ता को मोक्ष की दिशा में आगे बढाएँ इसे ध्यान में रखकर विषयवस्तु तय करना।
    
=== करणीय अकरणीय विवेक ===
 
=== करणीय अकरणीय विवेक ===
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# श्रेष्ठ अध्यापन का वर्णन इस प्रकार किया जाता है{{Citation needed}} – चित्रम् वटम् तरोर्मूले वृद्ध: शिष्य: गुरोर्युवा।। गुरोऽस्तु मौनम् व्याख्यानम् शिष्य: छिनना संशय: ।। अर्थ : वटवृक्ष के नीचे चौपालपर युवा गुरु बैठे हैं। सामने जमीनपर वृद्ध शिष्य बैठे हैं। गुरु मौन अवस्था में ही व्याख्यान दे रहा है। और शिष्यों के संशय का निवारण हो जाता है।
 
# श्रेष्ठ अध्यापन का वर्णन इस प्रकार किया जाता है{{Citation needed}} – चित्रम् वटम् तरोर्मूले वृद्ध: शिष्य: गुरोर्युवा।। गुरोऽस्तु मौनम् व्याख्यानम् शिष्य: छिनना संशय: ।। अर्थ : वटवृक्ष के नीचे चौपालपर युवा गुरु बैठे हैं। सामने जमीनपर वृद्ध शिष्य बैठे हैं। गुरु मौन अवस्था में ही व्याख्यान दे रहा है। और शिष्यों के संशय का निवारण हो जाता है।
 
# गुरुगृहवास गुरुकुल की आत्मा है। गुरुकुल से अधिक श्रेष्ठ अन्य कोई शिक्षा प्रणाली अब तक विकसित नहीं हुई है।
 
# गुरुगृहवास गुरुकुल की आत्मा है। गुरुकुल से अधिक श्रेष्ठ अन्य कोई शिक्षा प्रणाली अब तक विकसित नहीं हुई है।
# शिक्षा व्यक्ति को दी जाती है किन्तु फिर भी वह प्रमुखता से राष्ट्रीय होती है। और अंतिमत: आत्म (तत्व) निष्ठ होती है।
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# शिक्षा व्यक्ति को दी जाती है किन्तु तथापि वह प्रमुखता से राष्ट्रीय होती है। और अंतिमत: आत्म (तत्व) निष्ठ होती है।
 
# बच्चे के स्वधर्म को जानने की और उसके स्वधर्म के अनुसार उसे समाज के लिये उपयुक्त बनाने के लिये संस्कार और शिक्षा होते हैं।
 
# बच्चे के स्वधर्म को जानने की और उसके स्वधर्म के अनुसार उसे समाज के लिये उपयुक्त बनाने के लिये संस्कार और शिक्षा होते हैं।
 
# बच्चे को उसके स्वधर्म के अनुसार व्यवसाय और अर्थार्जन की विधा का चयन करने की प्रेरणा देना माता पिता और शिक्षक का काम है।
 
# बच्चे को उसके स्वधर्म के अनुसार व्यवसाय और अर्थार्जन की विधा का चयन करने की प्रेरणा देना माता पिता और शिक्षक का काम है।

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