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वाणी का आधार ध्वनि होता है। सामान्य ध्वनि को ‘आहत ध्वनि’ कहते हैं। इस ध्वनि का निर्माण दो पदार्थों के टकराने से होता है। वाचा याने जिससे हम बोलते हैं आहत ध्वनि से ही उत्पन्न होती है। दूसरी ध्वनि विशेष ध्वनि होती है जिसे ‘अनाहत ध्वनि’ कहते हैं। अनाहत ध्वनि के कई प्रकार होते हैं। गुरु अपने शिष्यों के साथ प्रत्यक्ष बोले बगैर ही उनकी जिज्ञासा का समाधान करता है। यह अनाहत ध्वनि का ही एक प्रकार है। इसी का वर्णन संत ज्ञानेश्वर महाराज ‘ज्ञानेश्वरी’ में ‘शब्देवीण संवादु’ ऐसा करते हैं। ॐ कार ध्वनि यह सृष्टि की सहज होनेवाली अनाहत ध्वनि है। ऐसी हर अस्तित्व की अपनी अपनी अनाहत ध्वनि होती है। वाणी के प्रगत अध्ययन में इन सबका अध्ययन अपेक्षित है। तब ही भाषा शिक्षा हमें मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर कर सकेगी।  
 
वाणी का आधार ध्वनि होता है। सामान्य ध्वनि को ‘आहत ध्वनि’ कहते हैं। इस ध्वनि का निर्माण दो पदार्थों के टकराने से होता है। वाचा याने जिससे हम बोलते हैं आहत ध्वनि से ही उत्पन्न होती है। दूसरी ध्वनि विशेष ध्वनि होती है जिसे ‘अनाहत ध्वनि’ कहते हैं। अनाहत ध्वनि के कई प्रकार होते हैं। गुरु अपने शिष्यों के साथ प्रत्यक्ष बोले बगैर ही उनकी जिज्ञासा का समाधान करता है। यह अनाहत ध्वनि का ही एक प्रकार है। इसी का वर्णन संत ज्ञानेश्वर महाराज ‘ज्ञानेश्वरी’ में ‘शब्देवीण संवादु’ ऐसा करते हैं। ॐ कार ध्वनि यह सृष्टि की सहज होनेवाली अनाहत ध्वनि है। ऐसी हर अस्तित्व की अपनी अपनी अनाहत ध्वनि होती है। वाणी के प्रगत अध्ययन में इन सबका अध्ययन अपेक्षित है। तब ही भाषा शिक्षा हमें मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर कर सकेगी।  
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भारतीय शिक्षा की प्रक्रिया में अनाहत ध्वनि के माध्यम से शिक्षा का वर्णन है। जो निम्न है: <blockquote>वृक्षं वटं तरोर्मूले वृद्धा शिष्या: गुरोर्युवा ।</blockquote><blockquote>गुरोस्तु मौनं व्याख्यानं शिष्या: छिन्न संशया: ।।</blockquote><blockquote>अर्थ : वटवृक्ष की छाया में गुरु और शिष्य बैठे हैं। शिष्य बूढ़े हैं। गुरु युवक है। प्रत्यक्ष में एक शब्द भी न बोलते हुए गुरु का व्याख्यान हो रहा है। याने गुरु मौन बैठे हैं। शिष्य भी मौन हैं। फिर भी शिष्यों के मन में उभरे संशयों का निराकरण हो रहा है।</blockquote>यह जो गुरु और शिष्यों के मध्य संवाद हो रहा है यह वैखरी से परे की भाषा में चल रहा है। गुरु मन ही मन में शिष्यों के संशय जान रहा है। और अपने मन से सीधे शिष्यों के मन से संवाद कर रहा है।   
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भारतीय शिक्षा की प्रक्रिया में अनाहत ध्वनि के माध्यम से शिक्षा का वर्णन है। जो निम्न है: <blockquote>वृक्षं वटं तरोर्मूले वृद्धा शिष्या: गुरोर्युवा ।</blockquote><blockquote>गुरोस्तु मौनं व्याख्यानं शिष्या: छिन्न संशया: ।।</blockquote><blockquote>अर्थ : वटवृक्ष की छाया में गुरु और शिष्य बैठे हैं। शिष्य बूढ़े हैं। गुरु युवक है। प्रत्यक्ष में एक शब्द भी न बोलते हुए गुरु का व्याख्यान हो रहा है। याने गुरु मौन बैठे हैं। शिष्य भी मौन हैं। तथापि शिष्यों के मन में उभरे संशयों का निराकरण हो रहा है।</blockquote>यह जो गुरु और शिष्यों के मध्य संवाद हो रहा है यह वैखरी से परे की भाषा में चल रहा है। गुरु मन ही मन में शिष्यों के संशय जान रहा है। और अपने मन से सीधे शिष्यों के मन से संवाद कर रहा है।   
    
जिसकी भाषा अधिक विकसित होती है उसकी अभिव्यक्ति भी उतनी ही सक्षम होती है । शायद इसीलिये तैत्तिरिय उपनिषद की शिक्षा वल्ली में भाषा को ही शिक्षा कहा गया होगा। इस से यह समझ में आता है की संवाद की गुणवत्ता के लिये भाषा का महत्व कितना अनन्यसाधारण है । वास्तव में वैखरी से लेकर परा तक का विकास भाषा विकास में अपेक्षित है। यही वह विकास है जिससे मनुष्य अपने लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। लेकिन स्खलन की अत्यंत निम्न अवस्था के कारण वैखरी से आगे की अभिव्यक्ति का विचार अर्थात् परा, पश्यन्ति और मध्यमा का विचार वर्तमान में बहुत आगे का विचार होगा । अतएव उन का विचार हमें आगे जाकर करना ही है। वर्तमान में सामान्य मनुष्य के स्तर पर हम मात्र वैखरी का विचार करेंगे।  
 
जिसकी भाषा अधिक विकसित होती है उसकी अभिव्यक्ति भी उतनी ही सक्षम होती है । शायद इसीलिये तैत्तिरिय उपनिषद की शिक्षा वल्ली में भाषा को ही शिक्षा कहा गया होगा। इस से यह समझ में आता है की संवाद की गुणवत्ता के लिये भाषा का महत्व कितना अनन्यसाधारण है । वास्तव में वैखरी से लेकर परा तक का विकास भाषा विकास में अपेक्षित है। यही वह विकास है जिससे मनुष्य अपने लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। लेकिन स्खलन की अत्यंत निम्न अवस्था के कारण वैखरी से आगे की अभिव्यक्ति का विचार अर्थात् परा, पश्यन्ति और मध्यमा का विचार वर्तमान में बहुत आगे का विचार होगा । अतएव उन का विचार हमें आगे जाकर करना ही है। वर्तमान में सामान्य मनुष्य के स्तर पर हम मात्र वैखरी का विचार करेंगे।  

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