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धन्वन्तरि देवताओं के [[Vaidya (वैद्यः)|वैद्य]] एवं [[Ayurveda (आयुर्वेदः)|आयुर्वेद]] शास्त्र' के प्रवर्तक हैं। [[Samudra Manthana (समुद्रमन्थनम्)|समुद्र-मंथन]] से आविर्भूत चौदह रत्नों में से एक धन्वन्तरि थे जो हाथ में अमृत-कलश धारण कर समुद्र में से प्रादुर्भूत हुए। भगवान विष्णु के आशीर्वचनानुसार धन्वन्तरि ने द्वापर युग में काशिराज धन्व के पुत्र के रूप में पुनर्जन्म लिया, आयुर्वेद को आठ विभागों में विभक्त किया और प्रजा को रोग-मुक्त किया। वैद्यक और शल्यशास्त्र में पारंगत व्यक्तियों को धन्वन्तरि कहने का प्रचलन है। धन्वन्तरि के नाम पर आयुर्वेद के अनेक ग्रंथ प्रसिद्ध हैं।
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[[Category:Stories]]
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