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− | वार शब्द का अर्थ अवसर अर्थात् नियमानुसार प्राप्त समय होता है। वार शब्द का प्रकृत अर्थ यह होता है कि जो अहोरात्र(सूर्योदय से आरम्भ कर २४ घण्टे अथवा ६० घटी अर्थात् पुनः सूर्योदय होने तक) जिस ग्रह के लिये नियम अनुसार प्राप्त होता है। जो ग्रह जिस अहोरात्र का स्वामी है उसी ग्रह के नाम से वह अहोरात्र अभिहित है। उदाहरणार्थ जिस अहोरात्र का स्वामी सोम है वह सोमवार इत्यादि होगा। यह प्रक्रिया खगोल में ग्रहों की स्थिति के अनुसार नहीं है। | + | पञ्चांग के द्वितीय अवयव के रूप में वार का समावेश होता है। वार शब्द का अर्थ अवसर अर्थात् नियमानुसार प्राप्त समय होता है। सम्पूर्ण पृथ्वी पर एक जैसे क्रम में स्थित सात वारों का प्रचलन है। वार शब्द का प्रकृत अर्थ यह होता है कि जो अहोरात्र(सूर्योदय से आरम्भ कर २४ घण्टे अथवा ६० घटी अर्थात् पुनः सूर्योदय होने तक) जिस ग्रह के लिये नियम अनुसार प्राप्त होता है। जो ग्रह जिस अहोरात्र का स्वामी है उसी ग्रह के नाम से वह अहोरात्र अभिहित है। उदाहरणार्थ जिस अहोरात्र का स्वामी सोम है वह सोमवार इत्यादि होगा। यह प्रक्रिया खगोल में ग्रहों की स्थिति के अनुसार नहीं है। वैसे तो समग्र विश्व वारों से भलीभांति परिचित है, क्योंकि विश्व के सभी देशों में इनका नामान्तर से स्व भाषाओं में प्रचलित नामों द्वारा व्यवहार किया जाता है, परन्तु इनकी उत्पत्ति, क्रम एवं सिद्धान्त के बारे में प्रायशः लोग अपरिचित हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय ज्योतिष की ज्ञान परम्परा में वारों का सामान्य व्यवहार के अतिरिक्त धार्मिक आदि क्षेत्रों में भी विशेष व्यवहार होता है। अतः वारों के सर्व पक्षीय ज्ञान से भारतीय ज्योतिष को समझने में सहायता मिलेगी। |
| + | |
| + | {{#evu:https://www.youtube.com/watch?v=L_UgkfIaGZg&list=PLZ83joYJYmWR8dUgfxbcKFgxbCOaKw91J&index=youtu.be |
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| + | |description=Introduction to Elements of a Panchanga - Vaara. Courtesy: Prof. K. Ramasubramaniam and Shaale.com |
| + | }} |
| + | |
| + | |
| + | ==परिचय== |
| + | वर्तमान समय में भारत ही नहीं अपितु विश्व के समग्र देशों में एक जैसे वारों का ही निर्विवाद स्वरूप में प्रचलन है जिन्हैं हम भारत वर्ष में रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार एवं शनिवार के नाम से तथा अन्य देशों में उनके अपने देशज पृथक्-पृथक् नामों से जानते हैं। परन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से वारों की उत्पत्ति का स्थान, विकास, क्रम तथा स्वीकार्यता अत्यन्त विवादित रही है। क्योंकि विश्व की कुछ सभ्यताओं में वारों की संख्या दस तो कुछ में तीस भी रही है। परन्तु जिन देशों और सभ्यताओं में वारों की संख्या दस अथवा तीस दिनों की रही है उन्होंने भी अपने व्यवहार एवं गणना में संशोधन करके वारक्रम एवं संख्या को ठीक कर लिया है तथा आज पूरे विश्व में भारतीय ऋषियों द्वारा स्थापित वारक्रम ही स्वीकृत एवं प्रचलित है। |
| + | |
| + | |
| + | सावन मान अर्थात् पृथ्वी के दिन के अनुसार सात वार होते हैं- |
| + | |
| + | अथ सावनमानेन वाराः सप्तप्रकीर्तिताः।(पुलस्तसिद्धान्तः) |
| + | |
| + | सावन दिन का अर्थ है अपने क्षितिज का दिन- |
| + | |
| + | उदयादुदयं भानोर्भूमि सावन वासरः।(सूर्यसिद्धान्तः) |
| | | |
− | == परिचय ==
| |
| आदित्यश्चन्द्रमा भौमो बुधश्चाथ बृहस्पतिः। शुक्रः शनैश्चरश्चैव वासराः परिकीर्तिताः॥(मूहूर्त गणपति) | | आदित्यश्चन्द्रमा भौमो बुधश्चाथ बृहस्पतिः। शुक्रः शनैश्चरश्चैव वासराः परिकीर्तिताः॥(मूहूर्त गणपति) |
| | | |
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| अहन् , घस्र, दिन, दिवस, वासर और दिवा आदि। | | अहन् , घस्र, दिन, दिवस, वासर और दिवा आदि। |
| | | |
− | === वारप्रवृत्ति ===
| + | ==परिभाषा== |
− | जिस समयमें लंकामें (भूमध्य रेखा के ऊपर) सूर्योदय होता है। उस समय से लेकर के सभी जगह रवि आदि वारों का आरम्भ काल जानना चाहिये।
| |
− | | |
− | == परिभाषा == | |
| सुखं वासयति जनान् इति वासरः।(आप्टे) | | सुखं वासयति जनान् इति वासरः।(आप्टे) |
| | | |
− | == वारों के भेद == | + | ==वारों के भेद== |
| + | वारों के नाम एवं वार संबंधी कार्य हेतु शुभ अशुभ विचार किस वार में क्या करना चाहिये-<blockquote>आदित्यश्चन्द्रमा भौमो बुधश्चाथ बृहस्पतिः। शुक्रः शनैश्चरश्चैते वासराः परिकीर्तिताः॥</blockquote>आदित्य-रवि, चन्द्रमा-सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि क्रमशः ये सात वार होते हैं। |
| {| class="wikitable" | | {| class="wikitable" |
| |+वारों के नाम, पर्यायवाची, वर्ण और वारप्रकृति तालिका | | |+वारों के नाम, पर्यायवाची, वर्ण और वारप्रकृति तालिका |
Line 48: |
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| |- | | |- |
| |5 | | |5 |
− | |गुरुवार | + | | गुरुवार |
| |बृहस्पति, ईज्य, जीव, सुरेन्द्र, सुरपूज्य, चित्रशिखण्डितनय, वाक्पति आदि। | | |बृहस्पति, ईज्य, जीव, सुरेन्द्र, सुरपूज्य, चित्रशिखण्डितनय, वाक्पति आदि। |
| |सुवर्ण की तरह, पीत। | | |सुवर्ण की तरह, पीत। |
Line 66: |
Line 83: |
| |} | | |} |
| | | |
− | == वारों के फल == | + | ==वारविज्ञान== |
| + | |
| + | ===वारप्रवृत्ति=== |
| + | जिस समयमें लंकामें (भूमध्य रेखा के ऊपर) सूर्योदय होता है। उस समय से लेकर के सभी जगह रवि आदि वारों का आरम्भ काल जानना चाहिये। |
| + | |
| + | ===वारक्रम का सिद्धान्त=== |
| + | [[File:क्रम दर्शिका.jpg|thumb|पीयूषधारा टीका( मुहूर्तचिन्तामणि)]] |
| + | हमारे सौर मण्डलमें प्राचीन मत के अनुसार पृथ्वी, चन्द्र, बुध, सूर्य, मंगल, गुरु और शनि स्थित हैं। इनके ऊपर नक्षत्र मण्डल हैं। आधुनिक मत के अनुसार पृथ्वी के स्थान पर केन्द्र में सूर्य स्थित हैं। प्राचीन कक्षा क्रम में शनि से नीचे की ओर चौथे पिण्ड को वार का अधिपति माना गया। |
| + | |
| + | इस क्रम से स्पष्ट है कि शनि से चौथा सूर्य, सूर्य से चौथा चन्द्र, चन्द्र से चौथा मंगल, मंगल से चौथा बुध, बुध से चौथा गुरु, गुरू से चौथा शुक्र, शुक्र से चौथा शनि वार का अधिपति होने से यही वार क्रम निर्मित हुआ। प्राचीनकाल में पृथ्वी को केन्द्र मानकर अन्य समीपवर्ती ग्रहों के कक्षा क्रम को निर्धारित किया जाता था। आधुनिक युग में सूर्य को केन्द्र मानकर गणितकर्म किया जा रहा है। मनुष्य का कर्म क्षेत्र पृथ्वी है और सौरमण्डल का कर्मबिन्दु सूर्य है। प्राचीन आचार्य भी सूर्य के केन्द्रत्व रहस्य से परिचित थे। इसीलिये सूर्य को उन्होंने आत्मा ग्रह कहा। |
| + | |
| + | सूर्यसिद्धान्त ग्रन्थ का भूगोलाध्याय वारप्रवृत्ति के वैज्ञानिक पक्ष को सामने रखता है-<blockquote>मन्दादधः क्रमेण स्युश्चतुर्धा दिवसाधिपाः, वर्षाधिपतयस्तद्वत्तृतीयाश्च प्रकीर्तिताः।ऊर्ध्वक्रमेण शशिनो मासानामधिपाः स्मृताः, होरेशाः सूर्यतनयादधोऽधः क्रमशस्तथा॥</blockquote>ग्रहों के प्राचीनकक्षा क्रम (भारतीय आचार्यों द्वारा प्रदत्त) से वारों का क्रम निर्धारित हो सका। ऐसा वैज्ञानिक क्रम अन्यत्र कहीं दिखलाई नहीं देता। |
| + | |
| + | ===वारप्रवृत्ति में होरा का महत्व=== |
| + | वारों का नाम सूर्यादि सात ग्रहों के नाम पर रखा गया है। जिस दिन जो वार होता है उस दिन उस ग्रह की प्रथम होरा होती है। |
| + | |
| + | इस प्रकार से सूर्यसिद्धान्त ग्रन्थ के द्वारा वार क्रम जानने की दो विधियाँ सामने आती हैं- |
| + | |
| + | #ग्रहकक्षाक्रमविधि |
| + | #होरा क्रम विधि |
| + | '''1. भूकेंद्रिक ग्रहकक्षा क्रम विधि-''' इस ग्रह कक्षा क्रम के आधार पर ही घटी एवं होरा भ्रमण के अनुसार वार क्रम सिद्ध होते हैं। घटी भोग |
| + | |
| + | =====वारदोष===== |
| + | |
| + | ====कालहोरा==== |
| + | {| class="wikitable" |
| + | |+काल होरा सारिणी |
| + | !घण्टा |
| + | !रविवार |
| + | ! सोमवार |
| + | !मंगलवार |
| + | !बुधवार |
| + | !गुरूवार |
| + | !शुक्रवार |
| + | !शनिवार |
| + | |- |
| + | |1 |
| + | |सूर्य |
| + | |चन्द्र |
| + | | मंगल |
| + | |बुध |
| + | |गुरु |
| + | |शुक्र |
| + | |शनि |
| + | |- |
| + | |2 |
| + | |शुक्र |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |- |
| + | |3 |
| + | |बुध |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |- |
| + | |4 |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | | श० |
| + | |सू० |
| + | |- |
| + | |5 |
| + | |श० |
| + | | सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | | बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |- |
| + | |6 |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | | बु० |
| + | |- |
| + | |7 |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |- |
| + | |8 |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |- |
| + | |9 |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | | बु० |
| + | |गु० |
| + | |- |
| + | |10 |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |- |
| + | |11 |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |- |
| + | |12 |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |- |
| + | |13 |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | | मं० |
| + | |बु० |
| + | |- |
| + | |14 |
| + | |मं |
| + | |बु० |
| + | | गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |- |
| + | | 15 |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |- |
| + | |16 |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |- |
| + | |17 |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |- |
| + | |18 |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |- |
| + | |19 |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | | गु० |
| + | |शु० |
| + | |- |
| + | |20 |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | | च० |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |- |
| + | |21 |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |- |
| + | |22 |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |- |
| + | |23 |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |- |
| + | |24 |
| + | |बु० |
| + | |गु० |
| + | |शु० |
| + | |श० |
| + | |सू० |
| + | |च० |
| + | |मं० |
| + | |} |
| + | जैसा कि सूर्य सिद्धान्तकार ने स्पष्टतया लिखा है-<blockquote>होरेशः सूर्यतनयादधोऽधः क्रमसस्तथा।</blockquote>जैसा कि उपर्युक्त सारिणी द्वारा स्पष्ट है कि जिस दिन जो वार होता है उस दिन की प्रथम होरा भी उसी ग्रह की होती है तथा उसके बाद नीचे क्रम की कक्षा में स्थित ग्रह की क्रमशः, इस प्रक्रिया में ग्रह ७ हैं तथा होरा २४ अतः सात ग्रहों की तीन आवृत्ति पूर्ण होने पर २१ होरा बीत जाती है तथा दिन दिन की ३ होरा अवशिष्ट रह जो क्रमशः उसके बाद के तीन कक्षाओं में भोग करती हुई पूर्ण हो जाती है तथा पुनः चौथी कक्षा में स्थित ग्रह की प्रथम होरा आरम्भ होने से वह उस वार का अधिपति हो जाता है उस वार में भी उपर्युक्त नियम से ही क्रमशः गणना होती है।<ref>विनय कुमार पाण्डेय, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80266 वार साधन], सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय नई दिल्ली (पृ० १२४)।</ref> |
| + | |
| + | ==साप्ताहिक वारोंके नामकरणकी सारिणी== |
| + | प्रथम दिनका नाम प्रथम होरा अधिपति के नामपर तथा दूसरे दिन का नामकरण उससे २५वीं होरा के अधिपति ग्रह के नामपर हुआ। अतः २५ में ७ का भाग देने पर शेष ४ बचते हैं अर्थात् किसी भी दिनकी होरासे ४तक गिनने पर चौथी होरा जिस ग्रह की होगी, दूसरे दिनका नाम भी उसी ग्रहके नामपर होगा। निम्न सारिणीसे यह सरलतासे जाना जा सकता है- |
| + | {| class="wikitable" |
| + | |+ |
| + | (वार ज्ञानार्थ सुगम सारिणी)<ref>श्रीसीताराम स्वामी, भारतीय कालगणना(ज्योतिष तत्त्वांक) सन् २०१४, गोरखपुरः गीताप्रेस (पृ०२११)।</ref> |
| + | !दिनों का क्रम |
| + | !१ |
| + | |
| + | रविवार |
| + | !२ |
| + | |
| + | सोमवार |
| + | !३ |
| + | |
| + | मंगलवार |
| + | !४ |
| + | |
| + | बुधवार |
| + | !५ |
| + | |
| + | गुरुवार |
| + | !६ |
| + | |
| + | शुक्रवार |
| + | !७ |
| + | शनिवार |
| + | |- |
| + | |सूर्य |
| + | |प्रथम वार |
| + | |१ |
| + | | |
| + | |२ |
| + | | |
| + | |३ |
| + | | |
| + | |- |
| + | |शुक्र |
| + | | |
| + | |२ |
| + | | |
| + | |३ |
| + | | |
| + | |४ |
| + | |
| + | छठा वार |
| + | |१ |
| + | |- |
| + | |बुध |
| + | | |
| + | |३ |
| + | | |
| + | |चौथा वार |
| + | |
| + | ४ |
| + | |१ |
| + | | |
| + | |२ |
| + | |- |
| + | |चन्द्र(सोम) |
| + | | |
| + | |दूसरा वार |
| + | |
| + | ४ |
| + | |१ |
| + | | |
| + | |२ |
| + | | |
| + | |३ |
| + | |- |
| + | |शनि |
| + | | |
| + | | |
| + | |२ |
| + | | |
| + | |३ |
| + | | |
| + | |सातवाँ वार |
| + | ४ |
| + | |- |
| + | |गुरु |
| + | | |
| + | | |
| + | |३ |
| + | | |
| + | |पाँचवाँ वार |
| + | |
| + | ४ |
| + | |१ |
| + | | |
| + | |- |
| + | |मंगल |
| + | | |
| + | | |
| + | |तीसरा वार |
| + | |
| + | ४ |
| + | | १ |
| + | | |
| + | |२ |
| + | | |
| + | |} |
| + | |
| + | == वारों के फल== |
| वारों में रवि स्थिर, सोम चर, भौम क्रूर, बुध शुभाशुभ, गुरु लघु, शुक्र मृदु, शनि चर और तीक्ष्ण धर्मवान् हैं। ये वारधर्म शुभाशुभ कर्मों में जानना चाहिये। जैसे- रविवार में स्थिर और शुभकर्म , सोमवार में चर और शुभ, मंगलवार और शनिवार में क्रूर और तीक्ष्ण कर्म, बुधवार में शुभाशुभ मिश्रित सभी कर्म, गुरुवार और शुक्रवार में मृदु कर्मों को करना चाहिये। | | वारों में रवि स्थिर, सोम चर, भौम क्रूर, बुध शुभाशुभ, गुरु लघु, शुक्र मृदु, शनि चर और तीक्ष्ण धर्मवान् हैं। ये वारधर्म शुभाशुभ कर्मों में जानना चाहिये। जैसे- रविवार में स्थिर और शुभकर्म , सोमवार में चर और शुभ, मंगलवार और शनिवार में क्रूर और तीक्ष्ण कर्म, बुधवार में शुभाशुभ मिश्रित सभी कर्म, गुरुवार और शुक्रवार में मृदु कर्मों को करना चाहिये। |
| | | |
| जो ग्रह बलवान् हो उसवार में जो कर्म करेंगे वह सफल होता है। किन्तु जो ग्रह षड्बल हीन है उस वार में बहुत प्रयत्न करने पर भी सफलता नहीं प्राप्त होती है। सोम, बुध, गुरु और शुक्र सभी शुभ कार्यों में शुभ होते हैं। रवि, भौम और शनि क्रूरकर्मों में इष्टसिद्धि देते हैं। | | जो ग्रह बलवान् हो उसवार में जो कर्म करेंगे वह सफल होता है। किन्तु जो ग्रह षड्बल हीन है उस वार में बहुत प्रयत्न करने पर भी सफलता नहीं प्राप्त होती है। सोम, बुध, गुरु और शुक्र सभी शुभ कार्यों में शुभ होते हैं। रवि, भौम और शनि क्रूरकर्मों में इष्टसिद्धि देते हैं। |
| | | |
− | ==== वारों में तैललेपन ==== | + | ===वारसंबंधी शुभाशुभ विचार=== |
− | रविवार में तैललेपन करने से रोग, सोमवार में कान्तिकी वृद्धि, भौमवारमें व्याधि, बुधवारमें सौभाग्यवृद्धि, गुरुवार और शुक्रवारमें सौभाग्यहानि, शनिवार में धनसम्पत्ति की वृद्धि होती है। | + | <blockquote>गुरुश्चन्द्रो बुधः शुक्रः शुभा वाराः शुभे स्मृताः। क्रूरास्तु क्रूरकृत्येषु ग्राह्या भौमार्कसूर्यजाः॥</blockquote>बुध, गुरु, शुक्र और (शुक्ल पक्ष में) चन्द्र ये शुभ दिन हैं। इनमें शुभ कार्य सिद्ध होता है। रवि, मंगल, शनि ये क्रूर एवं पाप वार हैं। इन दिनों में क्रूर कर्म सिद्ध होता है। |
| + | |
| + | ===वारों में तैललेपन=== |
| + | |
| + | रविवार में तैललेपन करने से रोग, सोमवार में कान्तिकी वृद्धि, भौमवारमें व्याधि, बुधवारमें सौभाग्यवृद्धि, गुरुवार और शुक्रवारमें सौभाग्यहानि, शनिवार में धनसम्पत्ति की वृद्धि होती है।<blockquote>अभ्यक्तो भानुवारे यः स नरः क्लेशवान्भवेत्। ऋक्षेशे कान्तिभाग्भौमे व्याधिः सौभाग्यमिन्दुजे॥जीवे नैःस्वं सिते हानिर्मन्दे सर्वसमृद्धयः॥(ना०सं० श्लो०१५७/१५७)</blockquote> |
| + | |
| + | ===तैलाभ्यंग में वारदोष परिहार=== |
| + | पकाया हुआ तेल, सरसों का तेल, पुष्पवासित(सुगंधित) तेल और किसी भी द्रव्य के संयोग से बना तेल निषिद्ध दिनों में भी लगाया जा सकता है-<blockquote>मन्त्रितं क्वथितं तैलं सार्षपं पुष्पवासितम्। द्रव्यान्तरयुतं वापि नैव दुष्येत् कदाचन॥</blockquote>यदि उपर्युक्त तेल का अभाव हो एवं आवश्यक कार्य के लिये तेललेपन(अभ्यंग आदि) करना भी हो तो रवि के दिन पुष्प के साथ तेल लगाना चाहिये। गुरु के दिन दूर्वा, मंगल के दिन मिट्टी, शुक्र के दिन गोबर मिलाने से दोष नहीं होता है- <blockquote>रवौ पुष्पं गुरौ दूर्वा मृत्तिका कुजवासरे। भार्गवे गोमयं दद्यात् तैलदोषस्य शान्तये॥</blockquote> |
| + | |
| + | ===वारों में विहित कर्म=== |
| + | रविवार-राजाभिषेकोत्सवयानसेवागोवह्निमन्त्रौषधिशस्त्रकर्म। सुवर्णताम्रेर्णिकचर्मकाष्ठसंग्रामपण्यादि रवौ विदध्यात् ॥ |
| + | |
| + | सोमवार-शंखाब्जमुक्तारजतेक्षु भोज्यस्त्री वृक्षकृष्यम्बुविभूषणाद्यम् ।गीतक्रतुक्षीरविकारश्रंगी पुष्पाक्षरारम्भणमिन्दुवारे॥ |
| + | |
| + | मंगलवार-भेदानृतस्तेयविषाग्निशस्त्रबन्धाभिघाताहवशाठयदम्भान् ।सेनानिवेशाकरधातुहेम प्रवालकार्यादि कुजेऽह्निकुर्यात् ॥ |
| + | |
| + | बुधवार-नैपुण्यपुण्याध्ययन कलाश्च शिल्पादिसेवालिपिलेखनानि।धातुक्रियाकांचनयुक्ति सन्धि व्यायामवादाश्चबुधे विधेयाः॥ |
| | | |
− | अभ्यक्तो भानुवारे यः स नरः क्लेशवान्भवेत् । ऋक्षेशे कान्तिभाग्भौमे व्याधिः सौभाग्यमिन्दुजे॥जीवे नैःस्वं सिते हानिर्मन्दे सर्वसमृद्धयः॥(ना०सं० श्लो०१५७/१५७)
| + | गुरुवार-धर्मक्रिया पौष्टिक यज्ञविद्यामांगल्य हेमाम्बरवेश्मयात्रा।रथाश्वभैषज्यविभूषणाद्यं कार्यं विदध्यात्सुरमंत्रिणोह्नि॥ |
| | | |
− | तैललेपन में दोष परिहार
| + | शुक्रवार- स्त्रीगीतशय्यामणिरत्नगन्धं वस्त्रोत्सवालंकरणादि कर्म। भूपण्यगोकोशकृषिक्रियाश्च सिध्यन्ति शुक्रस्य दिने समस्तम् ॥ |
| | | |
− | == वारविज्ञान ==
| + | शनिवार- लोहश्मसीसत्रपुरस्रदास पापानृतस्तेयविषासवाद्यम् । गृहप्रवेशो द्विपबन्धदीक्षा स्थिरं च कर्मार्कसुतेऽह्नि कुर्यात् ॥ |
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− | ===== वारदोष ===== | + | ==सारांश== |
| + | दिनों की गणना हमारे नित्य के जीवन का अविभाज्य हिस्सा है। उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि दिनों की गणना तथा उसका नामकरण हम भारतीयों की ही विश्व को देन है। केवल भारतीय ज्योतिष में ही इस नामकरण का सटीक कारण मिलता है। इसके अतिरिक्त दिनों के प्रकारों का वर्णन भी केवल भारतीय कालशास्त्र में प्राप्त होता है। इसी प्रकार सप्ताहों की रचना का प्रारंभिक विवरणों से यह ज्ञात होता है कि दिनों के नामकरण और उनके आधार पर सप्ताहों की रचना वैदिक साहित्य के आधार पर ही किया गया है। वस्तुतः सात दिन होने के कारण ही सप्ताह की रचना की गई है। भारतीय कालगणना की यह विशिष्टता ही उसकी श्रेष्ठता को साबित करती है। भारतीय कालगणना की इस दिनों की संकल्पना, नामकरण तथा सप्ताहों की रचना को ही पूरे विश्व ने स्वीकार किया है।<ref>प्रवेश व्यास, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/93422 दिनमान तथा सप्ताहमान], सन् २०२३, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ० ४३)।</ref> |
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− | ==== कालहोरा ==== | + | ==उद्धरण== |
| + | <references /> |
| + | [[Category:Vedangas]] |
| [[Category:Jyotisha]] | | [[Category:Jyotisha]] |