Difference between revisions of "Brihadaranyaka Upanishad (बृहदारण्यक उपनिषद्)"

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== परिचय ==
 
== परिचय ==
बृहदारण्यक उपनिषद् में छः अध्याय हैं। अध्यायों को खण्डों या ब्राह्मणों में विभाजित किया गया है। और उन खण्डों या ब्राह्मणों को भी कण्डिकाओं में विभाजित किया गया है कण्डिकाओं की समानता मन्त्रों से की जा सकती है। इस उपनिषद् में ऐसी ४३५ कण्डिकाएँ हैं, ४७ ब्राह्मण या खण्ड हैं और छः अध्याय हैं।
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बृहदारण्यक उपनिषद् में छः अध्याय हैं। अध्यायों को खण्डों या ब्राह्मणों में विभाजित किया गया है। और उन खण्डों या ब्राह्मणों को भी कण्डिकाओं में विभाजित किया गया है कण्डिकाओं की समानता मन्त्रों से की जा सकती है। इस उपनिषद् में ऐसी ४३५ कण्डिकाएँ हैं, ४७ ब्राह्मण या खण्ड हैं और छः अध्याय हैं।  
  
 
== बृहदारण्यक उपनिषद् - शान्ति पाठ ==
 
== बृहदारण्यक उपनिषद् - शान्ति पाठ ==
<blockquote>ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॥<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%83%E0%A4%B9%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95_%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A5%8D_1a बृहदारण्यकोपनिषद्] </ref></blockquote>'''भाषार्थ -''' वह (परमात्मा) पूर्ण है, और यह (कार्य ब्रह्म - जगत्) भी पूर्ण ही है। क्योंकि पूर्ण में से ही पूर्ण की उत्पत्ति होती है। तथा (प्रलयकाल में) पूर्ण का अर्थात् कार्यब्रह्मरूप जगत् का पूर्णत्व लेकर केवल परब्रह्म (कारण ब्रह्म) ही शेष रहता है। ओम् त्रिविध तापों की शान्ति हो।
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<blockquote>ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AC%E0%A5%83%E0%A4%B9%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95_%E0%A4%89%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A6%E0%A5%8D_1a बृहदारण्यकोपनिषद्] </ref></blockquote>'''भाषार्थ -''' वह (परमात्मा) पूर्ण है, और यह (कार्य ब्रह्म - जगत्) भी पूर्ण ही है। क्योंकि पूर्ण में से ही पूर्ण की उत्पत्ति होती है। तथा (प्रलयकाल में) पूर्ण का अर्थात् कार्यब्रह्मरूप जगत् का पूर्णत्व लेकर केवल परब्रह्म (कारण ब्रह्म) ही शेष रहता है। ओम् त्रिविध तापों की शान्ति हो।
  
 
== बृहदारण्यक उपनिषद् - वर्ण्य विषय ==
 
== बृहदारण्यक उपनिषद् - वर्ण्य विषय ==
 
इस उपनिषद् के विभागीकरण का एक दूसरा भी प्रकार है। पहले दो अध्यायों वाले एक विभाग को मधुकाण्ड कहा गया है। बीच के दो अध्यायों (३ और ४ अध्यायों) को मुनिकाण्ड कहा जाता है। मुनिकाण्ड को याज्ञवल्क्य काण्ड भी कहते हैं। अन्तिम दो अध्यायों को (५ और ६ को) खिलकाण्ड कहा गया है। ये तीन काण्ड क्रमशः उपदेश, उपपत्ति और उपासना के तीन विषयों का विश्लेषण करते हैं। इन तीनों काण्डों में मुनिकाण्ड अथवा याज्ञवल्क्यकाण्ड अत्यंत महत्त्व का है। उसमें इस उपनिषद् की कण्डिकाओं में से आधी संख्या में कण्डिकाएँ शामिल हो जाती हैं। ऋषि याज्ञवल्क्य इस काण्ड के प्रधान वक्ता है। इन्होंने इसमें आत्मा का (ब्रह्म का) तत्त्वज्ञान बडी ही ओजस्विता से निरूपित किया है। और ब्रह्म या आत्मा सम्बन्धी अनेकानेक आनुषंगिक विषयों पर भी अपने उपदेशों में उनका सूक्ष्म निरूपण किया है। किसी भी युग के विश्व के महान् चिन्तकों में मुनि याज्ञवल्क्य को सहज ही उच्च आसन प्राप्त है।<ref>आचार्य केशवलाल वि० शास्त्री, [https://archive.org/details/djpC_upanishad-sanchayan-ishadi-ashtottar-shat-upanishad-part-1-with-hindi-translatio/page/265/mode/1up उपनिषत्सञ्चयनम्] , सन् २०१५, चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली (पृ० २६५)।</ref>
 
इस उपनिषद् के विभागीकरण का एक दूसरा भी प्रकार है। पहले दो अध्यायों वाले एक विभाग को मधुकाण्ड कहा गया है। बीच के दो अध्यायों (३ और ४ अध्यायों) को मुनिकाण्ड कहा जाता है। मुनिकाण्ड को याज्ञवल्क्य काण्ड भी कहते हैं। अन्तिम दो अध्यायों को (५ और ६ को) खिलकाण्ड कहा गया है। ये तीन काण्ड क्रमशः उपदेश, उपपत्ति और उपासना के तीन विषयों का विश्लेषण करते हैं। इन तीनों काण्डों में मुनिकाण्ड अथवा याज्ञवल्क्यकाण्ड अत्यंत महत्त्व का है। उसमें इस उपनिषद् की कण्डिकाओं में से आधी संख्या में कण्डिकाएँ शामिल हो जाती हैं। ऋषि याज्ञवल्क्य इस काण्ड के प्रधान वक्ता है। इन्होंने इसमें आत्मा का (ब्रह्म का) तत्त्वज्ञान बडी ही ओजस्विता से निरूपित किया है। और ब्रह्म या आत्मा सम्बन्धी अनेकानेक आनुषंगिक विषयों पर भी अपने उपदेशों में उनका सूक्ष्म निरूपण किया है। किसी भी युग के विश्व के महान् चिन्तकों में मुनि याज्ञवल्क्य को सहज ही उच्च आसन प्राप्त है।<ref>आचार्य केशवलाल वि० शास्त्री, [https://archive.org/details/djpC_upanishad-sanchayan-ishadi-ashtottar-shat-upanishad-part-1-with-hindi-translatio/page/265/mode/1up उपनिषत्सञ्चयनम्] , सन् २०१५, चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली (पृ० २६५)।</ref>
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== सारांश ==
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बृहदारण्यक उपनिषद् के सार-विषय इस प्रकार हैं -
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* अश्वमेध यज्ञ का महत्व तथा जगत् की उत्पत्ति
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* प्राण (जीवन) का अर्थ
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* प्राण शक्ति का महत्व
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* सद्गुण की विषय-वस्तु
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* परब्रह्म की महानता
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* सत्योपलब्धि के लिए दिशा तथा परब्रह्म
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उपनिषद् का प्रारंभ अश्वमेध यज्ञ के वर्णन से होता है तथा अश्व की उपमा वैश्विक सत्ता के रूप में दी गयी है। जिसके प्रत्येक अंग को वैश्विक सत्ता से सम्बन्धित करके ध्यान करना चाहिये। अश्व से प्रारंभ करके यह जगत् की सृष्टि प्रक्रिया का विवरण देती है। आरम्भ में कुछ भी नहीं था। शून्य से सृष्टि का प्रारंभ हुआ। प्राण, आत्मा है तथा सबसे बलशाली है।
  
 
== उद्धरण ==
 
== उद्धरण ==

Revision as of 12:53, 21 March 2024

बृहदारण्यकोपनिषद् अपने नाम से ही सूचित करती है कि यह उपनिषद् एक बडी (बृहद् = बडी लंबी) उपनिषद् है। यह उपनिषद् शुक्लयजुर्वेद के अन्तर्गत सुप्रसिद्ध शतपथ ब्राह्मण का ही एक भाग है। शतपथब्राह्मण की दो वाचनाएँ हैं। एक काण्वशाखीय वाचना है और दूसरी माध्यन्दिन शाखीय वाचना है। काण्वशाखा की वाचना के सत्रह काण्ड हैं और माध्यन्दिन शाखा के केवल चौदह हैं। शतपथब्राह्मण की सत्रह काण्डोंवाली काण्वशाखीय वाचना के तीन से आठ अध्याय- कुल छः अध्याय ही यह बृहदारण्यक उपनिषद् है और शतपथब्राह्मण की चौदह काण्ड वाली माध्यन्दिन शाखा वाली वाचना के चार से नौ काण्ड (कुल छः काण्ड) ही यह बृहदारण्यक उपनिषद् है।

परिचय

बृहदारण्यक उपनिषद् में छः अध्याय हैं। अध्यायों को खण्डों या ब्राह्मणों में विभाजित किया गया है। और उन खण्डों या ब्राह्मणों को भी कण्डिकाओं में विभाजित किया गया है कण्डिकाओं की समानता मन्त्रों से की जा सकती है। इस उपनिषद् में ऐसी ४३५ कण्डिकाएँ हैं, ४७ ब्राह्मण या खण्ड हैं और छः अध्याय हैं।

बृहदारण्यक उपनिषद् - शान्ति पाठ

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥[1]

भाषार्थ - वह (परमात्मा) पूर्ण है, और यह (कार्य ब्रह्म - जगत्) भी पूर्ण ही है। क्योंकि पूर्ण में से ही पूर्ण की उत्पत्ति होती है। तथा (प्रलयकाल में) पूर्ण का अर्थात् कार्यब्रह्मरूप जगत् का पूर्णत्व लेकर केवल परब्रह्म (कारण ब्रह्म) ही शेष रहता है। ओम् त्रिविध तापों की शान्ति हो।

बृहदारण्यक उपनिषद् - वर्ण्य विषय

इस उपनिषद् के विभागीकरण का एक दूसरा भी प्रकार है। पहले दो अध्यायों वाले एक विभाग को मधुकाण्ड कहा गया है। बीच के दो अध्यायों (३ और ४ अध्यायों) को मुनिकाण्ड कहा जाता है। मुनिकाण्ड को याज्ञवल्क्य काण्ड भी कहते हैं। अन्तिम दो अध्यायों को (५ और ६ को) खिलकाण्ड कहा गया है। ये तीन काण्ड क्रमशः उपदेश, उपपत्ति और उपासना के तीन विषयों का विश्लेषण करते हैं। इन तीनों काण्डों में मुनिकाण्ड अथवा याज्ञवल्क्यकाण्ड अत्यंत महत्त्व का है। उसमें इस उपनिषद् की कण्डिकाओं में से आधी संख्या में कण्डिकाएँ शामिल हो जाती हैं। ऋषि याज्ञवल्क्य इस काण्ड के प्रधान वक्ता है। इन्होंने इसमें आत्मा का (ब्रह्म का) तत्त्वज्ञान बडी ही ओजस्विता से निरूपित किया है। और ब्रह्म या आत्मा सम्बन्धी अनेकानेक आनुषंगिक विषयों पर भी अपने उपदेशों में उनका सूक्ष्म निरूपण किया है। किसी भी युग के विश्व के महान् चिन्तकों में मुनि याज्ञवल्क्य को सहज ही उच्च आसन प्राप्त है।[2]

सारांश

बृहदारण्यक उपनिषद् के सार-विषय इस प्रकार हैं -

  • अश्वमेध यज्ञ का महत्व तथा जगत् की उत्पत्ति
  • प्राण (जीवन) का अर्थ
  • प्राण शक्ति का महत्व
  • सद्गुण की विषय-वस्तु
  • परब्रह्म की महानता
  • सत्योपलब्धि के लिए दिशा तथा परब्रह्म

उपनिषद् का प्रारंभ अश्वमेध यज्ञ के वर्णन से होता है तथा अश्व की उपमा वैश्विक सत्ता के रूप में दी गयी है। जिसके प्रत्येक अंग को वैश्विक सत्ता से सम्बन्धित करके ध्यान करना चाहिये। अश्व से प्रारंभ करके यह जगत् की सृष्टि प्रक्रिया का विवरण देती है। आरम्भ में कुछ भी नहीं था। शून्य से सृष्टि का प्रारंभ हुआ। प्राण, आत्मा है तथा सबसे बलशाली है।

उद्धरण

  1. बृहदारण्यकोपनिषद्
  2. आचार्य केशवलाल वि० शास्त्री, उपनिषत्सञ्चयनम् , सन् २०१५, चौखम्बा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली (पृ० २६५)।