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| ==ब्रह्मसूत्र के रचयिता== | | ==ब्रह्मसूत्र के रचयिता== |
| + | भगवान बादरायण जी ने ज्ञानकाण्डात्मक उपनिषद् भाग के अर्थ-विस्तार के लिए तथा वेद विरुद्ध-मतों के निराकरण के लिए सूत्रात्मक ग्रंथ रचा। इस ग्रंथ के चार अध्याय होते हैं – |
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| + | '''बादरायण''' |
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| ==प्रस्थानत्रयी== | | ==प्रस्थानत्रयी== |
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| ==ब्रह्मसूत्र का महत्व== | | ==ब्रह्मसूत्र का महत्व== |
| + | पुराणशिरोमणि श्रीमद्भागवत ब्रह्मसूत्र-प्रतिपादित अर्थका ही समर्थक है, जैसी कि सूक्ति है - <blockquote>अर्थो यं ब्रह्मसूत्राणाम्।</blockquote>कृष्णद्वैपायन वेदव्यासजी ने एक सूत्रमयी रचना की। उसी का नाम ब्रह्मसूत्र है। वेदान्तसूत्र और भिक्षुसूत्र भी इसके ही पर्याय हैं। गीता की रचनासे पूर्व ही इन सूत्रोंका निर्माण हो चुका था - |
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| + | ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितै। (गीता १३। ४) |
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| + | इन सूत्रोंको उपनिषदोंका सार कहना युक्तियुक्त है। विभिन्न आचार्योंने अपने-अपने मतके अनुसार ब्रह्मसूत्र पर भाष्य किये हैं जो सभी अपने-अपने दृष्टिकोणोंसे उपादेय हैं। |
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| + | महर्षि वेदव्यासरचित ब्रह्मसूत्र बडा ही महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें थोडे-से शब्दोंमें परब्रह्मके स्वरूपका सांगोपांग निरूपण किया गया है, इसीलिये इसका नाम 'ब्रह्मसूत्र' है। यह ग्रन्थ वेदके चरम सिद्धान्तका निदर्शन कराता है, अतः इसे 'वेदान्त-दर्शन' भी कहते हैं। ब्रह्मसूत्र को वेदान्त दर्शन या 'उत्तर मीमांसा' भी कहते हैं। [[Prasthantrayi (प्रस्थानत्रयी)|प्रस्थानत्रयी]] में ब्रह्मसूत्रका प्रधान स्थान है।<ref>हरिकृष्णदास गोयन्दका, [https://archive.org/details/gita-press-vedant-darshan-brahmasutra-sanskrit-hindi/page/n3/mode/1up वेदान्त-दर्शन], सन् २००९, गीताप्रेस गोरखपुर, भूमिका (पृ० ५)।</ref> |
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| ==वेदान्तदर्शन== | | ==वेदान्तदर्शन== |
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| 3. यो वेदादौ स्वरः प्रोक्तो वेदान्ते च प्रतिष्ठितः (महानारायण १२, १७)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A4%E0%A5%8D महानारायणोपनिषद्] , अनुवाक - १२ , मन्त्र - १७।</ref> | | 3. यो वेदादौ स्वरः प्रोक्तो वेदान्ते च प्रतिष्ठितः (महानारायण १२, १७)<ref>[https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3%E0%A5%8B%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A4%A4%E0%A5%8D महानारायणोपनिषद्] , अनुवाक - १२ , मन्त्र - १७।</ref> |
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− | उपनिषदों के वैदिक रहस्यमय सिद्धांतों के प्रतिपादक होने के कारण उनके लिए वेदान्त शब्द का प्रयोग किया गया है। ब्रह्मसूत्र ही उपनिषद् मूलक होने के कारण वेदान्तसूत्र नाम से प्रसिद्ध हुआ। | + | उपनिषदों के वैदिक रहस्यमय सिद्धांतों के प्रतिपादक होने के कारण उनके लिए वेदान्त शब्द का प्रयोग किया गया है। ब्रह्मसूत्र ही उपनिषद् मूलक होने के कारण वेदान्तसूत्र नाम से प्रसिद्ध हुआ। अद्वैतवेदान्त दर्शन के प्रवर्तकों में गौडपाद और शंकरचार्य प्रमुख हैं। अद्वैत दर्शन का विशाल साहित्य मौलिक दृष्टि से अत्यंत श्लाघनीय है। अद्वैत वेदान्त के प्रमुख प्रतिपाद्य विषयों में ब्रह्म , माया , जीव , अध्यास , मुक्ति आदि प्रमुख है। |
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− | अद्वैतवेदान्त दर्शन के प्रवर्तकों में गौडपाद और शंकरचार्य प्रमुख हैं। अद्वैत दर्शन का विशाल साहित्य मौलिक दृष्टि से अत्यंत श्लाघनीय है। अद्वैत वेदान्त के प्रमुख प्रतिपाद्य विषयों में ब्रह्म , माया , जीव , अध्यास , मुक्ति आदि प्रमुख है।
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| ==सारांश== | | ==सारांश== |