Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "हमेशा" to "सदा"
Line 47: Line 47:  
# यान्यस्माकं सुचरितानि। तानि त्वयोपास्यानि -  जिन गुरुजनों का आचरण शुभ है अर्थात् सर्वहितकारी है उन्ही की तुझे उपासना करनी चाहिये। दूसरे प्रकार के, चराचर के हित में ना होनेवाले कर्म करनेवालों की उपासना ना करें। अर्थात् मेरा आचरण भी यदि तुझे चराचर के हित की दृष्टि से अयोग्य लगे, तो मेरा भी अनुकरण ना करना।  
 
# यान्यस्माकं सुचरितानि। तानि त्वयोपास्यानि -  जिन गुरुजनों का आचरण शुभ है अर्थात् सर्वहितकारी है उन्ही की तुझे उपासना करनी चाहिये। दूसरे प्रकार के, चराचर के हित में ना होनेवाले कर्म करनेवालों की उपासना ना करें। अर्थात् मेरा आचरण भी यदि तुझे चराचर के हित की दृष्टि से अयोग्य लगे, तो मेरा भी अनुकरण ना करना।  
 
# नो इतराणि। ये के चास्मच्छ्रेयांसो ब्राह्मणाः। तेषां त्वयासनेन प्रश्वसितव्यम्।  - धर्माचरणी एैसे जो हमारे आचार्य है, उनका ही तुम अनुकरण करो। अन्यों का नही।  
 
# नो इतराणि। ये के चास्मच्छ्रेयांसो ब्राह्मणाः। तेषां त्वयासनेन प्रश्वसितव्यम्।  - धर्माचरणी एैसे जो हमारे आचार्य है, उनका ही तुम अनुकरण करो। अन्यों का नही।  
# श्रद्धया देयम्। अश्रद्धयाऽदेयम्। श्रिया देयम्। ह्रिया देयम्। भ्रिया देयम्। संविदा देयम् - यथासंभव दान देते रहो। श्रद्धा से दो। अश्रद्धा से ना दो। अपने एैश्वर्य के अनुसार दान दो। मै इससे अधिक दान नही दे सकता ऐसी लज्जा के साथ दान दो। मै दान लेनेवाले पर कोई उपकार नही कर रहा। उलटे दान लेनेवाला मुझ से दान लेकर मुझे उपकृत कर रहा है इस भाव से दान दो। और मै दान से उस का पूरा क्लेष दूर करने में असमर्थ हूं ऐसी लज्जा की भावना मन मे रखकर दान दो। इतना कम दान दिया इसलिये लोग मुझे गालियाí देंगे इस डर से अधिक देने का प्रयास करो। लेकिन दान दो। मित्रता के नाते भी हमेशा दान देते रहो।  
+
# श्रद्धया देयम्। अश्रद्धयाऽदेयम्। श्रिया देयम्। ह्रिया देयम्। भ्रिया देयम्। संविदा देयम् - यथासंभव दान देते रहो। श्रद्धा से दो। अश्रद्धा से ना दो। अपने एैश्वर्य के अनुसार दान दो। मै इससे अधिक दान नही दे सकता ऐसी लज्जा के साथ दान दो। मै दान लेनेवाले पर कोई उपकार नही कर रहा। उलटे दान लेनेवाला मुझ से दान लेकर मुझे उपकृत कर रहा है इस भाव से दान दो। और मै दान से उस का पूरा क्लेष दूर करने में असमर्थ हूं ऐसी लज्जा की भावना मन मे रखकर दान दो। इतना कम दान दिया इसलिये लोग मुझे गालियाí देंगे इस डर से अधिक देने का प्रयास करो। लेकिन दान दो। मित्रता के नाते भी सदा दान देते रहो।  
 
# जब अपने कर्म की करणीयता या अकरणीयता के विषय में तुझे संदेह निर्माण हो जाये तब समाज मे जो विचारशील, अपने कर्म में मग्न, स्वेच्छा से कर्मपरायण, सरल बुद्धिवाला धर्माचरणी ब्रााह्मण जैसा, उस परिस्थिति में व्यवहार करेगा वैसा ही तू भी व्यवहार कर। इसी प्रकार से जिनपर संशययुक्त दोषों के आरोप है उनके साथ भी उपरोक्त श्रेष्ठ ब्रााह्मण जैसा व्यवहार करते हों, वैसा ही उनसे तू भी व्यवहार कर।  
 
# जब अपने कर्म की करणीयता या अकरणीयता के विषय में तुझे संदेह निर्माण हो जाये तब समाज मे जो विचारशील, अपने कर्म में मग्न, स्वेच्छा से कर्मपरायण, सरल बुद्धिवाला धर्माचरणी ब्रााह्मण जैसा, उस परिस्थिति में व्यवहार करेगा वैसा ही तू भी व्यवहार कर। इसी प्रकार से जिनपर संशययुक्त दोषों के आरोप है उनके साथ भी उपरोक्त श्रेष्ठ ब्रााह्मण जैसा व्यवहार करते हों, वैसा ही उनसे तू भी व्यवहार कर।  
 
अंत में गुरू शिष्य से कहते है - यह मेरा आदेश है। यही वेदों और उपनिषदों का कहना है। यही परमात्मा की इच्छा और आज्ञा है। तुझे एैसा ही आचरण करना चाहिये।  
 
अंत में गुरू शिष्य से कहते है - यह मेरा आदेश है। यही वेदों और उपनिषदों का कहना है। यही परमात्मा की इच्छा और आज्ञा है। तुझे एैसा ही आचरण करना चाहिये।  

Navigation menu