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सुधार जारि
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==परिचय==
 
==परिचय==
वेदांगों में ज्योतिष शास्त्र को वेद पुरुष का नेत्र कहा गया। क्योंकि यह काल विधायक शास्त्र है। वेदों का मुख्य कार्य यज्ञ कर्म की प्रवृत्ति है परन्तु ये यज्ञ काल के अधीन हैं, तथा काल का ज्ञान ज्योतिष शास्त्र के द्वारा होता है। अतः ज्योतिषशास्त्र को काल शास्त्र भी कहा गया है। वेदों से लेकर लौकिक रूप में ज्योतिष शास्त्र के आचार्य लगध से लेकर आजतक यह परम्परा अनवरत रूप से प्रचलित है।  
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वेदांगों में ज्योतिष शास्त्र को वेद पुरुष का नेत्र कहा गया। क्योंकि यह काल विधायक शास्त्र है। वेदों का मुख्य कार्य यज्ञ कर्म की प्रवृत्ति है परन्तु ये यज्ञ काल के अधीन हैं, तथा काल का ज्ञान ज्योतिष शास्त्र के द्वारा होता है। अतः ज्योतिषशास्त्र को काल शास्त्र भी कहा गया है। वेदों से लेकर लौकिक रूप में ज्योतिष शास्त्र के आचार्य लगध से लेकर आजतक यह परम्परा अनवरत रूप से प्रचलित है। आचार्य लगध के उपरांत ज्योतिष की परम्परा का एक लम्बी अवधि का कालखण्ड रिक्त मिलता है। इनके बाद आचार्य आर्यभट्ट का नाम हमें प्राप्त होता ह़ै।  
 
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आचार्य लगध के उपरांत ज्योतिष की परम्परा का एक लम्बी अवधि का कालखण्ड रिक्त मिलता है। इनके बाद आचार्य आर्यभट्ट का नाम हमें प्राप्त होता ह़ै।
      
*आर्यभट्ट को आधुनिक विज्ञान के प्रतिपादक आचार्य के रूप में स्मरण किया जाता
 
*आर्यभट्ट को आधुनिक विज्ञान के प्रतिपादक आचार्य के रूप में स्मरण किया जाता
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*इनके सूत्रों पर अनेक शोध कार्य संपादित किए गए।
 
*इनके सूत्रों पर अनेक शोध कार्य संपादित किए गए।
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सामान्यतया ज्योतिष शास्त्र में दो आर्यभट्ट प्रसिद्ध हैं। प्रथम आर्यभट्ट जो कि 398 शक में उत्पन्न हुए उसके बाद द्वितीय आर्यभट्ट जिन्होंने महासिद्धान्त नामक ग्रन्थ को लिखा। इस प्रस्तुत अध्याय में हम आर्यभट्ट प्रथम अर्थात आर्यभट्टीयम ग्रन्थ के कर्ता आचार्य आर्यभट्ट के सन्दर्भ में ज्ञान प्राप्त करेंगे।
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सामान्यतया ज्योतिष शास्त्र में दो आर्यभट्ट प्रसिद्ध हैं। प्रथम आर्यभट्ट जो कि 398 शक में उत्पन्न हुए उसके बाद द्वितीय आर्यभट्ट जिन्होंने महासिद्धान्त नामक ग्रन्थ को लिखा। इस प्रस्तुत अध्याय में हम आर्यभट्ट प्रथम अर्थात् आर्यभटीयम ग्रन्थ के कर्ता आचार्य आर्यभट्ट के सन्दर्भ में जानेंगे।
    
==आर्यभट्ट की जीवनी==
 
==आर्यभट्ट की जीवनी==
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==आर्यभट्टीय सिद्धान्त==
 
==आर्यभट्टीय सिद्धान्त==
आचार्य आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीयम नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ ४ पादों में विभक्त है। गीतिका पाद, गणित पाद, कालक्रिया पाद और गोलपाद। आर्यभट्ट स्वयं ही इस बात का वर्णन करते हैं - <blockquote>प्रणिपत्यैकमनेकं कं सत्यां देवतां परं ब्रह्म। आर्यभट्ट स्त्रीणि गदति गणितं कालक्रियां गोलम्॥</blockquote>इस श्लोक में आचार्य आर्यभट्ट परम ब्रह्म को नमस्कार करके कहते हैं कि मैं आर्यभट्ट गणित पाद, कालक्रिया पाद तथा गोल पाद सहित इस ग्रन्थ की रचना करता हूं। इस श्लोक में आचार्य आर्यभट्ट ने तीन पादों का ही नाम स्पष्ट किया है परन्तु प्राप्त ग्रन्थ में चार पाद प्राप्त होते हैं। जिसमें उपरोक्त ३ पादों के सहित दसगीतिका पाद का उल्लेख है। कुछ आचार्यों के मत हैं कि इन्हीं अध्यायों के १३ आर्याओं को लेकर के आचार्य आर्यभट्ट के बाद दसगीतिका पाद की रचना की गई होगी। प्राप्त आर्यभट्टीयम ग्रन्थ के आधार पर इनके पादों में वर्ण्य विषयों का विवेचन इस प्रकार है -  
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आचार्य आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीयम नामक ग्रन्थ की रचना की। यह ग्रन्थ ४ पादों में विभक्त है। गीतिका पाद, गणित पाद, कालक्रिया पाद और गोलपाद। आर्यभट्ट स्वयं ही इस बात का वर्णन करते हैं - <blockquote>प्रणिपत्यैकमनेकं कं सत्यां देवतां परं ब्रह्म। आर्यभट्ट स्त्रीणि गदति गणितं कालक्रियां गोलम्॥</blockquote>इस श्लोक में आचार्य आर्यभट्ट परम ब्रह्म को नमस्कार करके कहते हैं कि मैं आर्यभट्ट गणित पाद, कालक्रिया पाद तथा गोल पाद सहित इस ग्रन्थ की रचना करता हूं। इस श्लोक में आचार्य आर्यभट्ट ने तीन पादों का ही नाम स्पष्ट किया है परन्तु प्राप्त ग्रन्थ में चार पाद प्राप्त होते हैं। जिसमें उपरोक्त ३ पादों के सहित दसगीतिका पाद का उल्लेख है। कुछ आचार्यों के मत हैं कि इन्हीं अध्यायों के १३ आर्याओं को लेकर के आचार्य आर्यभट्ट के बाद दसगीतिका पाद की रचना की गई होगी। प्राप्त आर्यभट्टीयम ग्रन्थ के आधार पर इनके पादों में वर्ण्य विषयों का विवेचन इस प्रकार है -<ref>शिवनाथ झारखण्डी , [https://archive.org/details/BharatiyaJyotishShivnathJharkhandi/mode/1up भारतीय ज्योतिष] , सन् 1975 , राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन हिन्दी भवन , लखनऊ (पृ० 287)। </ref>
    
#'''गीतिका पाद -'''
 
#'''गीतिका पाद -'''
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