Difference between revisions of "Algebra (बीजगणित)"

From Dharmawiki
Jump to navigation Jump to search
(Adding Basic Content)
 
(Adding Citation)
Line 1: Line 1:
<blockquote>उत्पादकं यत्प्रवदन्ति बुद्धे </blockquote><blockquote>रधिष्ठितं सत्पुरूषेण सांख्या:।</blockquote><blockquote>व्यक्तस्य कृत्स्नस्य तदेकबीज - </blockquote><blockquote>मव्यक्तमीशं गणितं च वन्दे।। (बीजगणितम् प्र. श्लो.)</blockquote>यहाँ आचार्य सांख्यतत्वज्ञान से समझाने का उत्तम प्रयास कर रहे है। सांख्यशास्त्र में जो बुद्धि  अर्थात महत्तत्व (जगत्) उसका उत्पादक अथवा अभिव्यंजक  प्रकृति एवं पुरुष की संनिधि से कहा जाता है। बिल्कुल वैसे ही व्यक्तगणित (अंकगणित) का उत्पादक  बीजगणित अथवा बीजक्रिया है। इस बीजक्रिया के  बारे में आचार्य कहते हैं,<blockquote>पूर्व प्रोक्तं व्यक्तमव्यक्तबीजं</blockquote><blockquote>प्रायः प्रश्ना नो विनाऽ न्यक्तयुक्त्या ।</blockquote><blockquote>ज्ञातुं शक्या मन्दधीभिर्नितान्तं</blockquote><blockquote>यस्मात्वस्माद्वच्मि बीजाक्रियां च।। (बीजगणितम्)</blockquote>व्यक्तगणित को तत्वतः समझना है, तो अव्यक्त युक्तिद्वारा ही समझा जा सकता है । अन्यथा,  हमें यह गणित-शास्त्र केवल उपदेश लगने, लगेगा । इस  श्लोक से यह प्रतीत होता है कि, किसी भी गणितीय विधान को अव्यक्त युक्तिद्वारा सिद्ध करने को पुष्टि भारतीय पूर्वाचार्यों को विवक्षित थी।
+
<blockquote>उत्पादकं यत्प्रवदन्ति बुद्धेरधिष्ठितं सत्पुरूषेण सांख्या:। </blockquote><blockquote>व्यक्तस्य कृत्स्नस्य तदेकबीजमव्यक्तमीशं गणितं च वन्दे॥१॥<ref>Sudhakara Dvivedi (1927), [https://ia801602.us.archive.org/29/items/in.ernet.dli.2015.406258/2015.406258.Bijaganita-elements.pdf Bijaganita].</ref> </blockquote>यहाँ आचार्य सांख्यतत्वज्ञान से समझाने का उत्तम प्रयास कर रहे है। सांख्यशास्त्र में जो बुद्धि  अर्थात महत्तत्व (जगत्) उसका उत्पादक अथवा अभिव्यंजक  प्रकृति एवं पुरुष की संनिधि से कहा जाता है। बिल्कुल वैसे ही व्यक्तगणित (अंकगणित) का उत्पादक  बीजगणित अथवा बीजक्रिया है। इस बीजक्रिया के  बारे में आचार्य कहते हैं,<blockquote>पूर्व प्रोक्तं व्यक्तमव्यक्तबीजं</blockquote><blockquote>प्रायः प्रश्ना नो विनाऽ न्यक्तयुक्त्या ।</blockquote><blockquote>ज्ञातुं शक्या मन्दधीभिर्नितान्तं</blockquote><blockquote>यस्मात्वस्माद्वच्मि बीजाक्रियां च।। (बीजगणितम्)</blockquote>व्यक्तगणित को तत्वतः समझना है, तो अव्यक्त युक्तिद्वारा ही समझा जा सकता है । अन्यथा,  हमें यह गणित-शास्त्र केवल उपदेश लगने, लगेगा । इस  श्लोक से यह प्रतीत होता है कि, किसी भी गणितीय विधान को अव्यक्त युक्तिद्वारा सिद्ध करने को पुष्टि भारतीय पूर्वाचार्यों को विवक्षित थी।
  
 
वैदेशिकों ने भूी गणितशास्त्र में प्रगल्भतापूर्वक महत् योगदान दिया है । भारतीय मूलधारा, विचारों को आधारभूत बनाकर गणित की अच्छी नीवं रखी है।  वर्तमान मे हमें प्राचीन भारतीय ग्रन्थों का अध्ययन करते हुए विदेश मे प्रचलीत आधुनिक गणित का  भी परिश्रमपूर्वक अध्ययन करना होगा । क्योंकि हमें भारतीय गणित-शास्त्र को पुनर्स्थापित करने हेतु उन सभी ग्रन्थों का अध्ययन अत्यन्त सहायक होगा । हमारा अन्तिम ध्येय यह होना चाहिए, कि भारतीय गणित-शास्त्र की वृद्धि मे हमारा योगदान रहें । इसलिए इस उपक्रम द्वारा हम सब जुड़ रहे हैं।
 
वैदेशिकों ने भूी गणितशास्त्र में प्रगल्भतापूर्वक महत् योगदान दिया है । भारतीय मूलधारा, विचारों को आधारभूत बनाकर गणित की अच्छी नीवं रखी है।  वर्तमान मे हमें प्राचीन भारतीय ग्रन्थों का अध्ययन करते हुए विदेश मे प्रचलीत आधुनिक गणित का  भी परिश्रमपूर्वक अध्ययन करना होगा । क्योंकि हमें भारतीय गणित-शास्त्र को पुनर्स्थापित करने हेतु उन सभी ग्रन्थों का अध्ययन अत्यन्त सहायक होगा । हमारा अन्तिम ध्येय यह होना चाहिए, कि भारतीय गणित-शास्त्र की वृद्धि मे हमारा योगदान रहें । इसलिए इस उपक्रम द्वारा हम सब जुड़ रहे हैं।
 +
 +
== Reference ==

Revision as of 15:25, 26 February 2019

उत्पादकं यत्प्रवदन्ति बुद्धेरधिष्ठितं सत्पुरूषेण सांख्या:।

व्यक्तस्य कृत्स्नस्य तदेकबीजमव्यक्तमीशं गणितं च वन्दे॥१॥[1]

यहाँ आचार्य सांख्यतत्वज्ञान से समझाने का उत्तम प्रयास कर रहे है। सांख्यशास्त्र में जो बुद्धि अर्थात महत्तत्व (जगत्) उसका उत्पादक अथवा अभिव्यंजक प्रकृति एवं पुरुष की संनिधि से कहा जाता है। बिल्कुल वैसे ही व्यक्तगणित (अंकगणित) का उत्पादक बीजगणित अथवा बीजक्रिया है। इस बीजक्रिया के बारे में आचार्य कहते हैं,

पूर्व प्रोक्तं व्यक्तमव्यक्तबीजं

प्रायः प्रश्ना नो विनाऽ न्यक्तयुक्त्या ।

ज्ञातुं शक्या मन्दधीभिर्नितान्तं

यस्मात्वस्माद्वच्मि बीजाक्रियां च।। (बीजगणितम्)

व्यक्तगणित को तत्वतः समझना है, तो अव्यक्त युक्तिद्वारा ही समझा जा सकता है । अन्यथा, हमें यह गणित-शास्त्र केवल उपदेश लगने, लगेगा । इस श्लोक से यह प्रतीत होता है कि, किसी भी गणितीय विधान को अव्यक्त युक्तिद्वारा सिद्ध करने को पुष्टि भारतीय पूर्वाचार्यों को विवक्षित थी।

वैदेशिकों ने भूी गणितशास्त्र में प्रगल्भतापूर्वक महत् योगदान दिया है । भारतीय मूलधारा, विचारों को आधारभूत बनाकर गणित की अच्छी नीवं रखी है। वर्तमान मे हमें प्राचीन भारतीय ग्रन्थों का अध्ययन करते हुए विदेश मे प्रचलीत आधुनिक गणित का भी परिश्रमपूर्वक अध्ययन करना होगा । क्योंकि हमें भारतीय गणित-शास्त्र को पुनर्स्थापित करने हेतु उन सभी ग्रन्थों का अध्ययन अत्यन्त सहायक होगा । हमारा अन्तिम ध्येय यह होना चाहिए, कि भारतीय गणित-शास्त्र की वृद्धि मे हमारा योगदान रहें । इसलिए इस उपक्रम द्वारा हम सब जुड़ रहे हैं।

Reference

  1. Sudhakara Dvivedi (1927), Bijaganita.