स्वामी श्रद्धानन्द: - महापुरुषकीर्तन श्रंखला

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धर्मवीर महात्मा श्रद्धानन्दः[1] (१८५७-१९२६ ई०)

येषां जीवितमेव सर्वमभवल्लोकोपकारेऽर्पितं, दातुं वैदिकशिक्षणं गुरुकुलं, संस्थापितं यैः शुभम्‌।

अस्पृश्यत्वनिवारणार्थमनिशं, यत्नः कृतो यैः सदा, श्रद्धानन्दमहोदयान्‌ गुरुवरान्‌ वन्देऽति भक्त्या युतः ।।

जिन का समस्त जीवन लोकोपकार के लिए अर्पित था, वैदिक शिक्षा देने के लिए जिन्होंने गुरुकुल स्थापित किया, अस्पृश्यता दूर करने का जिन्होंने दिन- रात प्रबल प्रयत्न किया, ऐसे गुरुवर्य स्वामी श्रद्धानन्द जी को अतिभक्ति से मैं नमस्कार करता हूँ।

येषां निर्भयता हि लोकविदिताऽऽसीदद्वितीया ध्रुवं, सेनायाः पुरतोऽप्यनावृतमुरो निर्भीकसंन्यासिभिः।

शुद्धान्दोलनचालकान्‌ धृतिधरान्‌, तानत्युदाराशयान्‌, श्रद्धानन्दमहोदयान्‌ गुरुवरान्‌, वन्देऽति भक्त्या युतः ।।

जिन को निर्भयता लोकविदित थी, जिन निर्भीक संन्यासी ने गुर्खों की सेना के सामने नंगी छाती तान ली, अति उदार विचार वाले, शुद्धि आन्दोलन के प्रवर्तक, धैर्य-धारी महात्मा श्रद्धानन्द जी को अति भक्ति से मैं नमस्कार करता हूँ।

ऐक्यं स्थापयितुं जनेषु सततं हृद्योगजं शाश्वतं, यत्नो यैर्विहितो दिवानिशमिह, प्रीत्यन्वितेनात्मना।

धर्मार्थं बलिदानतोऽमरपदं, ये धर्मवीरा गताः, श्रद्धानन्दमहोदयान्‌ गुरुवरान्‌ वन्देऽतिभक्त्या युतः ।।

लोगोंं में हृदय के मेल से उत्पन्न स्थिर एकता स्थापित करने के 'लिए, प्रीति भरे अन्तरात्मा से जिन्होंने रात-दिन महान्‌ प्रयत्न किया, जिस धर्मवीर ने धर्म पर बलिदान के कारण अमर पद पाया, ऐसे गुरुवर स्वामी श्रद्धानन्द जी महाराज को अति भक्ति से मैं नमस्कार करता हूँ।

श्रद्धाया जगदीश्वरे यतिवराः, ये मूर्तिमन्तोऽभवन्‌, सत्यस्याविरतं व्रतं हितकर, यैः सार्वभौमं धृतम्‌।

भक्तिं ये दधिरे ध्रुवा श्रुवतमे, ब्रह्मण्यनन्तेऽव्यये, श्रद्धानन्दमहोदयान्‌ गुरुवरान्‌, वन्देऽतिभक्त्या युतः ।।

जो यतिवर भगवान्‌ में अत्यन्त श्रद्धालु थे, जिन्होंने सत्य पर चलने का सार्वभौम त्रत धारण किया हुआ था। अनन्त, अविनाशी, निर्विकार ब्रह्म में जो अगाध भक्ति रखते थे, ऐसे गुरुवर स्वामी श्रद्धानन्द जी को मैं भक्ति से नमस्कार करता हूँ।

विशुद्धा धर्मज्ञा, सकलमलहीना बलभृतः, अहिंसायाः पुण्यं, व्रतमिह धृतं यैर्यतिवरैः।

श्वपाके सह्दिप्रे, शुनि करिणि नित्यं समदृशो, गुरून्‌ श्रद्धानन्दान्‌ सविनयमहं नौमि सततम्‌ ।।

जो विशुद्ध धर्मज्ञानी थे, बलवान्‌ निर्मल थे, जिस यतिवर ने अहिंसा के पुण्यव्रत को धारण किया था, जो चाण्डाल तथा ब्राह्मण, कुत्ते तथा हाथी सब में सम दृष्टि रखते थे, ऐसे गुरु स्वामी श्रद्धानन्द जी को लगातार मैं विनय पूर्वक नमस्कार करता हूँ।

सुताः सर्वे तुल्याः, जगति हि यतस्ते भगवतः, ततः प्रीत्या प्रेक्ष्या भुवि खलु समस्ता असुभृतः।

इतीमं सद्बोधं, ददत इह नित्यं हितकरं, गुरून्‌ श्रद्धानन्दान्‌ सविनयमहं नौमि सततम्‌ ।।

भगवान्‌ की सृष्टि के सब लोग भगवान्‌ के पुत्र होने के कारण बराबर हैं, अतः समस्त प्राणधारियों के साथ प्रीतिपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। इस प्रकार जो सदा लोगोंं को उत्तम हितकारी उपदेश देते थे, ऐसे गुरु श्रद्धानन्द जी को मैं विनयपूर्वक सदा नमस्कार करता हूँ।

भक्तश्रेष्ठः, परजनहिते, सर्वदा दत्तचित्तः, श्रद्धां शुद्धां विमलहृदये , मातरं मन्यमानः।

शिक्षां हृद्यां, शुभगुरुकुले, सन्ददानो वटुभ्यः, श्रद्धानन्दो गुरुजनवरः, सर्वदा वन्दनीयः ।।

जो भकत-श्रेष्ठ और परोपकारी थे, श्रद्धा को अपने हृदय में माता के समान मानते थे; हदयग्राहिणी शिक्षा को जो उत्तम गुरुकुल में विद्यार्थियों को दिया करते थे, ऐसे गुरुवर स्वामी श्रद्धानन्द जी सर्वदा पूजनीय हैं।

नि्भीको यः सरलहृदय:, सत्यवाक्‌ स्पष्टवक्ता, देवे भविति, परमविमलाम्‌ आदधानोऽविकम्पाम्‌।

शुद्धिद्वारा, सकलमनुजान्‌ दीक्षमाणः सुधमें, श्रद्धानन्दो गुरुजनवरोऽसौ सदा वन्दनीयः ।।

जो निर्भय सरल हृदय सत्यवादी और स्पष्टवक्ता थे, जो परमात्मा में निश्चल भक्ति रखते थे, शुद्धि द्वारा जो सब मनुष्यों को धर्म की दीक्षा देते थे, ऐसे गुरुवर स्वामी श्रद्धानन्द जी सर्वदा पूजनीय हैं।

दत्वा तन्वो, मुदितमनसा, यो बलिं धर्मवेदौ, प्राप्तो लोके, ह्यमरपदवीं,त्यागशीलो महात्मा।

आसीत्सर्व, विमलचरितं, यस्य सद्यज्ञरूपं, श्रद्धानन्दो गुरुजनवरोऽसौ सदा वन्दनीयः।।

जिन त्यागी महात्मा ने प्रसन्न मन से धर्मवेदी पर बलिदान दिया और अमर धर्मवीर की पदवी पाई, जिनका सारा पवित्र चरित्र यज्ञरूप था, ऐसे गुरुवर स्वामी श्रद्धानन्द जी पूजनीय हैं।

अन्यायं यः सकलमहसा, रोद्द्धुकामः प्रयेते, सत्याहिंसाबलयुत इहान्यायिभियाँद्धकामः।

काराकष्टं वयसि चरमे, यः समोदं विषेहे, शरद्धानन्दो गुरुजनवरोऽसौ सदा वन्दनीयः।।

जिन्होंने अन्याय को प्रबल तेज से रोकने का प्रयत्न किया, अहिंसा बल से अन्यायियों से युद्ध किया, जिन्होंने वृद्धावस्था में भी कारागृह के कष्टों को प्रसन्नता पूर्वक सहन किया, ऐसे गुरुवर स्वामी श्रद्धानन्द जी सदा पूजनीय हैं।

येते नित्यं, दलितपतितान्‌, मानवानुदिदधीर्षुः, पूतान्‌ सर्वान्‌ श्रुतिवचनतः, पावनः संचिकीर्षुः।

अस्पृश्यत्व, समसममनाः, दूरयन्‌ जातिभेद, शरद्धानन्दो गुरुजनवरोऽसौ सदा वन्दनीयः।।

जिन्होंने दलितों और पतितों को उठाने का सदा प्रयत किया, सब को वेद शास्त्रों के वचन सुना कर पवित्र करने का संकल्प किया, सब में समानता का भाव मन में धारण कर के अस्पृश्यता और जाति भेद को दूर किया, ऐसे गुरुवर स्वामी श्रद्धानन्द जी सदा वन्दनीय हैं।

देवेन्द्रं तं, भुवनपितरं, प्रार्थयामो महेश, दद्याच्छक्तिं, यतिपथि सदा, निर्भयत्वेन गन्तुम्‌।

श्रद्धां शुद्धां, सकलमनुजानां मनस्स्वत्र दध्याद्‌, भूयाद्‌ येनाखिलजनगणादर्शभूतः समाजः।।

हम उस देवेन्द्र जगतपति परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि वह हमें शक्ति दे जिससे उस यति के बताये हुए मार्ग पर निर्भयता से चल सकें। वह कृपालु सब मनुष्यों में शुद्ध श्रद्धा को धारण कराए, जिस से हमारा समाज सब मनुष्यों के लिए आदर्शपूर्ण हो।

References

  1. महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078