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स्वामी विवेकानन्दः
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(1863-1902 ई०)
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स्वामी विवेकानन्दः<ref>महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078</ref> (1863-1902 ई०)<blockquote>अनेके तच्छिष्याः, प्रथितयशसः सर्वभुवने, विवेकानन्दोऽयं, प्रथिततम आसीत्‌ सुपठितः।</blockquote><blockquote>विदेशे गत्वा यो, दिशिदिशि च वेदान्तमदिशत्‌, स लेभे सम्मानं, निखिलभुवि वाग्मी सुविदितः॥</blockquote>श्री रामकृष्ण के सारे संसार में प्रसिद्ध अनेक शिष्य थे, जिन में से अधिक प्रख्यात और सुशिक्षित स्वामी विवेकानन्द हुए, जिन्होंने विदेश जाकर सब दिशाओं में वेदान्त का उपदेश दिया। अत्यन्त प्रभावशाली और प्रसिद्ध होकर उन्होंने सारे संसार में सम्मान प्राप्त किया।<blockquote>गुरोरनाम्ना सङ्घं, दिशिदिशि समस्थापयदसौ, विवेकानन्दो वै, जनधनचयेऽतीव निपुणः।</blockquote><blockquote>शुभं कारंकारं, विधनजनसाहायकरणं, बभूवुस्तच्छिष्याः प्रथितयशसः कर्मपटवः॥</blockquote>उन्होंने अपने गुरु श्री रामकृष्ण जी के नाम पर प्रत्येक दिशा में संघ (श्री रामकृष्ण मिशन) की स्थापना की। स्वामी विवेकानन्द लोगोंं और धन के इकट्ठा करने में अत्यन्त निपुण थे। निर्धन लोगोंं की सहायता के शुभ कार्य को करके उनके कर्मनिपुण शिष्य अत्यन्त यशस्वी बन गये।
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अनेके तच्छिष्याः, प्रथितयशसः सर्वभुवने,
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विवेकानन्दोऽयं, प्रथिततम आसीत्‌ सुपठितः।
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[[Category: Mahapurush (महापुरुष कीर्तनश्रंखला)]]
 
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विदेशे गत्वा यो, दिशिदिशि च वेदान्तमदिशत्‌,
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स लेभे सम्मानं, निखिलभुवि वाग्मी सुविदितः।।53॥
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श्री रामकृष्ण के सारे संसार में प्रसिद्ध अनेक शिष्य थे जिन में से
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अधिक प्रख्यात और सुशिक्षित स्वामी विवेकानन्द हुए, जिन्होंने विदेश
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जाकर सब दिशाओं में वेदान्त का उपदेश दिया। अत्यन्त प्रभावशाली और
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प्रसिद्ध होकर उन्होंने सारे संसार में सम्मान प्राप्त किया।
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गुरोरनाम्ना सङ्घं, दिशिदिशि समस्थापयदसौ,
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विवेकानन्दो वै, जनधनचयेऽतीव निपुणः।
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शुभं कारंकारं, विधनजनसाहायकरणं,
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बभूवुस्तच्छिष्याः प्रथितयशसः कर्मपटवः।।54।।
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उन्होंने अपने गुरु श्री रामकृष्ण जी के नाम पर प्रत्येक दिशा में
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संघ (श्री रामकृष्ण मिशन) की स्थापना की। स्वामी विवेकानन्द लोगों
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और धन के इकट्ठा करने में अत्यन्त निपुण थे। निर्धन लोगों की
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सहायता के शुभ कार्य को करके उनके कर्मनिपुण शिष्य अत्यन्त यशस्वी
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बन गये।
 

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