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इस सुभाषित के पूर्वार्ध की चर्चा करने का अभी सन्दर्भ नहीं है। परप्रत्यय और स्वप्रत्यय की बात है। स्वप्रत्यय का अर्थ है स्वयं की बुद्धि में हुई प्रतीति, साधकबाधक विचार कर स्वयं बनाया हुआ मत, स्वयं का निष्कर्ष । परप्रत्यय का अर्थ है दूसरे की बुद्धि की प्रतीति, दूसरे का मत, दूसरे का निष्कर्ष । दूसरे की प्रतीति से व्यवहार करने वाले मूढ होते हैं अपनी प्रतीति से चलने वाले बुद्धिमान होते हैं।
 
इस सुभाषित के पूर्वार्ध की चर्चा करने का अभी सन्दर्भ नहीं है। परप्रत्यय और स्वप्रत्यय की बात है। स्वप्रत्यय का अर्थ है स्वयं की बुद्धि में हुई प्रतीति, साधकबाधक विचार कर स्वयं बनाया हुआ मत, स्वयं का निष्कर्ष । परप्रत्यय का अर्थ है दूसरे की बुद्धि की प्रतीति, दूसरे का मत, दूसरे का निष्कर्ष । दूसरे की प्रतीति से व्यवहार करने वाले मूढ होते हैं अपनी प्रतीति से चलने वाले बुद्धिमान होते हैं।
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भारत का स्वप्रत्यय आज खो गया है। वह पश्चिम
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भारत का स्वप्रत्यय आज खो गया है। वह पश्चिम की बदि से चलता है। भारत को अपनी गरिमा का भी स्मरण नहीं रहा, अपनी जीवनदृष्टि का भी गौरव नहीं रहा ।
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भारत को स्मरण नहीं रहा
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....कि उस की आयु विश्व में अधिकतम है अर्थात् उसे जीवन का सबसे अधिक अनुभव है।
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... कि उसके पूर्वजों ने एक ऐसी श्रेष्ठ संस्कृति और सभ्यता का विकास किया है जो चिरंजीविता के गुण अपने में समाये हुए हैं।
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... कि उसने संस्कृति और समृद्धि के सर्वोच्च शिखरों को सर किया हुआ है।
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... कि जो विश्व के समस्त राष्ट्रों को श्रेष्ठ जीवन शैली सिखाने में समर्थ है।
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.... कि उसे विश्व के सभी राष्ट्रों के साथ सामंजस्य पूर्ण तरीके से रहना आता है।
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अपनी ही उपलब्धियों का विस्मरण और पश्चिम को लेकर हीनता बोध के कारण भारत ने अपनी विवेकशक्ति खो दी है । खोई हुई विवेकशक्ति को पुनः प्राप्त करने पर भारत को समझ में आयेगा कि भारत अत्यन्त विकसित देश है, समर्थ देश है। अनेक बातें इस तथ्य की निदर्शक हैं। जैसे कि
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जितने भी प्राकृतिक संकट हैं, वे पश्चिमी देशों की तुलना में भारत में कम हैं (और कदाचित अमेरिका में सबसे अधिक) क्योंकि आज भी भारत में पर्यावरण का प्रदूषण अन्य देशों की तुलना में कम है।
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आज भी भारत में मनोविकारजन्य रोगों का अनुपात कम है। एक भारतीय आपत्ति, कष्ट, तनाव अधिक सह सकता है । परिस्थितियों से हारकर हताश, निराश होकर नशाखोरी करने वाले या आत्महत्या करनेवाले या मारपीट और तोडफोड करने वालों की संख्या भारत में कम है।
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* आज भी भारत में बैंकों का दिवाला कम निकलता है क्योंकि लोग बैंकों से लिया हुआ ऋण प्रामाणिकता से वापस करनेवाली वृत्ति के हैं।
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* आज भी अनाथालयों और वृद्धाश्रमों की संख्या कम हैं क्योंकि लोग परिवार में साथ साथ रहते हैं। आज भी विवाहविच्छेद कम हैं। आज भी बच्चे मातापिता के विरुद्ध पुलीस शिकायत क्वचित ही करते हैं।
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ऐसे तो अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं जो भारत को गौरव प्रदान करनेवाले हैं।
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परन्तु हम विवेकपूर्वक विचार नहीं करते इसलिये अमेरिका हमें विकासशील देश कहता है और हम मान लेते हैं । जीडीपी विकास का मापदण्ड नहीं हो सकता, आर्थिक समृद्धि आँकडों में नहीं नापी जा सकती यह हमारे शास्त्र कहते हैं परन्तु हम अपने शास्त्रों को न मानकर अमेरिका का कहना मानते हैं।
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हमारी शिक्षा ने विवेकशक्ति का ह्रास होने में अहम भूमिका निभाई है। विदेशी शास्त्र पढते पढते पश्चिमी दृष्टि हमारी बुद्धि में बैठ गई है । हम सभी बातों को उनकी दृष्टि से देखना सीख गये हैं। पढाई की कुछ पद्धति भी ऐसी है कि पढनेवाले की विवेकशक्ति का विकास ही नहीं होता। या तो हम पुस्तकों में लिखा सही मानते हैं या शिक्षकों ने कहा । जिस आयु में विचार करना, कार्य कारणभाव समझना या अपना चिन्तन करना आवश्यक होता है उस समय भी हम या तो रटकर या याद कर परीक्षा में लिखते हैं और उत्तीर्ण भी हो जाते हैं। परिणामस्वरूप सारी पूजा हाँ में हाँ मिलने वाली या बिना सोचे समझे विरोध करने वाली बन जाती है। ऐसे में एक महान राष्ट्र परप्रत्ययनेय बुद्धि से चलने लगता है । इससे मुक्त होने के लिये हमें शिक्षा पद्धति में आमूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है। बिना उचित शिक्षा के हम विवेक से हमारी व्यवस्थायें नहीं बना सकते ।
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शिक्षा के विषय में ज्ञानात्मक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। इसके भी बहुआयामी प्रयास करने होंगे।
    
==References==
 
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