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| क्या करना और क्या नहीं करना इसका निश्चय करने में शास्त्र ही तेरे लिये प्रमाण हैं । तात्पर्य यह है कि हमें हर विषय के निरूपण में शास्त्र को ही प्रमाण मानना होगा । प्रमाण के लिये हमारे शास्त्र कौन से हैं ? वेद और उपनिषद, दर्शन का निरूपण करने वाले सूत्र ग्रन्थ, वेदांग, उपवेद, इतिहास के लिये पुराण आदि हमारे लिये प्रमाणग्रन्थ हैं। याज्ञवल्क्य, कौटिल्य, वेदव्यास, विश्वामित्र, वसिष्ठ आदि ऋषि हमारे लिये प्रमाण हैं। आर्षदृष्टा ऋषि हमारे लिये स्वतःप्रमाण हैं। विभिन्न विषयों के लिये मूल ग्रन्थों की ऐसी एक सूची ही हम बना सकते हैं । इस मूल प्रमाण के बाद व्यावहारिक सन्दर्भ का विचार तो हमें ही करना होगा । इस दृष्टि से हमारा विवेक हमेशा जागृत रहना चाहिये । कहीं-कहीं हम पाश्चात्य शास्त्रों का सन्दर्भ भी ले सकते हैं परन्तु वे भारतीय शास्त्रों के अविरेधी हों तभी उपयोगी होंगे अन्यथा त्याज्य होंगे । यह सब होते हुए भी अधिकांश हमें युगानुकूल प्रस्तुति की ही चिन्ता करनी होगी, यह तो स्पष्ट है। | | क्या करना और क्या नहीं करना इसका निश्चय करने में शास्त्र ही तेरे लिये प्रमाण हैं । तात्पर्य यह है कि हमें हर विषय के निरूपण में शास्त्र को ही प्रमाण मानना होगा । प्रमाण के लिये हमारे शास्त्र कौन से हैं ? वेद और उपनिषद, दर्शन का निरूपण करने वाले सूत्र ग्रन्थ, वेदांग, उपवेद, इतिहास के लिये पुराण आदि हमारे लिये प्रमाणग्रन्थ हैं। याज्ञवल्क्य, कौटिल्य, वेदव्यास, विश्वामित्र, वसिष्ठ आदि ऋषि हमारे लिये प्रमाण हैं। आर्षदृष्टा ऋषि हमारे लिये स्वतःप्रमाण हैं। विभिन्न विषयों के लिये मूल ग्रन्थों की ऐसी एक सूची ही हम बना सकते हैं । इस मूल प्रमाण के बाद व्यावहारिक सन्दर्भ का विचार तो हमें ही करना होगा । इस दृष्टि से हमारा विवेक हमेशा जागृत रहना चाहिये । कहीं-कहीं हम पाश्चात्य शास्त्रों का सन्दर्भ भी ले सकते हैं परन्तु वे भारतीय शास्त्रों के अविरेधी हों तभी उपयोगी होंगे अन्यथा त्याज्य होंगे । यह सब होते हुए भी अधिकांश हमें युगानुकूल प्रस्तुति की ही चिन्ता करनी होगी, यह तो स्पष्ट है। |
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− | ''न... प्रमाणग्रन्थ हैं । याज्ञवल्क्य, कौटिल्य,''
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− | ''सुख प्राप्त होता है, न ही मोक्ष प्राप्त होता है । aco, विश्वामित्र, वसिष्ठ आदि ऋषि हमारे लिये प्रमाण''
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− | ''और हैं। आरषट्र्टा ऋषि हमारे लिये स्वतःप्रमाण हैं । विभिन्न''
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− | ''तस्माच्छाख्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ । विषयों के लिये मूल ग्रन्थों की ऐसी एक सूची ही हम बना''
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− | ''ज्ञात्वा शाख्रविधानोक्क॑ कर्म कर्तुमिहाईसि ।। सकते हैं । इस मूल प्रमाण के बाद व्यावहारिक सन्दर्भ का''
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− | ''कया करना और क्या नहीं करना इसका निश्चय करने .... विचार तो हमें ही करना होगा । इस दृष्टि से हमारा विवेक''
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− | ''में शास्त्र ही तेरे लिये प्रमाण हैं । हमेशा जागृत रहना चाहिये ।''
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− | ''तात्पर्य यह है कि हमें हर विषय के निरूपण में शास्त्र कहीं-कहीं हम पाश्चात्य शास्त्रों का सन्दर्भ भी ले''
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− | ''को ही प्रमाण मानना होगा । सकते हैं परन्तु वे भारतीय शास्त्रों के अविरोधी हों तभी''
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− | ''प्रमाण के लिये हमारे शाख्र कौन से हैं ? वेद और... उपयोगी होंगे अन्यथा त्याज्य होंगे ।''
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− | ''उपनिषद, दर्शन का निरूपण करने वाले सूत्र ग्रन्थ, वेदांग, यह सब होते हुए भी अधिकांश हमें युगानुकूल''
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− | ''उपवेद, इतिहास के लिये पुराण आदि हमारे लिये... प्रस्तुति की ही चिन्ता करनी होगी, यह तो स्पष्ट है ।''
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| ==References== | | ==References== |
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