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मेरा मानना है कि 'सन' नामक उपयोगी पौधा समग्र हिंदुस्तान में उगाया जाता है। सन से सभी प्रकार की रस्सियाँ, टाट, जालेदार टाट, आदि बनाएँ जाते हैं। जब ये उत्पाद पुराने होकर रही हो जाते हैं तो इस देश का अधिकांश कागज इसी से बनाया जाता है। सन से छाल निकालने के लिए इसे चार दिन तक पानी में डुबोकर रखा जाता है; बाद में इसे सुखा लिया जाता है तथा उससे छाल उतार ली जाती है जिसे सन के रूप से विविध उत्पादों में उपयोग किया जाता है।<ref>लेखक : लै. कर्नल आयर्नसाइड, सन १७७४ में प्रकाशित, धर्मपाल की पुस्तक १८वीं शताब्दी में भारत में विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान से उद्धृत</ref>
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{{ToBeEdited}}मेरा मानना है कि 'सन' नामक उपयोगी पौधा समग्र हिंदुस्तान में उगाया जाता है। सन से सभी प्रकार की रस्सियाँ, टाट, जालेदार टाट, आदि बनाएँ जाते हैं। जब ये उत्पाद पुराने होकर रही हो जाते हैं तो इस देश का अधिकांश कागज इसी से बनाया जाता है। सन से छाल निकालने के लिए इसे चार दिन तक पानी में डुबोकर रखा जाता है; बाद में इसे सुखा लिया जाता है तथा उससे छाल उतार ली जाती है जिसे सन के रूप से विविध उत्पादों में उपयोग किया जाता है।<ref>लेखक : लै. कर्नल आयर्नसाइड, सन १७७४ में प्रकाशित, धर्मपाल की पुस्तक १८वीं शताब्दी में भारत में विज्ञान एवं तन्त्रज्ञान से उद्धृत</ref>
    
निर्माता सन से निर्मित पुरानी रस्सियाँ, कपड़े, टाट, टाट की जालियाँ आदि खरीदता है। उन्हें काटकर छोटे छोटे टुकड़ें बनाता है। कुछ दिन उन्हें पानी में डुबोए हुए रखता है। सामान्य रूप से पानी में डुबोए रखने की क्रिया पाँच दिन तक की जाती है। पाँच दिन के पश्चात्‌ वह उसे टोकरी में रखकर नदी में धोता है तथा धो धोकर जमीन के अन्दर रखे पानी के बर्तन में डालता जाता है। बर्तन का पानी, सैजी मिट्टी के छह भाग तथा तेज चूना के सात भागों के प्रक्षालन से अच्छी तरह से संसेचित करके तैयार किया जाता है। तटदुपरांत इसे इसी स्थिति में आठ से दस दिन तक रखा जाता है। उसके पश्चात्‌ पुन: धोया जाता है तथा गीली स्थिति में ही कूट कूटकर रेशों को कूट दिया जाता है तढुपरांत उसे साफ छत पर सुखाने के लिए डाल दिया जाता है। उसके पश्चात्‌ उसे पहले ही तरह के प्रक्षालनयुक्त पानी में पुन: डाला जाता है। इस तरह की क्रिया में क्रमश: तीन बार गुजरने के पश्चात्‌ यह मोटा भूरा कागज बनाने योग्य स्थिति में हो जाता है। इस तरह कि क्रिया से क्रमश: सात आठ बार गुजरने के बाद इससे अच्छा सुथरा कागज बनाया जाता है।
 
निर्माता सन से निर्मित पुरानी रस्सियाँ, कपड़े, टाट, टाट की जालियाँ आदि खरीदता है। उन्हें काटकर छोटे छोटे टुकड़ें बनाता है। कुछ दिन उन्हें पानी में डुबोए हुए रखता है। सामान्य रूप से पानी में डुबोए रखने की क्रिया पाँच दिन तक की जाती है। पाँच दिन के पश्चात्‌ वह उसे टोकरी में रखकर नदी में धोता है तथा धो धोकर जमीन के अन्दर रखे पानी के बर्तन में डालता जाता है। बर्तन का पानी, सैजी मिट्टी के छह भाग तथा तेज चूना के सात भागों के प्रक्षालन से अच्छी तरह से संसेचित करके तैयार किया जाता है। तटदुपरांत इसे इसी स्थिति में आठ से दस दिन तक रखा जाता है। उसके पश्चात्‌ पुन: धोया जाता है तथा गीली स्थिति में ही कूट कूटकर रेशों को कूट दिया जाता है तढुपरांत उसे साफ छत पर सुखाने के लिए डाल दिया जाता है। उसके पश्चात्‌ उसे पहले ही तरह के प्रक्षालनयुक्त पानी में पुन: डाला जाता है। इस तरह की क्रिया में क्रमश: तीन बार गुजरने के पश्चात्‌ यह मोटा भूरा कागज बनाने योग्य स्थिति में हो जाता है। इस तरह कि क्रिया से क्रमश: सात आठ बार गुजरने के बाद इससे अच्छा सुथरा कागज बनाया जाता है।

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