सनातनधर्म के आचार विचार एवं वैज्ञानिक तर्क

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सनातनधर्म अर्थात जो अनादि,शाश्वत,नित्य धर्म का वह स्वरूप जो परंपरा से चला आता हुआ माना जाता है ।

परिचय

मानवके विधिबोधित क्रिया-कलापोंको आचारके नामसे सम्बोधित किया जाता है।आचार-पद्धति ही सदाचार या शिष्टाचार कहलाती है। मनीषियोंने पवित्र और सात्त्विक आचारको ही धर्मका मूल बताया है-'धर्ममूलमिदं स्मृतम्'। धर्मका मूल श्रुति- स्मृतिमूलक सदाचार ही है। सदाचारकी महिमा बतलाते हुए कहा गया है-

आचारः परमो धर्मः सर्वेषामिति निश्चयः। हीनाचारपरीतात्मा प्रेत्य चेह विनश्यति॥(वसिष्ठस्मृति ६।१)

इतना ही नहीं, षडङ्ग-वेदज्ञानी भी यदि आचारसे हीन हो तो वेद भी उसे पवित्र नहीं बनाते-

आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः।

आचारः प्रथमो धर्मः श्रुत्युक्तः सात एव च । तसादेतत्समायुक्वं गृहीयादात्मनो द्विजः । आचारालभ्यते पूजा आचारालभ्यते प्रजा । आचारादनमक्षय्यं तदाचारस्य लक्षणम् ।। आचारात्प्राप्यते स्वर्ग आचारात्प्राप्यते सुखम् । आचारात्माप्यते मोक्ष भाचाराकिं न लभ्यते ॥ तस्मात्चतुर्णामपि वर्णानामाचारो धर्मपालनम् । आचारस्रष्टदेहानां भवेद्धर्मः परामुखः ।। दुराचारो हि पुरुषो लोके भवति निन्दितः । दुःखभोगी च सततं रोगी चाल्पायुषी भवेत् ।। दक्षः

संक्षेपमें हमारे श्रुति-स्मृतिमूलक संस्कार देह, इन्द्रिय, मन, बुद्धि और आत्माका मलापनयन कर उनमें अतिशयाधान करते हुए किञ्चित् हीनाङ्गपूर्ति कर उन्हें विमल कर देते हैं। संस्कारोंकी उपेक्षा करनेसे समाजमें उच्छृङ्खलताकी वृद्धि हो जाती है, जिसका दुष्परिणाम सर्वगोचर एवं सर्वविदित है।

वर्तमानमें मनुष्यकी बढ़ती हुई भोगवादी कुप्रवृत्तिके कारण आचार-विचार का उत्तरोत्तर ह्रास हो रहा है एवं स्वेच्छाचारकी कुत्सित मनोवृत्ति भी उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है, जिसका दुष्परिणाम अधिकांशतः नवयुवकों और नवयुवतियोंके साथ-साथ अभिभावकोंको भी भोगना पड़ रहा है। ऐसी भयावह परिस्थितिमें युवा पीढ़ीको स्वस्थ दिशाबोध प्रदान करनेके लिये आचार-विचार का तदनुसार आचरण पथ-प्रदर्शक होगा।

ब्रह्ममुहूर्त में जागरण।

ब्राह्म-मुहूर्तमें जागरण- -सूर्योदयसे चार घड़ी (लगभग डेढ़ घंटे) पूर्व ब्राह्ममुहूर्तमें ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्रमें निषिद्ध है।

१-ब्राह्मे मुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी। तां करोति द्विजो मोहात् पादकृच्छ्रेण शुद्ध्यति ।।

हूर्तको निद्रा पुण्यका नाश करनेवाली है । उस समय जो कोई भी शयन करता है, उसे छुटकारा पानेके लिये पादकृच्छ्र नामक (व्रत) प्रायश्चित्त करना चाहिये। (रोगकी अवस्थामें या कीर्तन आदि शास्त्रविहित कार्योक कारण इस समय यदि नींद आ जाय तो उसके लिये प्रायश्चितकी आवश्यकता नहीं होती)। अव्याधितं चेत् स्वपन्तं..... इस पापसे

विहितकर्मश्रान्ते तु न॥

  • प्रातःस्मरण एवं दैनिक कृत्य सूची निर्धारण।
  • शौचाचार एवं स्नानविधि।
  • वस्त्रधारण एवं भस्मादि तिलक धारण विधि।
  • संध्याका समय,संध्या की आवश्यकता एवं संध्योपासन विधि।
  • पंचमहायज्ञ(ब्रह्मयज्ञ,पितृयज्ञ,देवयज्ञ,भूतयज्ञ,नृ(अतिथि)यज्ञ)।
  • भोजन विधि ।
  • पुराणादि अवलोकन,सायान्हकृत्य प्रभृति रात्रि शयनान्त विधि।