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− | सनातन अर्थात् अनादि,शाश्वत, सत्य,नित्य,भ्रम संशय रहित धर्म का वह स्वरूप जो परंपरा से चला आता हुआ है ।धर्म शब्द का अर्थ ही है कि जो धारण करे अथवा जिसके द्वारा यह विश्व धारण किया जा सके, क्योंकि धर्म "धृञ धारणे" धातु से बना है जिसका अर्थ है -<blockquote>धारयतीति धर्मः अथवा येनैतद्धार्यते स धर्मः ।<ref>सनातन धर्म का वैज्ञानिक रहस्य,श्री बाबूलाल गुप्त,१९६६(पृ०२२)।</ref></blockquote>धर्म वास्तव में संसार की स्थिति का मूल है, धर्म मूल पर ही सकल संसार वृक्ष स्थित है। धर्म से पाप नष्ट होते है तथा अन्य लोग धर्मात्मा पुरुष का अनुसरण करके कल्याण को प्राप्त होते हैं ।<blockquote>न जातु कामान्न भयान्न लोभाद्धर्मं त्यजेज्जीवितस्यापि हेतोः। नित्यो धर्मः सुख दुःखे त्वनित्ये, जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्यः॥<ref>महाभारत,स्वर्गारोहणपर्व,(अ०५ श् ० ७६)।</ref>(महा०स्वर्गा० ५/76)</blockquote>अर्थात् कामना से, भय से. लोभ से अथवा जीवन के लिये भी धर्म का त्याग न करे । धर्म ही नित्य है, सुख दु:ख तो अनित्य हैं। इसी प्रकार जीवात्मा नित्य हैं और उसके बन्धन का हेतु अनित्य है । अतः अनित्य के लिये नित्य का परित्याग कदापि न करे । इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति धर्म का पालन करता है तो धर्म ही उसकी रक्षा करता है तथा नष्ट हुआ धर्म ही उसे मारता है अतः धर्म का पालन करना चाहिये । नारायणोपनिषद् में कहा है-<blockquote>धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा, लोके धर्मिष्ठं प्रजा उपसर्पन्ति, धर्मेण पापमपनुदति,धर्मे सर्वं प्रतिष्ठितं,तस्माद्धर्म परमं वदन्ति।<ref>मन्त्रपुष्पम् स्वमीदेवरूपानन्दः,रामकृष्ण मठ,खार,मुम्बई(नारायणोपनिषद ७९)पृ० ६१।</ref></blockquote>आचार को प्रथम धर्म कहा है-<blockquote>आचारः प्रथमो धर्मः श्रुत्युक्तः स्मार्त एव च।तस्मादस्मिन्समायुक्तो नित्यं स्यादात्मनो द्विजः ॥</blockquote><blockquote>आचाराल्लभते चायुराचाराल्लभते प्रजाः ।आचारादन्नमक्षय्यमाचारो हन्ति पातकम् ॥<ref>श्रीमद्देवीभागवत,उत्तरखण्ड,गीताप्रेस गोरखपुर,(एकादश स्कन्ध अ० 1श्० 9/10 पृ० 654)।</ref></blockquote>'''अनु-''' आचार ही प्रथम (मुख्य) धर्म है-ऐसा श्रुतियों तथा स्मृतियोंमें कहा गया है, अतएव द्विजको चाहिये कि वह अपने कल्याणके लिये इस सदाचारके पालनमें नित्य संलग्न रहे।मनुष्य आचारसे आयु प्राप्त करता है, आचारसे सत्सन्तानें प्राप्त करता है ,आचारसे अक्षय अन्न प्राप्त करता है तथा यह आचार पापको नष्ट कर देता है॥ | + | सनातन अर्थात् अनादि,शाश्वत, सत्य,नित्य,भ्रम संशय रहित धर्म का वह स्वरूप जो परंपरा से चला आता हुआ है ।धर्म शब्द का अर्थ ही है कि जो धारण करे अथवा जिसके द्वारा यह विश्व धारण किया जा सके, क्योंकि धर्म "धृञ धारणे" धातु से बना है जिसका अर्थ है -<blockquote>धारयतीति धर्मः अथवा येनैतद्धार्यते स धर्मः ।<ref>सनातन धर्म का वैज्ञानिक रहस्य,श्री बाबूलाल गुप्त,१९६६(पृ०२२)।</ref></blockquote>धर्म वास्तव में संसार की स्थिति का मूल है, धर्म मूल पर ही सकल संसार वृक्ष स्थित है। धर्म से पाप नष्ट होते है तथा अन्य लोग धर्मात्मा पुरुष का अनुसरण करके कल्याण को प्राप्त होते हैं ।<blockquote>न जातु कामान्न भयान्न लोभाद्धर्मं त्यजेज्जीवितस्यापि हेतोः। नित्यो धर्मः सुख दुःखे त्वनित्ये, जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्यः॥<ref>महाभारत,स्वर्गारोहणपर्व,(अ०५ श् ० ७६)।</ref>(महा०स्वर्गा० ५/76)</blockquote>अर्थात् कामना से, भय से. लोभ से अथवा जीवन के लिये भी धर्म का त्याग न करे । धर्म ही नित्य है, सुख दु:ख तो अनित्य हैं। इसी प्रकार जीवात्मा नित्य हैं और उसके बन्धन का हेतु अनित्य है । अतः अनित्य के लिये नित्य का परित्याग कदापि न करे । इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति धर्म का पालन करता है तो धर्म ही उसकी रक्षा करता है तथा नष्ट हुआ धर्म ही उसे मारता है अतः धर्म का पालन करना चाहिये । नारायणोपनिषद् में कहा है-<blockquote>धर्मो विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा, लोके धर्मिष्ठं प्रजा उपसर्पन्ति, धर्मेण पापमपनुदति,धर्मे सर्वं प्रतिष्ठितं,तस्माद्धर्म परमं वदन्ति।<ref>मन्त्रपुष्पम् स्वमीदेवरूपानन्दः,रामकृष्ण मठ,खार,मुम्बई(नारायणोपनिषद ७९)पृ० ६१।</ref></blockquote>आचार को प्रथम धर्म कहा है-<blockquote>आचारः प्रथमो धर्मः श्रुत्युक्तः स्मार्त एव च। तस्मादस्मिन्समायुक्तो नित्यं स्यादात्मनो द्विजः ॥ |
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− | == Pap and punya (पाप एवं पुण्य) ==
| + | आचाराल्लभते चायुराचाराल्लभते प्रजाः। आचारादन्नमक्षय्यमाचारो हन्ति पातकम् ॥<ref>श्रीमद्देवीभागवत,उत्तरखण्ड,गीताप्रेस गोरखपुर,(एकादश स्कन्ध अ० 1श्० 9/10 पृ० 654)।</ref></blockquote>'''अनु-''' आचार ही प्रथम (मुख्य) धर्म है-ऐसा श्रुतियों तथा स्मृतियोंमें कहा गया है, अतएव द्विजको चाहिये कि वह अपने कल्याणके लिये इस सदाचारके पालनमें नित्य संलग्न रहे।मनुष्य आचारसे आयु प्राप्त करता है, आचारसे सत्सन्तानें प्राप्त करता है ,आचारसे अक्षय अन्न प्राप्त करता है तथा यह आचार पापको नष्ट कर देता है॥ |
− | भारतीय सनातन धर्म में नैतिक चिन्तन्त के अंतर्गत वेद, ब्राह्मणग्रन्थ, उपनिषद् ,धर्मसूत्र,स्मृतिग्रन्थ, रामायण, महाभारत गीता आदि ग्रन्थों में नैतिक सद्गुणों तथा कर्त्तव्यों का वर्णन किया गया है। उन कर्त्तव्यों के उल्लंघन को पाप तथा उनके अनुरूप आचरण करने को पुण्य कहा गया है।
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− | महर्षिवेदव्यास ने पाप और पुण्य की परिभाषा के लिये कहा है-
| + | == (शाप एवं वरदान) == |
| + | शास्त्रों में अपराध निवारण हेतु अथवा अधर्म उन्मूलन के लिये तथा धर्म की स्थापना के लिये जो उपाय उन्हैं कहीं दण्ड तथा कहीं शाप शब्द के द्वारा सम्बोधित किया जाता है। प्राचीन भारतवर्ष में दण्डव्यवस्था के प्रमुखतया दो रूप दृष्टिगोचर होते हैं- |
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− | अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् । परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥
| + | प्रथम राजा के द्वारा दिया जाने वाला राजदण्ड तथा दूसरा ऋषि-महर्षियों, तपस्वियों द्वारा दिया जाने वाला शापदण्ड। |
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− | ््
| + | '''परिचय''' |
| + | |
| + | '''परिभाषा''' |
| + | |
| + | शपनम् इति शापः। |
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| == आचार की परिभाषा == | | == आचार की परिभाषा == |
| आचार की परिभाषा करते हुये ऋषि कहते हैं कि-धर्मानुकूल शारीरिक व्यापार ही सदाचार है। केवल शारीरिक व्यापार या शारीरिक चेष्टा सदाचार नहीं, वह तो अंग संचालन मात्र की क्रिया है। उससे स्थूल शारीरिक लाभ के अतिरिक्त आत्मोन्नति का सम्बन्ध नहीं। इस कारण कोरी शारीरिक क्रिया को आचार नहीं कहते । शारीरिक व्यापार या शारीरिक चेष्टा जब धर्मानुकूल अथवा किसी प्रकार धर्म को लक्ष्य करते हुये होती है तब वह सदाचार होता है और तब उससे स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनों शरीर की उन्नति और साथ ही साथ आत्मा का भी अभ्युदय साधन होता है। यह धर्मानुकूल आचरण ही सदाचार है। | | आचार की परिभाषा करते हुये ऋषि कहते हैं कि-धर्मानुकूल शारीरिक व्यापार ही सदाचार है। केवल शारीरिक व्यापार या शारीरिक चेष्टा सदाचार नहीं, वह तो अंग संचालन मात्र की क्रिया है। उससे स्थूल शारीरिक लाभ के अतिरिक्त आत्मोन्नति का सम्बन्ध नहीं। इस कारण कोरी शारीरिक क्रिया को आचार नहीं कहते । शारीरिक व्यापार या शारीरिक चेष्टा जब धर्मानुकूल अथवा किसी प्रकार धर्म को लक्ष्य करते हुये होती है तब वह सदाचार होता है और तब उससे स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनों शरीर की उन्नति और साथ ही साथ आत्मा का भी अभ्युदय साधन होता है। यह धर्मानुकूल आचरण ही सदाचार है। |
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− | महर्षि वशिष्ठ लिखते हैं कि-<blockquote>आचारः परमोधर्मः सर्वेषामिति निश्चयः । हीनाचार परीतात्मा प्रेत्य चेह च नश्यति ॥ <ref>अष्टादश स्मृति,श्यामसुन्दरलाल त्रिपाठी,खेमराज श्रीकृष्णदास, (वशिष्ठ स्मृति०६।१) पृ०४६२।</ref></blockquote>अर्थात् यह निश्चय है कि आचार ही सबका परम धर्म है आचार भ्रष्ट मनुष्य इस लोक और परलोक दोनों में नष्ट होता है। <blockquote>आचार हीनं न पुनन्ति वेदाः यद्यप्यधीता सहषड्भिरंगैः। छन्दास्येनं मृत्युकाले त्यजन्ति नीडं शकुन्ता इव ताप तप्ताः।<ref>(अष्टादश स्मृति,श्यामसुन्दरलाल त्रिपाठी,खेमराज श्रीकृष्णदास, (वशिष्ठ स्मृति०६।३) पृ०४६१।</ref></blockquote>आचार हीन व्यक्ति यदि सांगोपांग वेदों का विद्वान् भी है तो वेद उसको पवित्र नहीं कर सकते और वैदिक ऋचायें भी उसे अन्तकाल में इसी प्रकार त्याग देती हैं जैसे अग्नि के ताप से तप्त घोंसले को पक्षी त्याग देते हैं।<blockquote>आचारात् फलते धर्ममाचारात् फलते धनम् । आचाराच्छ्रियमाप्नोति आचारो हन्त्यलक्षणम्।।<ref>अष्टादश स्मृति,श्यामसुन्दरलाल त्रिपाठी,खेमराज श्रीकृष्णदास, (वशिष्ठ स्मृति०६।७) पृ०४६१।</ref></blockquote>इसके अतिरिक्त दुराचारी मनुष्य लोक में निन्दित, दु:ख का भागी, रोग ग्रस्त और अल्पायु होता है। सदाचार का फल धर्म है, सदाचार का फल धन है, सदाचार से श्री की प्राप्ति होती है तथा सदाचार कुलक्षणों को नाश करता है। <blockquote>आचारः परमो धर्मः आचारः परमं तपः।आचारः परमं ज्ञानं आचारात् कि न साध्यते ॥ </blockquote><blockquote>आचाराद् विच्युतो विप्रो न वेदफलमश्नुते।आचारेण समायुक्तः सम्पूर्णफलभाग् भवेत् ॥</blockquote><blockquote>यः स्वाचारपरिभ्रष्टः साङ्गवेदान्तगोऽपि चेत् ।स एव पतितो ज्ञेयो सर्वकर्मबहिष्कृतः॥</blockquote>आचार ही सर्वोत्तम धर्म है, आचार ही सर्वोत्तम तप है, आचार ही सर्वोत्तम ज्ञान है, यदि आचारका पालन हो तो असाध्य क्या है! अर्थात कुछ भी नहीं। शास्त्रोमें आचारका ही सर्वप्रथम उपदेश ( निर्देशन ) हुआ है । धर्म भी आचारसे ही उत्पन्न है ( अर्थात् ) आचार ही धर्मका माता-पिता है और एकमात्र ईश्वर ही धर्मका स्वामी है । इस प्रकार आचार स्वयं ही परमेश्वर सिद्ध होता है। एक ब्राह्मण जो आचारसे च्युत हो गया है,वह वेदोंके फलकी प्राप्तिसे वञ्चित हो जाता है चाहे वेद-वेदाङ्गोंका पारंगत विद्वान् ही क्यो न हो किंतु जो आचारका पालन करता है वह सबका फल प्राप्त कर लेता है । | + | महर्षि वशिष्ठ लिखते हैं कि-<blockquote>आचारः परमोधर्मः सर्वेषामिति निश्चयः । हीनाचार परीतात्मा प्रेत्य चेह च नश्यति ॥ <ref>अष्टादश स्मृति,श्यामसुन्दरलाल त्रिपाठी,खेमराज श्रीकृष्णदास, (वशिष्ठ स्मृति०६।१) पृ०४६२।</ref></blockquote>अर्थात् यह निश्चय है कि आचार ही सबका परम धर्म है आचार भ्रष्ट मनुष्य इस लोक और परलोक दोनों में नष्ट होता है। <blockquote>आचार हीनं न पुनन्ति वेदाः यद्यप्यधीता सहषड्भिरंगैः। छन्दास्येनं मृत्युकाले त्यजन्ति नीडं शकुन्ता इव ताप तप्ताः।<ref>(अष्टादश स्मृति,श्यामसुन्दरलाल त्रिपाठी,खेमराज श्रीकृष्णदास, (वशिष्ठ स्मृति०६।३) पृ०४६१।</ref></blockquote>आचार हीन व्यक्ति यदि सांगोपांग वेदों का विद्वान् भी है तो वेद उसको पवित्र नहीं कर सकते और वैदिक ऋचायें भी उसे अन्तकाल में इसी प्रकार त्याग देती हैं जैसे अग्नि के ताप से तप्त घोंसले को पक्षी त्याग देते हैं।<blockquote>आचारात् फलते धर्ममाचारात् फलते धनम् । आचाराच्छ्रियमाप्नोति आचारो हन्त्यलक्षणम्।।<ref>अष्टादश स्मृति,श्यामसुन्दरलाल त्रिपाठी,खेमराज श्रीकृष्णदास, (वशिष्ठ स्मृति०६।७) पृ०४६१।</ref></blockquote>इसके अतिरिक्त दुराचारी मनुष्य लोक में निन्दित, दु:ख का भागी, रोग ग्रस्त और अल्पायु होता है। सदाचार का फल धर्म है, सदाचार का फल धन है, सदाचार से श्री की प्राप्ति होती है तथा सदाचार कुलक्षणों को नाश करता है। <blockquote>आचारः परमो धर्मः आचारः परमं तपः।आचारः परमं ज्ञानं आचारात् कि न साध्यते ॥ |
| + | |
| + | आचाराद् विच्युतो विप्रो न वेदफलमश्नुते।आचारेण समायुक्तः सम्पूर्णफलभाग् भवेत् ॥ |
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| + | यः स्वाचारपरिभ्रष्टः साङ्गवेदान्तगोऽपि चेत् ।स एव पतितो ज्ञेयो सर्वकर्मबहिष्कृतः॥</blockquote>आचार ही सर्वोत्तम धर्म है, आचार ही सर्वोत्तम तप है, आचार ही सर्वोत्तम ज्ञान है, यदि आचारका पालन हो तो असाध्य क्या है! अर्थात कुछ भी नहीं। शास्त्रोमें आचारका ही सर्वप्रथम उपदेश ( निर्देशन ) हुआ है । धर्म भी आचारसे ही उत्पन्न है ( अर्थात् ) आचार ही धर्मका माता-पिता है और एकमात्र ईश्वर ही धर्मका स्वामी है । इस प्रकार आचार स्वयं ही परमेश्वर सिद्ध होता है। एक ब्राह्मण जो आचारसे च्युत हो गया है,वह वेदोंके फलकी प्राप्तिसे वञ्चित हो जाता है चाहे वेद-वेदाङ्गोंका पारंगत विद्वान् ही क्यो न हो किंतु जो आचारका पालन करता है वह सबका फल प्राप्त कर लेता है । |
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| == परिचय == | | == परिचय == |
| मानवके विधिबोधित क्रिया-कलापोंको आचारके नामसे सम्बोधित किया जाता है।आचार-पद्धति ही सदाचार या शिष्टाचार कहलाती है। मनीषियोंने पवित्र और सात्त्विक आचारको ही धर्मका मूल बताया है-<blockquote>धर्ममूलमिदं स्मृतम्।</blockquote>धर्मका मूल श्रुति- स्मृतिमूलक आचार ही है इतना ही नहीं, षडङ्ग-वेद ज्ञानी भी यदि आचार से हीन हो तो वेद भी उसे पवित्र नहीं बनाते- <blockquote>आचारहीनं न पुनन्ति वेदा यद्यप्यधीताः सह षड्भिरङ्गैः । आचारहीनेन तु धर्मकार्यं कृतं हि सर्वं भवतीह मिथ्या ।।(वि०धर्मोत्तरपुराण)<ref>श्रीविष्णुधर्मोत्तरे तृ० ख०(अध्यायाः २४६-२५०)।</ref></blockquote>आचारः प्रथमो धर्मः श्रुत्युक्तः स्मार्त एव च । तस्मादेतत्समायुक्तं गृह्णीयादात्मनो द्विजः ॥। | | मानवके विधिबोधित क्रिया-कलापोंको आचारके नामसे सम्बोधित किया जाता है।आचार-पद्धति ही सदाचार या शिष्टाचार कहलाती है। मनीषियोंने पवित्र और सात्त्विक आचारको ही धर्मका मूल बताया है-<blockquote>धर्ममूलमिदं स्मृतम्।</blockquote>धर्मका मूल श्रुति- स्मृतिमूलक आचार ही है इतना ही नहीं, षडङ्ग-वेद ज्ञानी भी यदि आचार से हीन हो तो वेद भी उसे पवित्र नहीं बनाते- <blockquote>आचारहीनं न पुनन्ति वेदा यद्यप्यधीताः सह षड्भिरङ्गैः । आचारहीनेन तु धर्मकार्यं कृतं हि सर्वं भवतीह मिथ्या ।।(वि०धर्मोत्तरपुराण)<ref>श्रीविष्णुधर्मोत्तरे तृ० ख०(अध्यायाः २४६-२५०)।</ref></blockquote>आचारः प्रथमो धर्मः श्रुत्युक्तः स्मार्त एव च । तस्मादेतत्समायुक्तं गृह्णीयादात्मनो द्विजः ॥। |
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− | आचारालभ्यते पूजा आचारालभ्यते प्रजा । आचारादनमक्षय्यं तदाचारस्य लक्षणम् ।। | + | आचारालभ्यते पूजा आचारालभ्यते प्रजा। आचारादनमक्षय्यं तदाचारस्य लक्षणम् ।। |
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− | आचारात्प्राप्यते स्वर्ग आचारात्प्राप्यते सुखम् । आचारात्माप्यते मोक्ष भाचाराकिं न लभ्यते ॥ | + | आचारात्प्राप्यते स्वर्ग आचारात्प्राप्यते सुखम्। आचारात्माप्यते मोक्ष भाचाराकिं न लभ्यते ॥ |
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− | तस्मात्चतुर्णामपि वर्णानामाचारो धर्मपालनम् । आचारस्रष्टदेहानां भवेद्धर्मः परामुखः ।। | + | तस्मात्चतुर्णामपि वर्णानामाचारो धर्मपालनम्। आचारस्रष्टदेहानां भवेद्धर्मः परामुखः ।। |
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| दुराचारो हि पुरुषो लोके भवति निन्दितः । दुःखभोगी च सततं रोगी चाल्पायुषी भवेत् ।।दक्षः | | दुराचारो हि पुरुषो लोके भवति निन्दितः । दुःखभोगी च सततं रोगी चाल्पायुषी भवेत् ।।दक्षः |
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| वर्तमानमें मनुष्यकी बढ़ती हुई भोगवादी कुप्रवृत्तिके कारण आचार-विचार का उत्तरोत्तर ह्रास हो रहा है एवं स्वेच्छाचारकी कुत्सित मनोवृत्ति भी उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है, जिसका दुष्परिणाम संसार के समस्त प्राणियों को भोगना पड़ रहा है। ऐसी भयावह परिस्थितिमें मानव के लिये स्वस्थ दिशा बोध प्रदान करनेके लिये आचार-विचार का ज्ञान और उसके अनुसार आचरण करना यह पथ-प्रदर्शक होगा। | | वर्तमानमें मनुष्यकी बढ़ती हुई भोगवादी कुप्रवृत्तिके कारण आचार-विचार का उत्तरोत्तर ह्रास हो रहा है एवं स्वेच्छाचारकी कुत्सित मनोवृत्ति भी उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है, जिसका दुष्परिणाम संसार के समस्त प्राणियों को भोगना पड़ रहा है। ऐसी भयावह परिस्थितिमें मानव के लिये स्वस्थ दिशा बोध प्रदान करनेके लिये आचार-विचार का ज्ञान और उसके अनुसार आचरण करना यह पथ-प्रदर्शक होगा। |
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− | == Achar ke bhed == | + | == वेदों में ज्योतिषांश == |
| + | ज्योतिष यह ज्योतिका शास्त्र है। ज्योति आकाशीय पिण्डों-नक्षत्र, ग्रह आदि से आती है, परन्तु ज्योतिषमें हम सब पिण्डोंका अध्ययन नहीं करते। यह अध्ययन केवल सौर मण्डलतक ही सीमित रखते हैं। ज्योतिष का मूलभूत सिद्धान्त है कि आकाशीय पिण्डों का प्रभाव सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड पर पडता है। |
| + | |
| + | == परिचय == |
| + | वैदिक सनातन परम्परा में विदित है कि यज्ञ, तप, दान आदि के द्वारा ईश्वर की उपासना वेद का परम लक्ष्य है। उपर्युक्त यज्ञादि कर्म काल पर आश्रित हैं और इस परम पवित्र कार्य के लिये काल का विधायक शास्त्र ज्योतिषशास्त्र है। वेद किसी एक विषय पर केन्द्रित रचना नहीं हैं। विविध विषय और अनेक अर्थ को द्योतित करने वाली मन्त्र राशि वेदों में समाहित है। अतः वेद चतुष्टय सर्वविद्या का मूल है। भारतीय ज्ञान परम्परा की पुष्टि वेद में निहित है। कोई भी विषय मान्य और भारतीय दृष्टि से संवलित तभी माना जायेगा जब उसका सम्बन्ध वेद चतुष्टय में कहीं न कहीं समाहित हो। वेद चतुष्टय में ज्योतिष के अनेक अंश अन्यान्य संहिताओं में दृष्टिगोचर होते हैं। |
| + | |
| + | == Ahar ke bhed == |
| Sadachar and Durachar (write a paragraph) about them. | | Sadachar and Durachar (write a paragraph) about them. |
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| एतादृश जागरण के अनन्तर दैनिक क्रिया कलापों की सूची बद्धता प्रातः स्मरण के बाद ही बिस्तर पर निर्धारित कर लेना चाहिये जिससे हमारे नित्य के कार्य सुचारू रूप से पूर्ण हो सकें।<ref>पं०लालबिहारी मिश्र,नित्यकर्म पूजाप्रकाश,गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० १४)।</ref> | | एतादृश जागरण के अनन्तर दैनिक क्रिया कलापों की सूची बद्धता प्रातः स्मरण के बाद ही बिस्तर पर निर्धारित कर लेना चाहिये जिससे हमारे नित्य के कार्य सुचारू रूप से पूर्ण हो सकें।<ref>पं०लालबिहारी मिश्र,नित्यकर्म पूजाप्रकाश,गीताप्रेस गोरखपुर (पृ० १४)।</ref> |
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− | ==षण्णवति श्राद्ध==
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− | {| class="wikitable"
| |
− | |+(२०२३ में षण्णवति श्राद्ध सूची)
| |
− | !क्रम संख्या
| |
− | !
| |
− | !दिनाँक
| |
− | !मास/पक्ष/तिथि
| |
− | !पर्व
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− | !पुण्यकाल
| |
− | !दानादि विधान
| |
− | !ग्रन्थ
| |
− | |-
| |
− | |१
| |
− | |मन्व०
| |
− | |२/०१/२०२३
| |
− | |पौष,शुक्ल,एकादशी
| |
− | |धर्मसावर्णी मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |श्रीम्द्भा०
| |
− | |-
| |
− | |२
| |
− | |वैधृति
| |
− | |०७/०१/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३
| |
− | |अष्टका
| |
− | |१४/०१/२०२३
| |
− | |पौष, कृष्ण, सप्तमी
| |
− | |पूर्वेद्युः
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४
| |
− | |अष्टका
| |
− | |१५/०१/२०२३
| |
− | |पौष, कृष्ण, अष्टमी
| |
− | |अन्वष्टका
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१५/०१/२०२३
| |
− | |
| |
− | |मकर संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६
| |
− | |अमा०
| |
− | |२१/०१/२०२३
| |
− | | माघ,कृष्ण, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७
| |
− | | पात
| |
− | |२२/०१/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८
| |
− | |मन्व०
| |
− | |२७/०१/२०२३
| |
− | |माघ,शुक्ल,सप्तमी
| |
− | |ब्रह्मसावर्णी मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९
| |
− | |वैधृति
| |
− | |०१/०२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१०
| |
− | |अष्टका
| |
− | |१२/०२/२०२३
| |
− | |माघ, कृष्ण, सप्तमी
| |
− | |पूर्वेद्युः
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |११
| |
− | | अष्टका
| |
− | |१३/०२/२०२३
| |
− | | माघ, कृष्ण, अष्टमी
| |
− | |अन्वष्टका
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१२
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१३/०२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |कुम्भ संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१३
| |
− | |पात
| |
− | |१७/०२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१४
| |
− | |अमा०
| |
− | |१९/०२/२०२३
| |
− | | फाल्गुन, कृष्ण, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१५
| |
− | | युगादि
| |
− | |१९/०२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |द्वापर युगादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१६
| |
− | |वैधृति
| |
− | |२६/०२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१७
| |
− | |मन्व०
| |
− | |०७/०३/२०२३
| |
− | |फाल्गुन,शुक्ल,पूर्णिमा
| |
− | | सावर्णी मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |१८
| |
− | |अष्टका
| |
− | |१४/०३/२०२३
| |
− | |फाल्गुन,कृष्ण, सप्तमी
| |
− | |अष्टका पूर्वेद्युः
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | | १९
| |
− | |अष्टका
| |
− | |१५/०३/२०२३
| |
− | |फाल्गुन, कृष्ण, अष्टमी
| |
− | |अन्वष्टका
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२०
| |
− | |पात
| |
− | |१५/०३/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२१
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१५/०३/२०२३
| |
− | |
| |
− | |मीन संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२२
| |
− | |अमा०
| |
− | |२१/०३/२०२३
| |
− | |चैत्र, कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | | २३
| |
− | |वैधृति
| |
− | | २३/०३/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२४
| |
− | |मन्व०
| |
− | |२४/०३/२०२३
| |
− | |चैत्र शुक्लपक्ष तृतीया
| |
− | |स्वायम्भुव मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२५
| |
− | |मन्व०
| |
− | |०६/०४/२०२३
| |
− | |चैत्र शुक्लपक्ष पूर्णिमा
| |
− | |स्वारोचिष मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२६
| |
− | |पात
| |
− | |०९/०४/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२७
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१४/०४/२०२३
| |
− | |
| |
− | | मेष संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२८
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |१८/०४/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |२९
| |
− | | अमा०
| |
− | |१९/०४/२०२३
| |
− | |वैशाख, कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३०
| |
− | |युगादि
| |
− | |२२/०४/२०२३
| |
− | |
| |
− | |त्रेता युगादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३१
| |
− | |पात
| |
− | |०५/०५/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३२
| |
− | |वैधृति
| |
− | |१४/०५/२०२३
| |
− | |
| |
− | | वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३३
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१५/०५/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वृषभ संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३४
| |
− | |अमा०
| |
− | |१९/०५/२०२३
| |
− | |ज्येष्ठ,कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३५
| |
− | |पात
| |
− | |३०/०५/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३६
| |
− | |मन्व०
| |
− | |०४/०६/२०२३
| |
− | |ज्येष्ठ,शुक्ल पूर्णिमा
| |
− | |वैवस्वत मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३७
| |
− | |वैधृति
| |
− | |०८/०६/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |३८
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१५/०६/२०२३
| |
− | |
| |
− | |मिथुन संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | | ३९
| |
− | |अमा०
| |
− | | १७/०६/२०२३
| |
− | |आषाढ, कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४०
| |
− | | पात
| |
− | |२५/०६/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४१
| |
− | |मन्व०
| |
− | |२८/०६/२०२३
| |
− | |आषाढ, शुक्ल दशमी
| |
− | |रैवत मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४२
| |
− | |मन्व०
| |
− | |०३/०७/२०२३
| |
− | |आषाढ, शुक्ल, पूर्णिमा
| |
− | |चाक्षुष मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४३
| |
− | |वैधृति
| |
− | |०४/०७/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४४
| |
− | |अमा०
| |
− | |१७/०७/२०२३
| |
− | |श्रावण, कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४५
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१७/०७/२०२३
| |
− | |
| |
− | | कर्क संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | | ४६
| |
− | |पात
| |
− | |२०/०७/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४७
| |
− | |वैधृति
| |
− | |३०/०७/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४८
| |
− | |पात
| |
− | |१४/०८/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्य्तीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |४९
| |
− | |अमा०
| |
− | |१५/०८/२०२३
| |
− | |श्रावण, कृष्ण पक्ष(अधिक मास) अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५०
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१७/०८/२०२३
| |
− | |
| |
− | |सिंह संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५१
| |
− | |वैधृति
| |
− | |२४/०८/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५२
| |
− | |मन्व०
| |
− | | ०७/०९/२०२३
| |
− | |भाद्रपद,कृष्ण, अष्टमी
| |
− | |इन्द्रसावर्णि मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५३
| |
− | |पात
| |
− | |०८/०९/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५४
| |
− | |मन्व०
| |
− | |१४/०९/२०२३
| |
− | |भाद्रपद, कृष्ण, अमावस्या
| |
− | |दैवसावर्णि मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५५
| |
− | |अमा०
| |
− | |१४/०९/२०२३
| |
− | |भाद्रपद, कृष्ण, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५६
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१७/०९/२०२३
| |
− | |
| |
− | |कन्या संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५७
| |
− | |मन्व०
| |
− | | १८/०९/२०२३
| |
− | |भाद्रपद,शुक्ल,तृतीया
| |
− | |रुद्रसावर्णि मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५८
| |
− | |वैधृति
| |
− | |१८/०९/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |५९
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |२९/०९/२०२३
| |
− | |भाद्रपद, शुक्ल, पूर्णिमा
| |
− | |पूर्णिमा श्राद्ध
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६०
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |२९/०९/२०२३
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, प्रतिपदा
| |
− | |प्रतिपदा श्राद्ध
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६१
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |३०/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण,द्वितीया
| |
− | |द्वितीया
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६२
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | | ०१/१०/२०२३
| |
− | |आश्विन, कृष्ण,तृतीया
| |
− | |तृतीया
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६३
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०२/१०/२०२३
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, चतुर्थी
| |
− | |चतुर्थी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६४
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०२/१०/२०२३
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, चतुर्थी(भरणी)
| |
− | |महाभरणी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६५
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०३/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण,पञ्चमी
| |
− | |पञ्चमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६६
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०४/
| |
− | | आश्विन, कृष्ण, षष्ठी
| |
− | |षष्ठी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६७
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०५/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, सप्तमी
| |
− | |सप्तमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६८
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०६/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, अष्टमी
| |
− | |अष्टमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |६९
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०७/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, नवमी
| |
− | |नवमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | | ७०
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०८/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, दशमी
| |
− | |दशमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७१
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |०९/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, एकादशी
| |
− | |एकादशी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७२
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |१०/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, मघा श्राद्ध
| |
− | |मघा श्राद्ध
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७३
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |११/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, द्वादशी
| |
− | |द्वादशी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७४
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |१२/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, त्रयोदशी
| |
− | |त्रयोदशी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७५
| |
− | | पितृ पक्ष
| |
− | |१३/
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, चतुर्दशी
| |
− | |चतुर्दशी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७६
| |
− | |पितृ पक्ष
| |
− | |१४
| |
− | |आश्विन, कृष्ण, सर्वपितृ अमावस्या
| |
− | |अमावस्या
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७७
| |
− | |वैधृति
| |
− | |१४/१०/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |७८
| |
− | |पात
| |
− | |०४/१०/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |7९
| |
− | |युगादि
| |
− | |१२/१०/२०२३
| |
− | |
| |
− | |कलियुग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८०
| |
− | |अमा०
| |
− | |१४/१०/२०२३
| |
− | | आश्विन, कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८१
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१८/१०/२०२३
| |
− | |
| |
− | |तुला संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८२
| |
− | |मन्व०
| |
− | |२३/१०/२०२३
| |
− | |आश्विन,शुक्ल,नवमी
| |
− | |दक्षसावर्णि मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८३
| |
− | |पात
| |
− | |२९/१०/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८४
| |
− | |वैधृति
| |
− | |०८/११/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८५
| |
− | |अमा०
| |
− | |१३/११/२०२३
| |
− | |कार्तिक, कृष्ण पक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८६
| |
− | | संक्रा०
| |
− | | १७/११/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वृश्चिक संक्रान्ति
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८७
| |
− | |युगादि
| |
− | |२१/११/२०२३
| |
− | |
| |
− | |सत युगादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८८
| |
− | |मन्व०
| |
− | |२४/११/२०२३
| |
− | |कार्तिक,शुक्ल द्वादशी
| |
− | |तामस मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |८९
| |
− | |पात
| |
− | |२४/११/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९०
| |
− | |मन्व०
| |
− | |२७/११/२०२३
| |
− | |कार्तिक, शुक्ल पूर्णिमा
| |
− | |उत्तम मन्वादि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९१
| |
− | |वैधृति
| |
− | |०३/१२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९२
| |
− | |अष्टका पूर्वेद्युः
| |
− | |०४/१२/२०२३
| |
− | |मार्गशीर्ष, कृष्ण, सप्तमी
| |
− | |अष्टका पूर्वेद्युः
| |
− | |
| |
− | |
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− | |
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− | |-
| |
− | |९३
| |
− | |अन्वष्टका
| |
− | |०५/१२/२०२३
| |
− | |मार्गशीर्ष, कृष्ण, अष्टमी
| |
− | |अन्वष्टका
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९४
| |
− | | अमा
| |
− | |१२/१२/२०२३
| |
− | |मार्गशीर्ष, कृष्णपक्ष, अमावस्या
| |
− | |दर्श
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९५
| |
− | |संक्रा०
| |
− | |१६/१२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |धनु
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९६
| |
− | |पात
| |
− | |१९/१२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |व्यतीपात योग
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |९७
| |
− | |वैधृति
| |
− | |२८/१२/२०२३
| |
− | |
| |
− | |वैधृति योग
| |
− | |
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− | |-
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− | |}
| |
| ===अन्य श्राद्ध योग्यानि महाफलप्रदानि श्राद्ध दिवसानि=== | | ===अन्य श्राद्ध योग्यानि महाफलप्रदानि श्राद्ध दिवसानि=== |
| ==श्राद्ध के फल== | | ==श्राद्ध के फल== |
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| ==अनन्तपुण्य संपादकं पञ्चाङ्गम्== | | ==अनन्तपुण्य संपादकं पञ्चाङ्गम्== |
| मास, तिथि, वार नक्षत्र और योग के संयोग से जो-जो प्रत्येक अलभ्य योग उत्पन्न होते हैं उनके आचरण के प्रभाव से अर्थ और धर्म पुरुषार्थ प्रद होते हैं। जैसे जिस किसी का भी धन अर्जन के लिये पुण्य आवश्यक होता है। प्रत्येक व्यक्ति का संकल्पपूर्ति के लिये पुण्य संपादन बहुत आवश्यक है। जिस प्रकार संसार में किसी भी कार्य की सिद्धि के लिये धन की आवश्यकता होती है। | | मास, तिथि, वार नक्षत्र और योग के संयोग से जो-जो प्रत्येक अलभ्य योग उत्पन्न होते हैं उनके आचरण के प्रभाव से अर्थ और धर्म पुरुषार्थ प्रद होते हैं। जैसे जिस किसी का भी धन अर्जन के लिये पुण्य आवश्यक होता है। प्रत्येक व्यक्ति का संकल्पपूर्ति के लिये पुण्य संपादन बहुत आवश्यक है। जिस प्रकार संसार में किसी भी कार्य की सिद्धि के लिये धन की आवश्यकता होती है। |
− | {| class="wikitable"
| |
− | |+(अलभ्य योग)
| |
− | !क्रम संख्या
| |
− | !दिनाँक
| |
− | !मास/पक्ष(उ०भा०)
| |
− | !मास/पक्ष(द०भा०)
| |
− | !तिथि
| |
− | !व्रत
| |
− | !व्रत विधान
| |
− | !फल
| |
− | !तिथि निर्णय
| |
− | !ग्रन्थ
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | | rowspan="14" |'''माघ/शुक्ल'''
| |
− | | rowspan="14" |'''माघ/शुक्ल'''
| |
− | |तृतीया
| |
− | |गुडलवणयोर्दानम्
| |
− | उमा पूजा
| |
− |
| |
− | ललिताव्रतम्
| |
− |
| |
− | हरतृतीया व्रत
| |
− |
| |
− | देव्या आन्दोलन व्रतम्
| |
− | |रसकल्याणिनी व्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |स्मृ०कौ०/चतु०चिन्ता०
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |चतुर्थी
| |
− | |कुन्दैः शिवपूजा
| |
− | वरदा गौरीपूजा
| |
− |
| |
− | शान्ताचतुर्थी
| |
− |
| |
− | विनायकचतुर्थी
| |
− |
| |
− | उमापूजा
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |पञ्चमी
| |
− | |श्रीपञ्चमी
| |
− | श्रीपञ्चमी
| |
− | |वसन्तोत्सवोयम्
| |
− | लक्ष्मीसरस्वती पूजा
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |षष्ठी
| |
− | |विशोकषष्ठीव्रतम्
| |
− | मन्दारषष्ठी
| |
− |
| |
− | कामषष्ठी
| |
− |
| |
− | शीतलाषष्ठी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |सप्तमी
| |
− | |रथसप्तमी
| |
− | विष्णुरूपेण भास्कर पूजा
| |
− |
| |
− | सूर्यार्घ्यदानम्
| |
− |
| |
− | अचलासप्तमी
| |
− |
| |
− | मन्दारसप्तमी
| |
− |
| |
− | रथांक सप्तमी
| |
− |
| |
− | महासप्तमी
| |
− |
| |
− | जयन्तीव्रतम्
| |
− |
| |
− | सिद्धार्थकादि सप्तमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | विजयसप्तमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | द्वादशसप्तमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | पुत्रसप्तमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | विशोकसप्तमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | विजयायज्ञसप्तमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | द्वादशसप्तमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | पुरश्चरणसप्तमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | सितासप्तमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | विधानसप्तमी/आरोग्यसप्तमी
| |
− |
| |
− | माकरीसप्तमी
| |
− |
| |
− | मन्वादिः
| |
− |
| |
− | मित्रनाम्नो भास्करस्य पूजा
| |
− |
| |
− | रवेः रथयात्रा
| |
− | |अरुणोदये गंगायां स्नानम्
| |
− | |
| |
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− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
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− | |अष्टमी
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− | |भीष्माष्टमी
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− | दुर्गाष्टमी
| |
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| |
− | |
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− | |
| |
− | |
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− | |-
| |
− | |
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| |
− | |नवमी
| |
− | |महानन्दा नवमी
| |
− | |
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− | |
| |
− | |
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− | |
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− | |-
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− | |
| |
− | |०१/०२/२०२२
| |
− | |एकादशी
| |
− | |भीम एकादशी/भीष्म एकादशी/ जय एकादशी/भीष्म पञ्चक व्रत आरंभ/ तिल पद्म व्रत
| |
− | |
| |
− | |संतति अभिवृध्दि भीष्म/ भीम एका० २४ एकादशी व्रत फल प्राप्ति/
| |
− | |
| |
− | |(काञ्ची कामकोटी पीठ पञ्चाग)
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |०२/०२/२०२२
| |
− | |द्वादशी
| |
− | |भीष्म/भीम/वराह/षट्तिल द्वादशी/तिलपद्म व्रत/ प्रदोष/
| |
− | |उपवास/तिल स्नान/ तिल विष्णु पूजन/ तिल नैवेद्य/ तिल तेल दीपदान/ तिल से होम/तिअ दान/तिल भक्षण
| |
− | |द्रष्टव्य
| |
− | |
| |
− | |
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− | |-
| |
− | |
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| |
− | |
| |
− | |माघ शुक्ल द्वादशी पुनर्वसु योग
| |
− | |स्नान, दान, जप, होम
| |
− | |विषेश फल
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |०३/०२/२०२२
| |
− | |त्रयोदशी
| |
− | |वराह कल्पादि/ प्रदोष
| |
− | |स्नान, दान, जप, होम,श्रद्ध
| |
− | |अक्षय/कोटी गुणित
| |
− | |षण्णवति
| |
− | |
| |
− | |-
| |
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| |
− | |०३/०२/२०२२
| |
− | |त्रयोदशी
| |
− | |दिनत्रय व्रत
| |
− | |माघ शुक्ल (त्रयोदशी,चतुर्दशी,पूर्णिमा) को स्नान,दान,पूजादि
| |
− | |आयु,आरोग्य,सम्पत्ति,रूप, मनोरथ सफलता, माघगंगा स्नान वषत् (प्रतिदिन सुवर्ण दान फल प्राप्ति)
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |०४/०२/२०२२
| |
− | |पूर्णिमा
| |
− | | माघ पूर्णिमा
| |
− | कलियुगादि
| |
− |
| |
− | घृतकम्बल विधि
| |
− | |समुद्र स्नान,तीर्थ स्नान, तिलपात्र,कम्बल अजिन रक्तवस्त्र आदि दानम(स्नान,दान, जप पूजा होमादिक ) प्रयाग में विशेष
| |
− | |अधिक पुण्यप्रद
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |चन्द्रार्क योग(भानुवार पूर्णिमा तिथि वशात)
| |
− | |स्नान,दान,जप होमादि
| |
− | |विशेष पुण्यप्रद
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | | colspan="10" | '''(उ०भार०)माघमास(कृष्णपक्ष)फाल्गुनमास(कृष्णपक्ष)(दक्षि०भार०)'''
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |माघमास(कृष्णपक्ष)
| |
− | |फाल्गुनमास(कृष्णपक्ष)
| |
− | |प्रतिपदा
| |
− | |सौभाग्यावाप्तिव्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |च०चिन्ता०
| |
− | |-
| |
− | |
| |
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| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |चतुर्थी
| |
− | |गणेशचतुर्थी
| |
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| |
− | |कृ०स०
| |
− | |-
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− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |सप्तमी
| |
− | |निभुक्षार्कव्रतचतुष्टयम्
| |
− | सर्वाप्तिसप्तमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | अष्टापूर्वेद्युः
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
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− | |
| |
− | |
| |
− | |अष्टमी
| |
− | |अष्टकाश्राद्धम्
| |
− |
| |
− | जानकी व्रत
| |
− |
| |
− | मंगलाव्रतम्
| |
− |
| |
− | कालाष्टमी
| |
− | |सर्व अभीष्ट सिद्धि
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |नवमी
| |
− | |अन्वष्टका श्राद्धम्
| |
− | |
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− | |
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− | |
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− | |-
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− | |
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| |
− | |एकादशी
| |
− | |विजयैकादशी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
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− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |द्वादशी
| |
− | |तिलद्वादशीव्रतम्
| |
− | तिलस्नानादिः,पूर्वदिने उपवासश्च
| |
− |
| |
− | कृष्णद्वादशीव्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |चतुर्दशी
| |
− | |महाशिवरात्रिः
| |
− | रटन्तीचतुर्दशी(अरुणोदये स्नानं यमतर्पणञ्च)
| |
− |
| |
− | सर्वकामव्रतम्
| |
− |
| |
− | कृष्णचतुर्दशीव्रतम्
| |
− |
| |
− | शिवरात्रिका
| |
− | |
| |
− | |
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− | |
| |
− | |
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− | |-
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− | |
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| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |अमावस्या
| |
− | |युगादित्वादपिण्डं श्राद्धम्
| |
− | नवनीतधेनु दानम्
| |
− |
| |
− | पितृकार्यम्
| |
− |
| |
− | मन्वादिः
| |
− |
| |
− | अर्द्धोदय योगः
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |माघमास कृत्यम(परिशिष्ट)
| |
− | | colspan="8" |त्रिवेण्यां स्नानं, प्रात्यहिकस्नानं, तिलपात्रदानं, अर्धोदयः, प्रयागे वेणीस्नानं, अस्थिप्रक्षेपः, त्रिवेण्यां देहत्यागः, जीवच्छ्राद्धं, धर्मविशेषाः, अन्नदानं सहस्रभोजनादि तिलकार्यंच, तिलहोमः,
| |
− | २, विष्णुपूजा
| |
− |
| |
− | ३, मूलकभक्षण निषेधः
| |
− | |-
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− | |-
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− | | colspan="9" |'''फाल्गुनमास शुक्लपक्ष(उ०द० उभयोरेकमेव)'''
| |
− | |-
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− | |
| |
− | |फाल्गुन/शुक्लपक्ष
| |
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| |
− | |प्रतिपदा
| |
− | |भद्रचतुष्टयव्रतम्
| |
− | गुणावाप्तिव्रतम्
| |
− |
| |
− | पयोव्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
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− | |
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− | |
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− | |-
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− | |
| |
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− | |तृतीया
| |
− | |मधूकव्रतम्
| |
− | सौभाग्यतृतीयाव्रतम्
| |
− | |
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− | |
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− | |
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− | |
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− | |-
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− | |
| |
− | |चतुर्थी
| |
− | |गणेशव्रतम्
| |
− | अग्निव्रतम्
| |
− | |
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− | |
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− | |
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− | |
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− | |-
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− | |
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− | |
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− | |
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− | |पञ्चमी
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− | |अनन्तपञ्चमीव्रतम्
| |
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− | |
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| |
− | |
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− | |-
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| |
− | |सप्तमी
| |
− | |अर्कसम्पुटसप्तमीव्रतम्
| |
− | कामदासप्तमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | त्रिगतिसप्तमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | द्वादशसप्तमीव्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
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− | |-
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− | |
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− | |
| |
− | |अष्टमी
| |
− | |ललितकान्तीदेवीव्रतम्
| |
− | दुर्गाष्टमी
| |
− |
| |
− | महीमानम्
| |
− |
| |
− | अष्टमी उपवासम्
| |
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− | |-
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− | |नवमी
| |
− | |अन्नदा नवमीव्रतम्
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− | |-
| |
− | |
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| |
− | |
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| |
− | |एकादशी
| |
− | |आमलक्येकादशी व्रतम्
| |
− | पापनाशिनी एकादशी
| |
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− | |-
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− | |द्वादशी
| |
− | |गोविन्दद्वादशी
| |
− | मनोरथद्वादशी व्रतम्
| |
− |
| |
− | सुकृतद्वादशी व्रतम्
| |
− |
| |
− | सुगतिद्वादशी व्रतम्
| |
− |
| |
− | विजयाद्वादशी व्रतम्
| |
− |
| |
− | आमदकी व्रतम्
| |
− | |
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− | |-
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− | |त्रयोदशी
| |
− | |नन्दव्रतम्
| |
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− | |
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− | |-
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− | |चतुर्दशी
| |
− | |महेश्वर व्रतम्
| |
− | ललितकान्त्याख्यदेवी व्रतम्
| |
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| |
− | |
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− | |-
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− | |पूर्णिमा
| |
− | |होलिका
| |
− | दोलयात्रा दोलाक्रीडनं च
| |
− |
| |
− | दोलयात्रा
| |
− |
| |
− | अशोकपूर्णिमा व्रतम्
| |
− |
| |
− | लक्ष्मीनारायणव्रतम्
| |
− |
| |
− | धामत्रिरात्रव्रतम्
| |
− |
| |
− | शयनदानम्
| |
− |
| |
− | महाफाल्गुनी
| |
− |
| |
− | हुताशनी पूर्णिमा
| |
− |
| |
− | मन्वादिः
| |
− |
| |
− | शशांकपूजा
| |
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| |
− | |
| |
− | |
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− | |-
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| |
− | | colspan="8" | '''(दक्षि०भार०)फाल्गुनमास कृ०पक्ष / चैत्र कृ०पक्ष (उ०भा०)'''
| |
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− | |-
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− | |फाल्गुन कृष्ण/(चैत्र)
| |
− | |प्रतिपदा
| |
− | |धूलिवन्दनम्
| |
− | आम्रपुष्पभक्षणम्
| |
− |
| |
− | तैलाभ्यंगो दोलोत्सवश्च
| |
− |
| |
− | वसन्तारम्भोत्सवः
| |
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− | |द्वितीया
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− | |काममहोत्सवः
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− | |तृतीया
| |
− | |कल्पादिः
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− | |चतुर्थी
| |
− | |संकष्टी गणेश चतुर्थी
| |
− | |
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− | |
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− | |
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− | |
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− | |-
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− | |
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− | |
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− | |
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− | |
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− | |पञ्चमी
| |
− | |कश्मीराप्रतिमापूजनम्
| |
− | |
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− | |
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− | |
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− | |
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− | |-
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− | |
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− | |षष्ठी
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− | |स्कन्दषष्ठी
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− | |
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− | |-
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− | |
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− | |
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− | |
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− | |
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− | |सप्तमी
| |
− | |अष्टका पूर्वेद्युः
| |
− | |
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− | |
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− | |
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− | |
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− | |-
| |
− | |
| |
− | |
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− | |
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− | |
| |
− | |अष्टमी
| |
− | |अष्टका श्राद्धं नित्यम्
| |
− | सीतापूजा
| |
− |
| |
− | कालाष्टमी
| |
− |
| |
− | शीतलाष्टमी
| |
− |
| |
− | रजस्वलाकश्मीराप्रतिमायाः स्नापनादि
| |
− |
| |
− | महीमानम्
| |
− | |
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− | |
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− | |
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− | |
| |
− | |-
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− | |
| |
− | |
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− | |
| |
− | |
| |
− | |नवमी
| |
− | |अन्वष्टका श्राद्धम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
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− | |
| |
− | |-
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− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |एकादशी
| |
− | |कृष्णैकादशी व्रतम्
| |
− | पापमोचिनी एकादशी
| |
− |
| |
− | छन्दोदेवपूजा
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
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− | |-
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− | |
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− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |द्वादशी
| |
− | |नृसिंहद्वादशीव्रतम्
| |
− | फाल्गुनश्रवण द्वादशी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |त्रयोदशी
| |
− | |वारुणी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
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− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |चतुर्दशी
| |
− | |शिवरात्रि व्रतम्
| |
− | पिशाचचतुर्दशी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |अमावस्या
| |
− | |मन्वादिः
| |
− | वत्सरान्त श्राद्धं श्वभ्यो न्नदानं दानं च
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
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− | |
| |
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− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | | rowspan="15" |चैत्रमास/शुक्लपक्ष
| |
− | | rowspan="15" |चैत्रमास/शुक्लपक्ष
| |
− | |प्रतिपदा
| |
− | |चान्द्रवत्सर आरम्भः
| |
− | ब्रह्मपूजनम्
| |
− |
| |
− | वत्सराधिपपूजा
| |
− |
| |
− | कल्पादिः
| |
− |
| |
− | मत्स्यजयंती
| |
− |
| |
− | नवरात्रारम्भः
| |
− |
| |
− | गौरीव्रतम्
| |
− |
| |
− | प्रपा दान आरम्भः
| |
− |
| |
− | धर्म घट दानम्
| |
− |
| |
− | विद्याव्रतं सोद्यापनं
| |
− |
| |
− | पौरुषप्रतिपद व्रतम्
| |
− |
| |
− | तिलकव्रतम्
| |
− |
| |
− | ब्राह्मण्य प्राप्तिव्रतम्
| |
− |
| |
− | धनावाप्ति व्रतम्
| |
− |
| |
− | सर्वाप्ति व्रतम्
| |
− |
| |
− | चतुर्युग व्रतम्
| |
− |
| |
− | देवमूर्ति व्रतम्
| |
− |
| |
− | सर्व आपच्छान्तिकरमहाशान्तिः
| |
− |
| |
− | नदी व्रतम्
| |
− |
| |
− | लोकव्रतम्
| |
− |
| |
− | शैलव्रतम्
| |
− |
| |
− | समुद्रव्रतम्
| |
− |
| |
− | द्वीपव्रतम्
| |
− |
| |
− | पितृव्रतं सप्तमूर्तिव्रतं वा
| |
− |
| |
− | सप्तसागर व्रतं
| |
− |
| |
− | सप्तर्षिव्रतम्
| |
− |
| |
− | दमनक पूजा( ,,,,)
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |द्वितीया
| |
− | |बालेन्दुव्रतम्
| |
− | उमादि पूजा
| |
− |
| |
− | प्रकृतिपुरुष द्वितीयाव्रतम्
| |
− |
| |
− | नेत्रद्वितीया व्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |तृतीया
| |
− | |आन्दोलनव्रतम(पार्वती परमेश्वरयोः)
| |
− | रामचन्द्रदोलोत्सवः
| |
− |
| |
− | मन्वादिः
| |
− |
| |
− | उमा पूजा
| |
− |
| |
− | सौभाग्य शयन व्रतं(क० गौरीव्रतं, ख० गौरीतृतीया)
| |
− |
| |
− | मत्स्य जयंती
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |चतुर्थी
| |
− | |गणपतेर्दमनक आरोपणम्
| |
− | आश्रम व्रतम्
| |
− |
| |
− | चतुर्मूर्ति व्रतम्
| |
− |
| |
− | गणेश पूजा
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |पञ्चमी
| |
− | |श्री पञ्चमी
| |
− | श्रीव्रतम्
| |
− |
| |
− | हयपूजा
| |
− |
| |
− | नागपूजा
| |
− |
| |
− | पञ्चमहाभूत व्रतम्
| |
− |
| |
− | संवत्सरव्रतम् अथवा पञ्चमूर्तिव्रतम्
| |
− |
| |
− | कल्पादिः
| |
− |
| |
− | पञ्चमूर्ति व्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |षष्ठी
| |
− | |स्कन्द उत्पत्तिः दमनकेन तत्पूजनं च
| |
− | कुमार षष्ठीव्रतम्
| |
− |
| |
− | अशोक षष्ठी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |सप्तमी
| |
− | |भास्कर पूजा
| |
− | गोमय आदि सप्तमी व्रतम्
| |
− |
| |
− | नामसप्तमी व्रतम्
| |
− |
| |
− | सूर्यव्रतम्
| |
− |
| |
− | मरुद्व्रतम्
| |
− |
| |
− | तुरग सप्तमी व्रतम्
| |
− |
| |
− | द्वादशसप्तमी व्रतम्
| |
− |
| |
− | वासन्ती पूजा
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |अष्टमी
| |
− | |अशोक कलिका भक्षिणम्
| |
− | भवानी यात्रा
| |
− |
| |
− | लौहित्ये स्नानम्
| |
− |
| |
− | वसुव्रतम्
| |
− |
| |
− | अशोक यात्रा
| |
− |
| |
− | दुर्गाष्टमी
| |
− |
| |
− | नद्यां स्नानेन वाजपेयफलम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |नवमी
| |
− | |रामनवमी व्रतम्
| |
− | नवरात्रसमाप्तिः देवीपूजासहिता
| |
− |
| |
− | दुर्गानवमी व्रतम्
| |
− |
| |
− | भद्रकाली नवमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |दशमी
| |
− | |रामनवमी व्रतांगहोमः
| |
− | धर्मराजपूजा दमनकेन
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |एकादशी
| |
− | |ऋषिपूजा दमनकेन
| |
− | श्रीकृष्ण दोलोत्सवः
| |
− |
| |
− | अवैधव्य शुक्लैकादशीव्रतम्
| |
− |
| |
− | कामदा एकादशी
| |
− |
| |
− | वास्तु पूजा
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |द्वादशी
| |
− | |विष्णोर्दमनोत्सवः
| |
− | मदनद्वादशी व्रतम्
| |
− |
| |
− | भर्तृ प्राप्तिव्रतम्
| |
− |
| |
− | वासुदेवार्चनम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |त्रयोदशी
| |
− | |ईश्वरपूजा दमनकेन
| |
− | मदन पूजा
| |
− |
| |
− | दमनात्मक मदनपूजा
| |
− |
| |
− | मदन महोत्सवः
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |चतुर्दशी
| |
− | |नृसिंह दोलोत्सवः
| |
− | शिवे दमनकारोपः
| |
− |
| |
− | शिवसन्निधौ गंगायां स्नानेन पिशाचत्व निवृत्तिः
| |
− |
| |
− | मदन पूजा उत्सवः
| |
− |
| |
− | दमनक चतुर्दशी
| |
− |
| |
− | महोत्सवव्रतम्
| |
− |
| |
− | पवित्र रोपणम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |पूर्णिमा
| |
− | |सर्वदेवार्चनं दमनकेन
| |
− | वैशाखस्नानारम्भः
| |
− |
| |
− | पाशुपतव्रतम्
| |
− |
| |
− | मलव्यपोहनम्
| |
− |
| |
− | स्नानदानाभ्यां दशगुणं फलम्
| |
− |
| |
− | निकुम्भ पूजा
| |
− |
| |
− | इरामञ्जरी पूजा
| |
− |
| |
− | महाचैत्री
| |
− | |
| |
− | |
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− | |
| |
− | |
| |
− | |-
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− | |
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− | |
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− | |
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− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | | colspan="7" |'''चैत्रमास,कृष्णपक्ष(उ०भार०)/वैशाखमास,कृष्णपक्ष(द०भार०)'''
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |चैत्र,कृष्ण
| |
− | |वैशाख, कृष्ण
| |
− | |प्रतिपदा
| |
− | |पातालव्रतम्
| |
− |
| |
− | ज्ञानावाप्तिव्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
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− | |
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| |
− | |चतुर्थी
| |
− | |संकष्टी गणेशचतुर्थी
| |
− | |
| |
− | |
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| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
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− | |
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− | |
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− | |
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− | |षष्ठी
| |
− | |स्कन्दषष्ठी
| |
− | |
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− | |
| |
− | |
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− | |
| |
− | |-
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− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |अष्टमी
| |
− | |कृष्णपूजा
| |
− | अष्टका श्राद्धम्
| |
− |
| |
− | कालाष्टमी
| |
− |
| |
− | सन्तानाष्टमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | मंगलाव्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |एकादशी
| |
− | |वरूथिनी एकादशी
| |
− | |
| |
− | |
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− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |चतुर्दशी
| |
− | |गंगास्नानेन पिशाचत्व निवृत्तिः
| |
− | शिवरात्रिः
| |
− |
| |
− | कठिन्यादिभिः शुक्लीकृते घटे रक्तपताकायुतां स्नुहीशाखां स्थापयित्वा गृहोपरि तत्स्थापनम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |अमावस्या
| |
− | |वह्निव्रतम्
| |
− | पितृव्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | | colspan="8" |'''(अमान्त, पूर्णिमान्त वैशाखमास, शुक्लपक्ष)'''
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |वैशाख,शुक्ल
| |
− | |वैशाख,शुक्ल
| |
− | |तृतीया
| |
− | |विष्णुपूजा
| |
− | युगादि
| |
− |
| |
− | परशुराम जयंती
| |
− |
| |
− | अक्षय तृतीया
| |
− |
| |
− | गंगायां स्नानम्
| |
− |
| |
− | कौशिक्यां स्नानम्
| |
− |
| |
− | अनन्त तृतीया व्रतम्
| |
− |
| |
− | कल्पादिः
| |
− |
| |
− | जगन्नाथस्य चन्दनयात्रा
| |
− |
| |
− | महाफलव्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
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− | |
| |
− | |
| |
− | |चतुर्थी
| |
− | |गणेश चतुर्थी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |सप्तमी
| |
− | |गंगा सप्तमी
| |
− | शर्करा सप्तमी व्रतम्
| |
− |
| |
− | निम्बसप्तमी व्रतम्
| |
− |
| |
− | अनोदना सप्तमी व्रतम्
| |
− |
| |
− | द्वादश सप्तमी व्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |अष्टमी
| |
− | |देवीपूजा आम्ररसेन
| |
− | दुर्गाष्टमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |नवमी
| |
− | |चण्डिका पूजनम्
| |
− | सीता नवमी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |एकादशी
| |
− | |मोहिनी एकादशी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |द्वादशी
| |
− | |मधुसूदन पूजा
| |
− | पाशाभिधा द्वादशी
| |
− |
| |
− | पितीतकी द्वादशी
| |
− |
| |
− | जामदग्न्य व्रतम्
| |
− |
| |
− | हरिक्रीडायनम्
| |
− |
| |
− | वैष्णवी द्वादशी
| |
− |
| |
− | रुक्मिणी द्वादशीव्रतम्
| |
| | | |
− | त्रिस्पृशा मधुसूदनी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |त्रयोदशी
| |
− | |कामदेवव्रतम्
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |चतुर्दशी
| |
− | |नृसिंह जयन्ती
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |पूर्णिमा
| |
− | |तिलैः स्नानादि
| |
− | धर्मराज प्रीत्यै नानाविध दानम्
| |
− |
| |
− | दानमनन्त फलम्
| |
− |
| |
− | नित्यश्राद्ध कालः
| |
− |
| |
− | सोमव्रतम्
| |
− |
| |
− | महावैशाखी
| |
− |
| |
− | कूर्म जयन्ती
| |
− |
| |
− | महाज्यैष्ठी
| |
− |
| |
− | महा वैशाखी
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
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− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | | colspan="4" |'''(अमान्त वैशाखमास/कृष्णपक्ष। पूर्णिमान्त ज्येष्ठमास/ कृष्णपक्ष)'''
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |-
| |
− | |
| |
− | |
| |
− | |वैशाख/कृष्णपक्ष
| |
− | |ज्येष्ठमास/कृष्णपक्ष
| |
− | |प्रतिपदा
| |
− | |श्रीप्राप्तिव्रतम्
| |
− | भूतमात्रुत्सवः
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− | |चतुर्थी
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− | |गणेश चतुर्थी व्रत
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− | |अष्टमी
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− | |कालाष्टमी
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− | |एकादशी
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− | |अपरैकादशी
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− | |चतुर्दशी
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− | |शिवरात्रिः
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− | सावित्रीव्रतम्
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− | |अमावस्या
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− | |प्रयागे स्नानं पापापहम्
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− | सावित्री व्रतम्
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− | |-
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− | | colspan="4" |'''(अमान्त ज्येष्ठमास, शुक्लपक्ष। पूर्णिमान्त ज्येष्ठमास, शुक्लपक्ष)'''
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− | |-
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− | |ज्येष्ठमास/शुक्लपक्ष
| |
− | |ज्येष्ठमास/शुक्लपक्ष
| |
− | |प्रतिपदा
| |
− | |करवीरव्रतम्
| |
− | भद्रचतुष्टयव्रतम्
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| |
− | दशाश्वमेधे स्नानम्
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− | |तृतीया
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− | |त्रिविक्रमतृतीयाव्रतम्
| |
− | राज्यव्रतम्
| |
− |
| |
− | रम्भाव्रतम्
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− |
| |
− | रम्भातृतीयाव्रतम्
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− | |-
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− | |चतुर्थी
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− | |उमापूजनम्
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− | गणेशचतुर्थी
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| |
− | शुक्लादेवी पूजा
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− | |-
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− | |षष्ठी
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− | |आरण्यक षष्ठी
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− | |सप्तमी
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− | |द्वादश सप्तमीव्रतम्
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− | |अष्टमी
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− | |दुर्गाष्टमी
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− | त्रिलोचनाष्टमी
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− | |नवमी
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− | |ब्रह्माणी नाम्न्या
| |
− | उमायाः पूजा
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− | |-
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− | |दशमी
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− | |गंगावतारः
| |
− | नदीमात्रे स्नानं विशेषतः गंगायाम्
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− | सेतुबन्धे रामेश्वर दर्शनम्
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− | |-
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− | |एकादशी
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− | |निर्जला एकादशी व्रतम्
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− | |-
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− | |द्वादशी
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− | |त्रिविक्रम पूजा
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− | चम्पक द्वादशी
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− | |-
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− | |
| |
− | |त्रयोदशी
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− | |दुर्गन्ध दौर्भाग्य नाशन त्रयोदशी व्रतम्
| |
− | रम्भात्रिरात्रि व्रतम्
| |
− |
| |
− | जातित्रिरात्रि व्रतम्
| |
− | |
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− | |-
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| |
− | |चतुर्दशी
| |
− | |रुद्रव्रतम्
| |
− | वायुव्रतम्
| |
− |
| |
− | चम्पक चतुर्दशी
| |
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− | |पूर्णिमा
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− | |तिलच्छत्रादि दानम्
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− | बिल्वत्रिरात्र व्रतम्
| |
− |
| |
− | वटसावित्री व्रतम्
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− |
| |
− | मन्वादिः
| |
− |
| |
− | पुत्रकामव्रतम्
| |
− |
| |
− | ब्राह्मण्य अवाप्ति व्रतम्
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− |
| |
− | अशोक त्रिरात्रि व्रतम्
| |
− |
| |
− | महाज्यैष्ठी
| |
− |
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− | स्नानयात्रा,जगन्नाथदेवस्य स्नानम्
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− | स्नानपूर्णिमा
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− | | colspan="4" |'''(अमान्त, ज्येष्ठमास,कृष्णपक्ष/ पूर्णिमान्त, आषाढमास, कृष्णपक्ष)'''
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− | |ज्येष्ठ/कृष्णपक्ष
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− | |आषाढ/कृष्ण
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− | |प्रतिपदा
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− | |भोगावाप्ति व्रतम्
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− | |-
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− | |चतुर्थी
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− | |गणेश चतुर्थी(संकष्टी)
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− | |-
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− | |अष्टमी
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− | |तिन्दुकाष्टमी व्रतम्
| |
− | शिवपूजा
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− | कालाष्टमी
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| |
− | विनायक अष्टमी
| |
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− | |एकादशी
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− | |योगिनी एकादशी
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− | |-
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− | |चतुर्दशी
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− | |मासिक शिवरात्रिः
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− | |-
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− | |अमावस्या
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− | |श्राद्धसमय विशेषः
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− | |-
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− | | colspan="4" |'''(अमान्त, आषाढमास, शुक्लपक्ष/ पूर्णिमान्त,आषाढमास, शुक्लपक्ष)'''
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− | |-
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− | |आषाढ/शुक्ल
| |
− | |आषढ/शुक्ल
| |
− | |द्वितीया
| |
− | |रथयात्रा
| |
− | मनोरथ द्वितीया
| |
− |
| |
− | गुण्डिचा यात्रा
| |
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− | |चतुर्थी
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− | |विनायक चतुर्थी
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− | |-
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− | |षष्ठी
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− | |स्कन्दव्रतम्
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− | |-
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− | |
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| |
− | |सप्तमी
| |
− | |विवस्वत्सप्तमी
| |
− | मित्राख्य भास्करपूजा
| |
− |
| |
− | द्वादशसप्तमी व्रतम्
| |
− | |
| |
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− | |-
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| |
− | |अष्टमी
| |
− | |महिषघ्नी पूजा
| |
− | दुर्गाष्टमी
| |
− |
| |
− | परशुरामीय अष्टमी
| |
− | |
| |
− | |
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− | |-
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− | |
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| |
− | |नवमी
| |
− | |ऐन्द्रीदुर्गा पूजा
| |
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− | |-
| |
− | |
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− | |दशमी
| |
− | |जगन्नाथस्य पुनर्यात्रा
| |
− | मन्वादिः
| |
− | |
| |
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− | |
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− | |-
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− | |एकादशी
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− | |हरिशयनम्
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− | |-
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− | |द्वादशी
| |
− | |पारणायां वैशिष्ट्यम्
| |
− | पारणोत्तरं सायं पूजा,
| |
− |
| |
− | चातुर्मास्य व्रतसंकल्पश्च
| |
− |
| |
− | वामनपूजा
| |
− |
| |
− | हरिशयनम्
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− | |-
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− | |त्रयोदशी
| |
− | |प्रदोष
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| |
− | |-
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− | |
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− | |चतुर्दशी
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− | |शिवपूजा
| |
− | शयनोत्तमा यात्रा
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− | |-
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− | |पूर्णिमा
| |
− | |हरियजनम्
| |
− | शिवशयन उत्सवः
| |
− |
| |
− | शिवे पवित्र आरोपणम्
| |
− |
| |
− | अन्नदान माहात्म्यम्
| |
− |
| |
− | संन्यासिनां क्षौरं व्यासपूजनं च
| |
− |
| |
− | गजपूजा
| |
− |
| |
− | महाषाढी
| |
− |
| |
− | भारभूतेश्वर यात्रा
| |
− |
| |
− | चातुर्मास्य आरम्भः
| |
− |
| |
− | मन्वादिः
| |
− |
| |
− | देवपूजा
| |
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− | |-
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− | | colspan="4" |'''(अमान्त, आषाढमास, कृष्णपक्ष/ पूर्णिमान्त, श्रावणमास, कृष्णपक्ष)'''
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− | |-
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− | |आषाढ/कृष्णपक्ष
| |
− | |श्रावण/कृष्णपक्ष
| |
− | |प्रतिपदा
| |
− | |मृगशीर्षव्रतम्
| |
− | कोकिलाव्रतम्
| |
− |
| |
− | धर्मावाप्तिव्रतम्
| |
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− | |-
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− | |द्वितीया
| |
− | |क्षीरसागरे सलक्ष्मीक मधुसूदनपूजा
| |
− | अशून्य शयनव्रतम्
| |
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− | |
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− | |-
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− | |
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− | |चतुर्थी
| |
− | |संकष्टी गणेशचतुर्थी व्रतम्
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− | |-
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− | |
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− | |पञ्चमी
| |
− | |नागपञ्चमी
| |
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| |
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| |
− | मनसा पूजा च
| |
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− | |-
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− | |अष्टमी
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− | |कालाष्टमी
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− | |-
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− | |एकादशी
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− | |कामदा एकादशी
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− | |-
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− | |द्वादशी
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− | |वासुदेव द्वादशीव्रतम्
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− | |
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− | |-
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− | |
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− | |त्रयोदशी
| |
− | |प्रदोष
| |
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− | |-
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− | |
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− | |चतुर्दशी
| |
− | |मासिक शिवरात्रिः
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− | |-
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− | | colspan="4" |'''(अमान्त,श्रावणमास, शुक्लपक्ष/ पूर्णिमान्त, श्रावणमास, शुक्लपक्ष)'''
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− | |-
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| |
− | |श्रावण/शुक्ल
| |
− | |श्रावण/शुक्ल
| |
− | |प्रतिपदा
| |
− | |धनदस्य पवित्र आरोपणम्
| |
− | अर्धश्रावणिका व्रतम्
| |
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− | |-
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− | |
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| |
− | |द्वितीया
| |
− | |श्रियः पवित्र आरोपणम्
| |
− | मनोरथ द्वितीया
| |
− | |
| |
− | |
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− | |
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− | |-
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− | |
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− | |
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− | |
| |
− | |तृतीया
| |
− | |पार्वत्याः पवित्र आरोपणम्
| |
− | मधुश्रावणी व्रतम्
| |
− | |
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− | |
| |
− | |-
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− | |
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| |
− | |चतुर्थी
| |
− | |विघ्नहारिणः पवित्र आरोपणम्
| |
− | त्रिपुरभैरव्याः पवित्र आरोपणम्
| |
− |
| |
− | गणेशचतुर्थी(विनायकी)
| |
− | |
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− | |-
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− | |
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| |
− | |पञ्चमी
| |
− | |शशिनः पवित्र आरोपणम्
| |
− | नागपूजा
| |
− |
| |
− | जाग्रद्गौरी पञ्चमी
| |
− | |
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− | |-
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− | |षष्ठी
| |
− | |गुहस्य पवित्र आरोपणम्
| |
− | कल्कि जयंती
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− | |सप्तमी
| |
− | |भास्करस्य पवित्र आरोपणम्
| |
− | पाप नाशिनी सप्तमी व्रतम्
| |
− |
| |
− | अव्यंग सप्तमी व्रतम्
| |
− |
| |
− | द्वादशसप्तमी व्रतम्
| |
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| |
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− | |अष्टमी
| |
− | |दुर्गायाः पवित्र आरोपणम्
| |
− | अन्येषां देवानां अपि पवित्र आरोपणम्
| |
− |
| |
− | पुष्पाष्टमी व्रतम्
| |
− |
| |
− | दुर्गाव्रतम्
| |
− |
| |
− | दुर्गाष्टमी
| |
− |
| |
− | शक्रध्वज उच्छ्राय विधिः
| |
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− | |नवमी
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− | |मातॄणां पवित्र आरोपणम्
| |
− | अन्येषां देवानां अपि पवित्र आरोपणम्
| |
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| |
− | कौमारीनामकपूजनम्
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− | |दशमी
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− | |धर्मस्य पवित्र आरोपणम्
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− | |एकादशी
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− | |मुनीनां पवित्र आरोपणम्
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− | पुत्रदा एकादशी
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− | |द्वादशी
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− | |चक्रपाणिनः पवित्र आरोपणम्
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− | हरेः पवित्रारोपणोत्सवः
| |
− |
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− | श्रीधरपूजा
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− | दोला यात्रारम्भः
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− | |त्रयोदशी
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− | |अनंगस्य पवित्रारोपणम्
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− | |चतुर्दशी
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− | |शिवस्य पवित्र आरोपणम्
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− | देव्याः पवित्रारोपणोत्सवः
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− | |पूर्णिमा
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− | |पितॄणां पवित्रारोपणोत्सवः
| |
− | वितस्ता सिन्धुनद्योः संगमे स्नानम, विष्णुपूजा, साम श्रवणं च
| |
− |
| |
− | उत्सर्जनोपाकर्मणी
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| |
− | रक्षाबन्धः
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− | श्रवणाकर्म रात्रौ
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| |
− | श्राद्धं नित्यम्
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− | चन्द्ररोहिणी शयन व्रतम्
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− | पुत्रप्राप्तिव्रतम्
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| |
− | पूर्णिमाव्रतम्
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− | बलदेवोत्थापनपूजने
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− | महाश्रावणी
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− | श्रीकृष्णस्य दोलयात्रा
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− | | colspan="4" |'''(अमान्त= श्रावणमास, कृष्णपक्ष/पूर्णिमान्त=भाद्रपदमास, कृष्णपक्ष)'''
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− | |श्रावण/कृष्ण
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− | |भाद्रपद/कृष्ण
| |
− | |प्रतिपदा
| |
− | |अशून्यशयन व्रतम्
| |
− | धनावाप्ति व्रतम्
| |
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− | सोद्यापनं मौनव्रतम्
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− | |द्वितीया
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− | |अशून्यव्रतम्
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− | |-
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− | |तृतीया
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− | |तुष्टिप्राप्ति तृतीयाव्रतम्
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− | कज्जली तृतीया
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− | |चतुर्थी
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− | |संकष्ट चतुर्थी व्रतम्
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− | गोपूजा
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− | |पञ्चमी
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− | |स्नुहीविटपे मनसादेवी-विषहरी-पूजा
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− | रक्षापञ्चमी
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− | |षष्ठी
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− | |हलषष्ठी
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− | |सप्तमी
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− | |शीतला सप्तमी
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− | |अष्टमी
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− | |जन्माष्टमी व्रतम्
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− | जयन्तीव्रतम्
| |
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| |
− | मंगलाव्रतम्
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− | कालाष्टमी
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− | मन्वादिः
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− | |नवमी
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− | |चण्डिका पूजा
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− | |एकादशी
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− | |अजैकादशी
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− | |द्वादशी
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− | |रोहिणीद्वादशी व्रतम्
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− | |त्रयोदशी
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− | |द्वापर युगादिः
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− | |चतुर्दशी
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− | |शिवरात्रिः
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− | अघोरचतुर्दशी
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− | |अमावस्या
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− | |कुशग्रहणम्
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− | कुलस्तम्भ यात्रा
| |
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− | सप्तपूरिकामावस्या(सप्तपूरयुक्तपिष्टकद्वारा)
| |
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− | कौश्यमावस्या(आलोकामावस्या वा)
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− | | colspan="4" |'''(अमान्त=भाद्रपदमास, शुक्लपक्ष/ पूर्णिमान्त= भाद्रपदमास, शुक्लपक्ष)'''
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− | |भाद्रपद/शुक्ल
| |
− | |भाद्रपद/शुक्ल
| |
− | |प्रतिपदा
| |
− | |महत्तमव्रतम्
| |
− | मृगशीर्षव्रतम्
| |
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− | भद्रचतुष्टयव्रतम्
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− | |तृतीया
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− | |काञ्चनगौरीपूजा
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− | हरितालिकाव्रतम्
| |
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| |
− | अनन्ततृतीयाव्रतम्
| |
− |
| |
− | हरिकाली व्रतम्
| |
− |
| |
− | कोटीश्वरी व्रतम्
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− |
| |
− | देव्या आन्दोलन व्रतम्
| |
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| |
− | वराहजयन्ती
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| |
− | मन्वादिः
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− | |चतुर्थी
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− | |सिद्धिविनायकव्रतम्
| |
− | चन्द्रदर्शन निषेधः
| |
− |
| |
− | शिवाचतुर्थीव्रतम्
| |
− |
| |
− | गोष्पदत्रिरात्रिव्रतम्
| |
− |
| |
− | सरस्वतीपूजा
| |
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− | गणेशपूजा
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− | सौभाग्यचतुर्थी
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− | |पञ्चमी
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− | |ऋषिपञ्चमी व्रतम्
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− | नागदंष्टोद्धरण पञ्चमीव्रतम्
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| |
− | नागपञ्चमीव्रतम्
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− | रक्षापञ्चमी
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− | वरुणपञ्चमी
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− | |षष्ठी
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− | |स्कन्ददर्शनम्
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− | चम्पाषष्ठीव्रतम्
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− | सूर्यषष्ठीव्रतं सोद्यापनं
| |
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− | ललिताषष्ठीव्रतम्
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| |
− | भद्राविधिः
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− | षष्ठीदेवीषष्ठी
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− | मन्थानषष्ठी
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− | कुमारिकास्नापनम्
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− | |सप्तमी
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− | |मुक्ताभरण व्रतम्
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− | कुक्कुटीव्रतम्
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− | अपराजितासप्तमी व्रतम्
| |
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| |
− | फलसप्तमी व्रतम्
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− | पुत्रसप्तमी व्रतम्
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| |
− | ललितासप्तमी व्रतम्
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− | अलंकारपूजा
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− |
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− | अनन्तफलसप्तमीव्रतम्
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− | द्वादशसप्तमीव्रतम्
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− | |अष्टमी
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− | |दूर्वाष्टमी व्रतम्
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− | ज्येष्ठाव्रतम्
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− |
| |
− | महालक्ष्मीव्रतम्
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− |
| |
− | लक्षणार्द्राव्रतम्
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| |
− | गुर्वष्टमीव्रतम्
| |
− |
| |
− | शक्रध्वजोच्छ्रायविधिः
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− |
| |
− | महालक्ष्मीव्रतम्
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− |
| |
− | दुर्गाशयनम्
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− |
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− | दुर्गाष्टमी
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− | रासाष्टमी
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− | अशोकिकाष्टमी
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− | |नवमी
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− | |नन्दानवमी
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− | श्रीवृक्षनवमीव्रतम्
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− | अदुःखनवमी
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− | तालनवमी
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− | |दशमी
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− | |दशावतारव्रतम्
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− | वितस्तोत्सवः
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− | |एकादशी
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− | |कटदानोत्सवः
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− | हरेः परिवर्तनम्
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− | |द्वादशी
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− | |श्रवणद्वादशीव्रतम्
| |
− | महाद्वादशी
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| |
− | वञ्जुलीव्रतम्
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− |
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− | वामनजयन्तीव्रतम्
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− | राज्ञःशक्रध्वजोत्थापनम्
| |
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− | दुग्धव्रतम्
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− | कल्किद्वादशीव्रतम्
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− | अवियोगद्वादशीव्रतम्
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− | अनन्तद्वादशीव्रतम्
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− | |त्रयोदशी
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− | |गोत्रिरात्रिव्रतम्
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− | दूर्वात्रिरात्रिव्रतम्
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− | अगस्त्यार्घ्यदानम्
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− | |चतुर्दशी
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− | |अनन्तचतुर्दशीव्रतम्
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− | पालीचतुर्दशीव्रतम्
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− | कदकीव्रतम्
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− | अघोरचतुर्दशी
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− | |पूर्णिमा
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− | |पौर्णमासीकृत्यम्
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− | अगस्त्यार्घ्यदानम्
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− | पुत्रव्रतम्
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| |
− | वरुणव्रतम्
| |
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| |
− | ब्रह्मसावित्रीव्रतम्
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− |
| |
− | अशोकत्रिरात्रिव्रतम्
| |
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− | कुलस्तम्भयात्रा
| |
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| |
− | इन्द्रपौर्णमासी
| |
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− | महाभाद्री
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− | दिक्पालपूजा
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− | | colspan="4" |'''(अमान्त=भाद्रपदमास,कृष्णपक्ष/पूर्णिमान्त=आश्विनमास, कृष्णपक्ष)'''
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− | |भाद्रपद/कृष्ण
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− | |आश्विन/कृष्ण
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− | |प्रतिपदा
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− | |महालयारम्भः
| |
− | भरणीश्राद्धम्
| |
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− | आरोग्यव्रतम्
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− | |द्वितीया
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− | |अशून्यव्रतम्
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− | |चतुर्थी
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− | |दिक्पालपूक्जा
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− | |पञ्चमी
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− | |ऋषि्पञ्चमी्
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| '''अथ संक्रान्ति दानम्''' | | '''अथ संक्रान्ति दानम्''' |
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| == पुराणादि अवलोकन सायान्हकृत्य == | | == पुराणादि अवलोकन सायान्हकृत्य == |
| | | |
− | ==(धार्मिक दिनचर्या)== | + | == शयन विधि == |
− | सनातन धर्म में भारतीय जीवन पद्धति क्रमबद्ध और नियन्त्रित है। इसकी क्रमबद्धता और नियन्त्रित जीवन पद्धति ही दीर्घायु, प्रबलता, अपूर्व ज्ञानत्व, अद्भुत प्रतिभा एवं अतीन्द्रिय शक्ति का कारण रही है। ऋषिकृत दिनचर्या व्यवस्था का शास्त्रीय, व्यावहारिक एवं सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक अनुशासन भारतीय जीवनचर्या में देखा जाता है।
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− | ==परिभाषा==
| |
− | प्रातः काल उठने से लेकर रात को सोने तक किए गए कृत्यों को एकत्रित रूप से दिनचर्या कहते हैं। आयुर्वेद एवं नीतिशास्त्र के ग्रन्थों में दिनचर्या की परिभाषा इस प्रकार की गई है-<blockquote>'''प्रतिदिनं कर्त्तव्या चर्या दिनचर्या। (इन्दू)'''</blockquote>'''अर्थ-''' प्रतिदिन करने योग्य चर्या को दिनचर्या कहा जाता है।<blockquote>'''दिने-दिने चर्या दिनस्य वा चर्या दिनचर्या, चरणचर्या।(अ०हृ०सू०)'''</blockquote>'''अर्थ-''' प्रतिदिन की चर्या को दिनचर्या कहते हैं।
| |
− | | |
− | दिनचर्याके समानार्थी शब्द- आह्निक, दैनिक कर्म एवं नित्यकर्म आदि।
| |
− | ==परिचय==
| |
− | दिनचर्या नित्य कर्मों की एक क्रमबद्ध श्रंघला है। जिसका प्रत्येक अंग अन्त्यत महत्त्वपूर्ण है और क्रमशः दैनिककर्मों को किया जाता है। दिनचर्या के अनेक बिन्दु नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र और आयुर्वेद शास्त्र में प्राप्त होते हैं।
| |
− | *प्रकृति के प्रभाव को शरीर और वातावरण पर देखते हुये दिनचर्या के लिये समय का उपयोग आगे पीछे किया जाता है।
| |
− | *धर्म और योग की दृष्टि से दिन का शुभारम्भ उषःकाल से होता है। इस व्यवस्था को आयुर्वेद और ज्योतिषशास्त्र भी स्वीकार करता है।
| |
− | चौबीस घण्टे का समय ऋषिगण सुव्यवस्थित ढंग से व्यतीत करने को कहते हैं। संक्षिप्त दृष्टि से इस काल को इस प्रकार व्यवस्थित करते हैं-
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− | *'''ब्राह्ममुहूर्त+ प्रातःकाल=''' प्रायशः ३,४, बजे रात्रि से ६, ७ बजे प्रातः तक। संध्यावन्दन, देवतापूजन एवं प्रातर्वैश्वदेव।
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− | *'''प्रातःकाल+संगवकाल=''' प्रायशः ६, ७ बजे से ९, १० बजे दिन तक। उपजीविका के साधन।
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− | *'''संगवकाल+पूर्वाह्णकाल=''' प्रायशः ९, १० बजे से १२ बजे तक।
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− | *'''मध्याह्नकाल+ अपराह्णकाल=''' प्रायशः १२ बजे से ३ बजे तक।
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− | *'''अपराह्णकाल+ सायाह्नकाल=''' प्रायशः ३ बजे से ६, ७ बजे तक।
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− | *'''पूर्वरात्रि काल=''' प्रायशः ६, ७ रात्रि से ९, १० बजे तक।
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− | *'''शयन काल(दो याम, ६घण्टा)=''' ९, १० रात्रि से ३, ४ बजे भोर तक।
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− | भारत वर्ष में ग्रीष्मकाल तथा शीतकाल में प्रातः एवं सायंकाल का समय व्यावहारिक जगत् में प्रायशः एक घण्टा बढ जाता है या एक घण्टा घट जाता है।
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− | ===दिनचर्या कब, कितनी?===
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− | दिनचर्या सुव्यवस्थित ढंग से अपने स्थिर निवास पर ही हो पाती है। अनेक लोग एेसे भी हैँ जो अपनी दिनचर्या को सर्वत्र एक जैसे जी लेते हे। यात्रा, विपत्ति, तनाव, अभाव ओर मौसम का प्रभाव उन पर नहीं पडता। एेसे लोगों को "दृढव्रत" कहते हँ। किसी भी कर्म को सम्पन्न करने के लिए दृढव्रत ओर एकाग्रचित्त होना अनिवार्य है। यह शास्त्रों का आदेश है -
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− | '''मनसा नैत्यक कर्म प्रवसन्नप्यतन्द्रितः। उपविश्य शुचिः सर्वं यथाकालमनुद्रवेत्॥''' (कात्यायनस्मृतिः,९९८/२)
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− | प्रवास मे भी आलस्य रहित होकर, पवित्र होकर, बैठकर समस्त नित्यकर्मो को यथा समय कर लेना चाहिषए्। अपने निवास पर दिनचर्या का शतप्रतिशत पालन करना चाहिए। यात्रा मे दिनचर्या विधान को आधा कर देना चाहिए। बीमार पड़ने पर दिनचर्या का कोई नियम नहीं होता। विपत्ति मे पड़ने पर दिनचर्या का नियम बाध्य नहीं करता-
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− | '''स्वग्रामे पूर्णमाचारं पथ्यर्धं मुनिसत्तम। आतुरे नियमो नास्ति महापदि तथेव च॥''' (ब्रह्माण्डपुराण)
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− | ====दिनचर्या एवं मानवीय जीवनचर्या====
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− | इस पृथ्वी पर मनुष्य से अतिरिक्त जितने भी जीव हं उनका अधिकतम समय भोजन खोजने में नष्ट हो जाता है। यदि भोजन मिल गया तो वे निद्रा में लीन हो जाते हैं। आहार ओर निद्रा मनुष्येतर प्राणियों का पृथ्वी पर अभीष्ट है। मनुष्य आहार ओर निद्रा से ऊपर उठ कर व्रती ओर गुडाकेश (निद्राजीत) बनता है। यही भारतीय जीवन का प्रतिपाद्य हे।
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− | ==दिनचर्या के अन्तर्गत कुछ कर्म==
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− | '''वर्णानुसार नित्यकर्म-'''
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− | '''आश्रमानुसार नित्यकर्म-'''
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− | प्रातः जागरण
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− | शौचाचार
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− | दन्तधावन एवं मुखप्रक्षालन
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− | तैलाभ्यंग
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− | स्नान
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− | योगसाधना
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− | वस्त्रपरिधान
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− | यज्ञोपवीत धारण
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− | तिलक-आभरण
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− | संध्योपासना-आराधना
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− | तर्पण
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− | पञ्चमहायज्ञ
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− | भोजन
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− | लोक संग्रह-व्यवहार-जीविका
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− | संध्या-गोधूलि-प्रदोष
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− | शयनविधि
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− | श्रीरामजी की दिनचर्या
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− | महर्षि चरकप्रोक्त दिनचर्या
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− | विद्यार्थी की दिनचर्या
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− | ==धार्मिक दिनचर्या का महत्व==
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− | व्यक्ति चाहे जितना भी दीघ्यु क्यों न हो वह इस पृथ्वी पर अपना जीवन व्यवहार चौबीस घण्टे के भीतर ही व्यतीत करता है। वह अपना नित्य कर्म (दिनचर्या), निमित्त कर्म (जन्म-मृत्यु-श्राद्ध- सस्कार आदि) तथा काम्य कर्म (मनोकामना पूर्तिं हेतु किया जाने वाला कर्म) इन्हीं चौबीस घण्टों में पूर्ण करता है। इन्हीं चक्रों (एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय) के बीच वह जन्म लेता है, पलता- बढ़ता है ओर मृत्यु को प्राप्त कर जाता है-<blockquote>'''अस्मिन्नेव प्रयुञ्जानो यस्मिन्नेव तु लीयते। तस्मात् सर्वप्रयत्नेन कर्त्तव्यं सुखमिच्छता। । दक्षस्मृतिः, (२८/५७)'''</blockquote>अतः व्यक्ति को प्रयत्नपूर्वक मन-बुद्धि को आज्ञापित करके अपनी दिनचर्या को सुसगत तथा सुव्यवस्थित करना चाहिए। ब्राह्ममुहूर्त मे जागकर स्नान पूजन करने वाला, पूर्वाह्न मे भोजन करने वाला, मध्याह्न में लोकव्यवहार करने वाला तथा सायकृत्य करके रात्रि में भोजन- शयन करने वाला अपने जीवन में आकस्मिक विनाश को नहीं प्राप्त करता है-\<blockquote>'''सर्वत्र मध्यमौ यामौ हुतशेषं हविश्च यत्। भुञ्जानश्च शयानश्च ब्राह्मणो नावसीदती॥ (दक्षस्मृतिः,२/५८)'''</blockquote>उषः काल मे जागकर, शौच कर, गायत्री - सूर्य की आराधना करने वाला, जीवों को अन्न देने वाला, अतिथि सत्कार कर स्वयं भोजन करने वाला, दिन में छः घण्टा जीविका सम्बन्धी कार्य करने वाला, सायं में सूर्य को प्रणाम करने वाला, पूर्व रात्रि में जीविका, विद्या आदि का चिन्तन करने वाला तथा रात्रि में छः घण्टा सुखपूर्वक शयन करने वाला इस धरती पर वोछछित प्राप्त कर लेता है। अतः दिनचर्या ही व्यक्ति .को महान् बनाती हे। जो प्रतिदिवसीय दिनचर्या मे अनुशासित नहीं है वह दीर्घजीवन मे यशस्वी ओर दीर्घायु हो ही नहीं सकता। अतः सर्व प्रथम अपने को अनुशासित करना चाहिए। अनुशासित व्यक्तित्व सृष्टि का श्रेष्ठतम व्यक्तित्व होता है ओर अनुशासन दिनचर्या का अभिन्न अंग होता है।
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− | ==दिनचर्या के विभाग==
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− | '''ब्राह्ममुहूर्ते उत्तिष्ठेत्। कुर्यान् मूत्रं पुरीषं च। शौचं कुर्याद् अतद्धितः। दन्तस्य धावनं कुयात्।'''
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− | '''प्रातः स्नानं समाचरेत्। तर्पयेत् तीर्थदेवताः। ततश्च वाससी शुद्धे। उत्तरीय सदा धार्यम्।'''
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− | '''ततश्च तिलकं कुर्यात्। प्राणायामं ततः कृत्वा संध्या-वन्दनमाचरेत्॥ विष्णुपूजनमाचरेत्॥'''
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− | '''अतिथिंश्च प्रपूजयेत्। ततो भूतबलिं कुर्यात्। ततश्च भोजनं कुर्यात् प्राङ्मुखो मौनमास्थितः।'''
| + | == मंत्र योग == |
| + | मंत्र की साधना चेतना को परिष्कृत करती है। इसमें किसी बीजाक्षर, मंत्र या वाक्य का बार-बार पुनरावर्तन किया जाता है। विधिवत् लयबद्ध पुनरावर्तन को जाप कहते हैं। इसमें ध्वनि के उच्चारण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। चित्त की सूक्ष्मतम तरंगें ध्वनि की तरंगें हैं। मंत्र की साधना से पहले अन्दर की सफाई होती है। अन्त में व्यक्ति उसी में एकाग्र हो जाता है। उसका मन स्थिर होने लगता है। वैदिक साधना पद्धति में, बौद्धों में मणि पद्मे हं, जैनों में नमस्कार महामंत्र, अर्हम् आदि ध्वनियों के उदाहरण हैं। उन ध्वनियों का उपयोग करना चाहिये जिनसे मन परमात्मा में लयहीन हो जाये।<blockquote>तस्य वाचकः प्रणवः। तज्जपस्तदर्थभावनम् ।</blockquote>पातंजल योग सूत्र के अनुसार ईश्वर का वाचक प्रणव (ओंकार) है। इसका जप करते हुये अन्त में इसके अर्थ अर्थात् परमात्म रूप हो जाना मंत्र का प्रमुख उद्देश्य है। मंत्र के जप के साथ उसके अर्थ, छन्द, ऋषि या देवता का अधिकाधिक रूप में मनन किया जाता है। तब वह शीघ्र सिद्ध होता है। मंत्र सिद्धि के द्वारा मन, मंत्र तथा आराध्य देव की पृथक्ता का बोध साधक को नहीं होता है। |
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− | '''शोधयेन्मुखहस्तौ च। ततस्ताम्बूलभक्षणम्। व्यवहारं ततः कुर्याद् बहिर्गत्वा यथासुखम्॥'''
| + | मन की कामना ही यज्ञ की जननी है। ऋषि जिस कामना से देवता की जिस पदार्थ का स्वामी बनने की इच्छा से स्तुति करता है, वही उस स्तुति रूप मंत्र का देवता हो जाता है।<blockquote>यत्काम ऋषिर्यस्यां देवतायामार्य-पत्यमिच्छन्स्तुति प्रयुंक्ते तद्दैवतः स मन्त्रो भवति। (निरुक्त७।१) </blockquote>ऋषि अर्थात् द्रष्टा अपनी कामना की अभिव्यक्ति मंत्र अर्थात् मनोबल से करता है। इच्छाएँ तो हममें भी अनन्त हैं, किन्तु हमारा मन इतना बलवान नहीं है कि इन इच्छाओं को मंग्त्र बल में बदल सके। मंत्र मनन की शक्ति है हमारा मन इतना चंचल है कि एक जगह टिककर मनन ही नहीं कर सकता। अर्थात् मंत्र शक्ति की सफलता का मूल इच्छा-शक्ति की दृढता है।<ref>श्री शशांक शेखर शुल्व, यज्ञ विधानम्, सनातन पूजा विज्ञान, वाराणसीः पिल्ग्रिम्स पब्लिशिंग अध्याय-भूमिका, (पृ०2)। </ref> |
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− | '''वेदाभ्यासेन तौ नयेत्। गोधूलौ धर्मं चिन्तयेत्। कृतपादादिशौचस्तुभुक्त्वा सायं ततो गृही॥'''
| + | चारित्रिक श्रेष्ठता |
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− | '''यामद्वयंशयानो हि ब्रह्मभूयाय कल्यते॥प्राक्शिराः शयनं कुर्यात्। न कदाचिदुदक् शिराः॥'''
| + | मानसिक एकाग्रता |
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− | '''दक्षिणशिराः वा। रात्रिसूक्तं जपेत्स्मृत्वा। वैदिकैर्गारुडैर्मन्त्रे रक्षां कृत्वा स्वपेत् ततः॥'''
| + | अभीष्ट लक्ष्य में अटूट श्रद्धा |
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− | '''नमस्कृत्वाऽव्ययं विष्णुं समाधिस्थं स्वपेन्निशि। माङ्गल्यं पूर्णकुम्भं च शिरःस्थाने निधाय च।'''
| + | शब्द शक्ति |
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− | '''ऋतुकालाभिगामीस्यात् स्वदारनिरतः सदा।अहिंसा सत्यवचनं सर्वभूतानुकम्पनम्।'''
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− | '''शमो दानं यथाशक्तिर्गार्हस्थ्यो धर्म उच्यते॥'''
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− | '''अर्थ-'''
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− | == शयन विधि ==
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| == उद्धरण == | | == उद्धरण == |
| <references /> | | <references /> |
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