श्रीकृष्ण: - महापुरुषकीर्तन श्रंखला

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Sri Krishna as Yuga Purusha

यो योगिराजः किल कर्मयोगमार्गस्य नेतृत्वमलंचकार[1]

सद्धर्मसरक्षणदत्तचित्तः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

जिस योगिराज श्री कृष्ण ने कर्मयोग के मार्ग का नेतृत्व किया, जिसने सद्धर्म रक्षा में चित्त को लगाया, ऐसे श्री कृष्ण महात्मा किस से वन्दनीय नहीं?

ज्ञानी सुवीरः शुभगायको यो गुणाकरः शाश्वतधर्मगोप्ता।

तथाप्यहंकारलवेन हीनः कुष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

जो ज्ञानी, वीर, गायक, गुण-भण्डार और नित्य धर्म-रक्षक थे, तथापि अहंकार-शून्य थे, ऐसे श्री कृष्ण महात्मा किस से पूजनीय नहीं?

परोपकारर्पितजीवतो यः क'सादिदुष्टारिगणस्य हन्ता।

गीतामृतं पाययिता प्रशस्तं कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

जिस ने परोपकार में जीवन लगाया, कादि दुष्ट शत्रुओं का हनन किया, प्रसिद्ध गीतामृत का लोगोंं को पान कराया, ऐसे श्री कृष्ण महात्मा किस से वन्दनीय नहीं ?

सन्ध्याग्निहोत्रादिककृत्यजातं सन्निष्ठया यो विदधेऽ प्रमत्तः[2]

देवेशभक्त्याधिगतप्रसादः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

जो सन्ध्या अग्निहोत्रादि नित्य कमो को बिना प्रमाद के करते थे, प्रभुभक्ति से जिन्हें अद्भुत शक्ति रूप प्रसाद प्राप्त हुआ था ऐसे श्री कृष्ण महात्मा किस से पूजनीय नहीं?

आत्मा ऽविनाशी ह्यजरोऽमरो ऽयं मृत्युस्तु वासः परिवर्त एव[3]

इत्यादितत्त्वं प्रदिशन्‌ यर्थार्थं कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

यह आत्मा अजर अमर है, मृत्यु तो चोला बदलना है। इस प्रकार के यथार्थ तत्त्व को बतलाने वाले श्री कृष्ण महात्मा किस से पूजनीय नहीं?

भूत्वेह लोके गुणसागरोऽपि यः पादपूजां विदधे द्विजानाम्‌[4]

आसीद्‌ सुहृद्‌ यो धनवर्जितानां कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

जिन्होंने गुणो का समुद्र होते हुए भी राजसूय यज्ञ में ब्राह्मणों के पैर धोने का काम लिया, जो निर्धनों के मित्र थे, ऐसे महात्मा कुष्ण किससे पूजनीय नहीं?

विप्रे सुशीले विनयोपपन्ने तथा श्वपाके शुनि गोगजेषु।

समानदृष्टिं य इहादिदेश कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः[5]?

जिन्होंने विनीत, सुशील विप्र, चाण्डाल, कुत्ते तथा हाथी में समदृष्टि का उपदेश दिया, ऐसे महात्मा कृष्ण किससे वन्दनीय नहीं?

आसीत्‌ क्षमावान्‌ धृतिमान्‌ नयज्ञो यो राजनीतौ कुशलोऽद्वितीयः

ताता सतां पापिदलस्य छेत्ता कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

जो क्षमाशील,धैर्यवान्‌,नीतिज्ञ, राजनीति में अद्वितीय कुशल थे, जो सज्जनों के रक्षक तथा पापियों के नाशक थे, ऐसे श्री कष्ण महात्मा किस के वन्द्य नहीं?

क्लैब्यं प्रपन्नं युधि पार्थशूरं विसृज्य चापं विकलं स्थितं तम्‌।

विबोध्य धर्म विदधे सुवीरं कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

युद्ध के प्रारम्भ में नपुंसक समान बने, धनुष छोड़े, व्याकुल हुए अर्जुन को धर्म समझा कर फिर वीर बनाने वाले कृष्ण महात्मा किस के वन्द्य नहीं?

योगस्य यज्ञस्य सुखस्य शान्तेस्त्यागस्य तत्त्वं सुरसम्पदश्च।

ज्ञानस्य भक्तेस्तपसो दिशन्‌ नः कुष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

योग, यज्ञ, सुख, शान्ति, त्याग, दैवी सम्पत्ति, ज्ञान, भक्ति,तप के वास्तविक स्वरूप को जतलाने वाले महात्मा कुष्ण किससे वन्द्य नहीं?

जातो ऽमरो दिव्यगुणैः स्वकीयैर्मतो जनैयो भगवानिवेह।

यज्ञान्वितं जीवितमादधानः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

जो अपने दिव्य गुणों से अमर हो गये, जिन्हें लोगोंं ने भगवान के समान मान लिया, ऐसे यज्ञमय जीवन धारण करने वाले श्री कृष्ण किस के वन्द्य नहीं?

यदीयशिक्षा प्रददाति मोदं स्फूर्ति नवोत्साहबलं सुधैर्यम्‌।

शरद्धान्वितानां मनसां स सम्राट्‌ कृष्णो महात्मा न हि केन वन्द्यः?

जिस की शिक्षा प्रसन्नता, नया उत्साह, जोश और धैर्य देती है, श्रद्धालुओं के मन के जो सम्राट थे, ऐसे श्री कृष्ण महात्मा किससे वन्द्य नहीं?

यो घातकायाशिष एव दत्वा चकार शान्त्या परलोकयात्राम्‌।

बभूव मुक्तः प्रभुतत्त्ववेत्ता कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

जिन्होंने मारने वाले को भी आशीर्वाद देकर शान्ति से परलोक यात्रा की। जो प्रभु-तत्त्व को जान कर मुक्‍त हो गये, ऐसे महात्मा श्री कृष्ण किस के वन्द्य नहीं?

संस्थाप्य साम्राज्यमधर्मनाशं कर्त्तु तथा धर्मविवर्धनाय।

येन प्रयत्नो विहिनो ऽभिनन्द्यः कुष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

जिन्होंने आर्य समाज की स्थापना कर के धर्म की वृद्धि और अधर्म के नाश क लिये प्रशंनीय प्रयत्न किया, ऐसे महात्मा श्री कृष्ण किस से वन्द्य नहीं?

यो मोहनः स्वीयगुणैः प्रशस्तैः स्थितो जनानां हृदयेषु नित्यम्‌।

निष्कामकर्माण्यकरोत्सदा यः कृष्णो महात्मा स न केन वन्द्यः?

जो मोहन अपने श्रेष्ठ गुणों के कारण लोगोंं के हृदय में घर किये हुए हैं, जिन्होंने सदा निष्काम कर्म किये, ऐसे महात्मा श्री कृष्ण किस के वन्द्य नहीं?

References

  1. महापुरुषकीर्तनम्, लेखक- विद्यावाचस्पति विद्यामार्तण्ड धर्मदेव; सम्पादक: आचार्य आनन्दप्रकाश; प्रकाशक: आर्ष-विद्या-प्रचार-न्यास, आर्ष-शोध-संस्थान, अलियाबाद, मं. शामीरेपट, जिला.- रंगारेड्डी, (आ.प्र.) -500078
  2. कृतोदकानुजप्यः स हुताग्निः समलंकृतः।। उद्योगपर्व 83.6
  3. वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।। (भगवद गीता 2.22)
  4. चरणक्षालने कृष्णो ब्राह्मणानां स्वयं ह्यभूत्‌ सभापर्व।। 35.101
  5. विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि। शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।। भगवद गीता 5.18