Changes

Jump to navigation Jump to search
no edit summary
Line 6: Line 6:  
इस कारण से भारत के ज्ञानविश्व में शोध या अनुसन्धान जैसी संकल्पनायें नहीं हैं। यहाँ दर्शन की संकल्पना है, ज्ञान प्रकट होने की संकल्पना है, ज्ञान का आविष्कार होने की संकल्पना है। दर्शन, प्राकट्य या आविष्कार बुद्धि का नहीं, अनुभूति का क्षेत्र है। पश्चिमी ज्ञानक्षेत्र में अनुभूति का अस्तित्व सर्वथा नकारा तो नहीं जाता तथापि उसकी बहुत चर्चा नहीं होती । वह बुद्धि के दायरे में नहीं आता है, इसलिये प्रमाण के रूप में उसका स्वीकार नहीं होता है ।
 
इस कारण से भारत के ज्ञानविश्व में शोध या अनुसन्धान जैसी संकल्पनायें नहीं हैं। यहाँ दर्शन की संकल्पना है, ज्ञान प्रकट होने की संकल्पना है, ज्ञान का आविष्कार होने की संकल्पना है। दर्शन, प्राकट्य या आविष्कार बुद्धि का नहीं, अनुभूति का क्षेत्र है। पश्चिमी ज्ञानक्षेत्र में अनुभूति का अस्तित्व सर्वथा नकारा तो नहीं जाता तथापि उसकी बहुत चर्चा नहीं होती । वह बुद्धि के दायरे में नहीं आता है, इसलिये प्रमाण के रूप में उसका स्वीकार नहीं होता है ।
   −
अनुभूति या अन्तर्ज्ञान या ऋतम्भरा प्रज्ञा आदि के लिये अंग्रेजी में एक शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है “हन्च' जिसका तात्पर्य होता है “अनुमान' । फिर भी वह तर्कसंगत अनुमान नहीं है, उससे परे ही है । पर्याप्त अध्ययन और अभ्यास के बाद ही यह सम्भव होता है। उसे “सूझना' भी कहा जा सकता है । एक उदाहरण से यह समझने का प्रयास करेंगे । न्यूटन ने सेव के फल को वृक्ष से नीचे गिरते देखा । उस निमित्त को पकड़कर उसने जो चिन्तन किया उसकी परिणति के रूप में गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त उसके अन्तःकरण में प्रकट हुआ । सिद्धान्त जिस प्रकार सृष्टि में था उसी प्रकार से उसके अन्दर भी था । निमित्त के कारण वह अनावृत्त हुआ। इसे भारत का दर्शन का सिद्धान्त ही समझा सकता है, पश्चिम का रिसर्च का सिद्धान्त नहीं ।
+
अनुभूति या अन्तर्ज्ञान या ऋतम्भरा प्रज्ञा आदि के लिये अंग्रेजी में एक शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है “हन्च' जिसका तात्पर्य होता है “अनुमान' । तथापि वह तर्कसंगत अनुमान नहीं है, उससे परे ही है । पर्याप्त अध्ययन और अभ्यास के बाद ही यह सम्भव होता है। उसे “सूझना' भी कहा जा सकता है । एक उदाहरण से यह समझने का प्रयास करेंगे । न्यूटन ने सेव के फल को वृक्ष से नीचे गिरते देखा । उस निमित्त को पकड़कर उसने जो चिन्तन किया उसकी परिणति के रूप में गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त उसके अन्तःकरण में प्रकट हुआ । सिद्धान्त जिस प्रकार सृष्टि में था उसी प्रकार से उसके अन्दर भी था । निमित्त के कारण वह अनावृत्त हुआ। इसे भारत का दर्शन का सिद्धान्त ही समझा सकता है, पश्चिम का रिसर्च का सिद्धान्त नहीं ।
    
यह बुद्धिगम्यज्ञान अवश्य था, उसके बिना उसे सूझना सम्भव ही नहीं था, परन्तु उसका सूझना बुद्धि से परे ही था । वह जब तक बुद्धि के क्षेत्र में उतरता नहीं तब तक इसकी प्रतिष्ठा नहीं । यह प्रतिष्ठा बुद्धि के स्तर तक पहुँचने पर ही होती है।
 
यह बुद्धिगम्यज्ञान अवश्य था, उसके बिना उसे सूझना सम्भव ही नहीं था, परन्तु उसका सूझना बुद्धि से परे ही था । वह जब तक बुद्धि के क्षेत्र में उतरता नहीं तब तक इसकी प्रतिष्ठा नहीं । यह प्रतिष्ठा बुद्धि के स्तर तक पहुँचने पर ही होती है।
Line 24: Line 24:  
==References==
 
==References==
 
<references />
 
<references />
 
+
[[Category:Dharmik Jeevan Pratiman (धार्मिक जीवन प्रतिमान)]]
[[Category:पर्व 3: शिक्षा का मनोविज्ञान]]
 

Navigation menu