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'''      भारतीय  शिक्षा'''  '''आधारित'''   '''पाठ्यक्रम'''            
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भारतीय आधारित शिक्षा उच्चारण होते ही हमारे मस्तिष्क में एकदम विचार आता है, हिंदी भाषा के माध्यम से विद्यालय में दी जानेवाली शिक्षा और पाश्चात्य शिक्षा का अर्थ जो लोग के मस्तिष्क में बैठा है, अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा इन्हीं मतभ्रान्तियों के कारण हम आज नौकर बनकर खुश है और दूसरों को भी नौकर बनने  की प्रेरणा देते है  जिसे हम भारतीय शिक्षा मानते है, असल में वह हम पर हुकूमत करके गए लोगों द्वारा थोपी गई शिक्षा है ।
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भारतीय आधारित शिक्षा उच्चारण होते ही हमारे मस्तिष्क में एकदम विचार आता है हिंदी भाषा के माध्यम से विद्यालय में दी जानेवाली शिक्षा और पाश्चात्य शिक्षा का अर्थ जो लोग के मस्तिष्क में बैठा है अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा इन्ही मतभ्रान्तियों के कारण  हम आज नौकर बनकर खुश है और दुसरो को भी नौकर बनने  की प्रेरणा देते है |  क्योकि जिसे हम भारतीय शिक्षा मानते है असल में वह हम पर हुकूमत करके गए लोगो द्वारा थोपी गई शिक्षा है |
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असल भारतीय शिक्षा हमें गुलाम न बनाते हुए स्वावलम्बी और आत्मनिर्भर बनने  की  शिक्षा देती है; जहाँ गुरु और शिष्य का सम्बन्ध स्वार्थ से नहीं चित्त  से जुड़ा रहता है।  बिन बोले ही जहाँ गुरु शिष्य के मन की चिंता को आकलन कर सही मार्गदर्शन देता है। केवल शिक्षा समय तक ही नहीं अपितु जब तक वह शिष्य गुरु के अंतर से जुड़ा रहता है, उस समय तक गुरु हर समय उनका समय समय पर मार्ग दर्शन करते रहते हैं।      
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असल भारतीय शिक्षा हमें गुलाम न बनाते हुए स्वावलम्बी और आत्मनिर्भर बनने  की  शिक्षा देती है जहाँ गुरु और शिष्य का सम्बन्ध स्वार्थ से नहीं चित्त  से जुड़ा रहता है |  बिन बोले ही जहा गुरु शिष्य  के मन की चिंता को आकलन कर सही मार्गदर्शन देता है | केवल शिक्षा समय तक ही नहीं अपितु जब तक वह शिष्य गुरु के अंतर से जुड़ा रहता है उस समय तक गुरु हर समय उनका समय समय पर मार्ग दर्शन करते रहते है |      
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ऐसी शिक्षा जहाँ विद्यार्थी को भविष्य के आधार पर शिक्षा दी जाती थी - जब तक विद्यार्थी उस कार्य में निपुण नहीं हो जाता था जिस कार्य के लिए वह बना है उसका आकलन भी गुरु इतनी सुन्दर भाव से जान लेते थे,  जिसका वर्णन करना भी मुश्किल था ।
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ऐसी शिक्षा जहाँ विद्यार्थी को भविष्य के आधार पर शिक्षा दी जाती थी | जब तक विद्यार्थी उस कार्य में निपूर्ण नहीं हो जाता था जिस कार्य के लिए वह बना है उसका आकलन भी गुरु इतनी सुन्दर भाव से जान लेते थे  जिसका वर्णन करना भी मुश्किल था |
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जहाँ पर मस्तिष्क शिक्षा के साथ साथ पूर्ण कलाओ का ज्ञान अनिवार्य था जिससे वह विद्यार्थी अपने सांसारिक जीवन में कही भी विचलित  निराश न हो । जहाँ यह सब शिक्षा मिलती थी वह था भारत और उस शिक्षा को भारतीय शिक्षा कहते है ।  
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जहा पर मस्तिष्क शिक्षा के साथ साथ पूर्ण कलाओ का ज्ञान अनिवार्य था जिससे वह विद्यार्थी अपने सांसारिक जीवन में कही भी विचलित  निराश न हो |
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== भारतीय शिक्षा की आवश्यकता और उसका जीवन पर परिणाम ==
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एक मेरा स्वयं का अनुभव जिसने मेरे अंतरमन को पूरी तरह झिंझोर कर रख दिया और प्राचीन काल की भारतीय शिक्षा का विचार करने पर मजबूर कर दिया ।
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जहाँ यह सब शिक्षा मिलती थी वह था भारत और उस शिक्षा को भारतीय शिक्षा कहते है |  
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एक बार मैं और मेरे मित्र, हम साथ में एक बहुत ही ऊँची इमारत जहाँ हमारे एक मित्र रहते थे उनसे मिलने गए थे। भेंट के पश्चात् जब हम मित्र से मिलकर उस इमारत के नीचे उतरे और थोड़ा उस इमारत के उद्यान में घूमने का मन किया तो उस और चले गए। जब हम उद्यान में टहल रहे थे तो हमने देखा कि एक बुजुर्ग दम्पत्ति काष्ठ  के बने हुए आसान पर बैठकर रो रहे थे। कुछ देर तक देखने के बाद रहा नहीं गया और उनकी व्यथा जानने की उत्सुकता उत्पन्न होने लगी। मैंने अपने मित्र से उनके बारे में पूछा, परन्तु मित्र बता नहीं पाए। मेरे कदम अपने आप ही उनकी तरफ जाने लगे। जैसे ही मै उनके समीप पहुंचा, वैसे ही उन्होंने रोना बंद कर दिया। मैंने उन्हें प्रणाम कर साहस से पूछा की पिताजी आप क्यों रो रहे है
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भारतीय शिक्षा की आवश्यकता और उसका जीवन पर परिणाम
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उन्होंने कुछ नहीं कहा। बहुत आग्रह और आत्मीयता से पूछने के बाद अचानक वह दंपत्ति दुबारा रोने लगे और रोते-रोते बताने लगे: <blockquote>"हमारा केवल एक ही पुत्र है, हमने बहुत ही लाड़ प्यार से उसकी देखभाल की उसकी सारी  इच्छाएं पूर्ण की, उसे बहुत ही बड़े इंटरनेशनल विद्यालय में पढ़ाया, कभी हमने अपने रिश्तेदारों या अपने माँ या पिताजी को भी घर में नहीं रखा, कहीं बेटे को कोई दिक्कत ना हो, कभी उसे रहन सहन या पढाई लिखाई  में बाधा न पड़े। बड़ा परिवार होते हुए भी छोटे परिवार में रहे और अपना पूरा समय अपने पुत्र को दे दिया। </blockquote><blockquote>उच्चस्तरीय शिक्षा के लिए हमने अपने पुत्र को विदेश भेजा। विदेश में उसकी पढाई अच्छी चली, सदा बातचीत और हल चल होते थे । उसे वहां पर अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई, हम बहुत  खुश  थे। कुछ दिनों पश्चात् फ़ोन नहीं आया, हम चिंतित हो गए और ऑफिस में फ़ोन किया, तो वह नाराज हो गया और कहने लगा क्या आवश्यकता है फ़ोन करने की? जब मुझे समय मिलता, तो मै  अवश्य करता। अपने माँ पिताजी को आप कितना पूछते थे? </blockquote><blockquote>उस दिन परिवार की कमी का अनुभव हुआ। कुछ दिनों पश्चात् उसकी शादी का फोटो आ गया और वह अपनी दुनिया में जीने लगा केवल पैसे भेज देता बस। उसकी माँ की तबियत भी बहुत ज्यादा ख़राब हो गई थी, तथापि नहीं आया। पैसे भेज दिए । उस दिन रिश्तो की अहमियत समझ में आई। </blockquote><blockquote>गांव  में मेरी माँ का देहांत हो गया। हमने उसे बहुत आग्रह किया परन्तु वह नहीं आया। हम हार मानकर अकेले ही गांव गए । वहां पहुँचने के बाद हमने देखा, मेरे भाई का पूरा परिवार वहां इकट्ठा था, बाकि रिश्तेदार भी वहां आये थे और एक दूसरे की हर कार्य में सहायता कर रहे थे। इतना आदर सम्मान, इतने अच्छे संस्कार देखकर केवल हम रोते जा रहे थे । मेरे भाई का भी पुत्र विदेश में पढ़कर आया था परन्तु थोड़ा भी आचरण में बदल नहीं ।</blockquote><blockquote>सब विधि ख़त्म होने के बाद अपने भाई के गले लगकर रोया और और कहा, अगर मैंने भी परिवार और अपनी संस्कृति से मुँह नहीं मोड़ा होता तो आज मुझे यह दिन देखने को नहीं मिलता ।"</blockquote>इस घटना को सुनने के उपरांत हमने उन दंपत्ति से बैठकर बहुत सी बाते  की और उन्हें वात्सल्य ट्रस्ट के बारे में  बताया तो वे बहुत ही प्रसन्न हुए और वहा  नियमित रूप से जाने लगे । परन्तु इस घटना ने मुझे भारतीय शिक्षा और भारतीय संस्कृति की ओर कार्य करने के लिए विवश कर दिया ।
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एक मेरा स्वयं का अनुभव जिसने मेरे अंतर मन को पूरी तरह झिंझोर कर रख दिया और प्राचीन काल की भारतीय शिक्षा का विचार करने पर मजबूर कर दिया |
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जब उस ओर  मैंने अपना पहला कदम बढ़ाया तभी से ऐसे ऐसे अनुभव आने लगे की अगर उसे लेख पर उतरना आरम्भ करू तो पूरी किताब बन सकती है । हमारे दादा जी कहते थी, कि अगर आप कोई कार्य अच्छे मन और अच्छे भाव से आरम्भ करे  तो भगवान हर रूप में आपकी मदत करने के लिए अवश्य आता है और जैसी आपकी नीयत होती है वैसे लोग ही आपको मार्ग में मिलते है ।  
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" एक बार मै  और मेरे मित्र हम साथ में एक बहुत ही ऊँची ईमारत जहाँ हमारे एक मित्र रहते थे उनसे मिलने गए थे | भेट के पश्चात् जब हम मित्र से मिलकर उस ईमारत के निचे उतरे और थोड़ा उस ईमारत के उद्यान में घूमने का मन किया तो उस और चले गए | जब हम उद्यान में टहल रहे थे तो हमने देखा की एक बुजुर्ग दम्पत्ति काष्ठ  के बने हुए आसान पर बैठकर रो रहे थे | कुछ देर तक देखने के बाद रहा नहीं गया और उनकी ब्यथा जानने की उत्सुकता उत्पन्न होने लगी | मैंने अपने मित्र से उनके बारे में पूछा परन्तु मित्र बता नहीं पाए , मेरे कदम अपने आप ही उनकी तरफ जाने लगे जैसे ही मै  उनके नजदीक पंहुचा वैसे ही उन्होंने रोना बंद कर दिया | मैंने उन्हें प्रणाम कर साहस से पूछा की पिताजी आप क्यों रो रहे है उन्होंने कुछ नहीं कहाँ बहुत आग्रह और आत्मीयता से पूछने के बाद अचानक  वह दंपत्ति दुबारा रोने लगे और रोते - रोते  बताने लगे |  "मेरा केवल एक ही पुत्र है हम ने बहुत ही लाड़ प्यार से उसकी देखभाल की उसकी सारी  इच्छाएं पूर्ण की उसे बहुत ही बड़े इंटरनेशनल विद्यालय में पढ़ाया , कभी हमने अपने रिस्तेदारो या अपने माँ या पिताजी को भी घर में नहीं रखा कही बेटे को कोई दिक्कत ना हो कभी उसे रहन सहन या पढाई लिखाई  में बाधा  पड़े | बड़ा परिवार होते हुए भी छोटे परिवार में रहे और अपना पूरा समय अपने पुत्र को दे दिया | उच्चस्तरीय शिक्षा  के लिए मैंने अपने पुत्र को विदेश भेजा | विदेश में उसकी पढाई अच्छी चली हमेशा बातचीत और हल चल होते थे | उसे वह पर अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई हम बहुत  खुश  थे | कुछ दिनों पश्चात् फ़ोन नहीं आया हम चिंतित हो गए और ऑफिस में फ़ोन किया तो वह नाराज हो गया और कहने लगा क्या आवश्यकता है फ़ोन करने की जब मुझे समय मिलता तो मै  जरूर करता आपके भी माँ पिताजी को आप कितना पूछते थे | उस दिन परिवार की कमी का अनुभव हुआ | कुछ दिनों पश्चात् उसकी शादी का फोटो आ गया और वह अपनी दुनिया में जीने लगा केवल पैसे भेज देता बस , उसकी माँ टी तबियत भी बहुत ज्यादा ख़राब हो गई थी फिर भी नहीं आया पैसे भेज दिए उसदिन रिश्तो की अहमियत समझ में आया | गांव  में मेरी माँ का देहांत हो गया हमने उसे बहुत आग्रह किया परन्तु नहीं आया हम हार मानकर अकेले ही गांव गए वह पूछने के बाद हमने देखा मेरे भाई का पूरा परिवार वह इकट्ठा था बाकि रिस्तेदार भी वह आये थे और एक दूसरे की हर कार्य में मदत कर रहे थे | इतना आदर सम्मान इतने अच्छे संस्कार देखकर केवल हम रट जा रहे थे | मेरे भाई का भी पुत्र विदेश में पढ़कर आया था परन्तु थोड़ा भी आचरण में बदल नहीं |
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== ज्ञान प्राप्ति कितने प्रकार से होती है ? ==
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ज्ञान प्राप्ति प्रायः दो  प्रकार की होती है, '''प्रथम है''' आकस्मिक या वातावरण द्वारा प्राप्त ज्ञान, जैसे अभिमन्यु का चक्रव्यूह तोड़ने का ज्ञान, या कई बार हमारे मुख से निकल जाता हैं की  अरे यह इसे कैसे आता है या पता है हमने तो कभी सिखाया या बताया ही नहीं । ऐसा ज्ञान जो  कहीं कहीं अकस्मात दिखाई देता है या ऐसी आदत जो हम चाह  कर भी बदल नहीं सकते, हमारे पूर्वजो के गुण जो हमारे अंदर आ जाते है ।
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सब विधि ख़त्म होने के बाद अपने भाई के गले लगकर रोया और और कहा सायद मैंने भी परिवार और अपनी संस्कृति मुँह अगर नहीं मोड़ा होता तो आज मुझे यह दिन देखने को नहीं मिलता |
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'''द्वितीय ज्ञान है''' समाज या हमारे आस-पास के अनुभवों का ज्ञान जिसे हम दूसरो के माध्यम से सीखते है। जैसे विद्यालय शिक्षा या माता पिता द्वारा सिखाया गया ज्ञान या समाज में आचरण करने का ज्ञान जिसे सीखने के लिए एक गुरु की आवश्यकता होती है। इस ज्ञान में हम दूसरों पर निर्भर होते है और ज्ञान धारा कभी भी बदल जाती है; जैसे गुरु, वैसा ज्ञान और वैसा आचरण। कोई भी ज्ञान अर्जित करने के पहले उसके सारे  पहलुओं पर विचार करके ही ज्ञान को आत्मसात करना चाहिए। किसी भी ज्ञान को देखना सुनना और अनुभव करना गलत नहीं है परन्तु उसे अपने जीवन में आत्मसात करना और उसके अनुरूप आचरण करने से पहले बहुत ही विचार करने के बाद ही अपने जीवन में उतारना चाहिए।
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हम  सभी ने उन दंपत्ति से बैठकर बहुत सी बाते  की और उन्हें वात्सल्य ट्रस्ट के बारे में  बताया तो वे बहुत ही प्रसन्न हुए और वहा  नियमित रूप से जाने लगे | परन्तु इस घटना ने मुझे भारतीय शिक्षा और भारतीय संस्कृति की ओर कार्य करने के लिए विवश कर दिया |
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अतः बिना गुरु ज्ञान प्राप्त करना, अधूरा ज्ञान प्राप्त करने के समान होता है। ज्ञान प्राप्ति का स्थान और वातावरण भी हमारे ज्ञान पर प्रभाव डालते है। इसीलिए पूर्व काल में सभी शिक्षाएं एक विशिष्ठ गुरु द्वारा विशेष स्थान पर दी जाती थी, जहाँ ना अपने परिवार, समाज या उस वातावरण से कोई सम्बन्ध होता था जहाँ हम रहते थे। किसी जंगल के एकांत जगह पर जाकर रहना जहाँ न कोई श्रीमंत  ना कोई गरीब, ना कोई जाति न कोई भेदभाव जहाँ केवल ज्ञान ज्ञान और ज्ञान ही दिखाई, सुनाई और अनुभव में आता था।
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जब उस ओर  मैंने अपना पहला कदम बढ़ाया तभी से ऐसे ऐसे अनुभव आने लगे की अगर उसे पैन पर उतरना शुरू करू तो पूरी किताब एबं सकती है | हमारे दादा जी कहते थी की अगर आप कोई कार्य अच्छे मन और अच्छे भाव से शुरू करे  तो भगवान हर रूप में आपकी मदत करने के लिए अवश्य आता है और जैसी आपकी नियत होती है वैसे लोग ही आपको मार्ग में मिलते है |                              
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किसी भी कार्य को करने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है जैसे भोजन कैसे करना चाहिए, कैसे चलना चाहिए। बिना विद्या या ज्ञान के मनुष्य कुछ भी नहीं कर सकता। विद्या द्वारा ही सभ्य, संस्कारी, और गुणवान मनुष्य या समाज का निर्माण होता है। <blockquote>विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम् ।</blockquote><blockquote>पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम् ॥{{Citation needed}} </blockquote>विद्या विनय देती है; विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म, और धर्म से सुख प्राप्त होता है।
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== विद्या, ज्ञान या संस्कार की नींव रखने की शुरुआत कबसे करनी चाहिए ? ==
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हमारे शास्त्रो के अनुसार हमारे पूरे जीवन में १६ प्रकार के संस्कार होते है, जिसकी शुरुआत गर्भ-धारण से ही आरम्भ हो जाती है । अतः मान्यता अनुसार गर्भावस्था से ही माहौल, वातावरण और व्यवहार भारतीय सभ्यता, संस्कृति और संस्कार के अनुसार होनी चाहिए, क्योंकि आकस्मिक या अचानक वाला ज्ञान बालक गर्भावस्था से ही अनुसरण करने लगता है।
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बच्चों की जब सुनने और बोलने की शुरुआत होने लगे उस समय से ही बच्चों को भारत के बारे में जानकारी, अपने भारतीय संस्कारो का परिचय और घर में भारतीय वातावरण की निर्मिति कर बच्चों को अनुभव आधारित ज्ञान की शुरुआत कर देनी चाहिए, क्योकि संस्कारो और ज्ञानो की नींव का प्रथम स्थान हमारा घर होता है जहाँ हमारे प्रथम गुरु हमारी माता ही होती है, जो हमें जीवन का मूल सार सिखाती है।
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३ वर्ष की आयु से बच्चों में शिक्षा, संस्कार, ज्ञान और सभ्यता के  बीज लगाने की शुरुआत कर देनी चाहिए ।
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=== किस प्रकार की शिक्षा से आरम्भ करना चाहिए ? ===
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शिक्षा प्रायः दो प्रकार की होती है और दोनों एक दूसरे के पूरक हैं:
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# मानसिक  या बौद्धिक शिक्षा
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# शारीरिक शिक्षा
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जब शरीर स्वस्थ होगा तो मन और बुद्धि दोनों स्वस्थ होगी । किसी भी कार्य को करने के लिए बुद्धि और शरीर दोनों की आवश्यकता होती है चाहे वह कार्य किसी भी प्रकार का क्यों न हो । शारीरिक क्षमता अच्छी होने पर सोचने और विचार करने की क्षमता भी अच्छी होती है। अतः शिक्षा का आरम्भ बच्चों को  उत्साह के साथ करना, उनके मन में पहले अपने धर्म और राष्ट्र  के प्रति प्रेम भाव को जगाना उसके लिए बच्चों की प्रेरक कहानियाँ और बच्चों  में अपने शरीर को स्वस्थ मजबूत बनाने के लिए प्रेरक प्रसंग के बारे में बताना, ना केवल बताना प्रत्यक्ष दिखने का प्रयास करना ताकि वह अपने आप को सपने न रखते हुए हकीकत मानकर प्रत्यक्ष करने का प्रयास करे ।
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३ से ५ वर्ष के बच्चों को जितना अनुभव देंगे उतना ही उस विषय को बच्चे अपने अंदर आत्मसात करने का प्रयास करेंगे ।    
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==References==
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<references />
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[[Category:शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका]]

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