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<li> ताल के साथ शरीर की अलग अलग प्रकार से हलचल करना।
 
<li> ताल के साथ शरीर की अलग अलग प्रकार से हलचल करना।
 
<li> नृत्य प्रयोग का विषय है। अतः उसका वर्णन शब्दों में करना असंभव है। उसे प्रत्यक्ष सिखाना चाहिए। नृत्य सिखाते समय शरीर की मुक्त, तालबद्ध, लयबद्ध एवं लोचपूर्ण हलचल आवश्यक है। शरीर को झटके देना या निरर्थक कूदकांद करना ठीक नहीं है। इसके अतिरिक्त संगीत संस्कारिता एवं भद्रता का लक्षण है। अभद्रता एवं असंस्कारिता युक्त हलचल या कूदकांद करना संगीत नहीं, संगीत की विकृति है।
 
<li> नृत्य प्रयोग का विषय है। अतः उसका वर्णन शब्दों में करना असंभव है। उसे प्रत्यक्ष सिखाना चाहिए। नृत्य सिखाते समय शरीर की मुक्त, तालबद्ध, लयबद्ध एवं लोचपूर्ण हलचल आवश्यक है। शरीर को झटके देना या निरर्थक कूदकांद करना ठीक नहीं है। इसके अतिरिक्त संगीत संस्कारिता एवं भद्रता का लक्षण है। अभद्रता एवं असंस्कारिता युक्त हलचल या कूदकांद करना संगीत नहीं, संगीत की विकृति है।
<li> इसके बाद गरबा, रास, डांडिया, अभिनयगीत इत्यादि की बारी आती है। इस पर अधिक ध्यान देने एवं करवाने की आवश्यकता नहीं है। फिर भी आरम्भआत अवश्य करें।
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<li> इसके बाद गरबा, रास, डांडिया, अभिनयगीत इत्यादि की बारी आती है। इस पर अधिक ध्यान देने एवं करवाने की आवश्यकता नहीं है। तथापि आरम्भआत अवश्य करें।
 
<li> शास्त्रीय नृत्य: इस अवस्था में शास्त्रीय नृत्य का मात्र परिचय ही देना चाहिए एवं खूब आसान पदन्यास छात्रों को आएँ इतना ही करना चाहिए। शास्त्रीय नृत्य की कुछ आसान मुद्राएँ भी सिखाना चाहिए। शास्त्रीय नृत्य की विड़ियो केसेट अवश्य दिखाना चाहिए। उसके कारण ही अभिरुचि का निर्माण होता है। एवं इसीका महत्व है।
 
<li> शास्त्रीय नृत्य: इस अवस्था में शास्त्रीय नृत्य का मात्र परिचय ही देना चाहिए एवं खूब आसान पदन्यास छात्रों को आएँ इतना ही करना चाहिए। शास्त्रीय नृत्य की कुछ आसान मुद्राएँ भी सिखाना चाहिए। शास्त्रीय नृत्य की विड़ियो केसेट अवश्य दिखाना चाहिए। उसके कारण ही अभिरुचि का निर्माण होता है। एवं इसीका महत्व है।
 
<li> योगचाप (लेजिम) एवं मितकाल: योगचाप या लेजिमनृत्य मैदान पर किया जानेवाला नृत्य है। अतः यह नृत्य देखने की आवश्यकता होती है। लेजिम पकड़ना आए, बजाना आए, इसके बाद ही उसका पदन्यास करवाना चाहिए। इसी तरह पणव के साथ मितकाल का अभ्यास भी किया जा सकता है।
 
<li> योगचाप (लेजिम) एवं मितकाल: योगचाप या लेजिमनृत्य मैदान पर किया जानेवाला नृत्य है। अतः यह नृत्य देखने की आवश्यकता होती है। लेजिम पकड़ना आए, बजाना आए, इसके बाद ही उसका पदन्यास करवाना चाहिए। इसी तरह पणव के साथ मितकाल का अभ्यास भी किया जा सकता है।

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