Changes

Jump to navigation Jump to search
लेख सम्पादित किया
Line 2: Line 2:     
== उद्देश्य ==
 
== उद्देश्य ==
# योग द्वारा शरीर, प्राण, मन, बुद्धि एवं चित्त ऐसे पाँचों स्तर का विकास करना <ref>प्रारम्भिक पाठ्यक्रम एवं आचार्य अभिभावक निर्देशिका, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखिका: श्रीमती इंदुमती काटदरे
+
# योग द्वारा शरीर, प्राण, मन, बुद्धि एवं चित्त ऐसे पाँचों स्तर का विकास करना <ref>प्रारम्भिक पाठ्यक्रम एवं आचार्य अभिभावक निर्देशिका :अध्याय १, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखिका: श्रीमती इंदुमती काटदरे
 
</ref>। अर्थात् शरीर सुदृढ एवं स्वस्थ करना । चेतातंत्र शुद्ध करना, प्राणों मे संतुलन और लय को बनाना, मन की एकाग्रता को बढाना, बुद्धि विवेकशील बनाना एवं चित्त शुद्ध बनाना । शरीर, प्राण, मन, बुद्धी चित्त मे सुसंगती तथा परस्पर पोषकत्व स्थापित करना ।  
 
</ref>। अर्थात् शरीर सुदृढ एवं स्वस्थ करना । चेतातंत्र शुद्ध करना, प्राणों मे संतुलन और लय को बनाना, मन की एकाग्रता को बढाना, बुद्धि विवेकशील बनाना एवं चित्त शुद्ध बनाना । शरीर, प्राण, मन, बुद्धी चित्त मे सुसंगती तथा परस्पर पोषकत्व स्थापित करना ।  
# वर्तमान समय में सारा संसार योग के महत्व का स्वीकार कर रहा है। योग मूलतः भारत की ही विद्या है। इसलिए योग को विद्यालय के शिक्षणक्रम का एक महत्वपूर्ण भाग बनना ।  
+
# वर्तमान समय में सारा संसार योग के महत्व का स्वीकार कर रहा है। योग मूलतः भारत की ही विद्या है। अतः योग को विद्यालय के शिक्षणक्रम का एक महत्वपूर्ण भाग बनना ।  
 
# योग शारीरिक शिक्षण का भाग नहीं है। उसका संबंध केवल शारीरिक स्वास्थ्य या भौतिक विज्ञान के साथ ही नहीं है अपितु सभी विषयों के साथ है। योग एक संपूर्ण जीवन, विज्ञान, एवं संपूर्ण शास्त्र है। इस दृष्टिकोण का भी विद्यालयों के योग अभ्यासक्रम में अंतर्भाव करना।  
 
# योग शारीरिक शिक्षण का भाग नहीं है। उसका संबंध केवल शारीरिक स्वास्थ्य या भौतिक विज्ञान के साथ ही नहीं है अपितु सभी विषयों के साथ है। योग एक संपूर्ण जीवन, विज्ञान, एवं संपूर्ण शास्त्र है। इस दृष्टिकोण का भी विद्यालयों के योग अभ्यासक्रम में अंतर्भाव करना।  
 
# योग से एक जीवनदृष्टि प्राप्त होती है। यह जीवनदृष्टि आदिकाल से भारत में स्वीकृत है। यही जीवनदृष्टि एवं इससे रचित जीवन व्यवहार के कारण ही भारत का अस्तित्व युगों से प्रवाही रूप मे टिका हुआ है। यह जीवनदृष्टि हमारे छात्रों को प्राप्त हो एवं उनकी जीवनरचना भी उस तरह की बने ।   
 
# योग से एक जीवनदृष्टि प्राप्त होती है। यह जीवनदृष्टि आदिकाल से भारत में स्वीकृत है। यही जीवनदृष्टि एवं इससे रचित जीवन व्यवहार के कारण ही भारत का अस्तित्व युगों से प्रवाही रूप मे टिका हुआ है। यह जीवनदृष्टि हमारे छात्रों को प्राप्त हो एवं उनकी जीवनरचना भी उस तरह की बने ।   
Line 11: Line 11:  
== आलंबन ==
 
== आलंबन ==
 
# योग प्रदर्शन, सूचना या मूल्यांकन का विषय नहीं है। वह तो व्यवस्था, वातावरण, व्यवहार एवं भावना इत्यादि से संबंधित है।  
 
# योग प्रदर्शन, सूचना या मूल्यांकन का विषय नहीं है। वह तो व्यवस्था, वातावरण, व्यवहार एवं भावना इत्यादि से संबंधित है।  
# योग अभ्यास का विषय है। इसलिए अधिक सीखने के स्थान पर अधिक अभ्यास के स्वरूप में होना चाहिए।  
+
# योग अभ्यास का विषय है। अतः अधिक सीखने के स्थान पर अधिक अभ्यास के स्वरूप में होना चाहिए।  
# योग अनेक नामों से पहचाना जाता है। जैसे हटयोग, कर्मयोग, प्रेमयोग, ज्ञानयोग,  भक्तियोग, इत्यादि। जिसे हम योगदर्शन कहते हैं वह है - राजयोग या पातंजल योग। इसलिए पातंजल योगसूत्र इसका मुख्य आधार है।  
+
# योग अनेक नामों से पहचाना जाता है। जैसे हटयोग, कर्मयोग, प्रेमयोग, ज्ञानयोग,  भक्तियोग, इत्यादि। जिसे हम योगदर्शन कहते हैं वह है - राजयोग या पातंजल योग। अतः पातंजल योगसूत्र इसका मुख्य आधार है।  
# योग के आठ अंग हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि। इनमें यम, नियम आगे आनेवाले अभ्यास की आधारभूमि व संदर्भ बिन्दु निश्चित करते हैं। ये जीवनदृष्टि के विकास के मूल आधार हैं। इसलिए इन दोनों का सर्वाधिक महत्व है। शेष अंगों का गंभीर अभ्यास कम से कम बारह वर्ष की आयु के बाद ही हो सकता है। इसलिए यहाँ इन सभी अंगों की योग्य पूर्वतैयारी को ही महत्व दिया गया है।  
+
# योग के आठ अंग हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान एवं समाधि। इनमें यम, नियम आगे आनेवाले अभ्यास की आधारभूमि व संदर्भ बिन्दु निश्चित करते हैं। ये जीवनदृष्टि के विकास के मूल आधार हैं। अतः इन दोनों का सर्वाधिक महत्व है। शेष अंगों का गंभीर अभ्यास कम से कम बारह वर्ष की आयु के बाद ही हो सकता है। अतः यहाँ इन सभी अंगों की योग्य पूर्वतैयारी को ही महत्व दिया गया है।  
 
# पातंजल योग को आधार बनाकर योग के अन्य प्रकारों को भी सम्मिलित करने का प्रयास किया गया है; क्योंकि जीवनव्यवहार में उनका भी महत्वपूर्ण स्थान है।  
 
# पातंजल योग को आधार बनाकर योग के अन्य प्रकारों को भी सम्मिलित करने का प्रयास किया गया है; क्योंकि जीवनव्यवहार में उनका भी महत्वपूर्ण स्थान है।  
 
# इस समन्वित दृष्टि से सोचकर योग का कक्षा १, २ के लिए इस प्रकार से पाठ्यक्रम तैयार किया गया है।  
 
# इस समन्वित दृष्टि से सोचकर योग का कक्षा १, २ के लिए इस प्रकार से पाठ्यक्रम तैयार किया गया है।  
Line 20: Line 20:     
=== श्वसन ===
 
=== श्वसन ===
यह प्राणायाम की पूर्व तैयारी है। श्वसन मानव के पूर्ण जीवन के साथ जुड़ा हुआ है। इसलिए श्वसन योग्य रूप से ठीक तरह से हो इस तरह श्वासप्रश्वास की आदत डालनी चाहिए। इस दृष्टि से निम्न बातें सीखना आवश्यक है:  
+
यह प्राणायाम की पूर्व तैयारी है। श्वसन मानव के पूर्ण जीवन के साथ जुड़ा हुआ है। अतः श्वसन योग्य रूप से ठीक तरह से हो इस तरह श्वासप्रश्वास की आदत डालनी चाहिए। इस दृष्टि से निम्न बातें सीखना आवश्यक है:  
 
# दीर्घश्वसन,  
 
# दीर्घश्वसन,  
 
# श्वास बाहर निकालना,   
 
# श्वास बाहर निकालना,   
Line 43: Line 43:     
=== कीर्तन करना ===
 
=== कीर्तन करना ===
कीर्तन अर्थात् प्रार्थना या भजन नहीं अपितु भगवान के गुणों का स्मरण। कीर्तन भगवान के संगीतमय नाम स्मरण को कहते हैं। कीर्तन से भगवान्नाम के पवित्र स्पंदन सुना कर  सभी जीवो तथा परिवेश को लाभान्वित किया जाता है ।  
+
कीर्तन अर्थात् प्रार्थना या भजन नहीं अपितु भगवान के गुणों का स्मरण। कीर्तन भगवान के संगीतमय नाम स्मरण को कहते हैं। कीर्तन से भगवाननाम के पवित्र स्पंदन सुना कर  सभी जीवो तथा परिवेश को लाभान्वित किया जाता है ।  
    
=== सेवा ===
 
=== सेवा ===
Line 56: Line 56:     
=== स्तोत्र या स्तुति ===
 
=== स्तोत्र या स्तुति ===
प्रार्थना, कीर्तन, भावना इत्यादि को स्तोत्र के रूप में गाया जा सकता है । ऐसे अनेक स्तोत्र भारत की सभी भाषाओं में सर्वत्र प्रचलित हैं। जनसमाज में उनका विशिष्ट स्थान है। इसलिए छात्रों को इनका परिचय भी होना चाहिए। सीखने योग्य स्तोत्रों की सूची स्वतंत्र पुस्तिका में दी गई है।  
+
प्रार्थना, कीर्तन, भावना इत्यादि को स्तोत्र के रूप में गाया जा सकता है । ऐसे अनेक स्तोत्र भारत की सभी भाषाओं में सर्वत्र प्रचलित हैं। जनसमाज में उनका विशिष्ट स्थान है। अतः छात्रों को इनका परिचय भी होना चाहिए। सीखने योग्य स्तोत्रों की सूची स्वतंत्र पुस्तिका में दी गई है।  
    
=== आसन ===
 
=== आसन ===
Line 80: Line 80:  
# समय पालन करना।  
 
# समय पालन करना।  
 
# पुस्तकें सम्हालकर रखना। उनमें आड़ीटेढ़ी लकीरें बनाकर उसे गंदा नहीं करना।  
 
# पुस्तकें सम्हालकर रखना। उनमें आड़ीटेढ़ी लकीरें बनाकर उसे गंदा नहीं करना।  
# कूड़ा हमेशा कूड़ेदान में ही डालना।  
+
# कूड़ा सदा कूड़ेदान में ही डालना।  
 
# शौच के लिए शौचालय का ही उपयोग करना एवं उपयोग के बाद वहाँ पानी डालकर स्वच्छता बनाए रखना।  
 
# शौच के लिए शौचालय का ही उपयोग करना एवं उपयोग के बाद वहाँ पानी डालकर स्वच्छता बनाए रखना।  
 
# अवकाश के समय में ही कक्षा से बाहर जाना।  
 
# अवकाश के समय में ही कक्षा से बाहर जाना।  
Line 120: Line 120:     
==== फूल चढ़ाना ====
 
==== फूल चढ़ाना ====
फूल दानों हाथों से चढ़ाना चाहिए। फूल चढ़ाते समय ऊपर से नीचे की ओर डालें परंतु दोनों हथेलियां उपर की ओर खुली रखकर फूल चढ़ाएँ। फूल यदि देवता या किसी व्यक्ति के पैरों में चढ़ाना हो तो उपरोक्त विधि से चढ़ाए परंतु यदि सिर पर चढ़ाना हो तो उपर से शीश पर फूल रखें। फूल फेंककर कभी न चढाएँ। मूर्ति या प्रतिमा को चढ़ाने के लिए लिये गए फूल नीचे गिरे हुए, अन्य किसी के द्वारा उपयोग किए हुए या सूंघे हुए नहीं होने चाहिए। सुगंधीदार फूल ही सही फूल माने जाते हैं। इसीलिए हमेशा ऐसे फूल ही चढ़ाएँ।  
+
फूल दानों हाथों से चढ़ाना चाहिए। फूल चढ़ाते समय ऊपर से नीचे की ओर डालें परंतु दोनों हथेलियां उपर की ओर खुली रखकर फूल चढ़ाएँ। फूल यदि देवता या किसी व्यक्ति के पैरों में चढ़ाना हो तो उपरोक्त विधि से चढ़ाए परंतु यदि सिर पर चढ़ाना हो तो उपर से शीश पर फूल रखें। फूल फेंककर कभी न चढाएँ। मूर्ति या प्रतिमा को चढ़ाने के लिए लिये गए फूल नीचे गिरे हुए, अन्य किसी के द्वारा उपयोग किए हुए या सूंघे हुए नहीं होने चाहिए। सुगंधीदार फूल ही सही फूल माने जाते हैं। इसीलिए सदा ऐसे फूल ही चढ़ाएँ।  
    
सुगंधहीन क्रोटन्स या केकटस के फूल न चढ़ाएँ। फूल पर कूड़ा न लगा हो यह देखें। फूल की केवल डॅडी ही रखें। डंड़ी के अतिरिक्त भाग निकाल दें। खंडित फूल न चढ़ाएँ। खिले हुए फूल चढ़ाएँ।  
 
सुगंधहीन क्रोटन्स या केकटस के फूल न चढ़ाएँ। फूल पर कूड़ा न लगा हो यह देखें। फूल की केवल डॅडी ही रखें। डंड़ी के अतिरिक्त भाग निकाल दें। खंडित फूल न चढ़ाएँ। खिले हुए फूल चढ़ाएँ।  
Line 130: Line 130:     
==== यज्ञ में आहुति देना ====
 
==== यज्ञ में आहुति देना ====
यज्ञ में दी जानेवाली आहुति के द्रव्य को चुटकी में पकड़ें। बीच की दो ऊँगली एवं अंगूठे से पकड़ें। यज्ञ में आहुति देते समय हथेली आकाश की ओर रहे इस प्रकार रखें, एवं नीचे की ओर छोड़े। हथेली उल्टी दिशा में न रखें या आहुति न फैंकें।
+
यज्ञ में दी जानेवाली आहुति के द्रव्य को चुटकी में पकड़ें। मध्य की दो ऊँगली एवं अंगूठे से पकड़ें। यज्ञ में आहुति देते समय हथेली आकाश की ओर रहे इस प्रकार रखें, एवं नीचे की ओर छोड़े। हथेली उल्टी दिशा में न रखें या आहुति न फैंकें।
    
==== नैवेद्य चढ़ाना ====
 
==== नैवेद्य चढ़ाना ====
Line 138: Line 138:  
कीर्तन भक्तियोग का एक प्रकार है। भगवान के गुणों का गान करना ही कीर्तन है। कीर्तन किसी वस्तु को भगवान से माँगना या स्वयं के उद्धार के लिए या स्वयं के प्रति दया करने की याचना नहीं है। यह प्रेमपूर्वक किया गया प्रभुस्मरण है। इसीलिए भगवान के अनेक कार्यों एवं उसके अनुसार प्रभु के नामों का गान करना ही कीर्तन करना है।
 
कीर्तन भक्तियोग का एक प्रकार है। भगवान के गुणों का गान करना ही कीर्तन है। कीर्तन किसी वस्तु को भगवान से माँगना या स्वयं के उद्धार के लिए या स्वयं के प्रति दया करने की याचना नहीं है। यह प्रेमपूर्वक किया गया प्रभुस्मरण है। इसीलिए भगवान के अनेक कार्यों एवं उसके अनुसार प्रभु के नामों का गान करना ही कीर्तन करना है।
   −
कीर्तन हमेशा संगीतमय ही होता है। जोर से गाना, समूह में गाना, करतलध्वनि के साथ गाना, वाजिंत्रों के साथ गाना, गातेगाते नृत्य करना कीर्तन है। गाँवों में कीर्तन करते करते प्रभातफेरी करने का रिवाज है। उत्सव में या आम समय में मंदिरों में कीर्तन होता है। हरिकथा में भी कीर्तन होता हैं। कीर्तन से वातावरण सुंदर बनता है एवं मनोभाव भी सात्त्विक बनता है। विद्यालय में कभीकभार दस या पंद्रह मिनट के लिए कीर्तन का कार्यक्रम रखना चाहिए। कीर्तन के नमूने संगीत पुस्तिका में दिए गए हैं।
+
कीर्तन सदा संगीतमय ही होता है। जोर से गाना, समूह में गाना, करतलध्वनि के साथ गाना, वाजिंत्रों के साथ गाना, गातेगाते नृत्य करना कीर्तन है। गाँवों में कीर्तन करते करते प्रभातफेरी करने का रिवाज है। उत्सव में या आम समय में मंदिरों में कीर्तन होता है। हरिकथा में भी कीर्तन होता हैं। कीर्तन से वातावरण सुंदर बनता है एवं मनोभाव भी सात्त्विक बनता है। विद्यालय में कभीकभार दस या पंद्रह मिनट के लिए कीर्तन का कार्यक्रम रखना चाहिए। कीर्तन के नमूने संगीत पुस्तिका में दिए गए हैं।
    
=== जप करना ===
 
=== जप करना ===
Line 144: Line 144:  
# माला जपते समय उसे ढंककर रखें। (सीखते समय खुली रखें)
 
# माला जपते समय उसे ढंककर रखें। (सीखते समय खुली रखें)
 
# प्रारंभ में माला छोटी लें एवं एक ही माला जपें। प्रथम ११ मनकोंवाली, फिर ५१ मनकोंवाली एवं उसके बाद १०८ मनकों की माला जपें। संपूर्ण माला १०८ मनकों की होती हैं।
 
# प्रारंभ में माला छोटी लें एवं एक ही माला जपें। प्रथम ११ मनकोंवाली, फिर ५१ मनकोंवाली एवं उसके बाद १०८ मनकों की माला जपें। संपूर्ण माला १०८ मनकों की होती हैं।
# एक साथ संपूर्ण माला जपी जा सके इसलिए छोटी माला ही चुनें। बड़ी माला लेकर जप अधूरा न छोड़ें।
+
# एक साथ संपूर्ण माला जपी जा सके अतः छोटी माला ही चुनें। बड़ी माला लेकर जप अधूरा न छोड़ें।
 
# मंत्र जब तक याद न हो जाए तबतक जोर से बोलकर जपें। इसके बाद बिना आवाज किए जप करें।
 
# मंत्र जब तक याद न हो जाए तबतक जोर से बोलकर जपें। इसके बाद बिना आवाज किए जप करें।
 
# मंत्र शांति से बोलें, उतावली न करें।
 
# मंत्र शांति से बोलें, उतावली न करें।
# जप के दौरान जब तक माला पूर्ण न हो तब तक आँखें बंद रखें, बीच में न खोलें, बैठक भी न बदलें एवं मौन रहें।
+
# जप के दौरान जब तक माला पूर्ण न हो तब तक आँखें बंद रखें, मध्य में न खोलें, बैठक भी न बदलें एवं मौन रहें।
 
# शुरुआत से अंत तक एकसमान गति से माला पूर्ण करें।
 
# शुरुआत से अंत तक एकसमान गति से माला पूर्ण करें।
 
# माला के मनके तुलसी के, रुद्राक्ष के या स्फटिक के हों यह ध्यान रखें। प्लास्टिक के मनकों वाली माला न लें। इसी प्रकार माला का गुंथन नायलोन या प्लास्टिक के धागों से न हुआ हो इसका भी ख्याल रखें।
 
# माला के मनके तुलसी के, रुद्राक्ष के या स्फटिक के हों यह ध्यान रखें। प्लास्टिक के मनकों वाली माला न लें। इसी प्रकार माला का गुंथन नायलोन या प्लास्टिक के धागों से न हुआ हो इसका भी ख्याल रखें।
Line 162: Line 162:  
# वृद्ध सेवा : उनसे बातें करना, खेलना, पैर दबाना, उनकी वस्तुएँ ठिकाने से रखना, उन्हें पंखा झेलना, उन्हें पानी वगैरह लाकर देना, उनके साथ सैर पर जाना, उनके साथ मंदिर जाना इत्यादि।
 
# वृद्ध सेवा : उनसे बातें करना, खेलना, पैर दबाना, उनकी वस्तुएँ ठिकाने से रखना, उन्हें पंखा झेलना, उन्हें पानी वगैरह लाकर देना, उनके साथ सैर पर जाना, उनके साथ मंदिर जाना इत्यादि।
 
# मातापिता की सेवा : उनके पैर छूना, उन्हें पानी, अखबार वगैरह लाकर देना, उनका कहा मानना, उनके सामने ऊँची आवाज में नहीं बोलना, उनके कार्य में सहायता करना।
 
# मातापिता की सेवा : उनके पैर छूना, उन्हें पानी, अखबार वगैरह लाकर देना, उनका कहा मानना, उनके सामने ऊँची आवाज में नहीं बोलना, उनके कार्य में सहायता करना।
# बड़ों की सेवा : बड़ों के सामने चिल्लाकर नहीं बोलना, वे काम करते हों तो उन्हें खलल नहीं पहुँचाना, वे जहाँ बैठे हों वहाँ आवाज नहीं करना। उनके बीच से नहीं दौड़ना। उनकी वस्तुओं को नहीं बिखेरना।
+
# बड़ों की सेवा : बड़ों के सामने चिल्लाकर नहीं बोलना, वे काम करते हों तो उन्हें खलल नहीं पहुँचाना, वे जहाँ बैठे हों वहाँ आवाज नहीं करना। उनके मध्य से नहीं दौड़ना। उनकी वस्तुओं को नहीं बिखेरना।
 
# देव सेवा : पूजा, प्रार्थना, प्रणाम करना, भजन, कीर्तन एवं वंदना करना।
 
# देव सेवा : पूजा, प्रार्थना, प्रणाम करना, भजन, कीर्तन एवं वंदना करना।
 
# प्राणी सेवा : गाय, कुत्ते को रोटी देना, पक्षियों को दाना डालना, उन्हें किसी तरह की चोट न हो इसका ख्याल रखना, चोट लगी हो तो इलाज करना।
 
# प्राणी सेवा : गाय, कुत्ते को रोटी देना, पक्षियों को दाना डालना, उन्हें किसी तरह की चोट न हो इसका ख्याल रखना, चोट लगी हो तो इलाज करना।
Line 169: Line 169:     
==== ध्यान में लेने योग्य बातें ====
 
==== ध्यान में लेने योग्य बातें ====
# सेवा केवल कहने या सूचना देने की बात नहीं है अपितु करने की बात है। करने के साथ ही वह भावना का विषय है। इसलिए भावना जागृत करने का प्रयास करना चाहिए।
+
# सेवा केवल कहने या सूचना देने की बात नहीं है अपितु करने की बात है। करने के साथ ही वह भावना का विषय है। अतः भावना जागृत करने का प्रयास करना चाहिए।
# इनमें से आधे से अधिक बातें तो घर में ही करने योग्य हैं। विद्यालय में इन्हें सिखाकर घर में करने की प्रेरणा देना चाहिए। इसके विषय में बारबार प्रश्न पूछे जाने चाहिए। मातापिता के साथ इस विषय में वार्तालाप करना चाहिए एवं मातापिता इन सभी कार्यों को घर में बच्चों से करवाएँ, ऐसा आग्रह करना।
+
# इनमें से आधे से अधिक बातें तो घर में ही करने योग्य हैं। विद्यालय में इन्हें सिखाकर घर में करने की प्रेरणा देना चाहिए। इसके विषय में बारबार प्रश्न पूछे जाने चाहिए। मातापिता के साथ इस विषय में वार्तालाप करना चाहिए एवं मातापिता इन सभी कार्यों को घर में बच्चोंं से करवाएँ, ऐसा आग्रह करना।
# सेवा से ही चित्तशुद्धि होती है। सेवा से ही मानवता का विकास होता है। सेवा से ही घर परिवार एवं समाज टिका रहता है। इसलिए इसका महत्व समझकर सेवा करना सिखाएँ।
+
# सेवा से ही चित्तशुद्धि होती है। सेवा से ही मानवता का विकास होता है। सेवा से ही घर परिवार एवं समाज टिका रहता है। अतः इसका महत्व समझकर सेवा करना सिखाएँ।
    
=== मंत्रपाठ ===
 
=== मंत्रपाठ ===
Line 192: Line 192:     
=== सद्गुण एवं सदाचार ===
 
=== सद्गुण एवं सदाचार ===
यही नैतिक शिक्षण है। यही सदाचार है। यही संस्कार है। यही सभी मनुष्यों के साथ मिलकर रहने की सही पद्धति है। यही योग के आठ अंगों में से दो अंग यम और नियम है। इसके बाद में विस्तार से कुछ भी समझाने की जरूरत नहीं है। सब कुछ स्वयं स्पष्ट ही है।
+
यही नैतिक शिक्षण है। यही सदाचार है। यही संस्कार है। यही सभी मनुष्यों के साथ मिलकर रहने की सही पद्धति है। यही योग के आठ अंगों में से दो अंग यम और नियम है। इसके बाद में विस्तार से कुछ भी समझाने की आवश्यकता नहीं है। सब कुछ स्वयं स्पष्ट ही है।
    
=== ॐकार ===
 
=== ॐकार ===
ॐकार सर्व योग का सार है। सर्व वाणी का सार है। सर्व संगीत का सार है। योगसूत्र में कहा गया है कि "तस्य वाचकः प्रणवः<nowiki>''</nowiki>। ईश्वर का नाम ॐकार है। इसलिए ॐकार का उच्चारण योग्य एवं सही रीति से करना अत्यंत आवश्यक है। ॐकार का उच्चारण इस प्रकार करना चाहिये:
+
ॐकार सर्व योग का सार है। सर्व वाणी का सार है। सर्व संगीत का सार है। योगसूत्र में कहा गया है कि "तस्य वाचकः प्रणवः<nowiki>''</nowiki>। ईश्वर का नाम ॐकार है। अतः ॐकार का उच्चारण योग्य एवं सही रीति से करना अत्यंत आवश्यक है। ॐकार का उच्चारण इस प्रकार करना चाहिये:
 
# अनुकूल आसन पर सीधे एवं स्थिर बैठकर आँखें बंद करें
 
# अनुकूल आसन पर सीधे एवं स्थिर बैठकर आँखें बंद करें
 
# दोनों हाथ चिन् मुद्रा, चिन्मय मुद्रा या ब्रह्मांजलि मुद्रा में रखें या घुटनों पर रखें
 
# दोनों हाथ चिन् मुद्रा, चिन्मय मुद्रा या ब्रह्मांजलि मुद्रा में रखें या घुटनों पर रखें
Line 206: Line 206:  
# पूर्ण श्वास भरें एवं आँखें खोलें। यह ॐकार का एक आवर्तन हुआ। इस प्रकार एक साथ कम से कम तीन बार ॐकार का उच्चारण कहे। जब सामूहिक ॐकार का उच्चारण होता हो तब यदि सबकी लंबाई अलग अलग हो तो सबका पूर्ण होने तक प्रतीक्षा करें। इसके पश्चात् सभी एक साथ प्रारम्भ करें। सबका एक स्वर हो इसका ध्यान रखें।  
 
# पूर्ण श्वास भरें एवं आँखें खोलें। यह ॐकार का एक आवर्तन हुआ। इस प्रकार एक साथ कम से कम तीन बार ॐकार का उच्चारण कहे। जब सामूहिक ॐकार का उच्चारण होता हो तब यदि सबकी लंबाई अलग अलग हो तो सबका पूर्ण होने तक प्रतीक्षा करें। इसके पश्चात् सभी एक साथ प्रारम्भ करें। सबका एक स्वर हो इसका ध्यान रखें।  
 
# मंत्र में हो या स्वतंत्र, जहाँ भी ॐ होता है वह 'सा' स्वर में ही बोला जाता है।
 
# मंत्र में हो या स्वतंत्र, जहाँ भी ॐ होता है वह 'सा' स्वर में ही बोला जाता है।
 +
[[Yoga and Its Four Paths|यह लेख]] भी देखें।
    
==References==
 
==References==
 
<references />
 
<references />
      
[[Category:शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका]]
 
[[Category:शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका]]
[[Category:Bhartiya Jeevan Pratiman (भारतीय जीवन प्रतिमान)]]
+
[[Category:Dharmik Jeevan Pratiman (धार्मिक जीवन प्रतिमान)]]
[[Category:Education Series]]
 

Navigation menu