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== उद्देश्य ==
 
== उद्देश्य ==
# जीवन व्यवहार किसी न किसी तरह के क्रियाकलाप से चलता है<ref>प्रारम्भिक पाठ्यक्रम एवं आचार्य अभिभावक निर्देशिका :अध्याय २, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखिका: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। इसलिए हाथ से काम करना सीखना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। उद्योग हाथ को काम करना सिखाता है।
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# जीवन व्यवहार किसी न किसी तरह के क्रियाकलाप से चलता है<ref>प्रारम्भिक पाठ्यक्रम एवं आचार्य अभिभावक निर्देशिका :अध्याय २, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखिका: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। अतः हाथ से काम करना सीखना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है। उद्योग हाथ को काम करना सिखाता है।
 
# हाथ की कुशलता अर्थात्:
 
# हाथ की कुशलता अर्थात्:
 
## एक ऊँगली एवं अंगूठे से, दो ऊँगली एवं अंगूठे से, पाँचों ऊँगलियों से, मुठ्ठी से, हथेली से, दोनों हाथों से पकड़ने की कुशलता।
 
## एक ऊँगली एवं अंगूठे से, दो ऊँगली एवं अंगूठे से, पाँचों ऊँगलियों से, मुठ्ठी से, हथेली से, दोनों हाथों से पकड़ने की कुशलता।
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# सुई-धागे की सहायता से फूलों की माला तैयार करना ।
 
# सुई-धागे की सहायता से फूलों की माला तैयार करना ।
 
# कढ़ाई एवं गूंथने के मूल कौशलों की प्राप्ति करना।
 
# कढ़ाई एवं गूंथने के मूल कौशलों की प्राप्ति करना।
# मोती (मनका) या कोई वस्तु निकल न जाए इसलिए या बांधने के लिए गाँठ लगाना।
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# मोती (मनका) या कोई वस्तु निकल न जाए अतः या बांधने के लिए गाँठ लगाना।
    
=== बिनौला छिलना, कपास निकालना, रूई धुनना, बुनाई करना ===
 
=== बिनौला छिलना, कपास निकालना, रूई धुनना, बुनाई करना ===
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उद्योग पाँचों कोशों के विकास से संबंधित विषय है। इसके अलावा, व्यावहारिक जीवन में सबसे अधिक उपयोगी विषय है। मनुष्य को सभी प्रकार से स्वावलंबी, स्वाधीन एवं स्वतंत्र बनानेवाला विषय है। स्वाधीन एवं स्वतंत्र मनुष्य उत्साह, आत्मविश्वास एवं प्रसन्नता से भरपूर बनता है। वह जीवन की सार्थकता का अनुभव करता है। स्वयं के लिए उद्यमी बनने के साथ-साथ वह अन्यों के साथ भी सौहार्दपूर्ण सुमेल बनाए रखता है। इससे उसे जीवन का आनंद प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उद्यमशील मनुष्य परिवार के लिए, समाज के लिए एवं देश के लिए भी एक मल्यवान संपत्ति होता है। इसीलिए प्रारंभ से ही इस विषय का समावेश पाठ्यक्रम में किया गया है।
 
उद्योग पाँचों कोशों के विकास से संबंधित विषय है। इसके अलावा, व्यावहारिक जीवन में सबसे अधिक उपयोगी विषय है। मनुष्य को सभी प्रकार से स्वावलंबी, स्वाधीन एवं स्वतंत्र बनानेवाला विषय है। स्वाधीन एवं स्वतंत्र मनुष्य उत्साह, आत्मविश्वास एवं प्रसन्नता से भरपूर बनता है। वह जीवन की सार्थकता का अनुभव करता है। स्वयं के लिए उद्यमी बनने के साथ-साथ वह अन्यों के साथ भी सौहार्दपूर्ण सुमेल बनाए रखता है। इससे उसे जीवन का आनंद प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त उद्यमशील मनुष्य परिवार के लिए, समाज के लिए एवं देश के लिए भी एक मल्यवान संपत्ति होता है। इसीलिए प्रारंभ से ही इस विषय का समावेश पाठ्यक्रम में किया गया है।
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प्रथम दृष्टि में यह पाठ्यक्रम बहुत लंबा एवं कठिन दृष्टिगोचर होता है। परंतु प्रयोग करने से एवं अनुभव करने से ध्यान में आता है कि ये दोनों भय काल्पनिक हैं, क्योंकि ये सभी क्रियाकलाप सीखने के स्तर पर हैं। अर्थोपार्जन या घर चलाने की जिम्मेदारी से युक्त नहीं है। इसीलिए इसमें आचार्य एवं मातापिता का संपूर्ण मार्गदर्शन, सहयोग एवं नियंत्रण जरुरी है। अर्थात् भेल बने एवं सबको अल्पाहार मिले तथा भरपेट मिले या विद्यालय का बाग तैयार हो यह तो ठीक है परन्तु इसका मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के कौशल एवं समझ का विकास करना है, अनुभूति करना है। इसलिए छात्र के स्तर के अनुसार ही पूर्णता या उत्तमता की अपेक्षा रखी जाए। किसी भी कार्य के प्रारंभिक सोपान सीखने के लिए ही होता है। जब तक गलती न हो, किसी तरह का व्यय न हो, कहीं चोट न लगे तब तक कुछ भी सीखा नहीं जा सकता है। सीखने की शुरुआत अनुभवप्राप्ति से ही होती है। यह सब जितना जल्दी आरम्भ हो उतना ही छात्र जिस जिस से संबंधित है उन सभी को लाभ होता है। इस दृष्टि से इन सभी क्रियाकलापों का विचार करना चाहिए।
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प्रथम दृष्टि में यह पाठ्यक्रम बहुत लंबा एवं कठिन दृष्टिगोचर होता है। परंतु प्रयोग करने से एवं अनुभव करने से ध्यान में आता है कि ये दोनों भय काल्पनिक हैं, क्योंकि ये सभी क्रियाकलाप सीखने के स्तर पर हैं। अर्थोपार्जन या घर चलाने की जिम्मेदारी से युक्त नहीं है। इसीलिए इसमें आचार्य एवं मातापिता का संपूर्ण मार्गदर्शन, सहयोग एवं नियंत्रण जरुरी है। अर्थात् भेल बने एवं सबको अल्पाहार मिले तथा भरपेट मिले या विद्यालय का बाग तैयार हो यह तो ठीक है परन्तु इसका मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के कौशल एवं समझ का विकास करना है, अनुभूति करना है। अतः छात्र के स्तर के अनुसार ही पूर्णता या उत्तमता की अपेक्षा रखी जाए। किसी भी कार्य के प्रारंभिक सोपान सीखने के लिए ही होता है। जब तक गलती न हो, किसी तरह का व्यय न हो, कहीं चोट न लगे तब तक कुछ भी सीखा नहीं जा सकता है। सीखने की शुरुआत अनुभवप्राप्ति से ही होती है। यह सब जितना जल्दी आरम्भ हो उतना ही छात्र जिस जिस से संबंधित है उन सभी को लाभ होता है। इस दृष्टि से इन सभी क्रियाकलापों का विचार करना चाहिए।
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इन सभी क्रियाकलापों से लगता है कि भिन्न भिन्न, मूलभूत कौशल भी अनेक प्रकार के हैं, परंतु मूलतः ये हाथ से संबंधित कौशल एवं क्रियाकलाप हैं। हाथ की विभिन्न क्षमताओं के विकास में सहयोगी बननेवाली मानसिक एवं बौद्धिक क्षमताएँ भी इसमें समाविष्ट हैं। एक सुभाषित है {{Citation needed}} :<blockquote>कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।</blockquote><blockquote>करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ।।</blockquote><blockquote>अर्थात् हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती एवं दोनो हाथ के मूल में गोविन्द का वास है। इसलिए प्रातःकाल हाथ का दर्शन करो।।</blockquote>लक्ष्मी अर्थात् वैभव, सरस्वती अर्थात् विद्या एवं कला, गोविन्द अर्थात् गायों को पालनेवाले (धन के स्वामी) एवं इन्द्रियों के स्वामी। जीवन में वैभव, विद्या, कला, धन इत्यादि प्राप्त करना है तो हाथों को काम करने के लिए प्रेरित करना पड़ेगा। हाथों को कार्यान्वित करने के लिए ही उद्योग विषय की रचना की गई है।
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इन सभी क्रियाकलापों से लगता है कि भिन्न भिन्न, मूलभूत कौशल भी अनेक प्रकार के हैं, परंतु मूलतः ये हाथ से संबंधित कौशल एवं क्रियाकलाप हैं। हाथ की विभिन्न क्षमताओं के विकास में सहयोगी बननेवाली मानसिक एवं बौद्धिक क्षमताएँ भी इसमें समाविष्ट हैं। एक सुभाषित है {{Citation needed}} :<blockquote>कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।</blockquote><blockquote>करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ।।</blockquote><blockquote>अर्थात् हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती एवं दोनो हाथ के मूल में गोविन्द का वास है। अतः प्रातःकाल हाथ का दर्शन करो।।</blockquote>लक्ष्मी अर्थात् वैभव, सरस्वती अर्थात् विद्या एवं कला, गोविन्द अर्थात् गायों को पालनेवाले (धन के स्वामी) एवं इन्द्रियों के स्वामी। जीवन में वैभव, विद्या, कला, धन इत्यादि प्राप्त करना है तो हाथों को काम करने के लिए प्रेरित करना पड़ेगा। हाथों को कार्यान्वित करने के लिए ही उद्योग विषय की रचना की गई है।
    
== कैसे सिखाएँ ==
 
== कैसे सिखाएँ ==
 
उद्योग सिखाते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है:
 
उद्योग सिखाते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है:
 
# जल्दी न करें: कोई भी कौशल धीरे धीरे सीखा जाता है। हाथ की गति कम हो, साथ ही मानसिक रूप से भी जल्दी न हो, धैर्य न खोएँ यह आवश्यक है। यह गुण प्रथम सिखानेवाले गुरु एवं मातापिता में होना चाहिए। यदि उनमें धैर्य होगा तो छात्रों में अपने आप ही आ जाएगा। जल्दी पूर्ण होने पर अधिक कार्य किया जा सकेगा ऐसा तर्क भी उपयोगी नहीं है।
 
# जल्दी न करें: कोई भी कौशल धीरे धीरे सीखा जाता है। हाथ की गति कम हो, साथ ही मानसिक रूप से भी जल्दी न हो, धैर्य न खोएँ यह आवश्यक है। यह गुण प्रथम सिखानेवाले गुरु एवं मातापिता में होना चाहिए। यदि उनमें धैर्य होगा तो छात्रों में अपने आप ही आ जाएगा। जल्दी पूर्ण होने पर अधिक कार्य किया जा सकेगा ऐसा तर्क भी उपयोगी नहीं है।
# एक साथ एक ही काम लंबे समय तक न करें: किसी भी काम में महारत हासिल करने के लिए उसका अभ्यास आवश्यक है। अभ्यास अर्थात् पुनरावर्तन। अर्थात् एक ही कार्य बार बार नियमित रूप से करना। इसलिए प्रतिदिन कुछ समय उस कार्य के लिए देना चाहिए।
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# एक साथ एक ही काम लंबे समय तक न करें: किसी भी काम में महारत हासिल करने के लिए उसका अभ्यास आवश्यक है। अभ्यास अर्थात् पुनरावर्तन। अर्थात् एक ही कार्य बार बार नियमित रूप से करना। अतः प्रतिदिन कुछ समय उस कार्य के लिए देना चाहिए।
 
# कार्य की इकाई छोटी एवं एक ही रखें। एक साथ अनेक कार्य न करें इस तरह करने से कार्य में सफाई आती है। कौशल हस्तगत होता है। उस कार्य के प्रति समझ भी स्पष्ट रूप से बढ़ती है।
 
# कार्य की इकाई छोटी एवं एक ही रखें। एक साथ अनेक कार्य न करें इस तरह करने से कार्य में सफाई आती है। कौशल हस्तगत होता है। उस कार्य के प्रति समझ भी स्पष्ट रूप से बढ़ती है।
 
# गुणवत्ता का आग्रह रखें: निश्चितता, चौकसी, गुणवत्ता का आग्रह रखना चाहिए एवं छात्र में उसका आग्रह बने ऐसी प्रेरणा देना चाहिए। ऐसे आग्रह एवं अभ्यास से किसी भी कार्य का कर्मज संस्कार बनता है। ऐसा संस्कार होने के बाद वह छात्र जीवन में जब भी कुछ भी करेगा तो उसमें चौकसी, निश्चितता, उत्तमता आदि का आग्रह अवश्य होगा।
 
# गुणवत्ता का आग्रह रखें: निश्चितता, चौकसी, गुणवत्ता का आग्रह रखना चाहिए एवं छात्र में उसका आग्रह बने ऐसी प्रेरणा देना चाहिए। ऐसे आग्रह एवं अभ्यास से किसी भी कार्य का कर्मज संस्कार बनता है। ऐसा संस्कार होने के बाद वह छात्र जीवन में जब भी कुछ भी करेगा तो उसमें चौकसी, निश्चितता, उत्तमता आदि का आग्रह अवश्य होगा।
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=== रेखा खींचना ===
 
=== रेखा खींचना ===
# प्रथम चरण है रेखा खींचना। छात्र अंगुली से, पेन्सिल से या पेन से जमीन पर, स्लेट पर, दीवार पर, या कागज पर टेढ़ीमेढ़ी रेखायें खींचता है। उसका वह क्रियाकलाप तो बहुत पहले से ही आरम्भ हो जाता है परन्तु उसकी पेन पकड़ने की पद्धति सही नहीं होती है। इसलिए उसे सही तरह से पेन पकड़ना सिखाएँ। सही तरीके से पेन पकड़ने से उसकी लकीरें भी ठीक बनेंगी।
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# प्रथम चरण है रेखा खींचना। छात्र अंगुली से, पेन्सिल से या पेन से जमीन पर, स्लेट पर, दीवार पर, या कागज पर टेढ़ीमेढ़ी रेखायें खींचता है। उसका वह क्रियाकलाप तो बहुत पहले से ही आरम्भ हो जाता है परन्तु उसकी पेन पकड़ने की पद्धति सही नहीं होती है। अतः उसे सही तरह से पेन पकड़ना सिखाएँ। सही तरीके से पेन पकड़ने से उसकी लकीरें भी ठीक बनेंगी।
# आड़ीटेढ़ी रेखा, रेखा नहीं है। रेखा अर्थात् दो निश्चित बिन्दुओं को जोड़ना। ऐसी रेखा खींचने के लिए सर्वप्रथम किसी भी प्रकार के माप के बिना हाथ से ही रेखा खींचने के लिए कहना चाहिए। आड़ी-टेढ़ी रेखा एवं रेखा के मध्य का अंतर मस्तिष्क में बैठने तक मुक्त रूप से रेखाएँ खिंचवाना चाहिए। इसके लिए कल्पना के अनुसार भिन्न-भिन्न वस्तुओं के आकार बनाने के लिए कह सकते हैं। ये रेखाएँ स्वाभाविक रूप से ही घुमावदार होंगी। गोल, अर्धगोल, लंबगोल, आम का आकार, बेलन का आकार आदि विविध प्रकार से टेढ़ी रेखाएँ खींचने का अभ्यास हो यह आवश्यक है। इन आकारों में माप नहीं होगा परंतु धीरे धीरे उन्हें अनुपात की ओर ले जाएँ। पेन तथा हाथ की हलचल पर नियंत्रण रहे इसलिए मुक्त एवं नियंत्रित क्रियाएँ करवाएँ।  
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# आड़ीटेढ़ी रेखा, रेखा नहीं है। रेखा अर्थात् दो निश्चित बिन्दुओं को जोड़ना। ऐसी रेखा खींचने के लिए सर्वप्रथम किसी भी प्रकार के माप के बिना हाथ से ही रेखा खींचने के लिए कहना चाहिए। आड़ी-टेढ़ी रेखा एवं रेखा के मध्य का अंतर मस्तिष्क में बैठने तक मुक्त रूप से रेखाएँ खिंचवाना चाहिए। इसके लिए कल्पना के अनुसार भिन्न-भिन्न वस्तुओं के आकार बनाने के लिए कह सकते हैं। ये रेखाएँ स्वाभाविक रूप से ही घुमावदार होंगी। गोल, अर्धगोल, लंबगोल, आम का आकार, बेलन का आकार आदि विविध प्रकार से टेढ़ी रेखाएँ खींचने का अभ्यास हो यह आवश्यक है। इन आकारों में माप नहीं होगा परंतु धीरे धीरे उन्हें अनुपात की ओर ले जाएँ। पेन तथा हाथ की हलचल पर नियंत्रण रहे अतः मुक्त एवं नियंत्रित क्रियाएँ करवाएँ।  
 
# इसके बाद बारी आती है सीधी रेखा की। सीधी रेखा खींचने के लिए हाथ की हलचल पर अधिक नियंत्रण एवं अधिक एकाग्रता की आवश्यकता होती है। इसमें सहायता के लिए उन्हें बिन्दु निश्चित करके दें। ये बिन्दु एकदूसरे से बहुत दूर नहीं होने चाहिए। प्रथम उनसे सीधी रेखा खींचवानी चाहिये। ये रेखाएँ इतने प्रकार से खिंचवाएँ :
 
# इसके बाद बारी आती है सीधी रेखा की। सीधी रेखा खींचने के लिए हाथ की हलचल पर अधिक नियंत्रण एवं अधिक एकाग्रता की आवश्यकता होती है। इसमें सहायता के लिए उन्हें बिन्दु निश्चित करके दें। ये बिन्दु एकदूसरे से बहुत दूर नहीं होने चाहिए। प्रथम उनसे सीधी रेखा खींचवानी चाहिये। ये रेखाएँ इतने प्रकार से खिंचवाएँ :
 
## आड़ी रेखा - बाई ओर से दाहिनी ओर जानेवाली   
 
## आड़ी रेखा - बाई ओर से दाहिनी ओर जानेवाली   
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## तिरछी रेखा – दाहिनी ओर से बाई ओर जाने वाली  
 
## तिरछी रेखा – दाहिनी ओर से बाई ओर जाने वाली  
 
# इसके बाद कागज की तह बनाकर उस पर रेखा खिंचवाएँ या खिंची हुई रेखा पर ही रेखा खिंचवाएँ। ऐसी रेखा एक या दो या तीन ईंच जितनी लंबी होनी चाहिए।  
 
# इसके बाद कागज की तह बनाकर उस पर रेखा खिंचवाएँ या खिंची हुई रेखा पर ही रेखा खिंचवाएँ। ऐसी रेखा एक या दो या तीन ईंच जितनी लंबी होनी चाहिए।  
# इसके बाद बारी आती है फुटपट्टी से रेखा खींचने की। इसके लिए भी बिंदु निश्चित करना चाहिए। फुटपट्टी छोटी छः ईंचकी ही हो तो अधिक सुविधा रहेगी। पारदर्शक हो तो बहुत ही उत्तम है। फुटपट्टी से रेखा खींचने के लिए प्रथम स्लेट एवं बाद में कागज का उपयोग करें। जबतक रबड़ का उपयोग नहीं कर सकते तब तक पेन्सिलका अधिक उपयोग न करें। ये रेखायें आड़ी, खड़ी, तिरछी, सभी तरह की होनी चाहिए। यद्यपि अनुभवी आचार्य यह समझ सकते हैं कि फुटपट्टी के उपयोग से खड़ी रेखा खींचना सरल है परंतु आड़ी रेखा खींचना उतना सरल नहीं है। इसलिए प्रथम खड़ी रेखा, इसके बाद तिरछी रेखा एवं इसके बाद आड़ी रेखा खींचवाएँ।
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# इसके बाद बारी आती है फुटपट्टी से रेखा खींचने की। इसके लिए भी बिंदु निश्चित करना चाहिए। फुटपट्टी छोटी छः ईंचकी ही हो तो अधिक सुविधा रहेगी। पारदर्शक हो तो बहुत ही उत्तम है। फुटपट्टी से रेखा खींचने के लिए प्रथम स्लेट एवं बाद में कागज का उपयोग करें। जबतक रबड़ का उपयोग नहीं कर सकते तब तक पेन्सिलका अधिक उपयोग न करें। ये रेखायें आड़ी, खड़ी, तिरछी, सभी तरह की होनी चाहिए। यद्यपि अनुभवी आचार्य यह समझ सकते हैं कि फुटपट्टी के उपयोग से खड़ी रेखा खींचना सरल है परंतु आड़ी रेखा खींचना उतना सरल नहीं है। अतः प्रथम खड़ी रेखा, इसके बाद तिरछी रेखा एवं इसके बाद आड़ी रेखा खींचवाएँ।
 
# इसी तरह घुमावदार रेखाओं को भी आनुपातिक करने का प्रयास करना चाहिए। एक सीमा में रहकर विभिन्न आकार बनवाने का अभ्यास करवाएँ।  
 
# इसी तरह घुमावदार रेखाओं को भी आनुपातिक करने का प्रयास करना चाहिए। एक सीमा में रहकर विभिन्न आकार बनवाने का अभ्यास करवाएँ।  
 
# इसके बाद सीधी, टेढ़ी एवं घुमावदार रेखाओं का एकसाथ उपयोग हो इस तरह भिन्न-भिन्न आकार बनाने का खेल चलता रहे।
 
# इसके बाद सीधी, टेढ़ी एवं घुमावदार रेखाओं का एकसाथ उपयोग हो इस तरह भिन्न-भिन्न आकार बनाने का खेल चलता रहे।
 
# सावधानियाँ
 
# सावधानियाँ
## रेखा खींचना अन्य क्रियाकलापों के लिए मूलभूत कौशल है। इसलिए जब तक रेखा खींचना पूर्ण रूप से नहीं आता तब तक लेखन न करवाएँ। करवाएंगे तो लेख अच्छा न होने की संभावना रहेगी।
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## रेखा खींचना अन्य क्रियाकलापों के लिए मूलभूत कौशल है। अतः जब तक रेखा खींचना पूर्ण रूप से नहीं आता तब तक लेखन न करवाएँ। करवाएंगे तो लेख अच्छा न होने की संभावना रहेगी।
 
## रेखा खींचने के लिए प्रथम रेत में अंगुलियों से, फिर जमीन पर खड़िया से, इसके बाद स्लेट पर पेन (खड़िया) से एवं अंत में कागज पर पेन्सिल से खींचने का क्रम बनाएँ।  
 
## रेखा खींचने के लिए प्रथम रेत में अंगुलियों से, फिर जमीन पर खड़िया से, इसके बाद स्लेट पर पेन (खड़िया) से एवं अंत में कागज पर पेन्सिल से खींचने का क्रम बनाएँ।  
 
## कक्षा १ में प्रारंभ के तीन मास इस क्रिया के लिए देना चाहिए। इसके बाद रेखाओं का व्यावहारिक उपयोग अर्थात् लेखन, कोष्टक बनाना, चित्र बनाना आदि आरम्भ करें।
 
## कक्षा १ में प्रारंभ के तीन मास इस क्रिया के लिए देना चाहिए। इसके बाद रेखाओं का व्यावहारिक उपयोग अर्थात् लेखन, कोष्टक बनाना, चित्र बनाना आदि आरम्भ करें।
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## उद्योग की अभ्यासपुस्तिका में रेखा खींचने के लिए एक स्वतंत्र विभाग होना चाहिए। परंतु अभ्यास पुस्तिका की बारी तो अंत में आती है। उससे पहले पूर्ण अभ्यास रेती, जमीन, स्लेट, वगैरह पर करना आवश्यक है।
 
## उद्योग की अभ्यासपुस्तिका में रेखा खींचने के लिए एक स्वतंत्र विभाग होना चाहिए। परंतु अभ्यास पुस्तिका की बारी तो अंत में आती है। उससे पहले पूर्ण अभ्यास रेती, जमीन, स्लेट, वगैरह पर करना आवश्यक है।
 
## रेखा खींचने के कौशल का स्वतंत्र मूल्यांकन होना चाहिए। मूल्यांकन के बाद उस पर आधारित आगे के अन्य मुद्दों की ओर जाना चाहिए।
 
## रेखा खींचने के कौशल का स्वतंत्र मूल्यांकन होना चाहिए। मूल्यांकन के बाद उस पर आधारित आगे के अन्य मुद्दों की ओर जाना चाहिए।
## ध्यान रहे कि यह जीवनभर चलनेवाले विविध प्रकार के क्रियाकलापों की नींव है। भिन्न भिन्न विषयों के लिए आधारभूत सोपान भी यही है। इसलिए इसका महत्व बिलकुल भी कम नहीं आंकना चाहिए।  
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## ध्यान रहे कि यह जीवनभर चलनेवाले विविध प्रकार के क्रियाकलापों की नींव है। भिन्न भिन्न विषयों के लिए आधारभूत सोपान भी यही है। अतः इसका महत्व बिलकुल भी कम नहीं आंकना चाहिए।  
 
## इस कौशल से संबंधित शब्द - रेखा, पंक्ति, बिंदु, सीधी रेखा, टेढ़ी रेखा, बेल-बूटेदार छाप, रंगोली वगैरह सरलता से समझे जा सके इस तरह उनका उपयोग करना चाहिए। पंक्ति में बैठना, रेखा पर खड़े रहना, रेखा पर चलना, रेखा के अंदर रहना इत्यादि समझ में आना चाहिए।
 
## इस कौशल से संबंधित शब्द - रेखा, पंक्ति, बिंदु, सीधी रेखा, टेढ़ी रेखा, बेल-बूटेदार छाप, रंगोली वगैरह सरलता से समझे जा सके इस तरह उनका उपयोग करना चाहिए। पंक्ति में बैठना, रेखा पर खड़े रहना, रेखा पर चलना, रेखा के अंदर रहना इत्यादि समझ में आना चाहिए।
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## कैंची का स्क्रू बहुत सख्त या ढीला नहीं होना चाहिए।
 
## कैंची का स्क्रू बहुत सख्त या ढीला नहीं होना चाहिए।
 
## कागज के कटे या फटे टुकड़े चिपकाने के उपयोग में लिए जा सकें इस तरह सम्हाल कर रखना चाहिए। इसके लिए कागज के ही अच्छे लिफाफे बनाकर रखना चाहिए। प्रत्येक लिफाफे में वर्गीकरण करके भिन्न-भिन्न नाप के, भिन्न-भिन्न रंग के एवं भिन्न-भिन्न प्रकार के टुकड़े भरकर रखना चाहिए।
 
## कागज के कटे या फटे टुकड़े चिपकाने के उपयोग में लिए जा सकें इस तरह सम्हाल कर रखना चाहिए। इसके लिए कागज के ही अच्छे लिफाफे बनाकर रखना चाहिए। प्रत्येक लिफाफे में वर्गीकरण करके भिन्न-भिन्न नाप के, भिन्न-भिन्न रंग के एवं भिन्न-भिन्न प्रकार के टुकड़े भरकर रखना चाहिए।
## आगे के क्रियाकलापों के लिए यह कौशल महत्वपूर्ण है। इसलिए इसकी शुरुआत भी पहले से ही करना चाहिए। यद्यपि छोटी छोटी इकाईयों मैं बाँटकर पूरा वर्ष यह क्रियाकलाप करवा सकते हैं तथापि प्रथम एवं द्वितीय कक्षा में इतना करने के बाद अगली कक्षाओं में अधिक प्रकार से काटना या फाड़ना सिखाया जा सकता है।
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## आगे के क्रियाकलापों के लिए यह कौशल महत्वपूर्ण है। अतः इसकी शुरुआत भी पहले से ही करना चाहिए। यद्यपि छोटी छोटी इकाईयों मैं बाँटकर पूरा वर्ष यह क्रियाकलाप करवा सकते हैं तथापि प्रथम एवं द्वितीय कक्षा में इतना करने के बाद अगली कक्षाओं में अधिक प्रकार से काटना या फाड़ना सिखाया जा सकता है।
 
## प्लास्टिक या लेमिनेशन युक्त कागजों का उपयोग न करें क्योंकि उनकी कतरन चिपकाने के लिए उपयोगी नहीं है तथा पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है।  
 
## प्लास्टिक या लेमिनेशन युक्त कागजों का उपयोग न करें क्योंकि उनकी कतरन चिपकाने के लिए उपयोगी नहीं है तथा पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है।  
 
## काटने के कार्य में कक्षा में कूडा होने की संभावना रहती है। इस कतरन के कूड़े को उठाकर भरन के लिए कूडेदान की व्यवस्था होना चाहिए। कागज जहाँ तहाँ उड़कर न जाएँ इसके लिए पेपरवेट (कागज दबावक) का उपयोग करना चाहिए। खिड़की-दरवाजों या पंखे की हवा से कागज की रक्षा करना भी आवश्यक है।
 
## काटने के कार्य में कक्षा में कूडा होने की संभावना रहती है। इस कतरन के कूड़े को उठाकर भरन के लिए कूडेदान की व्यवस्था होना चाहिए। कागज जहाँ तहाँ उड़कर न जाएँ इसके लिए पेपरवेट (कागज दबावक) का उपयोग करना चाहिए। खिड़की-दरवाजों या पंखे की हवा से कागज की रक्षा करना भी आवश्यक है।
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=== तह करना ===
 
=== तह करना ===
# तह करना भी मूलभूत कौशल है। इसका उपयोग जितना अन्य वस्तुएँ बनाने में होता है उससे कहीं ज्यादा जीवन व्यवहार में कदम कदम पर होता है। इसलिए इसे व्यावहारिक कौशल भी माना जाता है।
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# तह करना भी मूलभूत कौशल है। इसका उपयोग जितना अन्य वस्तुएँ बनाने में होता है उससे कहीं ज्यादा जीवन व्यवहार में कदम कदम पर होता है। अतः इसे व्यावहारिक कौशल भी माना जाता है।
 
# सबसे पहला क्रम है कपड़ों की तह करने का। छात्रों के लिए इसे सरल बनाने के लिए समान नाप के कपड़े के टुकड़े लेना चाहिए। उदाहरण के तौर पर वर्गाकार या आयताकार हो तो समान नाप के अर्थात् उनकी आमने सामने की भुजाएँ सीधी एवं समान हों इस पर ध्यान देना चाहिए। ये टुकड़े चारों तरफ से तुरपे हुए होने चाहिए।
 
# सबसे पहला क्रम है कपड़ों की तह करने का। छात्रों के लिए इसे सरल बनाने के लिए समान नाप के कपड़े के टुकड़े लेना चाहिए। उदाहरण के तौर पर वर्गाकार या आयताकार हो तो समान नाप के अर्थात् उनकी आमने सामने की भुजाएँ सीधी एवं समान हों इस पर ध्यान देना चाहिए। ये टुकड़े चारों तरफ से तुरपे हुए होने चाहिए।
 
# तह करते समय निम्न क्रम ध्यान में रखें:
 
# तह करते समय निम्न क्रम ध्यान में रखें:
Line 245: Line 245:  
## दोनों हाथों से पकड़े हुए सिरों को सामने की ओर ले जाकर कोने से कोना एवं किनारी से किनारी मिलाएँ।
 
## दोनों हाथों से पकड़े हुए सिरों को सामने की ओर ले जाकर कोने से कोना एवं किनारी से किनारी मिलाएँ।
 
## फिर से तह करना हो तो कपड़ा घुमाकर नीचे से उपर की ओर ले जाएँ।
 
## फिर से तह करना हो तो कपड़ा घुमाकर नीचे से उपर की ओर ले जाएँ।
# प्रारंभ में सभी टुकड़े समान हों तो तहें एकदूसरे पर रखकर गड्डी बनाने में सुगमता रहेगी। इसलिए तह करने के बाद गड्डी बनवाएँ। गड्डी बनाते समय बंद सतह पर बंद सतह एवं खुली सतह पर खुली सतह आए इस पर ध्यान दें।
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# प्रारंभ में सभी टुकड़े समान हों तो तहें एकदूसरे पर रखकर गड्डी बनाने में सुगमता रहेगी। अतः तह करने के बाद गड्डी बनवाएँ। गड्डी बनाते समय बंद सतह पर बंद सतह एवं खुली सतह पर खुली सतह आए इस पर ध्यान दें।
 
# कपड़े के समान टुकडों की तह करना आ जाए तो फिर जुराबें, कमीज इत्यादि कपड़ों की तह करवाएँ। क्रम कपडों की तह वाला ही रखें।  
 
# कपड़े के समान टुकडों की तह करना आ जाए तो फिर जुराबें, कमीज इत्यादि कपड़ों की तह करवाएँ। क्रम कपडों की तह वाला ही रखें।  
 
# सावधानियाँ:
 
# सावधानियाँ:
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=== चिपकाना ===
 
=== चिपकाना ===
 
# यह भी एक मूलभूत कौशल है। यों तो कोई भी चीज चिपका सकते हैं। परंतु कागज चिपकाना ही मुख क्रियाकलाप है।
 
# यह भी एक मूलभूत कौशल है। यों तो कोई भी चीज चिपका सकते हैं। परंतु कागज चिपकाना ही मुख क्रियाकलाप है।
# भिन्न भिन्न मोटाई के कागजों को भिन्न भिन्न चीजों से चिपका सकते हैं। इसलिए प्रथम शिक्षक या मातापिता को कौन सी चीज किससे चिपकती है यह जानकर योग्य वस्तु का ही उपयोग करना चाहिए। किसी भी सतह के लिए किसी भी वस्तु का उपयोग करने की लापरवाही नहीं दर्शानी चाहिए।
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# भिन्न भिन्न मोटाई के कागजों को भिन्न भिन्न चीजों से चिपका सकते हैं। अतः प्रथम शिक्षक या मातापिता को कौन सी चीज किससे चिपकती है यह जानकर योग्य वस्तु का ही उपयोग करना चाहिए। किसी भी सतह के लिए किसी भी वस्तु का उपयोग करने की लापरवाही नहीं दर्शानी चाहिए।
 
# कक्षा १ तथा २ में चिपकाने के लिए केवल दो ही पदार्थों का उपयोग करना चाहिए - एक लेई एवं दूसरा गोंद। लेई अच्छी तरह से बनाई हुई होनी चाहिए। हो सके तो प्रेस से तैयार लेई लाकर उपयोग में लेना चाहिए।  
 
# कक्षा १ तथा २ में चिपकाने के लिए केवल दो ही पदार्थों का उपयोग करना चाहिए - एक लेई एवं दूसरा गोंद। लेई अच्छी तरह से बनाई हुई होनी चाहिए। हो सके तो प्रेस से तैयार लेई लाकर उपयोग में लेना चाहिए।  
 
# चिपकाने के लिए नीचे की सतह सख्त एवं उपर कागज या नर्म, मुडनेवाला गत्ता रखना चाहिए। उसकी किनारी पर एक ओर गोंद लगाकर दूसरे कागज की किनारी व्यवस्थित रखना चाहिए। इसके बाद हाथ पोंछकर उस किनारी पर अंगुली घुमाकर उसे दबाना चाहिए। इस तरह दो टुकड़ों को चिपकाकर एक बड़ा टुकड़ा बनाया जाता है।
 
# चिपकाने के लिए नीचे की सतह सख्त एवं उपर कागज या नर्म, मुडनेवाला गत्ता रखना चाहिए। उसकी किनारी पर एक ओर गोंद लगाकर दूसरे कागज की किनारी व्यवस्थित रखना चाहिए। इसके बाद हाथ पोंछकर उस किनारी पर अंगुली घुमाकर उसे दबाना चाहिए। इस तरह दो टुकड़ों को चिपकाकर एक बड़ा टुकड़ा बनाया जाता है।
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# मिट्टी कूटना: बहुत सख्त मिट्टी न लें। नर्म मिट्टी के ढेलों को हथौडे की सहायता से कूटें। ऐसा करने से मिट्टी का चूर्ण बन जाता है। एवं पथ्थर या अन्य चीजें ज्यों की त्यों रहती हैं।
 
# मिट्टी कूटना: बहुत सख्त मिट्टी न लें। नर्म मिट्टी के ढेलों को हथौडे की सहायता से कूटें। ऐसा करने से मिट्टी का चूर्ण बन जाता है। एवं पथ्थर या अन्य चीजें ज्यों की त्यों रहती हैं।
 
# मिट्टी छानना: द्वितीय क्रम में कूटी हुई मिट्टी को छाना जाता है। इसके लिए बहुत छोटे छिद्रोंवाली छननी न लें। इस क्रिया में अंजुली में मिट्टी भरकर छननी में डालें एवं दोनों हाथों से छननी हिलाना छात्रों को सिखाएँ।
 
# मिट्टी छानना: द्वितीय क्रम में कूटी हुई मिट्टी को छाना जाता है। इसके लिए बहुत छोटे छिद्रोंवाली छननी न लें। इस क्रिया में अंजुली में मिट्टी भरकर छननी में डालें एवं दोनों हाथों से छननी हिलाना छात्रों को सिखाएँ।
# मिट्टी भिगोना एवं गूंधना: एक बड़े एवं छिछले पात्र में मिट्टी डालकर उसमें आवश्यकतानुसार पानी डालें। जिस तरह हाथ से आटा गूंधते हैं उसी तरह मिट्टी को मसलकर गूंधना चाहिए। मिट्टी जितनी अधिक गूंधी जाय उतनी ही नरम बनती है। गूंधी हुई मिट्टी नरम, चिकनी, एवं सूखने पर दरारों रहित बनती है। इसलिए उसे अधिक से अधिक गूंधना चाहिए। गूंधने का कार्य दोनों हाथों एवं पांचों अंगुलियों के उपयोग से किया जाता है। पात्र में स्थित मिट्टी को उपर नीचे करके पूरी मिट्टी बराबर गूंधी जाए इसका ध्यान रखना चाहिए। गूंधी हुई मिट्टी हाथ में लेने पर बहुत जोर लगाना पडे इतनी सख्त या हाथ में से गिर जाए इतनी नर्म भी नहीं होनी चाहिए। मिट्टी गूंधने की क्रिया चार पाँच छात्र समूह में भी कर सकते हैं। गूंधने की क्रिया केवल एक ही दिन में पूर्ण न करें। यह क्रिया तीन-चार दिन तक चलने दें। प्रतिदिन कार्य पूर्ण होने पर मिट्टी पर थोड़ा सा पानी डालकर पात्र को ढककर रख दें जिससे मिट्टी सूख न जाए।
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# मिट्टी भिगोना एवं गूंधना: एक बड़े एवं छिछले पात्र में मिट्टी डालकर उसमें आवश्यकतानुसार पानी डालें। जिस तरह हाथ से आटा गूंधते हैं उसी तरह मिट्टी को मसलकर गूंधना चाहिए। मिट्टी जितनी अधिक गूंधी जाय उतनी ही नरम बनती है। गूंधी हुई मिट्टी नरम, चिकनी, एवं सूखने पर दरारों रहित बनती है। अतः उसे अधिक से अधिक गूंधना चाहिए। गूंधने का कार्य दोनों हाथों एवं पांचों अंगुलियों के उपयोग से किया जाता है। पात्र में स्थित मिट्टी को उपर नीचे करके पूरी मिट्टी बराबर गूंधी जाए इसका ध्यान रखना चाहिए। गूंधी हुई मिट्टी हाथ में लेने पर बहुत जोर लगाना पडे इतनी सख्त या हाथ में से गिर जाए इतनी नर्म भी नहीं होनी चाहिए। मिट्टी गूंधने की क्रिया चार पाँच छात्र समूह में भी कर सकते हैं। गूंधने की क्रिया केवल एक ही दिन में पूर्ण न करें। यह क्रिया तीन-चार दिन तक चलने दें। प्रतिदिन कार्य पूर्ण होने पर मिट्टी पर थोड़ा सा पानी डालकर पात्र को ढककर रख दें जिससे मिट्टी सूख न जाए।
 
# गूंधी हुई मिट्टी से खिलौना बनाना: गूंध गूंधकर तैयार की गई मिट्टी के छोटे छोटे गोले बनाकर उसमें से खिलौने बनाएँ। सभी अलग अलग बनाएँ। प्रारंभ में छोटी-छोटी गट्टी बन जाएंगी। इसके बाद तो कल्पनानुसार सीताफल, गणेश, चकला, बेलन, घडा, गुडिया, वगेरेह भी बनाया जा सकता है। इस प्रकार खिलौने बनाने के बाद उन्हें सुखाने के लिए धूप में रखना चाहिए।
 
# गूंधी हुई मिट्टी से खिलौना बनाना: गूंध गूंधकर तैयार की गई मिट्टी के छोटे छोटे गोले बनाकर उसमें से खिलौने बनाएँ। सभी अलग अलग बनाएँ। प्रारंभ में छोटी-छोटी गट्टी बन जाएंगी। इसके बाद तो कल्पनानुसार सीताफल, गणेश, चकला, बेलन, घडा, गुडिया, वगेरेह भी बनाया जा सकता है। इस प्रकार खिलौने बनाने के बाद उन्हें सुखाने के लिए धूप में रखना चाहिए।
 
# इसी तरह मिट्टी के गोले को सांचे में ढालकर समान आकार की ईंटें बनाना चाहिए। (ईंटे बनाना खिलौने बनाने से सरल काम है। खिलौनों में कल्पनाशीलता एवं हाथों की कारीगरी दोनों की आवश्यकता होती है।) ईंटें बनाकर सुखाकर आगे का कार्य किया जा सकता है।
 
# इसी तरह मिट्टी के गोले को सांचे में ढालकर समान आकार की ईंटें बनाना चाहिए। (ईंटे बनाना खिलौने बनाने से सरल काम है। खिलौनों में कल्पनाशीलता एवं हाथों की कारीगरी दोनों की आवश्यकता होती है।) ईंटें बनाकर सुखाकर आगे का कार्य किया जा सकता है।
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## छात्रों द्वारा बनाए गए खिलौनों एवं ईंटों के प्रदर्शन का आयोजन करना चाहिए। मातापिता, अभिभावक एवं अन्य लोगों को प्रदर्शन देखने के लिए आमंत्रित करना चाहिए।
 
## छात्रों द्वारा बनाए गए खिलौनों एवं ईंटों के प्रदर्शन का आयोजन करना चाहिए। मातापिता, अभिभावक एवं अन्य लोगों को प्रदर्शन देखने के लिए आमंत्रित करना चाहिए।
 
## छोटी छोटी ईंटों को अलग अलग रंगों से रंगकर उनमें से विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनाना चाहिए।
 
## छोटी छोटी ईंटों को अलग अलग रंगों से रंगकर उनमें से विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनाना चाहिए।
## प्रथम दृष्टि में तो यह बहुत कठिन एवं अव्यावहारिक लगनेवाला प्रकल्प है। इसलिए इसका पक्का आयोजन होना चाहिए। उस आयोजन के बारे में अभिभावकों को सूचित करना चाहिए। आयोजन जब प्रत्यक्ष रूप से कार्यान्वित हो तब भी उसके प्रत्यक्ष दर्शन के लिए भी अभिभावकों को आमंत्रित करना चाहिए।
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## प्रथम दृष्टि में तो यह बहुत कठिन एवं अव्यावहारिक लगनेवाला प्रकल्प है। अतः इसका पक्का आयोजन होना चाहिए। उस आयोजन के बारे में अभिभावकों को सूचित करना चाहिए। आयोजन जब प्रत्यक्ष रूप से कार्यान्वित हो तब भी उसके प्रत्यक्ष दर्शन के लिए भी अभिभावकों को आमंत्रित करना चाहिए।
 
## संपूर्ण प्रकल्प तो वर्ष में एक ही बार होगा परंतु उसके अलग-अलग क्रियाकलाप एक से अधिक बार करना चाहिए। ऐसा करने से ही हाथों में निपुणता आएगी।
 
## संपूर्ण प्रकल्प तो वर्ष में एक ही बार होगा परंतु उसके अलग-अलग क्रियाकलाप एक से अधिक बार करना चाहिए। ऐसा करने से ही हाथों में निपुणता आएगी।
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=== चित्र बनाना एवं रंग भरना ===
 
=== चित्र बनाना एवं रंग भरना ===
# जिस प्रकार यह कौशल रंग एवं रेखा का है, उसी तरह कल्पनाशीलता एवं सर्जनशीलता की अभिव्यक्ति का भी है। इसलिए दोनों दृष्टिकोण से यह क्रिया-कलाप करना चाहिए।  
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# जिस प्रकार यह कौशल रंग एवं रेखा का है, उसी तरह कल्पनाशीलता एवं सर्जनशीलता की अभिव्यक्ति का भी है। अतः दोनों दृष्टिकोण से यह क्रिया-कलाप करना चाहिए।  
 
# रेखा खींचने का अभ्यास हो चुका है। अब रेखा का उपयोग अपने मन की कल्पना, भावना, सोच आदि को आकारबद्ध करने में करना है। इसके लिए वास्तविक जीवन की अलग अलग वस्तुओं को रेखाबद्ध करते समय जो पैमाना रखना महत्वपूर्ण है वह मनमें समाए उस दिशा में छात्रों को प्रेरित करना चाहिए।  
 
# रेखा खींचने का अभ्यास हो चुका है। अब रेखा का उपयोग अपने मन की कल्पना, भावना, सोच आदि को आकारबद्ध करने में करना है। इसके लिए वास्तविक जीवन की अलग अलग वस्तुओं को रेखाबद्ध करते समय जो पैमाना रखना महत्वपूर्ण है वह मनमें समाए उस दिशा में छात्रों को प्रेरित करना चाहिए।  
 
# इसमें हम हमेशा एक गलती करते आए हैं। वह यह कि हम छात्रों को अपने बनाए हुए चित्र के जैसा चित्र ही बनाने के लिए कहते हैं। देख देखकर अनुकरण करने से कल्पनाशक्ति या पैमाना दो में से एक भी विकसित नहीं होता है। एक अच्छा चित्र अनुकरण करके बनाया जाए इसकी अपेक्षा कल्पना से बनाया हुआ चित्र थोड़ा कम सुन्दर हो तो भी अच्छा है। बाह्य एवं उधार ली हुई सुन्दरता की अपेक्षा मौलिकता का महत्व हमेशा से अधिक रहा है। इस बात का खास ख्याल रखें।  
 
# इसमें हम हमेशा एक गलती करते आए हैं। वह यह कि हम छात्रों को अपने बनाए हुए चित्र के जैसा चित्र ही बनाने के लिए कहते हैं। देख देखकर अनुकरण करने से कल्पनाशक्ति या पैमाना दो में से एक भी विकसित नहीं होता है। एक अच्छा चित्र अनुकरण करके बनाया जाए इसकी अपेक्षा कल्पना से बनाया हुआ चित्र थोड़ा कम सुन्दर हो तो भी अच्छा है। बाह्य एवं उधार ली हुई सुन्दरता की अपेक्षा मौलिकता का महत्व हमेशा से अधिक रहा है। इस बात का खास ख्याल रखें।  
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# चित्रों में रंग भरने से पहले बड़ी कूची से ईटें रंगवाना, गमले रंगवाना इत्यादि क्रियाएँ भी करवाएँ।
 
# चित्रों में रंग भरने से पहले बड़ी कूची से ईटें रंगवाना, गमले रंगवाना इत्यादि क्रियाएँ भी करवाएँ।
 
# सावधानियाँ:
 
# सावधानियाँ:
## हाथ की मुक्त हलचल हो सके इसलिए पहले छात्रों से भूमि पर बड़े बड़े चित्र बनवाएँ। ऐसे चित्र में लंबी लंबी रेखाएँ ही होनी चाहिए। परंतु हाथ की मुक्त हलचल के लिए यह आवश्यक है। पहले तो पूरे शरीर की हलचल से बड़े स्थान पर ऐसी रेखाएँ बनावाएँ। परन्तु दूसरे सोपान में एक ही स्थान पर बैठकर केवल हाथ जहाँ तक पहुँच सके उतनी जगह में ही चित्र बनवाएँ।
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## हाथ की मुक्त हलचल हो सके अतः पहले छात्रों से भूमि पर बड़े बड़े चित्र बनवाएँ। ऐसे चित्र में लंबी लंबी रेखाएँ ही होनी चाहिए। परंतु हाथ की मुक्त हलचल के लिए यह आवश्यक है। पहले तो पूरे शरीर की हलचल से बड़े स्थान पर ऐसी रेखाएँ बनावाएँ। परन्तु दूसरे सोपान में एक ही स्थान पर बैठकर केवल हाथ जहाँ तक पहुँच सके उतनी जगह में ही चित्र बनवाएँ।
 
## भूमि पर चित्र बनाने के बाद उसे साफ करने के लिए भी कहें।
 
## भूमि पर चित्र बनाने के बाद उसे साफ करने के लिए भी कहें।
 
## भूमि पर चित्र खडिया से ही बना सकते हैं। खडिया गुलाबी, आसमानी, पीले, लाल एवं सफेद रंग की होती हैं। इन रंगों का उभार आए ऐसा फर्श भी होना चाहिए। इसके अतिरिक्त खड़िया बार-बार टूट जाएँ ऐसी कच्ची भी नहीं होनी चाहिए।
 
## भूमि पर चित्र खडिया से ही बना सकते हैं। खडिया गुलाबी, आसमानी, पीले, लाल एवं सफेद रंग की होती हैं। इन रंगों का उभार आए ऐसा फर्श भी होना चाहिए। इसके अतिरिक्त खड़िया बार-बार टूट जाएँ ऐसी कच्ची भी नहीं होनी चाहिए।
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=== रसोई के कार्य छीलना, मसलना वगैरह ===
 
=== रसोई के कार्य छीलना, मसलना वगैरह ===
# इन सभी क्रियाकलापों से सब इतने परिचित हैं कि इनका वर्णन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए हम केवल ध्यान में रखने योग्य सावधानियों के बारे में ही सोचेंगे।
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# इन सभी क्रियाकलापों से सब इतने परिचित हैं कि इनका वर्णन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अतः हम केवल ध्यान में रखने योग्य सावधानियों के बारे में ही सोचेंगे।
 
# सब सामान स्वच्छ, अच्छी किस्म का एवं उचित मात्रा में होना चाहिए।
 
# सब सामान स्वच्छ, अच्छी किस्म का एवं उचित मात्रा में होना चाहिए।
 
# सब साधन छात्रों के योग्य छोटे एवं अच्छे होने चाहिए।
 
# सब साधन छात्रों के योग्य छोटे एवं अच्छे होने चाहिए।
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=== कृषि ===
 
=== कृषि ===
यह भी जीवन को टिकाए रखनेवाला मूल उद्योग है। हमारी सभी प्रकार की मूल आवश्यकताएँ भूमि ही पूर्ण करती है। कृषि भूमि से संबंधित उद्योग है। इसलिए सभी छात्रों को भूमि से संबंधित कार्यों का परिचय होना विकास की दृष्टि से आवश्यक है। इस दृष्टि से निम्न क्रियाकलापों के बारे में सोचा गया है:
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यह भी जीवन को टिकाए रखनेवाला मूल उद्योग है। हमारी सभी प्रकार की मूल आवश्यकताएँ भूमि ही पूर्ण करती है। कृषि भूमि से संबंधित उद्योग है। अतः सभी छात्रों को भूमि से संबंधित कार्यों का परिचय होना विकास की दृष्टि से आवश्यक है। इस दृष्टि से निम्न क्रियाकलापों के बारे में सोचा गया है:
 
# जमीन नर्म बनाना : जमीन पर पानी छिड़ककर उसे गोड़कर नर्म बनाना चाहिए। ऐसी जमीन को ही जोत सकते हैं।
 
# जमीन नर्म बनाना : जमीन पर पानी छिड़ककर उसे गोड़कर नर्म बनाना चाहिए। ऐसी जमीन को ही जोत सकते हैं।
 
# मिट्टी खोदकर क्यारे तैयार करना : छोटी छोटी कुदालियों से मिट्टी खोदने का कार्य करवाएँ। छोटे फावड़े से खोदी हुई मिट्टी बाहर निकाल कर एक तरफ ढेर बनाएँ।
 
# मिट्टी खोदकर क्यारे तैयार करना : छोटी छोटी कुदालियों से मिट्टी खोदने का कार्य करवाएँ। छोटे फावड़े से खोदी हुई मिट्टी बाहर निकाल कर एक तरफ ढेर बनाएँ।
 
# मिट्टी साफ करना : मिट्टी में से कंकड़ पत्थर एवं अन्य हानिकारक वस्तुएँ चुन लें। व्यर्थ घास, खरपतवार आदि निकालकर मिट्टी को साफ करें। मिट्टी के ढेलों को हाथ या हथौड़ी से फोड़कर मिट्टी चूर चूर करें। स्वच्छ मिट्टी फिर से क्यारियों में डालें। क्यारियों के किनारे किनारे मेंड बनाएँ।
 
# मिट्टी साफ करना : मिट्टी में से कंकड़ पत्थर एवं अन्य हानिकारक वस्तुएँ चुन लें। व्यर्थ घास, खरपतवार आदि निकालकर मिट्टी को साफ करें। मिट्टी के ढेलों को हाथ या हथौड़ी से फोड़कर मिट्टी चूर चूर करें। स्वच्छ मिट्टी फिर से क्यारियों में डालें। क्यारियों के किनारे किनारे मेंड बनाएँ।
 
# क्यारियां तैयार करते समय मिट्टी में खाद मिलाएँ। खाद भी मिट्टी के समान ही बारीक होना चाहिए। खाद में कृत्रिम खाद का उपयोग कभी न करें। हमेशा गोबर या केंचुए द्वारा तैयार खाद ही लें।
 
# क्यारियां तैयार करते समय मिट्टी में खाद मिलाएँ। खाद भी मिट्टी के समान ही बारीक होना चाहिए। खाद में कृत्रिम खाद का उपयोग कभी न करें। हमेशा गोबर या केंचुए द्वारा तैयार खाद ही लें।
# इसके बाद क्यारियों में मेथी, पालक, धनिया, राई, तुलसी, गेंदा इत्यादि पौधे लगाएँ। ये बीज या पौधे जल्दी उग जाते है एवं इनकी पत्तियाँ एवं फूल हमारे दैनिक उपयोग में लिए जा सकते हैं इसलिए इनका चयन किया गया है यह छात्रों को समझाएँ। बीज उगाने हों तो क्यारे उस नाप के बनाने चाहिए, पौधे उगाने हों तो उसके अनुरूप क्यारे बनाने चाहिए। इसके बाद अच्छी तरह समान दूरी पर, समान गहराई में बीज या पौधे लगाना चाहिए। अच्छी तरह मिट्टी डालकर पानी देना, एवं पौधों के बढ़ने की प्रक्रिया का निरीक्षण समय समय पर करते रहना, उसकी सफाई करते रहना, पानी देते रहना एवं इस विषय पर वार्तालाप भी करते रहना चाहिए। पौधे की सुरक्षा की व्यवस्था भी करना चाहिए।
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# इसके बाद क्यारियों में मेथी, पालक, धनिया, राई, तुलसी, गेंदा इत्यादि पौधे लगाएँ। ये बीज या पौधे जल्दी उग जाते है एवं इनकी पत्तियाँ एवं फूल हमारे दैनिक उपयोग में लिए जा सकते हैं अतः इनका चयन किया गया है यह छात्रों को समझाएँ। बीज उगाने हों तो क्यारे उस नाप के बनाने चाहिए, पौधे उगाने हों तो उसके अनुरूप क्यारे बनाने चाहिए। इसके बाद अच्छी तरह समान दूरी पर, समान गहराई में बीज या पौधे लगाना चाहिए। अच्छी तरह मिट्टी डालकर पानी देना, एवं पौधों के बढ़ने की प्रक्रिया का निरीक्षण समय समय पर करते रहना, उसकी सफाई करते रहना, पानी देते रहना एवं इस विषय पर वार्तालाप भी करते रहना चाहिए। पौधे की सुरक्षा की व्यवस्था भी करना चाहिए।
 
# पौधे तैयार हो जाने पर पत्ते या फूल चुनना चाहिए। पत्ते का अल्पाहार बनाने में, एवं फूलों का पुष्पगुच्छ या माला बनाने में उपयोग करें।  
 
# पौधे तैयार हो जाने पर पत्ते या फूल चुनना चाहिए। पत्ते का अल्पाहार बनाने में, एवं फूलों का पुष्पगुच्छ या माला बनाने में उपयोग करें।  
 
# सावधानियाँ
 
# सावधानियाँ

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