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== आदर्श विद्यार्थी ==
 
== आदर्श विद्यार्थी ==
जो ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखता है, जो जिज्ञासु है उसे ही विद्यार्थी कहते हैं <ref>भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ३): पर्व : प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। ज्ञान श्रेष्ठ है । ऐसे श्रेष्ठ ज्ञान को प्रतिष्ठा, धन या सत्ता प्राप्ति के लिए प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला विद्यार्थी नहीं कहा जा सकता, क्यों कि पैसा, प्रतिष्ठा या सत्ता की अपेक्षा ज्ञान अधिक श्रेष्ठ है । श्रेष्ठ वस्तु का उपयोग कनिष्ठ वस्तु की प्राप्ति के लिए नहीं किया जा सकता यह सामान्य समझदारी की बात है । अतः जो अपने और जगत के कल्याण के लिए ज्ञान प्राप्त करना चाहता है उसे ही विद्यार्थी कहते हैं ।
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जो ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखता है, जो जिज्ञासु है उसे ही विद्यार्थी कहते हैं <ref>भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ३): पर्व : अध्याय ४, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। ज्ञान श्रेष्ठ है । ऐसे श्रेष्ठ ज्ञान को प्रतिष्ठा, धन या सत्ता प्राप्ति के लिए प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला विद्यार्थी नहीं कहा जा सकता, क्यों कि पैसा, प्रतिष्ठा या सत्ता की अपेक्षा ज्ञान अधिक श्रेष्ठ है । श्रेष्ठ वस्तु का उपयोग कनिष्ठ वस्तु की प्राप्ति के लिए नहीं किया जा सकता यह सामान्य समझदारी की बात है । अतः जो अपने और जगत के कल्याण के लिए ज्ञान प्राप्त करना चाहता है उसे ही विद्यार्थी कहते हैं ।
    
विद्या प्राप्ति के लिए साधना करनी पड़ती है । सुख और आराम में रहकर विद्या प्राप्त नहीं की जा सकती । इस संदर्भ में एक सुभाषित है {{Citation needed}}- <blockquote>सुखार्थी चेत्‌ त्यजेत्‌ विद्यां विद्यार्थी चेत्‌ त्यजेत सुखम्‌ ।</blockquote><blockquote>सुखार्थिन कुतो विद्या विद्यार्थिन: कुत्तो सुखम्‌ ।।</blockquote><blockquote>अर्थात्‌ सुख की कामना करने वाले ने विद्याप्राप्ति को छोड देना चाहिये और अगर विद्याप्राप्ति की कामना है तो सुख की कामना छोड़ देनी चाहिये, क्योंकि सुखार्थी को विद्या और विद्या के अर्थी को सुख कैसे प्राप्त हो सकता है?</blockquote>विद्यार्थी सुखशैय्या पर नहीं सोता, मिष्टान्न या भाँति भाँति के भोजन नहीं करता, मनोरंजन के पीछे समय बर्बाद नहीं करता । यही उपदेश उसे दिया जाता है ।  
 
विद्या प्राप्ति के लिए साधना करनी पड़ती है । सुख और आराम में रहकर विद्या प्राप्त नहीं की जा सकती । इस संदर्भ में एक सुभाषित है {{Citation needed}}- <blockquote>सुखार्थी चेत्‌ त्यजेत्‌ विद्यां विद्यार्थी चेत्‌ त्यजेत सुखम्‌ ।</blockquote><blockquote>सुखार्थिन कुतो विद्या विद्यार्थिन: कुत्तो सुखम्‌ ।।</blockquote><blockquote>अर्थात्‌ सुख की कामना करने वाले ने विद्याप्राप्ति को छोड देना चाहिये और अगर विद्याप्राप्ति की कामना है तो सुख की कामना छोड़ देनी चाहिये, क्योंकि सुखार्थी को विद्या और विद्या के अर्थी को सुख कैसे प्राप्त हो सकता है?</blockquote>विद्यार्थी सुखशैय्या पर नहीं सोता, मिष्टान्न या भाँति भाँति के भोजन नहीं करता, मनोरंजन के पीछे समय बर्बाद नहीं करता । यही उपदेश उसे दिया जाता है ।  

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