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वस्त्र स्वास्थ्यरक्षा के साथ साथ शील रक्षा के लिये, लज्जारक्षा के लिये भी होते हैं । शरीर स्वास्थ्य के लिये उपयोगी सूती वस्त्र भी शीलरक्षा नहीं कर सकते तो उन्हें पहनना अवैज्ञानिक है ।  
 
वस्त्र स्वास्थ्यरक्षा के साथ साथ शील रक्षा के लिये, लज्जारक्षा के लिये भी होते हैं । शरीर स्वास्थ्य के लिये उपयोगी सूती वस्त्र भी शीलरक्षा नहीं कर सकते तो उन्हें पहनना अवैज्ञानिक है ।  
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कारखाने में बने तैयार कपडे पहनने वाले लोग अनेक कारीगरों को बेरोजगार बनाने में निमित्त बनते हैं। किसी की रोजगारी छीन लेना, किसी की आर्थिक स्वतन्त्रता नष्ट करना हिंसा है। ऐसे वस्त्र पहनना हिंसा है। हिंसा कभी वैज्ञानिक नहीं हो सकती । इसलिये विशालकाय यंत्र, केन्द्रीकृत उत्पादन प्रक्रिया और विज्ञापन तथा परिवहन आधारित   
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कारखाने में बने तैयार कपडे पहनने वाले लोग अनेक कारीगरों को बेरोजगार बनाने में निमित्त बनते हैं। किसी की रोजगारी छीन लेना, किसी की आर्थिक स्वतन्त्रता नष्ट करना हिंसा है। ऐसे वस्त्र पहनना हिंसा है। हिंसा कभी वैज्ञानिक नहीं हो सकती । इसलिये विशालकाय यंत्र, केन्द्रीकृत उत्पादन प्रक्रिया और विज्ञापन तथा परिवहन आधारित वितरणव्यवस्था से गुजर कर बने हुए वस्त्र पहनना अवैज्ञानिक है। 
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जिस प्रकार सूती के स्थान पर सिन्थेटिक वस्त्र होते हैं उस प्रकार रेशमी और गरम कपड़ों के स्थान पर भी सिन्थेटिक कपड़े होते हैं। इनका प्रचलन इतना बढ़ गया है कि अधिकांश लोगों को इसकी कल्पना तक नहीं होती। ये कपड़े मोजे, स्वेटर, शाल आदि के रूप में उपयोग में लाये जाते हैं । इनका प्रयोग करना भी अवैज्ञानिक ही है। 
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बालक-बालिका, किशोर-किशोरी, युवक-युवती जो तंग कपड़े पहनते हैं उनसे उनके स्वास्थ्य को भारी नुकसान पहुंचता है। ऐसे कपड़े पहनना अवैज्ञानिक है। 
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कपड़ा पहनने के लिये तो काम में आता ही है, साथ में उसके अन्य अनेक उपयोग हैं। बिस्तर, बिछाने  
    
==== अलंकार, सौन्दर्यप्रसाधन, अन्य छोटी मोटी वस्तुओं में वैज्ञानिकता ====
 
==== अलंकार, सौन्दर्यप्रसाधन, अन्य छोटी मोटी वस्तुओं में वैज्ञानिकता ====
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