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2. विद्यालयों में आज तो ऐसी व्यवस्था या पद्धति नहीं है कि वे स्वयं अपने विद्यालयों या महाविद्यालयों के लिये स्वयं शिक्षक तैयार कर सर्के । इसका एक कारण यह भी है कि पूर्ण शिक्षा कहीं एक स्थान पर होती हो ऐसी व्यवस्था नहीं है । किसी एक संस्थामें पूर्व प्राथमिक से महाविद्यालय स्तर तक की शिक्षा होती हो तब भी वे सारे विभाग भिन्न भिन्न सरकारी स्चनाओं के नियमन में चलते हैं । इसलिये कोई एक विद्यालय स्वयं चाहे उस विद्यार्थी को या उस शिक्षक को अपने विद्यालय में नियुक्त नहीं कर सकता । अपने विद्यार्थी के साथ साथ उसे अन्य लोगों को भी चयनप्रक्रिया में समाविष्ट करना होता है ।
 
2. विद्यालयों में आज तो ऐसी व्यवस्था या पद्धति नहीं है कि वे स्वयं अपने विद्यालयों या महाविद्यालयों के लिये स्वयं शिक्षक तैयार कर सर्के । इसका एक कारण यह भी है कि पूर्ण शिक्षा कहीं एक स्थान पर होती हो ऐसी व्यवस्था नहीं है । किसी एक संस्थामें पूर्व प्राथमिक से महाविद्यालय स्तर तक की शिक्षा होती हो तब भी वे सारे विभाग भिन्न भिन्न सरकारी स्चनाओं के नियमन में चलते हैं । इसलिये कोई एक विद्यालय स्वयं चाहे उस विद्यार्थी को या उस शिक्षक को अपने विद्यालय में नियुक्त नहीं कर सकता । अपने विद्यार्थी के साथ साथ उसे अन्य लोगों को भी चयनप्रक्रिया में समाविष्ट करना होता है ।
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एक अच्छा विद्यार्थी जब तक शिक्षक प्रशिक्षण का
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एक अच्छा विद्यार्थी जब तक शिक्षक प्रशिक्षण का प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं करता तब तक वह शिक्षक नहीं बन सकता । उसी प्रकार से सभी प्रमाणपत्र प्राप्त विद्यार्थी अच्छे शिक्षक होते ही हैं ऐसा नियम नहीं है । शिक्षकों के चयन में विद्यालय के मापदण्ड नहीं चलते, सरकार के चलते हैं । इसलिये उस व्यवस्था से ही शिक्षक लेने होते हैं । इस स्थिति में इतना तो किया जा सकता है कि जो शिक्षक बनने योग्य हैं ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षक ही बनने की प्रेरणा दी जाय और उन्हें इस हेतु से मार्गदर्शन, अवसर और शिक्षण भी दिया जाय । विभिन्न विषयों के महाविद्यालयीन अध्यापकों ने भी अध्यापक बनने योग्य विद्यार्थियों को प्रगत अध्ययन और अनुसन्धान के क्षेत्र में जाकर अध्यापक बनने के लिये प्रेरित करना चाहिये । ये विद्यार्थी अपने ही विद्यालय या महाविद्यालय में शिक्षक न भी बनें तो भी जहाँ जायें वहाँ अच्छे शिक्षक के रूप में कार्य कर सकेंगे । इसके साथ ही जो शिक्षक बनने योग्य नहीं है ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षक बनने से परावृत्त करने की भी योजना बनानी चाहिये । जो शिक्षक बनने योग्य नहीं है वे जब शिक्षक बन जाते हैं तब वे शिक्षा की और समाज की कुसेवा करते हैं ।
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प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं करता तब तक वह शिक्षक नहीं
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3. सही मार्ग तो यह है कि अपने विद्यालय के छात्र ही विद्यालय में शिक्षक बनें । शिक्षा की परम्परा निर्माण करना भारतीय शिक्षा का एक खास लक्षण है । हर पिताश्री को जिस प्रकार अपने कुल की परम्परा अपने पुत्र को सौंपनी चाहिये उसी प्रकार हर शिक्षक को अपना दायित्व वहन करे ऐसा योग्य विद्यार्थी निर्माण करना चाहिये । ऐसे एक से अधिक विद्यार्थी निर्माण करना उचित होगा क्योंकि तब शिक्षा का प्रसार होगा । अपने विद्यार्थियों में कौन प्राथमिक में, कौन माध्यमिक में, कौन महाविद्यालय में और कौन सभी स्तरों पर पढा सकेगा यह पहचानना शिक्षक का कर्तव्य है। अच्छे विद्यार्थी ही नहीं तो अच्छे शिक्षक भी देना यह शिक्षक की शिक्षासेवा और समाजसेवा है ।
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बन सकता । उसी प्रकार से सभी प्रमाणपत्र प्राप्त
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4. इस दृष्टि से हर शिक्षा संस्थाने पूर्वप्राथमिक से उच्चशिक्षा तक के विभाग एक साथ चलाने चाहिये ताकि विद्यार्थी को अध्ययन में और शिक्षकों को चयन में सुविधा हो । यदि नगर के सारे विद्यालय मिलकर कोई रचना करते हैं तो वह एक विद्यालय की योजना से भी अधिक सुविधापूर्ण हो सकता है
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विद्यार्थी अच्छे शिक्षक होते ही हैं ऐसा नियम नहीं है
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5. उच्च शिक्षा और प्रगत अध्ययन तथा अनुसन्धान का क्षेत्र तुलना में खुला होने में सुविधा रहेगी, प्रश्न केवल अच्छे शिक्षक के मापदण्ड ठीक हों उसका ही रहेगा । फिर भी “अपना विद्यार्थी अपना शिक्षक की प्रथा उत्तम रहेगी
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शिक्षकों के चयन में विद्यालय के मापदण्ड नहीं चलते,
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6. आज एक शिक्षक भी अपने अच्छे विद्यार्थी को शिक्षक बनाना नहीं चाहता । मातापिता भी अपनी तेजस्वी और मेधावी सन्तान को शिक्षक देखना नहीं चाहते । ऐसे में शिक्षाक्षेत्र साधारण स्तर का ही रहेगा इसमें क्या आश्चर्य ? शिक्षा को श्रेष्ठ और तेजस्वी बनाना है तो मेधावी और श्रेष्ठ विद्यार्थियों को शिक्षक बनने हेतु प्रेरित करना होगा । इस दृष्टि से समाज प्रबोधन, अभिभावक प्रबोधन और शिक्षक प्रबोधन की आवश्यकता रहेगी । प्रबोधन का यह कार्य प्रभावी पद्धति से होना चाहिये तभी घर में, समाज में और विद्यालय में शिक्षक को प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त होंगे और विद्यार्थियों को शिक्षक बनने की प्रेरणा मिलेगी ।
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सरकार के चलते हैं इसलिये उस व्यवस्था से ही
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7. जो शिक्षक नहीं बन सकता वही अन्य कुछ भी बनेगा, उत्तम विद्यार्थी तो शिक्षक ही बनेगा ऐसे भाव का प्रसार होना चाहिये
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शिक्षक लेने होते हैं । इस स्थिति में इतना तो किया
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8. श्रेष्ठ विद्यार्थियों को पढ़ाने का अवसर छोटी आयु से ही प्राप्त होना चाहिये । दूसरी या चौथी कक्षा के छात्र शिशुकक्षामें कहानी बतायें, पहाडे रटवायें, आठवीं के छात्र चौथी कक्षा को गणित पढ़ायें इस प्रकार नियोजित, नियमित पढाने का क्रम बनना चाहिये । अभिव्यक्ति अच्छी बनाना, कठिन विषय को सरल बनाना, उदाहरण खोजना, व्यवहार में लागू करना, शुद्धि का आग्रह रखना, कमजोर विद्यार्थियों की कठिनाई जानना, उन्हें पुनः पुनः पढाना आदि शिक्षक के अनेक गुणों का विकास इनमें किस प्रकार होगा यह देखना चाहिये । ये विद्यार्थी शिक्षक के सहयोगी होंगे । शिक्षक की सेवा करना, अध्यापन में सहयोग करना, साथी विद्यार्थियों की सहायता करना आदि उनकी शिक्षा का ही अंग बनना चाहिये । शिक्षकों को उन्हें विशेष ध्यान देकर पढाना चाहिये । शिक्षक के रूप में उनके चरित्र का विकास हो यह देखना चाहिये । उनके परिवार के साथ भी सम्पर्क बनाना चाहिये । ये विद्यार्थी पन्द्रह वर्ष के होते होते उनमें पूर्ण शिक्षकत्व प्रकट होना चाहिये । उसके बाद वे शिक्षक और विद्यार्थी दोनों प्रकार से काम करेंगे परन्तु उनका मुख्य कार्य अध्ययन ही रहेगा ।
 
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जा सकता है कि जो शिक्षक बनने योग्य हैं ऐसे
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विद्यार्थियों को शिक्षक ही बनने की प्रेरणा दी जाय
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और उन्हें इस हेतु से मार्गदर्शन, अवसर और शिक्षण
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भी दिया जाय । विभिन्न विषयों के महाविद्यालयीन
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अध्यापकों ने भी अध्यापक बनने योग्य विद्यार्थियों को
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अध्यापक बनने के लिये प्रेरित करना चाहिये । ये
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सकेंगे । इसके साथ ही जो शिक्षक बनने योग्य नहीं है
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ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षक बनने से परावृत्त करने की
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भी योजना बनानी चाहिये । जो शिक्षक बनने योग्य
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नहीं है वे जब शिक्षक बन जाते हैं तब वे शिक्षा की
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और समाज की कुसेवा करते हैं ।
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सही मार्ग तो यह है कि अपने विद्यालय के छात्र ही
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विद्यालय में शिक्षक बनें । शिक्षा की परम्परा निर्माण
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करना भारतीय शिक्षा का एक खास लक्षण है । हर
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पिताश्री को जिस प्रकार अपने कुल की परम्परा
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अपने पुत्र को सौंपनी चाहिये उसी प्रकार हर शिक्षक
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को अपना दायित्व वहन करे ऐसा योग्य विद्यार्थी
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निर्माण करना चाहिये । ऐसे एक से अधिक विद्यार्थी
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निर्माण करना उचित होगा क्योंकि तब शिक्षा का
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प्रसार होगा । अपने विद्यार्थियों में कौन प्राथमिक में,
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सभी स्तरों पर पढा सकेगा यह पहचानना शिक्षक का
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कर्तव्य है। अच्छे विद्यार्थी ही नहीं तो अच्छे
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शिक्षक भी देना यह शिक्षक की शिक्षासेवा और
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समाजसेवा है ।
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इस दृष्टि से हर शिक्षा संस्थाने पूर्वप्राथमिक से
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उच्चशिक्षा तक के विभाग एक साथ चलाने चाहिये
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ताकि विद्यार्थी को अध्ययन में और शिक्षकों को
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चयन में सुविधा हो । यदि नगर के सारे विद्यालय
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मिलकर कोई रचना करते हैं तो वह एक विद्यालय
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की योजना से भी अधिक सुविधापूर्ण हो सकता है ।
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उच्च शिक्षा और प्रगत अध्ययन तथा अनुसन्धान का
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क्षेत्र तुलना में खुला होने में सुविधा रहेगी, प्रश्न
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केवल अच्छे शिक्षक के मापदण्ड ठीक हों उसका ही
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रहेगा । फिर भी “अपना विद्यार्थी अपना शिक्षक की
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आज एक शिक्षक भी अपने अच्छे विद्यार्थी को शिक्षक
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बनाना नहीं चाहता । मातापिता भी अपनी तेजस्वी और
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मेधावी सन्तान को शिक्षक देखना नहीं चाहते । ऐसे में
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आश्चर्य ? शिक्षा को श्रेष्ठ और तेजस्वी
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बनाना है तो मेधावी और श्रेष्ठ विद्यार्थियों को शिक्षक
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बनने हेतु प्रेरित करना होगा । इस दृष्टि से समाज
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प्रबोधन, अभिभावक प्रबोधन और शिक्षक प्रबोधन की
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आवश्यकता रहेगी । प्रबोधन का यह कार्य प्रभावी पद्धति
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से होना चाहिये तभी घर में, समाज में और विद्यालय में
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शिक्षक को प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त होंगे और
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विद्यार्थियों को शिक्षक बनने की प्रेरणा मिलेगी ।
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बनेगा, उत्तम विद्यार्थी तो शिक्षक ही बनेगा ऐसे भाव
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का प्रसार होना चाहिये ।
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श्रेष्ठ विद्यार्थियों को पढ़ाने का अवसर छोटी आयु से
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ही प्राप्त होना चाहिये । दूसरी या चौथी कक्षा के छात्र
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शिशुकक्षामें कहानी बतायें, पहाडे रटवायें, आठवीं के
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छात्र चौथी कक्षा को गणित पढ़ायें इस प्रकार
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नियोजित, नियमित पढाने का क्रम बनना चाहिये ।
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अभिव्यक्ति अच्छी बनाना, कठिन विषय को सरल
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होगा यह देखना चाहिये । ये विद्यार्थी शिक्षक के
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सहयोगी होंगे । शिक्षक की सेवा करना, अध्यापन में
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आदि उनकी शिक्षा का ही अंग बनना चाहिये ।
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शिक्षकों को उन्हें विशेष ध्यान देकर पढाना चाहिये ।
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देखना चाहिये । उनके परिवार के साथ भी सम्पर्क
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बनाना चाहिये । ये विद्यार्थी पन्द्रह वर्ष के होते होते
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उनमें पूर्ण शिक्षकत्व प्रकट होना चाहिये । उसके बाद
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जो विद्यार्थी शिक्षक ही बनेंगे उनके प्रगत अध्ययन
 
जो विद्यार्थी शिक्षक ही बनेंगे उनके प्रगत अध्ययन
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