शारीरिक शिक्षा के आयाम- खेल

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खेल

खेल का नाम कानों पर पड़ते ही शारीर में अजब सी स्फूर्तिदायक अनुभूति होने लगती है | खेल नाम का उच्चारण होते ही बच्चे खिलखिला उठते है सभी उम्र के लोगो में बचपना जागृत हो जाता है और अपनी सारी दुःख , तकलीफ और समस्यायों को भूलकर सभी उस खेल के माध्यम से होने वाले क्रिया कलाप में लग जाते है और खेल समाप्त होने के बाद जो शारीरिक और मानसिक सुख की अनुभूति होती है उसका शब्द रूप में प्रस्तुत करना बहुत ही कठिन है | आनंद सभी को प्राप्त होता है चाहे खेलने वाला हो या दर्शक हो उनके शारीर का हर अंग खेल का आनंद ले रहा है परन्तु अनुभूति का स्तर भिन्न भिन्न होता है | हर व्यक्ति चाहे किसी भी उम्र का हो परन्तु खेल खेलते समय वह पूरी तरह से अपने बचपन के वातावरण में चला जाता है यही वह परम सुख है | उसी परम सुख के आनंद को ध्यान में रखते हुए आप सभी के लिए खेल के अनन्य प्रकार को आपके सामने रख रहा हूँ ताकि आप स्वयं , अपने परिवार और अपने सामाजिक परिवार के साथ उस आनंद की अनुभूति को बाँट सके |

खेल क्या है ?:- कुछ ऐसा कार्य  जिससे आनंद की अनुभूति हो उसे खेल कहते है

खेल का महत्व :- खेल का बहुत ही गहरा महत्व मानव जीवन के साथ है | खेल एक ऐसा विषय है जो शारीरिक विकास , मानसिक विकास , सामाजिक विकास , भौतिक विकास अन्य कई विकास में लाभदायक है | बाल्यकाल से लेकर मृत्यु पर्यंत यह साथ में ही रहता है और सर्वदा सभी को सुख और आनंद ही प्रदान करता है |

खेल से फायदे :- खेल के कारण हर उम्र के लोगो में आवश्यकता अनुसार उर्जा , क्षमता , और स्फूर्ति बढ़ने के लिए मदत करता है | कई रोगों का निवारण खेल के माध्यम से होता है | खेल खेलने की क्षमता के लिए जो हम नियम या कार्य करते है उससे हमारे जीवन के कई कार्यो में लाभ होता है |

खेल खेलने से नेतृत्वा क्षमता का विकास , संगठन क्षमता का विकास , कौशल्या क्षमता का विकास , बौद्धिक क्षमता का विकास , शारीरिक स्फूर्ति का विकास होता है |

खेल के प्रकार

खेल प्रायः दो प्रकार से खेले जाते है १) साधन के खेल  २) बिना साधन के खेल

१)     साधन के खेल :- यह खेल जिसमे हम किसी न किसी वस्तु का उपयोग करके खेल खेलते है , जैसे गेंद , लकड़ी , रस्सी ई.

२)     बिना साधन के खेल :- जिसमे हम अपने शारीरिक अंगो का उपयोग कर खेल खेलते है ,जैसे कबड्डी , खोखो ,लंगड़ी ई.

एकांकी खेल :- जब बच्चे अकेले होते है तब अपने मन को बहलाने के लिए जो वास्तु बच्चो के हाथो में मिलाता है उससे कुछ न कुछ अलग करने का प्रयास करते है उससे उन्हें आनंद की अनुभूति होती है परन्तु हम उन्हें जब रोक टोक करते है या उनके लिए कोई वास्तु जब नहीं मिलाती तब वह बहुत परेशान हो जाते है और सभी को परेशान करते है | बाल्य अवस्था बच्चो की संशोधन क्षमता को बढ़ने का समय होता है उनपर दृष्टि रखे परन्तु कार्य करने में रोक टोक ना करे बल्कि और भी वस्तुएं उन्हें लाकर दे जिससे वे अपनी कौशल्य क्षमता को बढ़ा सके |

References