व्यायाम

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स्नान-सन्ध्या के बाद व्यायाम करना भी लाभप्रद है। स्नान के पहले व्यायाम करने पर उस समय बहुत देर तक विश्राम करना पडता है। किन्तु स्नान सन्ध्या वन्दन के बाद विश्राम की आवश्यकता नहीं थी। व्यायाम करने के कारण शरीर फुर्तीला एवं सुदृढ अवयवों वाला हो जाता है।

परिचय

जीवनचर्या में व्यायाम का वही महत्त्व है जैसा कि भोजन का। जैसे शरीर को जीवित रखने के लिये प्रतिदिन भोजन की आवश्यकता है इसी प्रकार उस खाये हुए भोजन को पचाने के लिये व्यायाम भी अनिवार्य है। एक सनातनधर्मी के हृदय में स्नान संध्या भगवदुपासना के लिए जितनी श्रद्धा और प्रेम है उतना ही व्यायाम के लिये भी है। क्योंकि जैसा कि कहा गया है-

शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।

अर्थात्-शरीर ही धर्माचरण का मूल साधन है। यदि शरीर ही अस्वस्थ हुआ तो किसका स्नान और कैसी संध्याॽ़ आयुर्वेद शास्त्र मे लिखा है कि-

व्यायामहढगात्रस्य व्याधिर्नास्ति कदाचन । विरुद्धं वा विदग्धं वा भुक्तं शीघ्र विपच्यते ॥१॥

भवन्ति शीघ्र नैतस्य देहे शिथिलतादयः । न चैनं सहसाक्रम्य जरा समधिरोहति ॥२॥

न चास्ति सदृशं तेन किंचित्स्थौल्यापकर्षणम् । स सदा गुरणमाधत्ते बलिनां स्निग्धभोजिनाम् ॥३॥(भाव प्रकाश)

अर्थात्-व्यायाम द्वारा दृढान(बलिष्ठ) हुए मनुष्य पर रोगो का सहसा आक्रमण नही होता। देश कालादि के विरुद्ध किंवा कच्चा पक्का खाया हुआ आहार शीघ्र पच जाता है। व्यायामशाली पुरुष का देह मे शैथिल्य आलस्य आदि दुर्गुण नहीं होते और उसे वुढापा जल्दी नही दवा सकता । मोटापे को दूर करने की व्यायाम परमौषधि है, बलिष्ठ पुरुष स्निग्ध पदार्थ खाता हुआ यदि व्यायाम करे तो उसे सदैव लाभ ही लाभ होता है।

व्यायाम का महत्व

भारतीय व्यायाम पद्धति

सूर्यनमस्कार

उद्धरण