वैश्विक समस्याओं का स्त्रोत

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अध्याय ३०

राकेश मिश्र

आधुनिकता की समीक्षा आवश्यक

वैश्विक संकट का क्या स्रोत है, उसका क्या स्वरूप है और उसका क्या समाधान है ? वस्तुतः यह प्रश्न भारत से नहीं उठ रहा है कि विश्व संकटग्रस्त है । स्वयं पश्चिम में यह प्रश्न उठ रहा है । और यह प्रश्न जब पश्चिम में उठ रहा है तो इसलिए उठ रहा है, क्योंकि वे अब इस निष्कर्ष पर पहँचे हैं कि पिछले ढाई सौ वर्षों की उनकी जो कमाई, जिसको एक शब्द में कहें तो आधुनिकता (Modernity) ही संदेहास्पद है। इसलिए आज इस आधुनिकता की जो पुनः समीक्षा हो रही है उसका प्रारम्भ अठारहवीं शताब्दी से हुआ। आधुनिक काल में और अभी तक जिस को हम enlightenment कहते रहे, ज्ञान कहते रहे, प्रबोधन कहते रहे, प्रगति कहते रहे, विकास कहते रहे उस _enlightenment project के बारे में आज यूरोप के ही विद्वान कह रहे हैं कि enlightenment is totallitairalism, ये जो प्रबोधन है ये वस्तुतः सर्वाधिकारवादी है। या ये जो enlightenmen है इसके लिए वो एक phrase इस्तेमाल करते हैं it is darkness ___in the moon' यह ऐसी स्थिति है जैसे कि दोपहर में अन्धकार छा जाय । तो यह प्रश्न उनका है, लेकिन दिक्कत यह है कि जब रूस में साम्यवाद का पतन हआ तब इसी पश्चिमी जगत के लोगों ने कहा कि अब इतिहास का अन्त हो गया, या विचारधारा का अन्त हो गया। जिससे उनका आशय यह था कि बस अब सब रास्ता साफ हो गया, जो रास्ते के काँटे थे वो दर हो गये। अब विकास और कल्याणकी एक अनन्त धारा बहेगी। और उस चीज को उन्होंने वैश्विकरण (ग्लोबलाइजेशन) कहा । लेकिन उनकी आशा कैसे दुराशा सिद्ध हुई यह रोष प्रकट हो रहा है।

राजनीति में विश्वसनीयता का संकट

राजनीति शक्ति की प्राप्ति तथा उसके संवर्धन और दुरुपयोग तक सीमित रह गई है। न केवल विश्व के सन्दर्भ में यह सिद्धान्त लागू होता है बल्कि राज्य के, पंचायत के, प्रदेश के स्तर पर भी लागू होता है । इस राजनीतिने हमारा राजनीति और राजनीतिज्ञों पर से विश्वास ही समाप्त कर दिया है। उसे ही आजकल हम crisis of credibility, विश्वसनीयता का संकट कहते है। अर्थात् जो हमारे कर्णधार हैं उन पर विश्वास ही नहीं रह गया है। परन्तु यह संकट एक दिन में पैदा नहीं हुआ। अर्थ व्यवस्था का जो केन्द्र है वह लाभ और लोभ है। profit का जो लोभ है उसका कोई अन्त नहीं । उससे जो विद्रपताएँ और विषमताएँ पैदा हो रहीं हैं चाहे वह बेरोजगारी हो, मुद्रास्फिति हो, गरीबी का बढ़ना हो सब उसके ही दुष्परिणाम हैं। समाज से संस्कार लुप्त हो रहे हैं और संस्कारों के लुप्त होने के कारण परिवार टूट रहे हैं, समाज टूट रहा है । जिन शिक्षा संस्थाओं को प्रकाश बिखेरना चाहिए वे स्वयं अंधकारग्रस्त हैं। संक्षेप में इस सम्पूर्ण संकट को चित्रित किया जाय तो वह चतुर्दिक है ऐसा लगता है।

आधुनिक सभ्यता का संकट

राजनीति, अर्थव्यवस्था, समाजव्यवस्था, साहित्य, दर्शन, शिक्षा सभी दिग्भ्रमित हैं। यानि जो सभ्यता का संकट है। यह कोई एक जगह का संकट नहीं है, पूरी सभ्यता ही संकटग्रस्त है । जिसको modern civilization, आधुनिक सभ्यता कहते हैं और जिसे यूरोप में बड़ी उपलब्धि माना जाता था, हमारे यहाँ अभी भी लोग इसको बहुत बड़ी चीज मानते हैं। इस आधुनिकता, जिसे

References

भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे