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==== भारत को विशेषज्ञ नहीं तत्त्वदर्शी चाहिए ====
 
==== भारत को विशेषज्ञ नहीं तत्त्वदर्शी चाहिए ====
तीसरी बात कि हमें विशेषज्ञों की आवश्यकता नहीं है या कम है। अगर हम यह उम्मीद कर रहे हैं कि राजशास्त्री या राजनीतिज्ञ समाधान निकाल लेंगे, अर्थशास्त्री समाधान निकाल लेंगे, वैज्ञानिक समाधान निकाल लेंगे तो एक बड़ी भ्रान्ति में हम लोग फंसे हुए हैं क्योंकि समाधान ऋषि निकालता है, तत्त्वदर्शी निकालता है, विशेषज्ञ नहीं । क्योंकि तत्त्वदर्शी ही पूरी समस्या को समझ सकता है कि चीज कहाँ से है और कहाँ तक है। राजनीतिशास्त्री, अर्थशास्त्री की दृष्टि तो बड़ी सीमित होती है । वे केवल प्रश्न का एक पहलु जानते हैं। वे उसके सारे पक्षों को नहीं जानते । लेकिन जो तत्त्वदर्शी है उनकी दृष्टि बड़ी विराट होती है। वे अपनी ज्ञान साधना से राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक प्रश्नों को चुटकी में समझ लेते हैं कि इसमें क्या है ? तो इसलिए भारत को आज विशेषज्ञों की आवश्यकता
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तीसरी बात कि हमें विशेषज्ञों की आवश्यकता नहीं है या कम है। अगर हम यह उम्मीद कर रहे हैं कि राजशास्त्री या राजनीतिज्ञ समाधान निकाल लेंगे, अर्थशास्त्री समाधान निकाल लेंगे, वैज्ञानिक समाधान निकाल लेंगे तो एक बड़ी भ्रान्ति में हम लोग फंसे हुए हैं क्योंकि समाधान ऋषि निकालता है, तत्त्वदर्शी निकालता है, विशेषज्ञ नहीं । क्योंकि तत्त्वदर्शी ही पूरी समस्या को समझ सकता है कि चीज कहाँ से है और कहाँ तक है। राजनीतिशास्त्री, अर्थशास्त्री की दृष्टि तो बड़ी सीमित होती है । वे केवल प्रश्न का एक पहलु जानते हैं। वे उसके सारे पक्षों को नहीं जानते । लेकिन जो तत्त्वदर्शी है उनकी दृष्टि बड़ी विराट होती है। वे अपनी ज्ञान साधना से राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक प्रश्नों को चुटकी में समझ लेते हैं कि इसमें क्या है ? तो इसलिए भारत को आज विशेषज्ञों की आवश्यकता नहीं है, बहुत हैं विशेषज्ञ । विशेषज्ञ जितने बढ़ रहे हैं समस्या उतनी ही उलझ रही है । क्योंकि एक समस्या को हर विशेषज्ञ अपने अपने तरीके से देख कर इसी बात में अपनी विद्वत्ता समझता है कि हमने कोई नया पेच पैदा कर दिया यह विशेषज्ञता है, उलझे हुए प्रश्न को सुलझाना नहीं । विशेषज्ञता सामान्यतः अहंकार को जन्म देती है, 'little learning is dangereous thing' ऐसा कहा भी गया है। और विशेषज्ञता क्या है ? केवल 'little learning' है। भारत को आज समग्र दृष्टि चाहिए. Metaphysicians चाहिए, आचार्य चाहिए, ऋषि चाहिए जो हमारे प्रश्नों को समझकर उनका समाधान निकाले। हमें सुकरात चाहिए, ढेरों राजनेता नहीं चाहिए । एक सुकरात एक हजार सवालों का जवाब दे सकता है और एक प्रश्न - को ढेरों राजनेता भी हल नहीं कर सकते । तत्त्वदर्शन की यह महत्ता होती है । इसलिए अगर इन दो-तीन उपायों को हम अपना सकें तो शायद मार्ग निकल जाये । भारतीय परम्परा निराशावादी नहीं है, आशावादी है। वह यह मानती है कि कोई अन्धकार दीर्घजीवी या चिरंजीवी नहीं होता । और अन्ततः सत्य की विजय होती है। तो यह जो हमारी परम्परा का मूल सिद्धांत है, वो अगर हमें प्रेरित कर सके और हम निराशा में फंसने की बजाय एक सम्यक मार्ग को तलाश कर चल सकें तो शायद हमारा कल्याण होगा। और इन वैश्विक संकटों का समाधान होगा।
    
==References==
 
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