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* यन्त्र से मिलनेवाले आराम, सुविधा और समृद्धि आभासी होते हैं। बहुत जल्दी वे नष्ट हो जाते हैं।
 
* यन्त्र से मिलनेवाले आराम, सुविधा और समृद्धि आभासी होते हैं। बहुत जल्दी वे नष्ट हो जाते हैं।
 
* प्राणशक्ति से चलने वाले यन्त्र मनुष्य की कल्पनाशक्ति और सृजनशीलता का आविष्कार है, अन्य ऊर्जा से चलने वाले यन्त्र मनुष्य की दुर्बुद्धि का ।
 
* प्राणशक्ति से चलने वाले यन्त्र मनुष्य की कल्पनाशक्ति और सृजनशीलता का आविष्कार है, अन्य ऊर्जा से चलने वाले यन्त्र मनुष्य की दुर्बुद्धि का ।
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==== १०. मनुस्मृति और स्त्री ====
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<blockquote>'''परपत्नी त्या स्त्री स्यात् असम्बन्धा च योनितः ।'''</blockquote><blockquote>'''तां ब्रूयात् भवतीत्येवम् सुभगे भगिनीति वा ।।'''  '''२.१२९''' </blockquote><blockquote>जो स्त्री परपत्नी है अथवा योनिसम्बन्ध से सम्बन्धित नहीं है उसे 'भवति', 'सुभगे' अथवा 'भगिनी' ऐसा सम्बोधन करना चाहिये (अर्थात् उससे आदरपूर्वक बात करनी चाहिये )। </blockquote><blockquote>'''उपाध्यायात् दशाचार्यः आचार्याणां शतं पिता । २.१४५''' </blockquote><blockquote>'''सहस्रं तु पितृन् माता गौरवेणाऽतिरिच्यते ॥''' </blockquote><blockquote>उपाध्याय (पैसे लेकर पढाने वाले) से आचार्य का गौरव दसगुना अधिक है, आचार्य से सौ गुना पिता का और पिता से सहस्र गुना माता का गौरव अधिक है। </blockquote><blockquote>'''स्त्रीधनानि तु ये: मोहात् उपजीवन्ति बान्धवाः ।''' </blockquote><blockquote>'''नारी यानानि वस्त्रं वा ते पाणा यान्त्यधोगतिम् ।।३.५२''' </blockquote><blockquote>'''पितृभिः भ्रातृभिश्चैताः पतिभिस्वेदरैस्तथा ।''' </blockquote><blockquote>'''पूज्याः भूषयितव्याश्च बहु कल्याणमिप्सुभिः ।। ३.५५''' </blockquote><blockquote>\अत्यन्त कल्याण चाहने वाले पिता, भाई, पति, देवर आदि ने स्त्री का सम्मान करना चाहिये और आभरण आदि अनेक प्रकार से उसे आभूषित करना चाहिये । </blockquote><blockquote>'''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।''' </blockquote><blockquote>'''यौतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राऽफलाः क्रियाः ।। ३.५६''' </blockquote><blockquote>जहाँ त्रियों का सम्मान किया जाता है वहाँ देवता प्रसन्न होकर रहते हैं । जहाँ उनका सम्मान नहीं होता वहाँ किसी कामकाज का फल नहीं मिलता। </blockquote><blockquote>'''पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने ।''' </blockquote><blockquote>'''रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति ।।''' '''९.३'''</blockquote><blockquote>स्त्री की रक्षा कुमारी अवस्था में पिता, यौवनावस्था में पति और वृद्धावस्थामां पुत्रने करनी चाहिये । स्त्री को असुरक्षित नहीं रखनी चाहिये ।</blockquote>'''अन्य सुभाषित'''<blockquote>'''न गृहं गृहमित्याहुः गृहिणी गृहमुच्यते ।'''</blockquote><blockquote>'''गृहं तु गृहिणीहीन कान्तारादतिरिच्यते ॥''' </blockquote>मकान को घर नहीं कहते, गृहिणी को ही गृह कहते हैं। बिना गृहिणी के घर बीहड जंगल से भी। अधिक बीहड होता है।
    
==References==
 
==References==
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