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==== सात्विक आहार के लक्षण ====
 
==== सात्विक आहार के लक्षण ====
सात्विक स्वभाव के मनुष्यों को जो प्रिय है वह सात्विक आहार है ऐसा श्रीमद भगवदगीता <ref name=":0">श्रीमद भगवदगीता श्लोक 17.8 </ref> में कहा है । ऐसे आहार का वर्णन इस प्रकार किया गया है: <blockquote>आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।</blockquote><blockquote>रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्विकप्रियाः।।17.8।।</blockquote><blockquote>अर्थात्‌ आयु, सत्त्व (शुद्धि), बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को प्रवृद्ध करने वाले एवं रसयुक्त, स्निग्ध ( घी आदि की चिकनाई से युक्त) स्थिर तथा मन को प्रसन्न करने वाले आहार अर्थात् भोज्य पदार्थ सात्विक पुरुषों को प्रिय होते हैं।।<ref name=":1">https://bit.ly/331PDBO (स्वामी तेजोमायानंद द्वारा हिन्दी अनुवाद) </ref></blockquote>
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सात्विक स्वभाव के मनुष्यों को जो प्रिय है वह सात्विक आहार है ऐसा श्रीमद भगवदगीता <ref name=":0">श्रीमद भगवदगीता श्लोक 17.8 </ref> में कहा है । ऐसे आहार का वर्णन इस प्रकार किया गया है: <blockquote>आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।</blockquote><blockquote>रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्विकप्रियाः।।17.8।।</blockquote><blockquote>अर्थात्‌ आयु, सत्त्व (शुद्धि), बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को प्रवृद्ध करने वाले एवं रसयुक्त, स्निग्ध ( घी आदि की चिकनाई से युक्त) स्थिर तथा मन को प्रसन्न करने वाले आहार अर्थात् भोज्य पदार्थ सात्विक पुरुषों को प्रिय होते हैं।।<ref name=":1">https://bit.ly/331PDBO (स्वामी तेजोमयानंद द्वारा हिन्दी अनुवाद) </ref></blockquote>
    
==== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? सात्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? ====
 
==== स्निग्ध आहार किसे कहते हैं ? सात्विक आहार क्या-क्या बढ़ाता है ? ====
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# प्लास्टीक के डिब्बे में या थैली में खाना और प्लास्टीक की बोतल में पानी का निषेध होना चाहिये । इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये। इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये।  
 
# प्लास्टीक के डिब्बे में या थैली में खाना और प्लास्टीक की बोतल में पानी का निषेध होना चाहिये । इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये। इस सम्बन्ध में आग्रहपूर्वक प्रशिक्षण भी होना चाहिये।  
 
# प्लास्टीक के साथ साथ एल्यूमिनियम के पात्र भी वर्जित होने चाहिये।  
 
# प्लास्टीक के साथ साथ एल्यूमिनियम के पात्र भी वर्जित होने चाहिये।  
# विद्यार्थियों को घर से पानी न लाना पडे ऐसी व्यवस्था विद्यालय में करनी चाहिये ।  
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# विद्यार्थियों को घर से पानी न लाना पड़े ऐसी व्यवस्था विद्यालय में करनी चाहिये ।  
 
# बजार की खाद्यसामग्री लाना मना होना चाहिये । यह तामसी आहार है।
 
# बजार की खाद्यसामग्री लाना मना होना चाहिये । यह तामसी आहार है।
 
# इसी प्रकार भले घर में बना हो तब भी बासी भोजन नहीं लाना चाहिये । जिसमें पानी है ऐसा दाल, चावल, रसदार सब्जी बनने के बाद चार घण्टे में बासी हो जाती है। विद्यालय में भोजन का समय और घर में भोजन बनने का समय देखकर कैसा भोजन साथ लायें यह निश्चित करना चाहिये ।  
 
# इसी प्रकार भले घर में बना हो तब भी बासी भोजन नहीं लाना चाहिये । जिसमें पानी है ऐसा दाल, चावल, रसदार सब्जी बनने के बाद चार घण्टे में बासी हो जाती है। विद्यालय में भोजन का समय और घर में भोजन बनने का समय देखकर कैसा भोजन साथ लायें यह निश्चित करना चाहिये ।  
 
# विद्यार्थी और अध्यापक दोनों ही ज्ञान के उपासक ही हैं। अतः दोनों का आहार सात्विक ही होना चाहिये ।
 
# विद्यार्थी और अध्यापक दोनों ही ज्ञान के उपासक ही हैं। अतः दोनों का आहार सात्विक ही होना चाहिये ।
# भोजन के साथ संस्कार भी जुडे हैं । इसलिये इन बातों का ध्यान करना चाहिये
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# भोजन के साथ संस्कार भी जुड़े हैं । इसलिये इन बातों का ध्यान करना चाहिये
 
## प्रार्थना करके ही भोजन करना चाहिये ।  
 
## प्रार्थना करके ही भोजन करना चाहिये ।  
 
## पंक्ति में बैठकर भोजन करना चाहिये ।  
 
## पंक्ति में बैठकर भोजन करना चाहिये ।  
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== भोजन को लेकर समस्याओं तथा उनके समाधान विषयक ज्ञान ==
 
== भोजन को लेकर समस्याओं तथा उनके समाधान विषयक ज्ञान ==
 
भोजन की सारी व्यवस्था आज अस्तव्यस्त हो गई है। इस भारी गडबड का स्वरूप प्रथम ध्यान में आना चाहिये । कुछ बिन्दु इस प्रकार है ।
 
भोजन की सारी व्यवस्था आज अस्तव्यस्त हो गई है। इस भारी गडबड का स्वरूप प्रथम ध्यान में आना चाहिये । कुछ बिन्दु इस प्रकार है ।
* अन्न पवित्र है ऐसा अब नहीं माना जाता है। वह एक जड पदार्थ है।
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* अन्न पवित्र है ऐसा अब नहीं माना जाता है। वह एक जड़ पदार्थ है।
 
* धार्मिक परम्परा में अनाज भले ही बेचा जाता हो, अन्न कभी बेचा नहीं जाता था । अन्न पर भूख का और भूखे का स्वाभाविक अधिकार है, पैसे का या अन्न के मालिक का नहीं । आज यह बात सर्वथा विस्मृत हो गई है।  
 
* धार्मिक परम्परा में अनाज भले ही बेचा जाता हो, अन्न कभी बेचा नहीं जाता था । अन्न पर भूख का और भूखे का स्वाभाविक अधिकार है, पैसे का या अन्न के मालिक का नहीं । आज यह बात सर्वथा विस्मृत हो गई है।  
 
* अन्नदान महादान है यह विस्मृत हो गया है।  
 
* अन्नदान महादान है यह विस्मृत हो गया है।  
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इन्स्टण्ट फूड का अर्थ है झटपट तैयार होने वाला पदार्थ। झटपट अर्थात् दो मिनिट से लेकर पन्द्रह-बीस मिनिट में तैयार हो जाने वाला।
 
इन्स्टण्ट फूड का अर्थ है झटपट तैयार होने वाला पदार्थ। झटपट अर्थात् दो मिनिट से लेकर पन्द्रह-बीस मिनिट में तैयार हो जाने वाला।
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आजकल दौडधूपकी जिंदगी में ऐसे तुरन्त बनने वाले पदार्थों की आवश्यकता अधिक रहती है । गृहिणी को स्वयं भी शीघ्रातिशीघ्र काम निपटकर नौकरी पर निकलना होता है अथवा बच्चों और पति को भेजना होता है।  
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आजकल दौडधूपकी जिंदगी में ऐसे तुरन्त बनने वाले पदार्थों की आवश्यकता अधिक रहती है । गृहिणी को स्वयं भी शीघ्रातिशीघ्र काम निपटकर नौकरी पर निकलना होता है अथवा बच्चोंं और पति को भेजना होता है।  
    
छाप ऐसी पडती है कि इन्स्टण्ट फूड का आविष्कार आज के जमाने में ही हुआ है। परन्तु ऐसा है नही। झटपट भोजन की आवश्यकता तो कहीं भी और कभी भी रह सकती है। इसलिये धार्मिक गृहिणी भी इस कला में माहिर होगी ही। ऐसे कई पदार्थों की सूची यहाँ दी गई है। यह सूची सबको परिचित है, घर घर में प्रचलित भी है। परन्तु ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित करना है कि ये सब पदार्थ झटपट तैयार होने वाले होने के साथ साथ पोषक एवं स्वादिष्ट भी होते हैं, बनाने में सरल हैं और आर्थिक दृष्टि से देखा जाय तो सर्वसामान्य गृहिणी बना सकेगी ऐसे भी हैं।  
 
छाप ऐसी पडती है कि इन्स्टण्ट फूड का आविष्कार आज के जमाने में ही हुआ है। परन्तु ऐसा है नही। झटपट भोजन की आवश्यकता तो कहीं भी और कभी भी रह सकती है। इसलिये धार्मिक गृहिणी भी इस कला में माहिर होगी ही। ऐसे कई पदार्थों की सूची यहाँ दी गई है। यह सूची सबको परिचित है, घर घर में प्रचलित भी है। परन्तु ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित करना है कि ये सब पदार्थ झटपट तैयार होने वाले होने के साथ साथ पोषक एवं स्वादिष्ट भी होते हैं, बनाने में सरल हैं और आर्थिक दृष्टि से देखा जाय तो सर्वसामान्य गृहिणी बना सकेगी ऐसे भी हैं।  
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बासी रोटी और दही बहुत लोगोंं को बहुत अच्छा लगता है। इसलिये सुबह खाने के लिये रात्रि में बनाकर बासी बनाकर खाई जाती है।ये सारे जंकफूड के नमूने हैं क्यों कि ये बासी और बचे हुए पदार्थों से ही बनते हैं। आयुर्वेद इन्हें खाने के लिये स्पष्ट मना करता है क्यों कि स्वास्थ्यकारक आहार की परिभाषा में इसका स्थान नहीं है।
 
बासी रोटी और दही बहुत लोगोंं को बहुत अच्छा लगता है। इसलिये सुबह खाने के लिये रात्रि में बनाकर बासी बनाकर खाई जाती है।ये सारे जंकफूड के नमूने हैं क्यों कि ये बासी और बचे हुए पदार्थों से ही बनते हैं। आयुर्वेद इन्हें खाने के लिये स्पष्ट मना करता है क्यों कि स्वास्थ्यकारक आहार की परिभाषा में इसका स्थान नहीं है।
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फिर भी प्रत्येक घर में ये प्रतिष्ठा प्राप्त हैं। इसका एक कारण यह है कि खाने वाले को ये अत्यन्त रुचिकर लगते हैं। इस प्रकार से ही उसका रुपान्तरण होता है। दूसरा कारण यह है कि बचे हुए पदार्थो को फैंकना गृहिणी को अच्छा नहीं लगता है। आर्थिक रुप से भी वह परवडता नहीं है। अतः बचे हुए अन्न का उपयोग करने में गृहिणी अपना कौशल दिखाती है।
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तथापि प्रत्येक घर में ये प्रतिष्ठा प्राप्त हैं। इसका एक कारण यह है कि खाने वाले को ये अत्यन्त रुचिकर लगते हैं। इस प्रकार से ही उसका रुपान्तरण होता है। दूसरा कारण यह है कि बचे हुए पदार्थो को फैंकना गृहिणी को अच्छा नहीं लगता है। आर्थिक रुप से भी वह परवडता नहीं है। अतः बचे हुए अन्न का उपयोग करने में गृहिणी अपना कौशल दिखाती है।
    
सम्पूर्ण भारत में घर घर में जंकफूड का प्रचलन है। भारत की गृहिणियाँ भाँति भाँति के जंक व्यंजन बनाने में माहिर होती हैं। घर के सदस्य भी उन्हे चाव से खाते हैं। परन्तु ये पदार्थ बासी हैं और अनारोग्यकर हैं यह बात सदा ध्यान में रखना आवश्यक है।
 
सम्पूर्ण भारत में घर घर में जंकफूड का प्रचलन है। भारत की गृहिणियाँ भाँति भाँति के जंक व्यंजन बनाने में माहिर होती हैं। घर के सदस्य भी उन्हे चाव से खाते हैं। परन्तु ये पदार्थ बासी हैं और अनारोग्यकर हैं यह बात सदा ध्यान में रखना आवश्यक है।
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=== अभिमत ===
 
=== अभिमत ===
अन्य प्रश्नावलियों से प्राप्त उत्तरों की तुलना में इस विद्यालय से प्राप्त उत्तर सही एवं धार्मिक दृष्टि की पहचान बताने वाले थे । इसका कारण यह था कि इस विद्यालय में समग्र विकास अभ्यासक्रमानुसार शिक्षण होता है । जब शिक्षा से सही दृष्टि मिलती है तो व्यवहार भी तद्नुसार सही ही होता है। दसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि इस प्रश्नावली में अभिभावकों की सहभागिता अधिक रही। उनमें से कुछ अभिभावक कम पढे लिखे भी थे. फिर भी अनेक उत्तर एकदम सटीक थे । यह आश्चर्य की बात थी । अल्पशिक्षित व्यक्ति भी अच्छा व्यवहार कर सकता है बात को उन्होंने सत्यसिद्ध किया।
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अन्य प्रश्नावलियों से प्राप्त उत्तरों की तुलना में इस विद्यालय से प्राप्त उत्तर सही एवं धार्मिक दृष्टि की पहचान बताने वाले थे । इसका कारण यह था कि इस विद्यालय में समग्र विकास अभ्यासक्रमानुसार शिक्षण होता है । जब शिक्षा से सही दृष्टि मिलती है तो व्यवहार भी तद्नुसार सही ही होता है। दसरी महत्त्वपूर्ण बात यह कि इस प्रश्नावली में अभिभावकों की सहभागिता अधिक रही। उनमें से कुछ अभिभावक कम पढे लिखे भी थे. तथापि अनेक उत्तर एकदम सटीक थे । यह आश्चर्य की बात थी । अल्पशिक्षित व्यक्ति भी अच्छा व्यवहार कर सकता है बात को उन्होंने सत्यसिद्ध किया।
    
आज हर कोई कार्यालय में, व्याख्यान में, सिनेमा में जाते समय पानी की बोटल साथ लेकर जाता है । परन्तु यहाँ सब लोगोंं ने मटके के पानी का उपयोग ही सबके लिए श्रेष्ठ बताया है । प्लास्टिक बोतल में रखा पानी प्रदूषित हो जाता है । ऐसा उनका मत था।
 
आज हर कोई कार्यालय में, व्याख्यान में, सिनेमा में जाते समय पानी की बोटल साथ लेकर जाता है । परन्तु यहाँ सब लोगोंं ने मटके के पानी का उपयोग ही सबके लिए श्रेष्ठ बताया है । प्लास्टिक बोतल में रखा पानी प्रदूषित हो जाता है । ऐसा उनका मत था।
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# मनुष्यों को पानी पिलाने की व्यवस्था भी होना आवश्यक है। इस दृष्टि से प्याऊ की व्यवस्था की जा सकती है। इस प्याऊ की व्यवस्था का संचालन विद्यार्थियों को करना चाहिये ।  
 
# मनुष्यों को पानी पिलाने की व्यवस्था भी होना आवश्यक है। इस दृष्टि से प्याऊ की व्यवस्था की जा सकती है। इस प्याऊ की व्यवस्था का संचालन विद्यार्थियों को करना चाहिये ।  
 
# हाथ पैर धोने या नहाने के लिये हम कितने कम पानी का प्रयोग कर सकते हैं यह सिखाने की आवश्यकता है। अधिक पानी का प्रयोग करना बुद्धिमानी नहीं है ।  
 
# हाथ पैर धोने या नहाने के लिये हम कितने कम पानी का प्रयोग कर सकते हैं यह सिखाने की आवश्यकता है। अधिक पानी का प्रयोग करना बुद्धिमानी नहीं है ।  
# इसी प्रकार वर्तन साफ करने के लिये, कपडे धोने के लिये कम पानी का प्रयोग करने की कुशलता प्राप्त करनी चाहिये।  
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# इसी प्रकार वर्तन साफ करने के लिये, कपड़े धोने के लिये कम पानी का प्रयोग करने की कुशलता प्राप्त करनी चाहिये।  
# डीटेर्जन्ट से कपडे और बर्तन साफ करने से अधिक पानी का प्रयोग करना पडता है। इससे बचने के   
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# डीटेर्जन्ट से कपड़े और बर्तन साफ करने से अधिक पानी का प्रयोग करना पडता है। इससे बचने के   
 
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<li> भोजन के पात्र साफ करते समय प्रथम तो सारी जूठन धोकर वह पानी एक पात्र में इकट्ठा करना चाहिये । वह पानी गाय, बकरी, कुत्ते आदि पशुओं को पिलाना चाहिये । चावल, दाल आदि धोने के बाद उसके पानी का भी ऐसा ही उपयोग करना चाहिये । इससे पशुओं को अन्न के अच्छे अंश मिलते हैं और अन्न का सदुपयोग होता है।
 
<li> भोजन के पात्र साफ करते समय प्रथम तो सारी जूठन धोकर वह पानी एक पात्र में इकट्ठा करना चाहिये । वह पानी गाय, बकरी, कुत्ते आदि पशुओं को पिलाना चाहिये । चावल, दाल आदि धोने के बाद उसके पानी का भी ऐसा ही उपयोग करना चाहिये । इससे पशुओं को अन्न के अच्छे अंश मिलते हैं और अन्न का सदुपयोग होता है।
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<li> बर्तन साफ किया हुआ पानी पेड पौधों को ही देना चाहिये । कपडे साफ करने के बाद का साबन वाला पानी खुले में रेत या मिट्टी पर या ये दोनों नहीं है तो पथ्थर पर गिराना चाहिये । रेत या मिट्टी पानी को सोख लेते हैं, पथ्थर पर गिरा पानी सूर्यप्रकाश और हवा से सूख जाता है। इससे जमीन की और वातावरण की नमी बनी रहती है और तापमान अप्राकृतिकरूप से नहीं बढता ।
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<li> बर्तन साफ किया हुआ पानी पेड पौधों को ही देना चाहिये । कपड़े साफ करने के बाद का साबन वाला पानी खुले में रेत या मिट्टी पर या ये दोनों नहीं है तो पथ्थर पर गिराना चाहिये । रेत या मिट्टी पानी को सोख लेते हैं, पथ्थर पर गिरा पानी सूर्यप्रकाश और हवा से सूख जाता है। इससे जमीन की और वातावरण की नमी बनी रहती है और तापमान अप्राकृतिकरूप से नहीं बढता ।
    
<li> पानी की निकासी की भूमिगत व्यवस्था पानी के शुद्धीकरण की दृष्टि से अत्यन्त घातक है यह बात आज किसी को समझ में आना बहुत कठिन है । हमारी सोच इतनी उपरी सतह की हो गई है, कि हमें ऊपरी स्वच्छता तो दिखाई देती । है परन्तु अन्दर की स्वच्छता का विचार भी नहीं आता। बाह्य और अभ्यन्तर स्वच्छता का विषय स्वतन्त्र रूप से विचार करने लायक है।
 
<li> पानी की निकासी की भूमिगत व्यवस्था पानी के शुद्धीकरण की दृष्टि से अत्यन्त घातक है यह बात आज किसी को समझ में आना बहुत कठिन है । हमारी सोच इतनी उपरी सतह की हो गई है, कि हमें ऊपरी स्वच्छता तो दिखाई देती । है परन्तु अन्दर की स्वच्छता का विचार भी नहीं आता। बाह्य और अभ्यन्तर स्वच्छता का विषय स्वतन्त्र रूप से विचार करने लायक है।
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== पानी को शुद्ध करने के प्राकृतिक उपाय ==
 
== पानी को शुद्ध करने के प्राकृतिक उपाय ==
# मोटे खादी के कपडे से पानी को छानना चाहिये । यह कपडा और पानी भरने का पात्र स्वच्छ ही हो यह पहले ही सुनिश्चित करना चाहिये ।  
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# मोटे खादी के कपड़े से पानी को छानना चाहिये । यह कपडा और पानी भरने का पात्र स्वच्छ ही हो यह पहले ही सुनिश्चित करना चाहिये ।  
 
# पानी में यदि अशुद्धि धुलमिल गई हो तो उसमें फिटकरी घुमाना चाहिये । उससे अशुद्धि नीचे बैठ जाती है। उसके बाद पानी को छानना चाहिये ।  
 
# पानी में यदि अशुद्धि धुलमिल गई हो तो उसमें फिटकरी घुमाना चाहिये । उससे अशुद्धि नीचे बैठ जाती है। उसके बाद पानी को छानना चाहिये ।  
 
# मिट्टी, रेत और कंकड पथ्थर से गुजरा हुआ पानी कचरा रहित हो जाता है। ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिये । ऐसे पानी को छान लेना चाहिये ।  
 
# मिट्टी, रेत और कंकड पथ्थर से गुजरा हुआ पानी कचरा रहित हो जाता है। ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिये । ऐसे पानी को छान लेना चाहिये ।  
Line 416: Line 416:  
# मिनरल वॉटर की बिमारी इतनी फैली हुई है कि लोग मटके का पानी नहीं पिते, स्थानकों पर की हुई पानी की व्यवस्था से प्राप्त पानी नहीं पीते, यात्रा में घर से पानी साथ में नहीं ले जाते । इन सब अच्छी बातों को छोडकर पन्द्रह से बीस रूपये का एक लीटर पानी खरीदने वाली प्रजा असंस्कारी और दरिद्र बन जाने की पूरी सम्भावना है। विद्यालय में सिखाने लायक यह महत्त्वपूर्ण विषय है।  
 
# मिनरल वॉटर की बिमारी इतनी फैली हुई है कि लोग मटके का पानी नहीं पिते, स्थानकों पर की हुई पानी की व्यवस्था से प्राप्त पानी नहीं पीते, यात्रा में घर से पानी साथ में नहीं ले जाते । इन सब अच्छी बातों को छोडकर पन्द्रह से बीस रूपये का एक लीटर पानी खरीदने वाली प्रजा असंस्कारी और दरिद्र बन जाने की पूरी सम्भावना है। विद्यालय में सिखाने लायक यह महत्त्वपूर्ण विषय है।  
 
# विद्यालय के समारोहों में मंच पर जब प्लास्टीक की 'मिनरल वॉटर' की बोतलें दिखाई देती है तब वह व्यापक विचार का और संस्कारयुक्त सोच का अभाव ही दर्शाती है।  
 
# विद्यालय के समारोहों में मंच पर जब प्लास्टीक की 'मिनरल वॉटर' की बोतलें दिखाई देती है तब वह व्यापक विचार का और संस्कारयुक्त सोच का अभाव ही दर्शाती है।  
# साथ में पानी की बोतल रखना और जब मन करे तब बोतल मुँह को लगाकर पानी पीना प्रचलन में आ गया है । तर्क यह दिया जाता है कि पानी स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है और प्यास लगे तब पानी पीना ही चाहिये । परन्तु कक्षा चल रही हो या कार्यक्रम, वार्तालाप चल रहा हो या बैठक, मन चाहे तब पानी पीना असभ्यता का ही लक्षण है। साधारण रूप से कोई कक्षा कोई बैठक, कोई कार्यक्रम बिना विराम के दो घण्टे से अधिक चलता नहीं है । इतना समय बिना पानी के रहना असम्भव नहीं है। इतना संयम करना शरीरस्वास्थ्य के लिये हानिकारक नहीं है और मनोस्वास्थ्य के लिये लाभकारी है। बच्चों और बड़ों में बढती हुई इस आदत को जल्दी ही ठीक करने की आवश्यकता है।
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# साथ में पानी की बोतल रखना और जब मन करे तब बोतल मुँह को लगाकर पानी पीना प्रचलन में आ गया है । तर्क यह दिया जाता है कि पानी स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है और प्यास लगे तब पानी पीना ही चाहिये । परन्तु कक्षा चल रही हो या कार्यक्रम, वार्तालाप चल रहा हो या बैठक, मन चाहे तब पानी पीना असभ्यता का ही लक्षण है। साधारण रूप से कोई कक्षा कोई बैठक, कोई कार्यक्रम बिना विराम के दो घण्टे से अधिक चलता नहीं है । इतना समय बिना पानी के रहना असम्भव नहीं है। इतना संयम करना शरीरस्वास्थ्य के लिये हानिकारक नहीं है और मनोस्वास्थ्य के लिये लाभकारी है। बच्चोंं और बड़ों में बढती हुई इस आदत को जल्दी ही ठीक करने की आवश्यकता है।
 
# यही आदत बिना किसी प्रयोजन के बोतल का पानी फेंक देने की है। केवल मजे मजे में पानी गिराना पैसे बर्बाद करना ही है। इस आदत को भी ठीक करना चाहिये।  
 
# यही आदत बिना किसी प्रयोजन के बोतल का पानी फेंक देने की है। केवल मजे मजे में पानी गिराना पैसे बर्बाद करना ही है। इस आदत को भी ठीक करना चाहिये।  
 
# पैसा खर्च करके खरीदे हुए पानी को एक क्षण में फैंक देने का प्रचलन भी बहुत बढ़ रहा है। पानी की बर्बादी के साथ साथ यह पैसे की भी बर्बादी है। बुद्धि हीनता के साथ साथ यह असंस्कारिता की भी निशानी है।  
 
# पैसा खर्च करके खरीदे हुए पानी को एक क्षण में फैंक देने का प्रचलन भी बहुत बढ़ रहा है। पानी की बर्बादी के साथ साथ यह पैसे की भी बर्बादी है। बुद्धि हीनता के साथ साथ यह असंस्कारिता की भी निशानी है।  

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