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# हमें मानसिकता बनानी पडेगी कि पैदल चलना अच्छा है। उसमें स्वास्थ्य है, खर्च की बचत है, अच्छाई है और इन्हीं कारणों से प्रतिष्ठा भी है।  
 
# हमें मानसिकता बनानी पडेगी कि पैदल चलना अच्छा है। उसमें स्वास्थ्य है, खर्च की बचत है, अच्छाई है और इन्हीं कारणों से प्रतिष्ठा भी है।  
 
# यह केवल मानसिकता का ही नहीं तो व्यवस्था का भी विषय है। हमें बहुत व्यावहारिक होकर विचार करना होगा।  
 
# यह केवल मानसिकता का ही नहीं तो व्यवस्था का भी विषय है। हमें बहुत व्यावहारिक होकर विचार करना होगा।  
# विद्यालय घर से इतना दूर नहीं होना चाहिये कि विद्यार्थी पैदल चलकर न जा सकें । शिशुओं के लिये और प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिये तो वह व्यवस्था अनिवार्य है। यहाँ फिर मानसिकता का प्रश्न अवरोध निर्माण करता है । अच्छे विद्यालय की हमारी कल्पनायें इतनी विचित्र हैं कि हम इन समस्याओं का विचार ही नहीं करते । वास्तव में घर के नजदीक का सरकारी प्राथमिक विद्यालय या कोई भी निजी विद्यालय हमारे लिये अच्छा विद्यालय ही माना जाना चाहिये । अच्छे विद्यालय के सर्वसामान्य नियमों पर जो विद्यालय खरा नहीं उतरता वह अभिभावकों के दबाव से बन्द हो जाना चाहिये । वास्तविक दृश्य यह दिखाई देता है कि अच्छा नहीं है कहकर जिस विद्यालय में आसपास के लोग अपने बच्चों को नहीं भेजते उनमें दूर दूर से बच्चे पढने के लिये आते ही हैं। निःशुल्क सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को अभिभावक ही अच्छा विद्यालय बना सकते हैं। इस सम्भावना को त्याग कर दूर दूर के विद्यालयों में जाना बुद्धिमानी नहीं है ।  
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# विद्यालय घर से इतना दूर नहीं होना चाहिये कि विद्यार्थी पैदल चलकर न जा सकें । शिशुओं के लिये और प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिये तो वह व्यवस्था अनिवार्य है। यहाँ फिर मानसिकता का प्रश्न अवरोध निर्माण करता है । अच्छे विद्यालय की हमारी कल्पनायें इतनी विचित्र हैं कि हम इन समस्याओं का विचार ही नहीं करते । वास्तव में घर के समीप का सरकारी प्राथमिक विद्यालय या कोई भी निजी विद्यालय हमारे लिये अच्छा विद्यालय ही माना जाना चाहिये । अच्छे विद्यालय के सर्वसामान्य नियमों पर जो विद्यालय खरा नहीं उतरता वह अभिभावकों के दबाव से बन्द हो जाना चाहिये । वास्तविक दृश्य यह दिखाई देता है कि अच्छा नहीं है कहकर जिस विद्यालय में आसपास के लोग अपने बच्चों को नहीं भेजते उनमें दूर दूर से बच्चे पढने के लिये आते ही हैं। निःशुल्क सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को अभिभावक ही अच्छा विद्यालय बना सकते हैं। इस सम्भावना को त्याग कर दूर दूर के विद्यालयों में जाना बुद्धिमानी नहीं है ।  
 
# साइकिल पर आनाजाना सबसे अच्छा उपाय है । वास्तव में विद्यालय ने ऐसा नियम बनानाचाहिये किघरसे विद्यालय की दूरी एक किलोमीटर है तो पैदल चलकर ही आना है, साइकिल भी नहीं लाना है और पाँच से सात किलोमीटर है तो साइकिल लेकर ही आना है । विद्यालय में पेट्रोल-डीजल चलित वाहन की अनुमति ही नहीं है । अभिभावक अपने वाहन पर भी छोडने के लिये न आयें।  
 
# साइकिल पर आनाजाना सबसे अच्छा उपाय है । वास्तव में विद्यालय ने ऐसा नियम बनानाचाहिये किघरसे विद्यालय की दूरी एक किलोमीटर है तो पैदल चलकर ही आना है, साइकिल भी नहीं लाना है और पाँच से सात किलोमीटर है तो साइकिल लेकर ही आना है । विद्यालय में पेट्रोल-डीजल चलित वाहन की अनुमति ही नहीं है । अभिभावक अपने वाहन पर भी छोडने के लिये न आयें।  
 
# देखा जाता है कि जहाँ ऐसा नियम बनाया जाता है वहाँ विद्यार्थी या अभिभावक पेट्रोल-डिजल चलित वाहन तो लाते हैं, परन्तु उसे कुछ दूरी पर रखते हैं और बाद में पैदल चलकर विद्यालय आते हैं । यह तो इस बात का निदर्शक है कि विद्यार्थी और उनके मातापिता अप्रामाणिक हैं, नियम का पालन करते नहीं हैं इसलिये अनुशासनहीन हैं और विद्यालय के लोग यह जानते हैं तो भी कुछ नहीं कर सकते इतने प्रभावहीन हैं। वास्तव में इस व्यवस्था को सबके मन में स्वीकृत करवाना विद्यालय का प्रथम दायित्व है।  
 
# देखा जाता है कि जहाँ ऐसा नियम बनाया जाता है वहाँ विद्यार्थी या अभिभावक पेट्रोल-डिजल चलित वाहन तो लाते हैं, परन्तु उसे कुछ दूरी पर रखते हैं और बाद में पैदल चलकर विद्यालय आते हैं । यह तो इस बात का निदर्शक है कि विद्यार्थी और उनके मातापिता अप्रामाणिक हैं, नियम का पालन करते नहीं हैं इसलिये अनुशासनहीन हैं और विद्यालय के लोग यह जानते हैं तो भी कुछ नहीं कर सकते इतने प्रभावहीन हैं। वास्तव में इस व्यवस्था को सबके मन में स्वीकृत करवाना विद्यालय का प्रथम दायित्व है।  

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