Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "फिर भी" to "तथापि"
Line 269: Line 269:  
* हम विद्यालय को भी परिवार कहते हैं तो उसका व्यावहारिक पक्ष यही होना चाहिए।  
 
* हम विद्यालय को भी परिवार कहते हैं तो उसका व्यावहारिक पक्ष यही होना चाहिए।  
 
* विद्यालय में प्रशासन हेतु भी एक व्यवस्था होनी होती है। आज इसके लिए संचालक मंडल होता है। नियुक्तियाँ करना, सरकार के साथ पत्रव्यवहार करना, आवश्यक सामग्री की खरीदी करना, भवन आदि बनवाना, धनसंग्रह करना आदि काम प्रबन्ध समिति के होते हैं । ये सारे काम शिक्षकों को । करना चाहिए। शिक्षकों की नियुक्तियाँ करना प्रधानाचार्य का काम है। प्रशासन की ज़िम्मेदारी शिक्षकों की है । इसमें भी विद्यार्थियों की सहभागिता अपेक्षित है।  
 
* विद्यालय में प्रशासन हेतु भी एक व्यवस्था होनी होती है। आज इसके लिए संचालक मंडल होता है। नियुक्तियाँ करना, सरकार के साथ पत्रव्यवहार करना, आवश्यक सामग्री की खरीदी करना, भवन आदि बनवाना, धनसंग्रह करना आदि काम प्रबन्ध समिति के होते हैं । ये सारे काम शिक्षकों को । करना चाहिए। शिक्षकों की नियुक्तियाँ करना प्रधानाचार्य का काम है। प्रशासन की ज़िम्मेदारी शिक्षकों की है । इसमें भी विद्यार्थियों की सहभागिता अपेक्षित है।  
* इस व्यवस्था हेतु विद्यालय स्वायत्त होने चाहिए । आज की शेष व्यवस्था वैसी ही रखकर यह व्यवस्था नहीं हो सकती। फिर भी संचालक मंडल, शिक्षक, अभिभावक और शासन को साथ मिलकर यह प्रयोग कैसे हो इसका विचार करना चाहिए । एक विद्यालय यदि दस वर्ष की योजना बनाता है तो यह आज भी व्यावहारिक बन सकती है।  
+
* इस व्यवस्था हेतु विद्यालय स्वायत्त होने चाहिए । आज की शेष व्यवस्था वैसी ही रखकर यह व्यवस्था नहीं हो सकती। तथापि संचालक मंडल, शिक्षक, अभिभावक और शासन को साथ मिलकर यह प्रयोग कैसे हो इसका विचार करना चाहिए । एक विद्यालय यदि दस वर्ष की योजना बनाता है तो यह आज भी व्यावहारिक बन सकती है।  
 
* शिक्षकों को इस बात में अग्रसर होना चाहिए । वे स्वयं विद्यालय आरम्भ करें । प्रथम कुछ वर्ष इसे समाज के सहयोग से चलाएं । प्रारम्भ से गुरुदक्षिणा का विषय नहीं हो सकता । प्रयोग व्यावहारिक बन सके अतः बारह वर्ष की आयु के विद्यार्थियों से आरम्भ करें । ये विद्यार्थी बीस वर्ष के होते होते अर्थार्जन आरम्भ करेंगे, साथ ही चयनित छात्र विद्यालय में अध्यापन आरम्भ करेंगे।
 
* शिक्षकों को इस बात में अग्रसर होना चाहिए । वे स्वयं विद्यालय आरम्भ करें । प्रथम कुछ वर्ष इसे समाज के सहयोग से चलाएं । प्रारम्भ से गुरुदक्षिणा का विषय नहीं हो सकता । प्रयोग व्यावहारिक बन सके अतः बारह वर्ष की आयु के विद्यार्थियों से आरम्भ करें । ये विद्यार्थी बीस वर्ष के होते होते अर्थार्जन आरम्भ करेंगे, साथ ही चयनित छात्र विद्यालय में अध्यापन आरम्भ करेंगे।
 
* किसी भी विचार को मूर्त रूप देने के लिए बौद्धिक और मानसिक तैयारी करनी होती है वह इसमें भी करनी चाहिए । शिक्षा के धार्मिक प्रतिमान के लिए यह करणीय कार्य है इसका बौद्धिक स्वीकार प्रथम चरण है। सम्बन्धित लोगोंं की मानसिकता बनाना दूसरा चरण है। व्यावहारिक पक्ष की योजना बनाना तीसरा चरण है।  
 
* किसी भी विचार को मूर्त रूप देने के लिए बौद्धिक और मानसिक तैयारी करनी होती है वह इसमें भी करनी चाहिए । शिक्षा के धार्मिक प्रतिमान के लिए यह करणीय कार्य है इसका बौद्धिक स्वीकार प्रथम चरण है। सम्बन्धित लोगोंं की मानसिकता बनाना दूसरा चरण है। व्यावहारिक पक्ष की योजना बनाना तीसरा चरण है।  

Navigation menu