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=== अध्याय ११ ===
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=== विद्यालय किसका ? ===
 
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प्रबन्धसमिति, शासन, प्रधानाचार्य, आचार्य, अन्य कर्मचारी, छात्र, अभिभावक<ref>भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ३), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> :
=== विद्यालय का समाज में स्थान ===
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==== विद्यालय किसका ? ====
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# प्रबन्धसमिति  
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# शासन  
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# प्रधानाचार्य  
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# आचार्य  
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# अन्य कर्मचारी  
  −
# छात्र  
  −
# अभिभावक
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से लागू होनी चाहिये ?
   
# इन सभी के विद्यालय के साथ के स्वस्थ सम्बन्धोंका व्यवहारिक स्वरूप कैसा होना चाहिये ?
 
# इन सभी के विद्यालय के साथ के स्वस्थ सम्बन्धोंका व्यवहारिक स्वरूप कैसा होना चाहिये ?
 
# इन सभी की आपसी सम्बन्ध की व्यावहारिक भूमिका कैसी होनी चाहिये ?  
 
# इन सभी की आपसी सम्बन्ध की व्यावहारिक भूमिका कैसी होनी चाहिये ?  
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# इन सभी में विद्यालय किस दृष्टि से किसका होता है?
 
# इन सभी में विद्यालय किस दृष्टि से किसका होता है?
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==== प्रश्नावली से पाप्त उत्तर ====
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==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ====
 
इस वैचारिक स्वरूप की प्रश्नावली पर गुजरात के आचार्यो ने अपने कुछ मत प्रकट किए ।
 
इस वैचारिक स्वरूप की प्रश्नावली पर गुजरात के आचार्यो ने अपने कुछ मत प्रकट किए ।
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सरकारी विद्यालयों के व्यवस्थातन्त्र के बारे में, शिक्षकों के बारे में खूब आलोचना होती है तब सरकार और शिक्षकों की क्या प्रतिक्रिया होती है ?
 
सरकारी विद्यालयों के व्यवस्थातन्त्र के बारे में, शिक्षकों के बारे में खूब आलोचना होती है तब सरकार और शिक्षकों की क्या प्रतिक्रिया होती है ?
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देखा यह जाता है कि इन चारों में से किसी भी वर्ग का _ विद्यालय के साथ कोई भावनात्मक सम्बन्ध नहीं होता । सबका अपने अपने स्वार्थ से प्रेरित सम्बन्ध होता है और अपने स्वार्थ की पूर्ति होने पर समाप्त हो जाता है।
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देखा यह जाता है कि इन चारों में से किसी भी वर्ग का विद्यालय के साथ कोई भावनात्मक सम्बन्ध नहीं होता । सबका अपने अपने स्वार्थ से प्रेरित सम्बन्ध होता है और अपने स्वार्थ की पूर्ति होने पर समाप्त हो जाता है।
    
विद्यार्थी अपनी पढाई हेतु विद्यालय से जुडा है, विद्यालय के भवन से, व्यवस्थातन्त्र से, नीतिनियमों से उसका कोई लेना देना नहीं है । पढाई के कार्य में भी प्रत्यक्ष ज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं, परीक्षा के परिणाम के साथ ही सम्बन्ध है । इसलिये परीक्षा समाप्त होते ही अध्ययन से, अध्यापकों से, विद्यालय की व्यवस्था से, विद्यालय की रीतिनीति से उसका सम्बन्ध समाप्त हो जाता है । परीक्षा में उत्तीर्ण होने के अलावा उसे और कुछ नहीं करना है । इसलिये विद्यालय के भवन को आग लगे, या शिक्षकों पर कोई आरोप लगे या विद्यालय की प्रतिष्ठा दांव पर लगे उसका कोई नुकसान नहीं होता । यह हकीकत बताती है कि विद्यालय विद्यार्थियों का तो नहीं है । वे विद्यालयके लिये कुछ भी नहीं करेंगे ।
 
विद्यार्थी अपनी पढाई हेतु विद्यालय से जुडा है, विद्यालय के भवन से, व्यवस्थातन्त्र से, नीतिनियमों से उसका कोई लेना देना नहीं है । पढाई के कार्य में भी प्रत्यक्ष ज्ञान से कोई सम्बन्ध नहीं, परीक्षा के परिणाम के साथ ही सम्बन्ध है । इसलिये परीक्षा समाप्त होते ही अध्ययन से, अध्यापकों से, विद्यालय की व्यवस्था से, विद्यालय की रीतिनीति से उसका सम्बन्ध समाप्त हो जाता है । परीक्षा में उत्तीर्ण होने के अलावा उसे और कुछ नहीं करना है । इसलिये विद्यालय के भवन को आग लगे, या शिक्षकों पर कोई आरोप लगे या विद्यालय की प्रतिष्ठा दांव पर लगे उसका कोई नुकसान नहीं होता । यह हकीकत बताती है कि विद्यालय विद्यार्थियों का तो नहीं है । वे विद्यालयके लिये कुछ भी नहीं करेंगे ।
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शिक्षकों का भाव कैसा है ?हम सरकार के अथवा संचालकों के विद्यालय में नौकरी करते हैं । वेतन के बदले में पढाना हमारा काम है । पढाने के सम्बन्ध में जो नियम कानून हैं उनको हम मानेंगे, उनका पालन करेंगे । पढाने के सम्बन्ध में हमारे जो अधिकार हैं वे माँगेंगे । विद्यालय का समय पूरा हुआ हमारा काम भी पूरा हुआ । शेष समय हमारा है । उस शेष समय में विद्यालय का विचार करने की हमारी जिम्मेदारी नहीं।
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शिक्षकों का भाव कैसा है ?हम सरकार के अथवा संचालकों के विद्यालय में नौकरी करते हैं । वेतन के बदले में पढाना हमारा काम है। पढाने के सम्बन्ध में जो नियम कानून हैं उनको हम मानेंगे, उनका पालन करेंगे । पढाने के सम्बन्ध में हमारे जो अधिकार हैं वे माँगेंगे । विद्यालय का समय पूरा हुआ हमारा काम भी पूरा हुआ । शेष समय हमारा है । उस शेष समय में विद्यालय का विचार करने की हमारी जिम्मेदारी नहीं।
    
संचालक कहते हैं कि विद्यालय के भवन की मालिकी हमारी है, हमने शिक्षकों को नियुक्त किया है, हमने विद्यर्थियों को प्रवेश दिया है इसलिये हमारा अधिकार है परन्तु पढाने का काम हमारा नहीं है, उसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं है। अध्ययन विषयक, विद्यार्थियों के चरित्र विषयक कोई अनहोनी होती है तो उसकी जिम्मेदारी शिक्षकों और अभिभावकों की है । हम उनके विरुद्ध कार्यवाही करेंगे, उन्हें दण्ड देंगे।
 
संचालक कहते हैं कि विद्यालय के भवन की मालिकी हमारी है, हमने शिक्षकों को नियुक्त किया है, हमने विद्यर्थियों को प्रवेश दिया है इसलिये हमारा अधिकार है परन्तु पढाने का काम हमारा नहीं है, उसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं है। अध्ययन विषयक, विद्यार्थियों के चरित्र विषयक कोई अनहोनी होती है तो उसकी जिम्मेदारी शिक्षकों और अभिभावकों की है । हम उनके विरुद्ध कार्यवाही करेंगे, उन्हें दण्ड देंगे।
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शिक्षा संस्थाओं को लेकर चित्र आज ऐसा है। विद्यालय के भवन की मालिकी संचालकों की इसलिये उनका मालिकयत का सम्बन्ध, सरकार का नियन्त्रक के नाते सम्बन्ध. शिक्षकों का अपने वेतन का सम्बन्ध और विद्यार्थियों का अपनी परीक्षा से सम्बन्ध । इसमें विद्या कहाँ है ? विद्या की प्रतिष्ठा कहाँ है ? विद्या की साधना का तो प्रश्न ही नहीं है । ज्ञानसाधना का मिशन होने की सम्भावना ही नहीं है।
 
शिक्षा संस्थाओं को लेकर चित्र आज ऐसा है। विद्यालय के भवन की मालिकी संचालकों की इसलिये उनका मालिकयत का सम्बन्ध, सरकार का नियन्त्रक के नाते सम्बन्ध. शिक्षकों का अपने वेतन का सम्बन्ध और विद्यार्थियों का अपनी परीक्षा से सम्बन्ध । इसमें विद्या कहाँ है ? विद्या की प्रतिष्ठा कहाँ है ? विद्या की साधना का तो प्रश्न ही नहीं है । ज्ञानसाधना का मिशन होने की सम्भावना ही नहीं है।
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देश में अनेक विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय हैं जहाँ अध्ययन - अध्यापन अच्छा होता है और ज्ञानसाधना भी होती है परन्तु वह व्यक्तियों के कारण से होता है. व्यवस्था के कारण से नहीं। भले ही व्यक्तियों के कारण हो, उसका लाभ अवश्य होता है । परन्तु यह अपवाद रूप स्थिति है। सार्वत्रिक स्थिति तो सरोकार विहीनता की ही
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देश में अनेक विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय हैं जहाँ अध्ययन - अध्यापन अच्छा होता है और ज्ञानसाधना भी होती है परन्तु वह व्यक्तियों के कारण से होता है. व्यवस्था के कारण से नहीं। भले ही व्यक्तियों के कारण हो, उसका लाभ अवश्य होता है । परन्तु यह अपवाद रूप स्थिति है। सार्वत्रिक स्थिति तो सरोकार विहीनता की ही है ।
    
==== इस का उपाय क्या है ? ====
 
==== इस का उपाय क्या है ? ====
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=== विद्यालय का शैक्षिक भ्रमण कार्यक्रम ===
 
=== विद्यालय का शैक्षिक भ्रमण कार्यक्रम ===
# '''शैक्षिक भ्रमण का अर्थ क्या है ?'''
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# शैक्षिक भ्रमण का अर्थ क्या है ?
# '''भ्रमण के लिये स्थान का चयन किस प्रकार से करना चाहिये ?'''
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# भ्रमण के लिये स्थान का चयन किस प्रकार से करना चाहिये ?
# '''भ्रमण के समय शैक्षिक व्यवहार कैसा होता है ?'''
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# भ्रमण के समय शैक्षिक व्यवहार कैसा होता है ?
# '''भ्रमण के समय छात्र एवं आचायों के व्यवहार के सम्बन्ध में किन किन बातों पर विचार करना चाहिये ?'''
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# भ्रमण के समय छात्र एवं आचायों के व्यवहार के सम्बन्ध में किन किन बातों पर विचार करना चाहिये ?
# '''यदि भ्रमण शैक्षिक है तो वह सभी छात्रों के लिये होना चाहिये । इसकी व्यवस्था कैसे कर सकते हैं?'''
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# यदि भ्रमण शैक्षिक है तो वह सभी छात्रों के लिये होना चाहिये । इसकी व्यवस्था कैसे कर सकते हैं?
# '''भ्रमण की आर्थिक व्यवस्था के सम्बन्ध में क्या विचार करना चाहिये ?'''
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# भ्रमण की आर्थिक व्यवस्था के सम्बन्ध में क्या विचार करना चाहिये ?
# '''शैक्षिक भ्रमण का पाठ्यक्रम के साथ क्या सम्बन्ध है ?'''
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# शैक्षिक भ्रमण का पाठ्यक्रम के साथ क्या सम्बन्ध है ?
# '''भ्रमण की पूर्वतैयारी एवं भ्रमण का अनुवर्ती कार्य - ये दोनों कैसे होते हैं ?'''
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# भ्रमण की पूर्वतैयारी एवं भ्रमण का अनुवर्ती कार्य - ये दोनों कैसे होते हैं ?
# '''भ्रमण के माध्यम से सांस्कृतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय विकास किस प्रकार से होता है ?'''
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# भ्रमण के माध्यम से सांस्कृतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय विकास किस प्रकार से होता है ?
# '''भ्रमण के माध्यम से व्यावहारिक ज्ञान का विकास किस प्रकार से होता है ?'''
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# भ्रमण के माध्यम से व्यावहारिक ज्ञान का विकास किस प्रकार से होता है ?
    
==== प्रश्नावली से पाप्त उत्तर ====
 
==== प्रश्नावली से पाप्त उत्तर ====
विद्याभारती केल प्रान्त के कृष्णदासजीने प्रान्त के आचार्य प्रश्नावली भरवायी है । भाषाकी समस्या के कारण प्रश्न और उत्तर समझने में दोनो तरफ से कठीनाई महसूस हुई । फिर भी उत्साह से यह कार्य किया गया अतः चर्चा के माध्यम से जो समझ में आया उसे अभिमत मे स्थान दिया है । आचार्य एवं अभिभावकों ने इस प्रश्नावली के संबंध मे कुछ विचार किया है । निसर्ग समृद्ध भूमि का जिन्हें प्रत्यक्ष अनुभव है । अतः निसर्ग के साथ रहने हेतू भ्रमण (ट्रिप) योजना करना यही विचार प्रधान मानकर प्रश्नावली के उत्तर लिखे गये । भ्रमण के लिए अच्छे स्थान एवं उनके नाम बताए गये । भ्रमण समय में कौन सी सावधानीयाँ रखना इसका भी विचार हुआ परन्तु भ्रमण के साथ शैक्षिक बातों का विचार बहुत कम रहा ।
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विद्याभारती केल प्रान्त के कृष्णदासजीने प्रान्त के आचार्य प्रश्नावली भरवायी है । भाषा की समस्या के कारण प्रश्न और उत्तर समझने में दोनो तरफ से कठिनाई महसूस हुई । फिर भी उत्साह से यह कार्य किया गया अतः चर्चा के माध्यम से जो समझ में आया उसे अभिमत मे स्थान दिया है । आचार्य एवं अभिभावकों ने इस प्रश्नावली के संबंध मे कुछ विचार किया है । निसर्ग समृद्ध भूमि का जिन्हें प्रत्यक्ष अनुभव है । अतः निसर्ग के साथ रहने हेतू भ्रमण (ट्रिप) योजना करना यही विचार प्रधान मानकर प्रश्नावली के उत्तर लिखे गये। भ्रमण के लिए अच्छे स्थान एवं उनके नाम बताए गये । भ्रमण समय में कौन सी सावधानीयाँ रखना इसका भी विचार हुआ परन्तु भ्रमण के साथ शैक्षिक बातों का विचार बहुत कम रहा ।
    
अत्यंत विचारपूर्ण और गहराई मे विचार करने वाली यह दस प्रश्नों की प्रश्नावली थी। देखना और निरीक्षण करना दोनों भी दृश्येंद्रिय से की जानेवाली क्रियाएँ हैं । देखना आँखोंसे होता है परंतु निरीक्षण मे आँखों के साथ मन और बुद्धी भी जुड़ते हैं । उसी प्रकार भ्रमण और शैक्षिक भ्रमण में भी अंतर है । आज विद्यालयों में भ्रमण कार्यक्रम का अर्थ भ्रमण इतना ही किया जाता है ।
 
अत्यंत विचारपूर्ण और गहराई मे विचार करने वाली यह दस प्रश्नों की प्रश्नावली थी। देखना और निरीक्षण करना दोनों भी दृश्येंद्रिय से की जानेवाली क्रियाएँ हैं । देखना आँखोंसे होता है परंतु निरीक्षण मे आँखों के साथ मन और बुद्धी भी जुड़ते हैं । उसी प्रकार भ्रमण और शैक्षिक भ्रमण में भी अंतर है । आज विद्यालयों में भ्रमण कार्यक्रम का अर्थ भ्रमण इतना ही किया जाता है ।
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शैक्षिक भ्रमण से इतिहास भूगोल समाजविज्ञान आदि _ विषयों का अध्ययन होता है । भ्रमण से पूर्व योग्य सूचनाएँ सावधानी एवं पूर्वजानकारी (स्थान संदर्भ में) और वापसी के बाद उस विषय में चर्चा लेखन प्रश्नावलियाँ तैयार करना आदि अवश्य करें।
 
शैक्षिक भ्रमण से इतिहास भूगोल समाजविज्ञान आदि _ विषयों का अध्ययन होता है । भ्रमण से पूर्व योग्य सूचनाएँ सावधानी एवं पूर्वजानकारी (स्थान संदर्भ में) और वापसी के बाद उस विषय में चर्चा लेखन प्रश्नावलियाँ तैयार करना आदि अवश्य करें।
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कुंभ मेला, वेदपाठशाला आदि स्थानों में जाकर संस्कृति परिचय होता है। सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास होता है । पूर्व के जमाने में संतवृन्द, शंकराचार्य पैदल यात्रा करते थे। उन्हें देशकाल परिस्थिति का आकलन होता था। वह शैक्षिक भ्रमण था। आज वह तत्त्व ध्यान में रखकर परिस्थिति एवं छात्रों की आयु क्षमता ध्यान में लेते हुए योग्य परिवर्तन करके विद्यालयों ने शैक्षिक भ्रमण की योजना बनानी चाहिये ।
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कुंभ मेला, वेदपाठशाला आदि स्थानों में जाकर संस्कृति परिचय होता है। सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास होता है । पूर्व के जमाने में संतवृन्द, शंकराचार्य पैदल यात्रा करते थे। उन्हें देशकाल परिस्थिति का आकलन होता था। वह शैक्षिक भ्रमण था। आज वह तत्व ध्यान में रखकर परिस्थिति एवं छात्रों की आयु क्षमता ध्यान में लेते हुए योग्य परिवर्तन करके विद्यालयों ने शैक्षिक भ्रमण की योजना बनानी चाहिये ।
    
==== विमर्श ====
 
==== विमर्श ====
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८. अपने ही नगर का भूगोल और दर्शनीय स्थान देखने से भ्रमण कार्यक्रम की शुरुआत होती है। आगे चलकर अपना जिला, अपना राज्य और अपने देश का भ्रमण करना चाहिये।  
 
८. अपने ही नगर का भूगोल और दर्शनीय स्थान देखने से भ्रमण कार्यक्रम की शुरुआत होती है। आगे चलकर अपना जिला, अपना राज्य और अपने देश का भ्रमण करना चाहिये।  
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९. कुछ उदाहरण देखें...
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९. कुछ उदाहरण देखें:
 
* कक्षा में यदि शिवाजी महाराज का इतिहास पढ़ना है तो दो प्रकार से भ्रमण गट बन सकते हैं । एक गट महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के गढ़ और किले देखने के लिये और दसरा गट आगरा और दिल्ली के किले, जहाँ शिवाजी महाराज को औरंगजेबने कैद में रखा था और मिठाई की टोकरियों में बैठकर पुत्र के साथ वे कैद से भागकर वापस अपनी राजधानी रायगढ़ पहुंचे थे।  
 
* कक्षा में यदि शिवाजी महाराज का इतिहास पढ़ना है तो दो प्रकार से भ्रमण गट बन सकते हैं । एक गट महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के गढ़ और किले देखने के लिये और दसरा गट आगरा और दिल्ली के किले, जहाँ शिवाजी महाराज को औरंगजेबने कैद में रखा था और मिठाई की टोकरियों में बैठकर पुत्र के साथ वे कैद से भागकर वापस अपनी राजधानी रायगढ़ पहुंचे थे।  
 
* संस्कृति विषय में बारह ज्योतिर्लिंग और चार धाम का वर्णन आता है। वहाँ जाकर उन्हें देखने की योजना बनानी चाहिये ।  
 
* संस्कृति विषय में बारह ज्योतिर्लिंग और चार धाम का वर्णन आता है। वहाँ जाकर उन्हें देखने की योजना बनानी चाहिये ।  
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अनुभव भी करवाते हैं; नृत्य, गीत-संगीत, आनन्द भी देते हैं और मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं । श्रेय और प्रेय को एकदूसरे में ओतप्रोत बनाने की यह भारतीय सांस्कृतिक दृष्टि है जो बर्तन साफ करने के, पानी भरने के, मिट्टी कूटने के, भूमि जोतने के, कपडा बुनने के, लकडी काटने के कामों में सुन्दरता, आनन्द, मुक्ति की साधना और लोककल्याण के सभी आयामों को एकत्र गूंथती है । यह समग्रता का दर्शन है ।
 
अनुभव भी करवाते हैं; नृत्य, गीत-संगीत, आनन्द भी देते हैं और मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं । श्रेय और प्रेय को एकदूसरे में ओतप्रोत बनाने की यह भारतीय सांस्कृतिक दृष्टि है जो बर्तन साफ करने के, पानी भरने के, मिट्टी कूटने के, भूमि जोतने के, कपडा बुनने के, लकडी काटने के कामों में सुन्दरता, आनन्द, मुक्ति की साधना और लोककल्याण के सभी आयामों को एकत्र गूंथती है । यह समग्रता का दर्शन है ।
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अतः विद्यालयों में केवल रंगमंच कार्यक्रम अर्थात् नृत्य, गीत, नाटक और रंगोली, चित्र, सुशोभन ही सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है । ये सब भी अपने आपमें सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हैं । उनके साथ जब शुभ और पवित्र भाव, शुद्ध आनन्द और मुक्ति की भावना जुडती हैं तब वे सांस्कृतिक कार्यक्रम कहे जाने योग्य होते हैं, अन्यथा वे केवल मनोरंजन कार्यक्रम होते हैं । संस्कृति के मूल तत्त्वों के अभाव में तो वे भडकाऊ, उत्तेजक और निकृष्ट मनोवृत्तियों का ही प्रकटीकरण बन जाते हैं । अतः पहली बात तो जिन्हें हम एक रूढि के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रम कहते हैं उन्हें परिष्कृत करने की अवश्यकता है । इसके लिये कुल मिलाकर रुचि परिष्कृत करने की आवश्यकता होती है।
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अतः विद्यालयों में केवल रंगमंच कार्यक्रम अर्थात् नृत्य, गीत, नाटक और रंगोली, चित्र, सुशोभन ही सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है । ये सब भी अपने आपमें सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हैं । उनके साथ जब शुभ और पवित्र भाव, शुद्ध आनन्द और मुक्ति की भावना जुडती हैं तब वे सांस्कृतिक कार्यक्रम कहे जाने योग्य होते हैं, अन्यथा वे केवल मनोरंजन कार्यक्रम होते हैं । संस्कृति के मूल तत्वों के अभाव में तो वे भडकाऊ, उत्तेजक और निकृष्ट मनोवृत्तियों का ही प्रकटीकरण बन जाते हैं । अतः पहली बात तो जिन्हें हम एक रूढि के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रम कहते हैं उन्हें परिष्कृत करने की अवश्यकता है । इसके लिये कुल मिलाकर रुचि परिष्कृत करने की आवश्यकता होती है।
    
साथ ही शरीर के अंगउपांगों से होने वाले सभी छोटे छोटे काम उत्तम और सही पद्धति से करने की आवश्यकता होती है । उदाहरण के लिये कागज चिपकाने का, कपडे की तह करने का, बस्ते में सामान जमाने का, कपडे पहनने का काम भी उत्तम पद्धति से करने का अभ्यास बनाना चाहिये ।
 
साथ ही शरीर के अंगउपांगों से होने वाले सभी छोटे छोटे काम उत्तम और सही पद्धति से करने की आवश्यकता होती है । उदाहरण के लिये कागज चिपकाने का, कपडे की तह करने का, बस्ते में सामान जमाने का, कपडे पहनने का काम भी उत्तम पद्धति से करने का अभ्यास बनाना चाहिये ।
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सम्पूर्ण विद्यालय परिसर यदि स्वच्छ, सुशोभित, शान्त सौहार्दपूर्ण, स्वागतोत्सुक है तो वह सांस्कृतिक है । यही संस्कारक्षम वातावरण है ।
 
सम्पूर्ण विद्यालय परिसर यदि स्वच्छ, सुशोभित, शान्त सौहार्दपूर्ण, स्वागतोत्सुक है तो वह सांस्कृतिक है । यही संस्कारक्षम वातावरण है ।
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संस्कृति मनुष्य के व्यक्तित्व के सारे निम्न स्तर के, निकृष्ट दर्जे के तत्त्वों को दूर कर उसे शिष्ट, सभ्य, शुद्ध, उच्च, उत्कृष्ट बनाती है । यही उसका विकास है । शिक्षा के इस प्रकार का विकास अपेक्षित है । यह विकास शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक सभी स्तरों पर होता है । ऐसा विकास सिद्ध होता है इसलिये धर्म और संस्कृति को साथ साथ बोलने का प्रचलन है ।
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संस्कृति मनुष्य के व्यक्तित्व के सारे निम्न स्तर के, निकृष्ट दर्जे के तत्वों को दूर कर उसे शिष्ट, सभ्य, शुद्ध, उच्च, उत्कृष्ट बनाती है । यही उसका विकास है । शिक्षा के इस प्रकार का विकास अपेक्षित है । यह विकास शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक सभी स्तरों पर होता है । ऐसा विकास सिद्ध होता है इसलिये धर्म और संस्कृति को साथ साथ बोलने का प्रचलन है ।
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विद्यालय के सांस्कृतिक स्वरूप की संकल्पना को ही प्रथम सुसंस्कृत बनाने की आवश्यकता है । मनोयोग से __इन बातों का चिन्तन करने से यह किया जा सकता है, __ सतही बातचीत या विचार से यह नहीं होता है ।
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विद्यालय के सांस्कृतिक स्वरूप की संकल्पना को ही प्रथम सुसंस्कृत बनाने की आवश्यकता है । मनोयोग से इन बातों का चिन्तन करने से यह किया जा सकता है, सतही बातचीत या विचार से यह नहीं होता है ।
    
=== विद्यालय की प्रतिष्ठा ===
 
=== विद्यालय की प्रतिष्ठा ===
'''१. विद्यालय की प्रतिष्ठा का क्या अर्थ है ?'''
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१. विद्यालय की प्रतिष्ठा का क्या अर्थ है ?
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'''२. विद्यालय की प्रतिष्ठा का निम्नलिखित बातों के साथ क्या सम्बन्ध है ?'''
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२. विद्यालय की प्रतिष्ठा का निम्नलिखित बातों के साथ क्या सम्बन्ध है ?
 
# परीक्षा परिणाम
 
# परीक्षा परिणाम
 
# सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास
 
# सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास
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# संख्या, भवन, शुल्क, सुविधायें
 
# संख्या, भवन, शुल्क, सुविधायें
 
# अंग्रेजी माध्यम
 
# अंग्रेजी माध्यम
'''३. उपर्युक्त सूची में किन बातों का आग्रह उपयुक्त है और किन बातों का अनुपयुक्त ?'''
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३. उपर्युक्त सूची में किन बातों का आग्रह उपयुक्त है और किन बातों का अनुपयुक्त ?
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'''४. विद्यालय की प्रतिष्ठा एवं विद्यालय के लक्ष्य में कितना सम्बन्ध होना चाहिये ? सम्बन्ध न होने से क्या क्या उपाय करने चाहिये ?'''
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४. विद्यालय की प्रतिष्ठा एवं विद्यालय के लक्ष्य में कितना सम्बन्ध होना चाहिये ? सम्बन्ध न होने से क्या क्या उपाय करने चाहिये ?
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'''५. समसम्बन्ध न होने पर कितने समझौते करने चाहिये ?'''
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५. समसम्बन्ध न होने पर कितने समझौते करने चाहिये ?
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'''६. प्रतिष्ठा के मापदण्ड किस आधार पर बनते हैं ?'''
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६. प्रतिष्ठा के मापदण्ड किस आधार पर बनते हैं ?
    
चार पाँच विद्यालयों को यह प्रश्नावली भेजी थी । परंतु किसी से भी उत्तर प्राप्त नहीं हुए । प्रश्न तो सरल थे । उसका शब्दार्थ और ध्वन्यार्थ भी हम समझते तो है परंतु आज शिक्षा की गाडी जो अत्यंत विपरीत पटरी पर जा रही है इसके कारण सत्य तो जानते है व्यवहार उलटा हो रहा है यह जानकर सरल प्रश्न भी उत्तर लिखने में कठीन लगते होंगे ऐसा अनुमान है ।
 
चार पाँच विद्यालयों को यह प्रश्नावली भेजी थी । परंतु किसी से भी उत्तर प्राप्त नहीं हुए । प्रश्न तो सरल थे । उसका शब्दार्थ और ध्वन्यार्थ भी हम समझते तो है परंतु आज शिक्षा की गाडी जो अत्यंत विपरीत पटरी पर जा रही है इसके कारण सत्य तो जानते है व्यवहार उलटा हो रहा है यह जानकर सरल प्रश्न भी उत्तर लिखने में कठीन लगते होंगे ऐसा अनुमान है ।
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==== श्रेष्ठ शिक्षक विद्यालय की प्रतिष्ठा है । ====
 
==== श्रेष्ठ शिक्षक विद्यालय की प्रतिष्ठा है । ====
विद्यालय की प्रतिष्ठा इसमें है कि श्रेष्ठ शिक्षकों का आदर होता है, जहाँ शिक्षकों का सम्मान नहीं, स्वतन्त्रता नहीं वह विद्यालय अच्छा नहीं माना जाता । जो शिक्षक नौकरी करने के लिये तैयार हो जाते हैं वे शिक्षक शिक्षक नहीं और जो शिक्षकों को नौकर बनने के लिये मजबूर करती है वह व्यवस्था श्रेष्ठ व्यवस्था नहीं । ऐसी व्यवस्था में शिक्षकों का सम्मान भी नौकरों के सम्मान की तरह किया जाता है । ऐसे विद्यालय की भारतीय मानकों के अनुसार कोई प्रतिष्ठा नहीं, पाश्चात्य मानकों के अनुसार भले ही हो ।
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विद्यालय की प्रतिष्ठा इसमें है कि श्रेष्ठ शिक्षकों का आदर होता है, जहाँ शिक्षकों का सम्मान नहीं, स्वतन्त्रता नहीं वह विद्यालय अच्छा नहीं माना जाता । जो शिक्षक नौकरी करने के लिये तैयार हो जाते हैं वे शिक्षक शिक्षक नहीं और जो शिक्षकों को नौकर बनने के लिये मजबूर करती है वह व्यवस्था श्रेष्ठ व्यवस्था नहीं । ऐसी व्यवस्था में शिक्षकों का सम्मान भी नौकरों के सम्मान की तरह किया जाता है। ऐसे विद्यालय की भारतीय मानकों के अनुसार कोई प्रतिष्ठा नहीं, पाश्चात्य मानकों के अनुसार भले ही हो ।
    
शिक्षकों और विद्यार्थियों का चरित्र विद्यालय की प्रतिष्ठा का विषय है । शिक्षकों में शराब, जुआ, भ्रष्टाचार जैसे व्यसन न हों, अध्यापन कार्य में अप्रामाणिकता न हो और आचारविचार श्रेष्ठ हों यह शिक्षकों का चरित्र है और शिक्षकों के प्रति आदर और श्रद्धा हो, अध्ययन में तत्परता और परिश्रमशीलता हों तथा सद्गुण और सदाचार हों यह विद्यार्थियों का चरित्र है । इस विद्यालय में परीक्षा में कभी नकल नहीं होती, परीक्षा विषयक कोई भ्रष्टाचार नहीं होता, जिस विद्यालय के विद्यार्थियों को ट्यूशन या कोचिंग क्लास की आवश्यकता नहीं होती, जिस विद्यालय में विद्यार्थियों के प्रवेश या शिक्षकों की नियुक्ति हेतु डोनेशन नहीं लिया जाता, जिस विद्यालय में अधिक वेतन पर हस्ताक्षर करवाकर कम वेतन नहीं दिया जाता आदि बातें जब सुनिश्चित होती हैं तब वह विद्यालय समाज में प्रतिष्ठित होता है ।
 
शिक्षकों और विद्यार्थियों का चरित्र विद्यालय की प्रतिष्ठा का विषय है । शिक्षकों में शराब, जुआ, भ्रष्टाचार जैसे व्यसन न हों, अध्यापन कार्य में अप्रामाणिकता न हो और आचारविचार श्रेष्ठ हों यह शिक्षकों का चरित्र है और शिक्षकों के प्रति आदर और श्रद्धा हो, अध्ययन में तत्परता और परिश्रमशीलता हों तथा सद्गुण और सदाचार हों यह विद्यार्थियों का चरित्र है । इस विद्यालय में परीक्षा में कभी नकल नहीं होती, परीक्षा विषयक कोई भ्रष्टाचार नहीं होता, जिस विद्यालय के विद्यार्थियों को ट्यूशन या कोचिंग क्लास की आवश्यकता नहीं होती, जिस विद्यालय में विद्यार्थियों के प्रवेश या शिक्षकों की नियुक्ति हेतु डोनेशन नहीं लिया जाता, जिस विद्यालय में अधिक वेतन पर हस्ताक्षर करवाकर कम वेतन नहीं दिया जाता आदि बातें जब सुनिश्चित होती हैं तब वह विद्यालय समाज में प्रतिष्ठित होता है ।

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