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==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ====
 
==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ====
विद्याभारती केवल प्रान्त के कृष्णदासजीने प्रान्त के आचार्य प्रश्नावली भरवायी है। भाषा की समस्या के कारण प्रश्न और उत्तर समझने में दोनो तरफ से कठिनाई अनुभव हुई। फिर भी उत्साह से यह कार्य किया गया अतः चर्चा के माध्यम से जो समझ में आया उसे अभिमत मे स्थान दिया है। आचार्य एवं अभिभावकों ने इस प्रश्नावली के संबंध मे कुछ विचार किया है। निसर्ग समृद्ध भूमि का जिन्हें प्रत्यक्ष अनुभव है। अतः निसर्ग के साथ रहने हेतू भ्रमण (ट्रिप) योजना करना यही विचार प्रधान मानकर प्रश्नावली के उत्तर लिखे गये। भ्रमण के लिए अच्छे स्थान एवं उनके नाम बताए गये। भ्रमण समय में कौन सी सावधानीयाँ रखना इसका भी विचार हुआ परन्तु भ्रमण के साथ शैक्षिक बातों का विचार बहुत कम रहा।
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विद्याभारती केवल प्रान्त के कृष्णदासजीने प्रान्त के आचार्य प्रश्नावली भरवायी है। भाषा की समस्या के कारण प्रश्न और उत्तर समझने में दोनो तरफ से कठिनाई अनुभव हुई। तथापि उत्साह से यह कार्य किया गया अतः चर्चा के माध्यम से जो समझ में आया उसे अभिमत मे स्थान दिया है। आचार्य एवं अभिभावकों ने इस प्रश्नावली के संबंध मे कुछ विचार किया है। निसर्ग समृद्ध भूमि का जिन्हें प्रत्यक्ष अनुभव है। अतः निसर्ग के साथ रहने हेतू भ्रमण (ट्रिप) योजना करना यही विचार प्रधान मानकर प्रश्नावली के उत्तर लिखे गये। भ्रमण के लिए अच्छे स्थान एवं उनके नाम बताए गये। भ्रमण समय में कौन सी सावधानीयाँ रखना इसका भी विचार हुआ परन्तु भ्रमण के साथ शैक्षिक बातों का विचार बहुत कम रहा।
    
अत्यंत विचारपूर्ण और गहराई मे विचार करने वाली यह दस प्रश्नों की प्रश्नावली थी। देखना और निरीक्षण करना दोनों भी दृश्येंद्रिय से की जानेवाली क्रियाएँ हैं। देखना आँखोंसे होता है परंतु निरीक्षण मे आँखों के साथ मन और बुद्धी भी जुड़ते हैं। उसी प्रकार भ्रमण और शैक्षिक भ्रमण में भी अंतर है। आज विद्यालयों में भ्रमण कार्यक्रम का अर्थ भ्रमण इतना ही किया जाता है।
 
अत्यंत विचारपूर्ण और गहराई मे विचार करने वाली यह दस प्रश्नों की प्रश्नावली थी। देखना और निरीक्षण करना दोनों भी दृश्येंद्रिय से की जानेवाली क्रियाएँ हैं। देखना आँखोंसे होता है परंतु निरीक्षण मे आँखों के साथ मन और बुद्धी भी जुड़ते हैं। उसी प्रकार भ्रमण और शैक्षिक भ्रमण में भी अंतर है। आज विद्यालयों में भ्रमण कार्यक्रम का अर्थ भ्रमण इतना ही किया जाता है।
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# भ्रमण में जाने से पूर्व स्थानों की पूरी जानकारी, यात्रा का उद्देश्य, वहाँ जाकर करने के काम, वापस आकर देने के वृत्त हेतु करने के कार्य की जानकारी देनी चाहिये।  
 
# भ्रमण में जाने से पूर्व स्थानों की पूरी जानकारी, यात्रा का उद्देश्य, वहाँ जाकर करने के काम, वापस आकर देने के वृत्त हेतु करने के कार्य की जानकारी देनी चाहिये।  
 
# यात्रा के दौरान जिन आचारों का पालन करना है उस सम्बन्ध में उचित पद्धति से विद्यार्थियों का प्रबोधन करना चाहिये। यह बात बहुत कठिन है क्योंकि भ्रमण के साथ विद्यार्थियों की उन्मुक्तता की वृत्ति जुड़ी हुई होती है। दैनन्दिन जीवन में भी उनकी अभिमुखता शिक्षा, संस्कृति, देश आदि की ओर बनाना कठिन हो जाता है। सारा विद्यार्थीजगत भ्रमण की ओर मनोरंजन की दृष्टि से देखता है तब एक विद्यालय के विद्यार्थियों को यात्रा के दौरान शिष्ट व्यवहार करने को कहना कठिन ही होता है तथापि कुछ विद्यालयों के उदाहरण ऐसे भी हैं जो इस बात को सम्भव बनाते हैं। उनके अनुभव से हम कह सकते हैं कि यह कार्य कठिन अवश्य होगा, असम्भव नहीं है।  
 
# यात्रा के दौरान जिन आचारों का पालन करना है उस सम्बन्ध में उचित पद्धति से विद्यार्थियों का प्रबोधन करना चाहिये। यह बात बहुत कठिन है क्योंकि भ्रमण के साथ विद्यार्थियों की उन्मुक्तता की वृत्ति जुड़ी हुई होती है। दैनन्दिन जीवन में भी उनकी अभिमुखता शिक्षा, संस्कृति, देश आदि की ओर बनाना कठिन हो जाता है। सारा विद्यार्थीजगत भ्रमण की ओर मनोरंजन की दृष्टि से देखता है तब एक विद्यालय के विद्यार्थियों को यात्रा के दौरान शिष्ट व्यवहार करने को कहना कठिन ही होता है तथापि कुछ विद्यालयों के उदाहरण ऐसे भी हैं जो इस बात को सम्भव बनाते हैं। उनके अनुभव से हम कह सकते हैं कि यह कार्य कठिन अवश्य होगा, असम्भव नहीं है।  
# भ्रमण के दौरान लेखन पुस्तिका में अनुभव लिखकर स्मृति में रखने लायक स्थानों के छायाचित्र लेना, सम्बन्धित लोगों के साथ वार्तालाप करना, वहाँ यदि कोई गाइड है तो उसे प्रश्न पूछना आदि बातों में शिक्षकों ने विद्यार्थीयों का मार्गदर्शन और सहायता करनी चाहिये। एक स्थान पर बार बार जाना होता नहीं है अतः पूर्ण रूप से अनुभव लेना आवश्यक है।  
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# भ्रमण के दौरान लेखन पुस्तिका में अनुभव लिखकर स्मृति में रखने लायक स्थानों के छायाचित्र लेना, सम्बन्धित लोगोंं के साथ वार्तालाप करना, वहाँ यदि कोई गाइड है तो उसे प्रश्न पूछना आदि बातों में शिक्षकों ने विद्यार्थीयों का मार्गदर्शन और सहायता करनी चाहिये। एक स्थान पर बार बार जाना होता नहीं है अतः पूर्ण रूप से अनुभव लेना आवश्यक है।  
 
# वापस आने के बाद अनुभव कथन और लेखन, वृत्त-कथन और लेखन, छायाचित्रों की प्रदर्शनी आदि कार्यक्रम करने चाहिये। अपना किस विषय के साथ कैसा सम्बन्ध जुड़ा यह भी समझाना चाहिये।  
 
# वापस आने के बाद अनुभव कथन और लेखन, वृत्त-कथन और लेखन, छायाचित्रों की प्रदर्शनी आदि कार्यक्रम करने चाहिये। अपना किस विषय के साथ कैसा सम्बन्ध जुड़ा यह भी समझाना चाहिये।  
 
# शैक्षिक भ्रमण यह क्रियात्मक शिक्षण ही है। शिक्षण में यदि आनन्द आता है तो यह विशेष लाभ है। यह आनन्द शैक्षिक है तो और भी लाभ है। आनन्द जानकारी की तरह बाहर से हृदय में नहीं डाला जाता, वह अन्दर जन्मता है और बाहर प्रकट होता है। ऐसे आनन्द का अनुभव आता है तो भ्रमण कार्यक्रम सार्थक हुआ यह कह सकते हैं। शिक्षकों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिये।  
 
# शैक्षिक भ्रमण यह क्रियात्मक शिक्षण ही है। शिक्षण में यदि आनन्द आता है तो यह विशेष लाभ है। यह आनन्द शैक्षिक है तो और भी लाभ है। आनन्द जानकारी की तरह बाहर से हृदय में नहीं डाला जाता, वह अन्दर जन्मता है और बाहर प्रकट होता है। ऐसे आनन्द का अनुभव आता है तो भ्रमण कार्यक्रम सार्थक हुआ यह कह सकते हैं। शिक्षकों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिये।  
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अतः विद्यालयों में केवल रंगमंच कार्यक्रम अर्थात् नृत्य, गीत, नाटक और रंगोली, चित्र, सुशोभन ही सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है। ये सब भी अपने आपमें सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हैं। उनके साथ जब शुभ और पवित्र भाव, शुद्ध आनन्द और मुक्ति की भावना जुडती हैं तब वे सांस्कृतिक कार्यक्रम कहे जाने योग्य होते हैं, अन्यथा वे केवल मनोरंजन कार्यक्रम होते हैं। संस्कृति के मूल तत्वों के अभाव में तो वे भडकाऊ, उत्तेजक और निकृष्ट मनोवृत्तियों का ही प्रकटीकरण बन जाते हैं। अतः पहली बात तो जिन्हें हम एक रूढि के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रम कहते हैं उन्हें परिष्कृत करने की अवश्यकता है। इसके लिये कुल मिलाकर रुचि परिष्कृत करने की आवश्यकता होती है।
 
अतः विद्यालयों में केवल रंगमंच कार्यक्रम अर्थात् नृत्य, गीत, नाटक और रंगोली, चित्र, सुशोभन ही सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है। ये सब भी अपने आपमें सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हैं। उनके साथ जब शुभ और पवित्र भाव, शुद्ध आनन्द और मुक्ति की भावना जुडती हैं तब वे सांस्कृतिक कार्यक्रम कहे जाने योग्य होते हैं, अन्यथा वे केवल मनोरंजन कार्यक्रम होते हैं। संस्कृति के मूल तत्वों के अभाव में तो वे भडकाऊ, उत्तेजक और निकृष्ट मनोवृत्तियों का ही प्रकटीकरण बन जाते हैं। अतः पहली बात तो जिन्हें हम एक रूढि के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रम कहते हैं उन्हें परिष्कृत करने की अवश्यकता है। इसके लिये कुल मिलाकर रुचि परिष्कृत करने की आवश्यकता होती है।
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साथ ही शरीर के अंगउपांगों से होने वाले सभी छोटे छोटे काम उत्तम और सही पद्धति से करने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये कागज चिपकाने का, कपडे की तह करने का, बस्ते में सामान जमाने का, कपडे पहनने का काम भी उत्तम पद्धति से करने का अभ्यास बनाना चाहिये।
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साथ ही शरीर के अंगउपांगों से होने वाले सभी छोटे छोटे काम उत्तम और सही पद्धति से करने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये कागज चिपकाने का, कपड़े की तह करने का, बस्ते में सामान जमाने का, कपड़े पहनने का काम भी उत्तम पद्धति से करने का अभ्यास बनाना चाहिये।
    
दूसरी आवश्यकता मनोभावों को शुद्ध करने की होती है।
 
दूसरी आवश्यकता मनोभावों को शुद्ध करने की होती है।
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# चरित्र का सम्मान करना होगा । शिक्षकों को स्वयं चरित्रवान बनकर विद्यार्थियों को चरित्रवान बनाना होगा।  
 
# चरित्र का सम्मान करना होगा । शिक्षकों को स्वयं चरित्रवान बनकर विद्यार्थियों को चरित्रवान बनाना होगा।  
 
# परीक्षा केन्द्रों को विद्यालय में लाना होगा। शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र दे सकें ऐसा विश्वसनीय बनना होगा।  
 
# परीक्षा केन्द्रों को विद्यालय में लाना होगा। शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र दे सकें ऐसा विश्वसनीय बनना होगा।  
# विद्यालय भवन और सुविधाओं से नहीं अपितु ज्ञान और चरित्र से जाना जाय इसे बार बार लोगों के समक्ष बताना होगा।  
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# विद्यालय भवन और सुविधाओं से नहीं अपितु ज्ञान और चरित्र से जाना जाय इसे बार बार लोगोंं के समक्ष बताना होगा।  
 
# धार्मिक ज्ञानधारा को युगानुकूल प्रवाहित करने हेतु अध्ययन और अनुसन्धान के कार्य को धार्मिक जीवनदृष्टि में केन्द्रित करना होगा।  
 
# धार्मिक ज्ञानधारा को युगानुकूल प्रवाहित करने हेतु अध्ययन और अनुसन्धान के कार्य को धार्मिक जीवनदृष्टि में केन्द्रित करना होगा।  
 
यह एक आन्तरिक परिवर्तन है और धैर्यपूर्वक निरन्तर प्रयास की अपेक्षा करता है । चाणक्य और तक्षशिला यदि आदर्श हैं तो इन आदर्शों को मूर्त करना कोई सरल काम नहीं है।
 
यह एक आन्तरिक परिवर्तन है और धैर्यपूर्वक निरन्तर प्रयास की अपेक्षा करता है । चाणक्य और तक्षशिला यदि आदर्श हैं तो इन आदर्शों को मूर्त करना कोई सरल काम नहीं है।

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