विक्रम और बेताल - स्वार्थ से फल की प्राप्ति नहीं होती

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विक्रम के बेताल को पकड़कर अपने कंधे पर बिठा लिया| कंधे पर बैठकर विक्रम ने बेताल से कहा मै तुम्हे एक कहानी सुनाऊंगा अगर तुमने कुछ बोला तो मै उड़ जाऊंगा | विक्रम से बेताल ने कहा की मै एक कहानी सुनाऊंगा उस कहानी अंत में एक प्रश्न पूछूँगा उसका उत्तर नहीं दिया तो तुम्हारे के सर के सौ टुकड़े हो जाएंगे | बेताल ने विक्रम को कहानी सुनने लगा |

एक राज्य में बहुत ही ज्ञानी साधू रहते थे |वह एक दिन नगर में घुमने निकले थे | साधू का दिया हुआ आशीर्वाद कभी असफल नही होता था | जैसे उन्होंने आगे की तरफ बढ़ा वैसे ही देखा की एक आदमी गरीबो में दान दे रहा था | साधू ने तय किया की वो उस दानी व्यक्ति के घर पर रुकेगा |

उस दानी व्यक्ति ने साधू की बहुत सेवा की | साधू उसकी दानवीरता और सेवा पर प्रसन्न हो गये और दानी व्यक्ति को कहा मै तुमारी सेवा से प्रसन्न हूँ | तुम मुझसे जो आशीर्वाद मागों गे ओ कभी असफल नहीं होगा |आप सवार्थ भाव से माँगा तो कभी पूरा नहीं होगा |

दानी व्यक्ति ने साधू से कहा मै निस्वार्थ भाव से मागूंगा | दानी व्यक्ति ने साधू से एसा आशीर्वाद माँगा की मेरे पास इतनी संपत्ति आए की मेरे हाथों द्वारा गरीबों को दान मिले |कुछ दिन बाद दानी व्यक्ति गरीब हो गया | अब उस दानी व्यक्ति की एसी हालत हो गई की जो दुसरे लोग दान देकर जाते थे उसी से उसका गुजरा चलता था |

बेताल ने विक्रम को कहानी सुनने के बाद एक प्रसन पूछा की परमज्ञानी साधू का आशीर्वाद सत्य क्यों नही हुआ क्या उस साधू को वरदान देने की सिद्धि नही प्राप्त थी क्या ?अगर तुमने इस प्रश्न का उत्तर जानते हुई भी उत्तर नही दिया तो तुम्हारे सर के सौ टुकड़े होकर तुम्हारे कदमों में गिर जायेंगे |

विक्रम ने उत्तर दिया की दानी व्यक्ति निस्वार्थ भाव से आशीर्वाद नही माँगा इस लिए साधू का आशीर्वाद असफल हो गया | अगर दानी व्यक्ति ने एसा आशीर्वाद माँगा होता की समाज में किसी को भी दान लेने की आवशकता ही ना पड़े और कोई गरीब ही ना रहे एसा आशीर्वाद मांगता तो इसे नीरस्वार्थी का रंग दिया जाता | इस लिए साधू का आशीर्वाद आसफल हो गया |