Difference between revisions of "विक्रम और बेताल - स्वार्थ से फल की प्राप्ति नहीं होती"

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उस दानी व्यक्ति ने साधू की पूरी श्रद्धा भाव से बहुत सेवा की | साधू महाराज दानी व्यक्ति की दानवीरता और सेवा पर प्रसन्न हो गये और दानी व्यक्ति को कहा मै तुम्हारी  सेवा से प्रसन्न हूँ | तुम मुझसे जो आशीर्वाद चाहते हो बताओ मै तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगा मेरा दिया हुआ आशीर्वाद कभी असफल नहीं होगा | तुम जोभी निस्वार्थ भाव से इच्छा करोगे वह पूर्ण होगा |
 
उस दानी व्यक्ति ने साधू की पूरी श्रद्धा भाव से बहुत सेवा की | साधू महाराज दानी व्यक्ति की दानवीरता और सेवा पर प्रसन्न हो गये और दानी व्यक्ति को कहा मै तुम्हारी  सेवा से प्रसन्न हूँ | तुम मुझसे जो आशीर्वाद चाहते हो बताओ मै तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगा मेरा दिया हुआ आशीर्वाद कभी असफल नहीं होगा | तुम जोभी निस्वार्थ भाव से इच्छा करोगे वह पूर्ण होगा |
  
दानी व्यक्ति ने साधू से कहा जी साधू महाराज मै निस्वार्थ भाव से ही मागूंगा  | दानी व्यक्ति ने साधू से ऐसा आशीर्वाद माँगा की मेरे पास इतनी संपत्ति आए की मेरे हाथों द्वारा गरीबों को दान मिले| कुछ दिन बाद दानी व्यक्ति  गरीब हो गया | अब उस दानी व्यक्ति की एसी हालत हो गई की जो दुसरे लोग दान देकर जाते थे उसी से उसका गुजरा चलता था |
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दानी व्यक्ति ने साधू से कहा जी साधू महाराज मै निस्वार्थ भाव से ही मागूंगा  | दानी व्यक्ति ने साधू से ऐसा आशीर्वाद माँगा की मेरे पास इतनी संपत्ति आए की मेरे हाथों द्वारा गरीबों को दान मिले कोई मेरे द्वार से कभी रिक्त हाथो ना जाये | कुछ दिन बाद दानी व्यक्ति  गरीब हो गया | दानी व्यक्ति की एसी हालत हो गई की जो दुसरे लोग दान लेकर जाते थे उसी से उसका गुजरा चलने लगा |
  
बेताल ने विक्रम को कहानी सुनने के बाद एक प्रसन पूछा की परमज्ञानी साधू का आशीर्वाद सत्य क्यों नही हुआ क्या उस साधू को वरदान देने की सिद्धि नही प्राप्त थी क्या ?अगर तुमने इस प्रश्न का उत्तर जानते हुई भी उत्तर नही दिया तो तुम्हारे सर के सौ टुकड़े होकर तुम्हारे कदमों में गिर जायेंगे |
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कहानी को मध्य में रोककर बेताल ने विक्रम से पूछा की परमज्ञानी साधू का आशीर्वाद सत्य क्यों नही हुआ क्या उस साधू को वरदान देने की सिद्धि नही प्राप्त थी क्या ?अगर तुम इस प्रश्न का उत्तर जानते हुए भी उत्तर नही दिया तो तुम्हारे सर के सौ टुकड़े होकर तुम्हारे कदमों में गिर जायेंगे |
  
विक्रम ने उत्तर दिया की दानी व्यक्ति निस्वार्थ भाव से आशीर्वाद नही माँगा इस लिए साधू का आशीर्वाद असफल हो गया | अगर दानी व्यक्ति ने एसा आशीर्वाद माँगा होता की समाज में किसी को भी दान लेने की आवशकता ही ना पड़े और कोई गरीब ही ना रहे एसा आशीर्वाद मांगता तो इसे नीरस्वार्थी का रंग दिया जाता | इस लिए साधू का आशीर्वाद आसफल हो गया |
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विक्रम ने उत्तर दिया की दानी व्यक्ति निस्वार्थ भाव से आशीर्वाद नही माँगा इस लिए साधू का आशीर्वाद असफल हो गया | अगर दानी व्यक्ति ने ऐसा आशीर्वाद माँगा होता की समाज में किसी को भी दान लेने की आवशकता ही ना पड़े और कोई गरीब ही ना रहे ऐसा आशीर्वाद मांगता तो इसे नीरस्वार्थी का रंग दिया जाता | इस लिए साधू का आशीर्वाद आसफल हो गया |

Revision as of 13:12, 7 September 2020

विक्रम ने बेताल को पेड़ से पकड़कर अपने कंधे पर बिठा लिया| कंधे पर बैठकर बेताल ने विक्रम से कहा मै तुम्हे एक कहानी सुनाऊंगा अगर तुमने कुछ बोला तो मै उड़ जाऊंगा | विक्रम से बेताल ने कहा की मै एक कहानी सुनाऊंगा उस कहानी अंत में एक प्रश्न पूछूँगा उस प्रश्न का उत्तर नहीं दिया तो तुम्हारे के सर के सौ टुकड़े हो जाएंगे | बेताल विक्रम को कहानी सुनाने लगा |

एक राज्य में बहुत ही तपस्वी और ज्ञानी साधू रहते थे, उनका दिया हुआ आशीर्वाद कभी असफल नही होता था | साधू महाराज एक दिन नगर में घुमने निकले| साधू महाराज जब नगर में घूम रहे थे तो उन्होंने देखा की एक आदमी गरीबो में दान दे रहा था | साधू महेराज को देखकर उस दानी ने साधू महाराज से अपने घर में कुछ दिन विश्रांति का आग्रह किया| साधू महाराज उस दानी व्यक्ति का आग्रह टाल ना सके और उस दानी व्यक्ति के घर ठहरने का निश्चय किया |

उस दानी व्यक्ति ने साधू की पूरी श्रद्धा भाव से बहुत सेवा की | साधू महाराज दानी व्यक्ति की दानवीरता और सेवा पर प्रसन्न हो गये और दानी व्यक्ति को कहा मै तुम्हारी सेवा से प्रसन्न हूँ | तुम मुझसे जो आशीर्वाद चाहते हो बताओ मै तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगा मेरा दिया हुआ आशीर्वाद कभी असफल नहीं होगा | तुम जोभी निस्वार्थ भाव से इच्छा करोगे वह पूर्ण होगा |

दानी व्यक्ति ने साधू से कहा जी साधू महाराज मै निस्वार्थ भाव से ही मागूंगा | दानी व्यक्ति ने साधू से ऐसा आशीर्वाद माँगा की मेरे पास इतनी संपत्ति आए की मेरे हाथों द्वारा गरीबों को दान मिले कोई मेरे द्वार से कभी रिक्त हाथो ना जाये | कुछ दिन बाद दानी व्यक्ति गरीब हो गया | दानी व्यक्ति की एसी हालत हो गई की जो दुसरे लोग दान लेकर जाते थे उसी से उसका गुजरा चलने लगा |

कहानी को मध्य में रोककर बेताल ने विक्रम से पूछा की परमज्ञानी साधू का आशीर्वाद सत्य क्यों नही हुआ क्या उस साधू को वरदान देने की सिद्धि नही प्राप्त थी क्या ?अगर तुम इस प्रश्न का उत्तर जानते हुए भी उत्तर नही दिया तो तुम्हारे सर के सौ टुकड़े होकर तुम्हारे कदमों में गिर जायेंगे |

विक्रम ने उत्तर दिया की दानी व्यक्ति निस्वार्थ भाव से आशीर्वाद नही माँगा इस लिए साधू का आशीर्वाद असफल हो गया | अगर दानी व्यक्ति ने ऐसा आशीर्वाद माँगा होता की समाज में किसी को भी दान लेने की आवशकता ही ना पड़े और कोई गरीब ही ना रहे ऐसा आशीर्वाद मांगता तो इसे नीरस्वार्थी का रंग दिया जाता | इस लिए साधू का आशीर्वाद आसफल हो गया |