Difference between revisions of "विक्रम और बेताल - स्वार्थ से फल की प्राप्ति नहीं होती"
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− | विक्रम के कंधे | + | विक्रम के कंधे पर बेताल बैठकर विक्रम से कहा मै आप को एक कहानी सुनाऊंगा अगर तुमने कुछ बोला तो मै उड़ जाऊंगा | विक्रम से वैताल ने कहा की मै एक कहानी सुनाऊंगा उस कहानी अंत में आप उत्तर नहीं दिया तो तुम्हारे के सर के सौ टुकड़े हो जाएंगे | बेताल ने विक्रम को कहानी सुनने लगा | |
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+ | एक राज्य में एक बहुत ही ज्ञानी साधू रहते थे |वह एक दिन नगर में घुमने निकले थे | साधू का दिया हुआ आशीर्वाद कभी असफल नही होता था | जैसे उन्होंने आगे की तरफ बढ़ा वैसे ही देखा की एक आदमी गरीबो में दान दे रहा था | साधू ने तय किया की वो उस दानी व्यक्ति के घर पर रुकेगा | | ||
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+ | उस दानी व्यक्ति ने साधू की बहुत सेवा की | साधू उसकी दानवीरता और सेवा पर प्रसन्न हो गये | |
Revision as of 12:32, 4 September 2020
विक्रम के कंधे पर बेताल बैठकर विक्रम से कहा मै आप को एक कहानी सुनाऊंगा अगर तुमने कुछ बोला तो मै उड़ जाऊंगा | विक्रम से वैताल ने कहा की मै एक कहानी सुनाऊंगा उस कहानी अंत में आप उत्तर नहीं दिया तो तुम्हारे के सर के सौ टुकड़े हो जाएंगे | बेताल ने विक्रम को कहानी सुनने लगा |
एक राज्य में एक बहुत ही ज्ञानी साधू रहते थे |वह एक दिन नगर में घुमने निकले थे | साधू का दिया हुआ आशीर्वाद कभी असफल नही होता था | जैसे उन्होंने आगे की तरफ बढ़ा वैसे ही देखा की एक आदमी गरीबो में दान दे रहा था | साधू ने तय किया की वो उस दानी व्यक्ति के घर पर रुकेगा |
उस दानी व्यक्ति ने साधू की बहुत सेवा की | साधू उसकी दानवीरता और सेवा पर प्रसन्न हो गये |